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मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप बंद करने के ख़िलाफ़ छात्रों में ग़ुस्सा, मंत्रालय के सामने किया प्रदर्शन

अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले के तौर पर देखते हुए स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया समेत अन्य छात्र संगठनों ने इस योजना को बंद करने के ख़िलाफ़ सोमवार को विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान महिलाओं सहित कई छात्रों को हिरासत में लिया गया।
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मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप (एमएएनएफ़) योजना को अचानक बंद किए जाने के ख़िलाफ़ एसएफ़आई कार्यकर्ताओं ने अन्य छात्र संगठनों के साथ शिक्षा मंत्रालय के सामने आज यानी सोमवार को प्रदर्शन किया। इस दौरान कई छात्रों को पुलिस ने हिरासत में लिया। देर शाम उन्हें छोड़ दिया गया।

अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले के तौर पर देखते हुए स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने एमएएनएफ को बंद करने के ख़िलाफ़ 12 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। इस प्रदर्शन के दौरान महिलाओं सहित कई छात्रों को जब़रदस्ती हिरासत में लिया गया और उन्हें चोटें आई हैं। हिरासत में लेते समय छात्र को घसीटा गया जिससे एक छात्र बेहोश हो गया। वहीं महिला साथियों के साथ पुरुष पुलिस अधिकारियों ने मारपीट की है।

एसएफ़आई की दिल्ली इकाई ने अपने बयान में कहा कि एमएएनएफ़ फैलोशिप को बंद करने का सरकार का निर्णय देश के अल्पसंख्यकों के प्रति सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये को दर्शाता है। इसे छात्र विरोधी नई शिक्षा नीति के जारी रहने के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। एसएफ़आई सार्वजनिक शिक्षा के लिए लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है और एमएएनएफ़ योजना को बहाल करने की मांग करता है।

ज्ञात हो कि 8 दिसंबर को एक सांसद के सवाल के जवाब में स्मृति ईरानी ने बताया कि एमएएनएफ़ स्कॉलरशिप वापस ले ली जाएगी क्योंकि अल्पसंख्यक समुदायों के छात्र को अन्य योजनाओं के तहत लाभ मिल रहा है। एमएएनएफ़ को 2008 में छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों- बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, पारसी, सिख और जैन समुदायों के छात्रों को वित्तीय सहायता देने करने के लिए पेश किया गया था। एसएफ़आई ने इस तरह के निर्णय को इन छात्रों के लिए बड़ा झटका बताया है है और कहा है कि भविष्य में उच्च शिक्षा हासिल करने की उनकी सभी उम्मीदों को ख़त्म करता है।

पहले ही कई छात्रों ने बताया है कि फैलोशिप के वितरण में नौ महीने की देरी के कारण छात्रों के वित्तीय बोझ बढ़े हैं जिसके चलते कई छात्रों को अपने शोध कार्य को रोकना पड़ा।

उधर पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की पढ़ाई कर रहे पीएचडी छात्र गुरलाभ सिंह ने झकझोरने वाला एक सवाल किया कि "अगर मदद करने वाला कोई नहीं होगा तो मज़दूरों के बेटे और बेटियां शोधकर्ता कैसे बनेंगे?" वे मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप के बंद होने से सदमे में हैं। सिंह उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें पंजाब में मतदाताओं के मतदान पैटर्न पर अपना शोध जारी रखने के लिए बेहद ज़रूरी फ़ेलोशिप मिलेगी। हालांकि, हज़ारों शोध छात्रों की उम्मीदें उस समय धराशायी हो गईं, जब अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने सांसद टी एन प्रतापन के सवाल के जवाब में लोकसभा सदस्यों को बताया कि केंद्र ने मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फ़ेलोशिप को ख़त्म कर दिया है क्योंकि यह सरकार द्वारा जाने वाली इसी तरह की मौजूदा योजनाओं के साथ ओवरलैप करता है।

ईरानी ने कहा कि, “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा एमएएनएफ़ योजना लागू की गई थी और यूजीसी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2014-15 और 2021-22 के बीच इस योजना के तहत 6,722 उम्मीदवारों का चयन किया गया था और 738.85 करोड़ रुपये की फ़ेलोशिप इसी अवधि में दी गई। एमएएनएफ़ योजना सरकार द्वारा लागू की जा रही उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न अन्य फ़ेलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप करती है और अल्पसंख्यक छात्र पहले से ही ऐसी योजनाओं के तहत कवर किए गए हैं, इसलिए सरकार ने 2022-23 से एमएएनएफ़ योजना को बंद करने का फ़ैसला किया है।"

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप योजना (एमएएनएफ) का उद्देश्य एमफ़िल और पीएचडी करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित छह अल्पसंख्यक समुदायों-बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख के छात्रों को वित्तीय सहायता के रूप में पांच साल की फ़ेलोशिप दी जाती है। यह योजना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा मान्यता प्राप्त सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों को कवर करती है।

हालांकि, सिंह जैसे छात्रों का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदायों के छात्र अपने शोध के लिए फ़ेलोशिप पर काफ़ी ज़्यादा निर्भर थे। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सिंह ने कहा, "एक शोध छात्र सिर्फ़ किताब ख़रीदने के लिए एक लाख रुपये ख़र्च करता है। इसके अलावा फ़ील्ड विजिट, इंटरव्यू और फोटोकॉपी पर होने वाला ख़र्च अतिरिक्त है। हमारे देश में शोध का सफ़र ऐसा है कि माता-पिता भी उम्मीद करते हैं कि हम परिवार के लिए आर्थिक रूप से मदद करें। पंजाब में सिख और मुस्लिम छात्र अगली अधिसूचना का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। यह हमारे लिए बहुत बड़ा झटका है। मेरे पिता परिवार का ख़र्च चलाने के लिए मज़दूरी करते हैं। इसलिए, अब मुझे आगे अपना शोध जारी रखना काफ़ी मुश्किल होगा।”

एक अन्य शोध छात्र अमरिंदर सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि फ़ेलोशिप पंजाब में बेरोज़गारी के रेगिस्तान में एक उम्मीद की तरह लग रही थी। उन्होंने कहा, 'केंद्र ने 2016-17 में फ़ेलोशिप पाने के लिए शर्त में संशोधन किया था। फ़ेलोशिप का लाभ उठाने के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास करना ज़रूरी हो गया था। इससे पहले, यह अल्पसंख्यक छात्रों के लिए उपलब्ध था। अब, उन्होंने फ़ेलोशिप को पूरी तरह से बंद कर दिया है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा सहमत न होने के कारण सहायक प्रोफेसरों के लिए नई रिक्तियों (भर्ती के लिए) की वापसी के बाद से शोध छात्र पहले से ही संकट में हैं। ये भर्ती 22 साल बाद शुरू की गई थी और उसे भी रद्द कर दिया गया है। आप हमारी हताशा को समझ सकते हैं!”

पंजाबी विश्वविद्यालय से काफ़ी दूर नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़ारसी का अध्ययन करने वाले एक पीएचडी छात्र जुनैद रज़ा कहते हैं कि ओवरलैपिंग का तर्क एमएएनएफ़ के मामले में सही नहीं है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए जेएनयू छात्र संघ के काउंसलर रज़ा ने कहा कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति को ख़त्म करने के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा झटका है। उन्होंने कहा, “ईरानी कह रही हैं कि यह योजना ओवरलैप हो रही थी क्योंकि मुस्लिम जो ओबीसी हैं, वे इस फ़ेलोशिप के साथ-साथ ओबीसी के लिए नेशनल फ़ेलोशिप का लाभ उठा सकते हैं। लेकिन उनका क्या जो ओबीसी नहीं हैं? और यह एक बड़ी संख्या है। इसी तरह मुसलमानों की बहुत छोटी आबादी को भी जनजाति माना जाता है। इसलिए, इस फ़ेलोशिप को ख़त्म करना इस देश में अल्पसंख्यकों पर एक बड़ा हमला है।”

अचानक की गई इस घोषणा ने छात्र संगठनों को नाराज़ कर दिया है, जिन्होंने इस कैंपस के साथ साथ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव मयूख बिस्वास ने एक बयान में कहा, "इस फ़ेलोशिप के वितरण में काफ़ी देरी के बाद केंद्र सरकार द्वारा इस तरह का निर्णय लिया गया है, शोधार्थियों को पिछले नौ महीने से अधिक समय से राशि नहीं मिली है। कोरोना महामारी के दौरान और बाद में प्रणालीगत और संस्थागत मदद की कमी के कारण शोधकर्ताओं परेशानियों का सामना करना पड़ा है। बिल के भुगतान न होने की चिंता और देरी के कारण बढ़ते ख़र्च बोझ से बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदायों के शोधकर्ताओं ने अपनी शोध कार्यों को रोक दिया है। यह सही है कि ऐसे कई छात्रों के लिए एमएएनएफ़ योजना शोधकर्ताओं के परिवारों को जीवन रेखा के समान है।"

उन्होंने आगे कहा, “इसलिए, केंद्र सरकार द्वारा एमएएनएफ़ योजना को बंद करने के इस प्रयास का उन सभी लोगों द्वारा कड़ा विरोध किया जाना चाहिए जो भारत की शिक्षा प्रणाली का लोकतंत्रीकरण करना चाहते हैं। पिछले साल संघ परिवार द्वारा युवा मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित करने और शिक्षा के स्थानों को हड़प कर एक आक्रामक बहुसंख्यकवादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद स्थापित करने के प्रयासों का गवाह रहा है।”

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