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लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं...

हिंदी के अनूठे कवि-लेखक, अनुवादक, पत्रकार विष्णु खरे की 19 सितंबर को दूसरी पुण्यतिथि थी। आइए आज इतवार की कविता में पढ़ते हैं उनकी एक महत्वपूर्ण कविता- डरो।
Vishnu Khare

डरो

 

कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया

न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

 

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया

न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था

 

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो

न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

 

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो

न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

 

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है

न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

 

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं

न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

 

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है

न डरो तो डरो कि हुक्म होगा कि डर

 

-          विष्णु खरे

(कविता साभार : कविता कोश)

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