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क्या शांति की ओर बढ़ रहा है अफ़ग़ानिस्तान?

अफ़गान अर्थव्यवस्था को उबारने में चीन की तत्परता एक बिल्कुल नया कारक है। अब बाइडेन प्रशासन अफ़गानिस्तान और मध्य एशिया में और अधिक उलझावों में शामिल नहीं होना चाहता है, इन हालत में अफ़गानिस्तान के पड़ोसी देश मुख्य हितधारक बन रहे हैं – जैसे कि ईरान, तुर्कमिनिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और पाकिस्तान, जिनकी पहली प्राथमिकता अफ़गानिस्तान में स्थिरता और शांति बहाल करना है।
Afghanistan
तालिबान अंतरिम सरकार के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और वरिष्ठ मंत्रियों ने 21 सितंबर 2021 को काबुल में रूस, चीन और पाकिस्तान के विशेष दूतों से मुलाकात की।

पंजशीर घाटी में एक भारतीय समाचार वेबसाइट ने गुरुवार की सुबह बताया कि अशरफ़ गनी सरकार में पूर्व अफ़गान उप-राष्ट्रपति और सुरक्षा ज़ार अमरुल्ला सालेह ने ताजिकिस्तान में शरण ले ली हैं और उन्हें ताजिकिस्तान सरकार द्वारा उनके देश में प्रवेश के लिए सुरक्षित मार्ग भी दे दिया गया है।

यह बात 17 सितंबर को ताजिक राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच दुशांबे में "लंबी बैठक" के कुछ दिनों के भीतर उभर कर आई है, सनद रहे कि अमरुल्ला सालेह ने काबुल में तालिबान सरकार के प्रति सर्वसम्मति के दृष्टिकोण की शर्तों को खारिज़ कर दिया था।

इमरान खान ने बाद में संकेत दिया कि वह अफ़गानिस्तान में तालिबान शासन को स्वीकार करने के लिए रहमोन की पूर्व शर्त पर काम करेंगे। रहमोन ने बाद में इमरान खान की उपस्थिति में एक मुख्य भाषण में कहा कि वे "हमारे देशों के बीच नियमित राजनीतिक संपर्कों की प्रक्रिया से संतुष्ट हैं" और कराची और ग्वादर के बंदरगाहों के साथ संपर्क रखने में रुचि रखते हैं साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के लिए "क्षेत्रीय गलियारों और परिवहन परियोजनाओं में शामिल होने" की भी तस्दीक करते हैं।

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रहमोन ने जोर देकर कहा कि दुशांबे के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि "अफ़गानिस्तान में स्थिति सौहार्दपूर्ण रहे, ताकि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवहन नेटवर्क को जोड़ने वाले देश के रूप में उसे आसानी हो।“ उन्होंने आशा व्यक्त की कि निकट भविष्य में अफ़गानिस्तान में शांति और स्थिरता बहाल होगी और सभी राजनीतिक और जातीय समूहों के हितों को ध्यान में रखा जाएगा। हम इस देश में सभी सामाजिक समूहों की भागीदारी के साथ समावेशी सरकार का समर्थन करते हैं।”

महत्वपूर्ण रूप से, रहमोन और इमरान खान इस बात पर सहमत हुए कि "युद्धविराम की घोषणा करके और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए सड़कों को खोलकर पंजशीर प्रांत में संघर्ष और तनाव को तेजी से रोकना आज सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।" और दोनों नेता "इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी प्रयासों को तेज करने पर सहमत हुए हैं।"

रहमोन ने अंत में कहा कि "हम दुशांबे में तालिबान और ताजिकों के बीच वार्ता को सुविधाजनक बनाने पर सहमत हैं।''

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दुशांबे ने आखिरकार तालिबान को हक़ीक़त के रूप में स्वीकार कर लिया है। इमरान खान ने रहमोन पर जीत हासिल की है, जो तालिबान के जिद्दी और अड़ियल आलोचक रहे हैं।

इस बात को पूरी तरह से समझा जा सकता है कि रहमोन ने सालेह को "सुरक्षित मार्ग" प्रदान किया ताकि पंजशीर घाटी में संघर्ष को समाप्त करने और तालिबान के साथ सुलह वार्ता शुरू करने के लिए एक मंच हो।

उसके बाद, 21-22 सितंबर को काबुल में एक संयुक्त रूसी-चीनी-पाकिस्तानी राजनयिक मिशन ने तालिबान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद, कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी, कार्यवाहक वित्तमंत्री हिदायतुल्ला बद्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की है, इसके अलावा अफ़गानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और राष्ट्रीय सुलह के लिए शीर्ष परिषद के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला भी बैठक में शामिल थे।

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चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कई मुद्दों पर "गहन और रचनात्मक चर्चा" हुई है, "विशेषकर समावेशिता, मानवाधिकार, आर्थिक और मानवीय मुद्दों, अफ़गानिस्तान और अन्य देशों के बीच, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों बनाने पर, और देश की एकता और क्षेत्रीय अखंडता” को मजबूत करने पर भी चर्चा हुई है। तालिबान नेताओं ने इस बात की सराहना की है कि तीनों देश अफ़गानिस्तान में "शांति और स्थिरता को मजबूत करने में एक रचनात्मक और जिम्मेदार भूमिका निभा रहे हैं"।

ऐसा लगता है कि काबुल में बैठक से निकले परिणाम की रपट, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के विदेश मंत्रियों की बुधवार को न्यूयॉर्क में हुई बैठक जिसकी अध्यक्षता महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने की थी, को दी गई है। मीडिया को बाद में दी गई टिप्पणियों में, गुटेरेस आशावादी लग रहे थे।

गौरतलब है कि पी-5 की यह बैठक ब्रिटेन की पहल पर हुई है, जिसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति बाइडेन से मुलाकात की थी।

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10 डाउनिंग स्ट्रीट से बाद में जारी किए गए एक रीड-आउट में इस बात को सारांशित किया गया कि जॉनसन और बाइडेन ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि "अफगानिस्तान को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए और इसके लिए अपनी जान गँवाने वाले सभी लोगों को सम्मानित करने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि सभी राजनयिक और मानवीय साधनों का उपयोग किया जाए ताकि एक मानवीय संकट को रोका जा सके और अफ़गानिस्तान में अर्जित लाभ को संरक्षित किया जा सके।"

मंगलवार को अपने संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण में अपनी संयमित भाषा का इस्तेमाल करते हुए बाइडेन के संक्षिप्त संदर्भों में कहा कि उन्होंने "लंबे युद्ध (अफगानिस्तान में) को खत्म  करने लिए अथक कूटनीति के नए युग को खोलने" की अगुवाई की है। बाइडेन ने अफ़गानिस्तान में किसी भी "हमले" या सैन्य अभियानों का कोई धमकी भरा संदर्भ नहीं दिया और तालिबान का कमतर चित्रण करने से भी परहेज किया।

दिलचस्प बात यह है कि बाइडेन ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत की, लेकिन "मध्य अमेरिका से लेकर मध्य पूर्व तक, अफ्रीका तक, अफ़गानिस्तान तक, दुनिया भर में महिलाओं के प्रति यही सब दिखाई देता है।"

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लब्बोलुआब यह है कि तालिबान सरकार के साथ जुड़ने की अनिवार्य आवश्यकता पर पाकिस्तानी समझ लगातार ज़ोर पकड़ रही है। पाकिस्तान का मंत्र है: “यथार्थवादी बनो। धैर्य दिखाओ। काम पर लगो। और सबसे बढ़कर, अलग-थलग न हों।" - एक एपी की रपट में न्यूयॉर्क में यूएनजीए के मौके पर बुधवार को विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ एक विशेष साक्षात्कार को बड़े करीने से सारांशित किया गया है।

तालिबान सरकार को मान्यता देने पर, इमरान खान ने इस सप्ताह बीबीसी से कहा, "हम सामूहिक रूप से एक निर्णय लेंगे... हमें लगता है कि सभी पड़ोसी देश एक साथ मिल जाएंगे, हम देखेंगे कि वे [तालिबान] कैसे प्रगति करते हैं, और फिर सामूहिक निर्णय होगा कि उन्हें मान्यता देनी है या नहीं।"

उन्होंने रेखांकित किया कि "अफ़गानिस्तान में तब तक कोई दीर्घकालिक स्थायी शांति नहीं होगी जब तक कि सभी गुटों, सभी जातीय समूहों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है।"

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क्षेत्रीय सर्वसम्मति के माध्यम से काम करने का पाकिस्तान का निर्णय, एक रणनीतिक रूप से विवेकपूर्ण है, जो अफ़गानिस्तान के पड़ोसियों के लिए उनके आराम के स्तर को बढ़ाता है। इसलिए रहमोन के साथ इमरान खान की समझ अहम हो जाती है।

इमरान खान बीबीसी साक्षात्कार में जैसे कि अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे रहे थे, वे तालिबान शासन के तहत महिलाओं के अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं और आदि पर खुलकर चर्चा कर रहे थे। लेकिन उनका अनकहा संदेश काफी कठोर था, तालिबान सरकार के साथ जुड़ने का विकल्प क्या है- इसे कोसना, झूठ बोलना या उसे असंवदेनशील बनाना?

शायद, इसमें से किसी पोकर गेम की बू आ रही है क्योंकि इमरान खान जानते हैं कि पाकिस्तान एक मजबूत हाथ पकड़ रहा है और जीत का दावा करने के लिए उसे दिखावा करने की जरूरत नहीं है। लेकिन पाकिस्तान ने 1990 के दशक के अनुभव से सीखा है -एक विजयी दिमाग के साथ अंग बाहर निकाल कर जाने में भारी जोखिम होता है।

आज बाहरी वातावरण पाकिस्तानी कूटनीति के अनुकूल काम कर रहा है। अफ़गान अर्थव्यवस्था को उबारने में चीन की तत्परता एक बिल्कुल नया कारक है। अब बाइडेन प्रशासन अफ़गानिस्तान और मध्य एशिया में और अधिक उलझावों में शामिल नहीं होना चाहता है और वह विश्व स्तर पर कहीं और तेज हो रही बड़ी शक्ति वाली रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रहा है तो इन हालत में अफ़गानिस्तान के पड़ोसी देश मुख्य हितधारक बन रहे हैं – जैसे कि ईरान, तुर्कमिनिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और पाकिस्तान, जिनकी पहली प्राथमिकता अफ़गानिस्तान में स्थिरता और शांति बहाल करना है।

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तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति बर्दीमुहामेदोव ने संभवत: इस क्षेत्र पर ही बात की थी जब उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में यूएनजीए में अपने भाषण में कहा था, "वहां स्थिति आसान नहीं है, सरकार और सार्वजनिक संस्थान जो बन रहे हैं वे बहुत नाजुक हैं। यही कारण है कि देश में स्थिति का आंकलन करने के लिए शब्दों और कार्यों, दोनों में परम स्थिरता, विवेक और जिम्मेदारी की जरूरत है।

"अफ़गानिस्तान की स्थिति बदल गई है, और इसके प्रति कोई भी दृष्टिकोण बनाते समय, किसी को वैचारिक प्राथमिकताओं, पुरानी द्वेष, भय और रूढ़ियों को त्यागने की जरूरत है, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण अफ़फगान लोगों के बारे में सोचना है जो युद्ध और अशांति से थके हुए हैं और एक शांतिपूर्ण और शांत जीवन चाहते हैं।

“तुर्कमेनिस्तान राजनीतिक रूप से स्थिर और सुरक्षित अफ़गानिस्तान में गहरी दिलचस्पी रखता है। हम जल्द से जल्द अफ़गानिस्तान में स्थिति को सामान्य करने का आह्वान करते हैं और उम्मीद करते हैं कि नई सरकारी एजेंसियां सभी अफ़गान लोगों के हितों में प्रभावी ढंग से काम करेंगी। तुर्कमिनिस्तान अफ़गानिस्तान को व्यापक आर्थिक सहायता और मानवीय सहायता प्रदान करना जारी रखेगा।"

दरअसल, इस क्षेत्र में मूड मौलिक रूप से बदल रहा है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि अफ़गानिस्तान अधिक शांत स्थान बन गया है। हिंसा और रक्तपात बंद हो गया है। गृहयुद्ध की स्थितियाँ कम होती जा रही हैं।

मूड में बदलाव ईरानी मीडिया में करजई के हालिया साक्षात्कार से परिलक्षित होता है जहां उन्होंने कहा कि तालिबान अफ़गानिस्तान से हैं और वे लोगों का हिस्सा हैं, वे अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं और शांत और शांतिपूर्ण जीवन चाहते हैं।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

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