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तमिलनाडु के मछुआरे समुद्री मत्स्य उद्योग विधेयक के ख़िलाफ़ अपना विरोध तेज़ करेंगे

मछुआरे समुदाय का आरोप है कि विधेयक और ब्ल्यू इकॉनमी मसौदा नीति कॉर्पोरेट संस्थाओं के हितों का पक्षपोषण करती है।
Tamil Nadu

तमिलनाडु के मछुआरा समुदाय ने फैसला लिया है कि वे समुद्री मात्स्यिकी विधेयक, 2021 के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन को और तेज करेंगे। इसके अलावा, ब्लू इकॉनमी पर मसौदा नीतिगत ढांचा, जिसमें सतत विकास के लिए समुद्री संसाधनों का इस्तेमाल किये जाने की परिकल्पना की गई है, ने मछुआरों की नाराजगी मोल लेने का काम किया है। उनका आरोप है कि इसके प्रकाशन से पूर्व हितधारकों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया था।

मछुआरों ने आरोप लगाया है कि विधेयक और मसौदे में पारंपरिक मछुआरों के अधिकारों के खिलाफ भारी-भरकम ढेर खड़ा कर दिया गया है, जबकि कंपनियों को इस बात की पूरी आजादी दी गई है कि वे समुद्री भूभाग से अपने लाभ को अर्जित करने के लिए संसाधनों का जम कर दोहन कर सकें। हालाँकि मसौदे में संसाधनों के सतत विकास और उपयोग को प्राथमिकता दी गई है, किन्तु मछुआरों ने विस्थापन और आजीविका के नुकसान की आशंका व्यक्त की है।

तमिलनाडु मत्स्य कर्मी महासंघ (टीएनएफडब्ल्यूएफ) के राज्य सम्मेलन ने भी केंद्र से विधेयक को वापस लेने और मछुआरों और मत्स्य पालन से जुड़े श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने के लिए मसौदे को त्यागने के लिए कहा है।

ब्लू इकॉनमी मसौदा पारंपरिक मछुआरों को विस्थापित कर देगा

2020 में प्रकाशित की गई मसौदा नीति ने ब्लू इकॉनमी को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उप-समूह के तौर पर परिभाषित किया है। इसमें भारत के क़ानूनी अधिकार क्षेत्र के भीतर समुद्री, समुद्री तटवर्ती एवं तटवर्ती तटीय क्षेत्रों में समुद्री संसाधनों और मानव निर्मित आर्थिक बुनियादी ढाँचे की समूची प्रणाली को शामिल किया गया है, जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में मदद करने के साथ-साथ आर्थिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ स्पष्ट रूप से जुड़ी हुई है।

हालाँकि अखिल भारतीय मछेरे एवं मत्स्य पालक श्रमिक महासंघ (एआईएफएफडब्ल्यूएफ) के राष्ट्रीय सचिव, पी स्टेनली ने कहा है कि “केंद्र सरकार द्वारा मत्स्य पालन को लेकर शुरू की गई हालिया नीतियां समुद्र से अपनी आजीविका कमाने वाले लोगों के लिए भारी बाधाओं को खड़ा करने का काम करती हैं। विशेषकर पारंपरिक मछुआरों के लिए यह बेहद नुकसानदायक है।” न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने आगे बताया “हम भाजपा सरकार की ब्लू इकॉनमी नीति के मसौदे का कड़ा विरोध करते हैं, जो सिर्फ कॉर्पोरेट घरानों को ही हित साधती है।”

मसौदे पर भू-विज्ञान मंत्रालय द्वारा परामर्श और राय के आमंत्रण पर स्टेनली ने आरोप लगाया कि हितधारकों को अपनी दुर्दशा और आपत्तियों को सुनाने और उस पर सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया गया। उनका कहना था कि “मसौदा नीति समुद्र में उपलब्ध संसाधनों की खोज के बारे में तो जिक्र करता है, लेकिन सारी कहानी अंत में इसके भरपूर दोहन पर खत्म होने जा रही है। कॉर्पोरेट संस्थाओं के पास पर्यटन, खेल गतिविधियों को शुरू करने और समुद्र के तल से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की खुली आजादी होगी, जिसका परंपरागत तौर पर मछली पकड़ने वाले मछुआरों पर भारी दुष्प्रभाव पड़ने जा रहा है। इसलिए मसौदे को बिना किसी पूर्व-शर्त के रद्द किये जाने की आवश्यकता है।”

‘समुद्री मत्स्य-पालन विधेयक को वापस लो’

टीएनएफडब्ल्यूएफ ने मांग की है कि केंद्र को कॉर्पोरेट संस्थाओं को खुलकर शासन करने का मौका देने के बजाय सीधे तौर पर मछुआरा समुदाय के युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराना चाहिए। इसने आगे कहा है कि यह विधेयक सिर्फ समुद्री धन का कार्पोरेटीकरण करेगा और इसलिए इसे वापस लिया जाना चाहिए।

टीएनएफडब्ल्यूएफ के महासचिव एस एंथोनी का कहना था “हमने सभी तटीय जिलों में इस विधेयक के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन आयोजित किये हैं। यदि केंद्र सरकार हमारी मांगों के प्रति असंवेदनशील बनी रही तो यह विरोध प्रदर्शन और भी तीखा होने जा रहा है।

इस समुदाय का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा द्वारा मछली पकड़ने के लिए अलग से मंत्रालय बनाने का वायदा अभी तक पूरा नहीं किया गया है। सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन की (राज्य ईकाई) के उप महासचिव, वी कुमार ने कहा “तटीय क्षेत्रों को कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए मौज-मस्ती, मनोरंजन और अनुसंधान के लिए खोल देने से समुद्र पर निर्भर दो करोड़ से अधिक की आबादी के लिए आजीविका का संकट खड़ा हो सकता है। विधेयक राज्य सरकारों के अधिकारों का भी अतिक्रमण करता है जो कि संघीय ढाँचे के उसूलों के खिलाफ है।”

इसे भी पढ़ें:  तमिलनाडु: मछली पालन बिल को वापस लेने की मांग को लेकर मछुआरों का विरोध प्रदर्शन

राज्य सरकार को मांगें पूरी करनी होगी

नेताओं की ओर से मांग की गई है कि राज्य सरकार को मछुआरा समुदाय की बहु-प्रतीक्षित मांगों, जिसमें अंतर्देशीय मछुआरों और मछली विक्रेताओं की मांगे भी शामिल हैं, को अवश्य पूरा किया जाना चाहिए। कुमार के अनुसार “राज्य सरकार को मछुआरों के लिए अलग से एक स्वतंत्र कल्याण बोर्ड बनाना चाहिए और इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि नामांकन और नवीनीकरण प्रक्रिया सरल हो। 60 साल से अधिक की उम्र के मछुआरों और 55 से उपर की महिला कर्मियों के लिए 3,000 रूपये की मासिक पेंशन की मांग को पूरा किया जाये।”

अन्य मांगों में, डीजल और केरोसिन से चलने वाली देसी मछुआरा नावों के लिए उच्च सब्सिडी सहित मछली पकड़ने पर प्रतिबन्ध के दौरान सरकारी सहायता को भी राज्य सरकार द्वारा पूरा नहीं किया गया है। राज्य सरकार को मछुआरा बस्तियों के आवास के मुद्दे पर भी ध्यान देने की जरूरत है, जिसे निर्यात से भारी-भरकम आय अर्जित होती है। मत्स्य पालन नीति के नोट के मुताबिक, राज्य सरकार ने 2018-19 में विदेशी मुद्रा के रूप में 5,591.49 करोड़ रूपये का राजस्व अर्जित किया था।

एंथोनी ने कहा “आबादी के लिए स्वास्थ्यकर भोजन को सुनिश्चित करने और सरकार के लिए राजस्व की व्यवस्था करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद मछुआरा समुदाय की बड़े पैमाने पर उपेक्षा की जाती रही है। नीतियों को समुदाय के साथ परामर्श करके बनाये जाने की जरूरत है, न कि ऊपर से थोपना चाहिए, जैसा कि भाजपा सरकार द्वारा किया जा रहा है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Tamil Nadu Fishermen to Intensify Protest Against Marine Fisheries Bill

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