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हैदराबाद मुठभेड़ की एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

याचिका में दावा किया गया है कि यह मुठभेड़ ‘फर्जी’ थी और इस घटना में संलिप्त संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।
supreme court

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बुधवार को विचार करेगा कि क्या हैदराबाद में पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या के चारों आरोपियों की कथित मुठभेड़ में हुई मौत की घटना की जांच एसआईटी से कराने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई की जाये।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को इस मामले की शीघ्र सुनवाई करने के वकील जी एस मणि के अनुरोध का संज्ञान लिया। मणि ने कहा कि इस मुठभेड़ में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।

एक अन्य अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने भी इसी तरह की याचिका दायर की है जिसमें उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में विशेष जांच दल की जांच कराने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में मणि और वकील प्रदीप कुमार यादव ने दावा किया है कि यह मुठभेड़ ‘फर्जी’ थी और इस घटना में संलिप्त संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।

तेलंगाना पुलिस का कहना है कि शुक्रवार को पुलिस के साथ मुठभेड़ में चारों आरोपी मारे गये। यह घटना शुक्रवार को सुबह साढ़े छह बजे उस समय हुई जब पुलिस इस अपराध की जांच के सिलसिले में इन आरोपियों को घटना स्थल पर ले गयी थी।

साइबराबाद पुलिस का कहना है कि दो आरोपियों ने पुलिसकर्मी से हथियार छीन लिए थे और गोलियां चलानी शुरू कर दी थीं जिसके बाद पुलिस ने ‘जवाबी कार्रवाई’ में गोलियां चलाईं।

चारों आरोपी हैदराबाद के निकट उसी राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर मारे गये जहां 26 वर्षीय पशु चिकित्सक का बुरी तरह जला हुआ शव मिला था। मणि और यादव ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में गिरफ्तार इन आरोपियों का कोई भी समर्थन नहीं कर रहा है।

याचिका में कहा गया है कि पुलिस आयुक्त स्तर के उच्च अधिकारियों और जांच एजेन्सी द्वारा कानून अपने हाथ में लेकर फर्जी मुठभेड़ में बलात्कार के चारों आरोपियों को मार गिराना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

याचिका के अनुसार, ‘पुलिस जैसी जांच एजेन्सी सहित किसी को भी कानून की प्रक्रिया का पालन किये बगैर किसी आरोपी को सजा देने का अधिकार नहीं है। सिर्फ अदालत ही आरोपियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर प्रदान कर सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुये दोषी को उम्र कैद या मौत की सजा दे सकती है।’

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