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‘तमिलनाडु सरकार मंदिर की ज़मीन पर रहने वाले लोगों पर हमले बंद करे’

द्रमुक के दक्षिणपंथी हमले का प्रतिरोध करने और स्वयं को हिंदू की दोस्त पार्टी साबित करने की कोशिशों के बीच, मंदिरों की भूमि पर रहने वाले लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 
chennai
मंदिर का विरोध (फोटो साभार: समय नटराजन)। 

पूरे तमिलनाडु में, लाखों लोग राज्य सरकार के धर्मार्थ और बंदोबस्ती विभाग के स्वामित्व वाली भूमि पर रहते हैं। वे उस जमीन पर खेती करते हैं, उस पर अपनी छोटी दुकानें चलाते हैं और संबंधित मंदिरों से जुड़े तमाम काम करते हैं। इस तरह के परिवार कई पीढ़ियों से मंदिरों के आसपास रहते आ रहे हैं, लेकिन अब उन्हें इसकी एवज में किराए के रूप में एक बड़ी रकम का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। ऐसा न करने पर उनसे मंदिर-परिसर छोड़ कर चले जाने के लिए भी कह दिया गया है। 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य दक्षिणपंथी समूह राज्य में मंदिर भूमि को लेकर द्रमुक सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनका आरोप है कि द्रविड़ पार्टियों के शासन में मंदिरों से उनकी संपत्ति सुनियोजित तरीके से छीन ली गई है। इसको लेकर भाजपा के एच राजा ने 2018 में, हिंदू मंदिर पुनर्दावा आंदोलन (HTRM) की शुरुआत की है।

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक)  जून 2021 में तमिलनाडु की सत्ता में आने के बाद से खुद के 'हिंदू विरोधी' होने के आरोपों का सामना कर रही है। इन हमलों को झेलते हुए भी द्रमुक सरकार ने मंदिरों, पुजारियों और हिंदू धर्म से संबंधित कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं। सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) विभाग ने घोषणा की कि उसने फरवरी 2022 तक 1,640 करोड़ रुपये की भूमि को “फिर से हासिल” किया है। 

द्रमुक द्वारा खुद को हिंदू-अनुकूल पार्टी बताने और दक्षिणपंथी हमले का विरोध करने के प्रयासों में, मंदिर भूमि का उपयोग करने और उपयोग करने वाले लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

‘किराया दें या जमीन खाली कर दें' का फरमान उचित नहीं

एचआर एंड सीई विभाग ने राज्य भर में मंदिर के स्वामित्व वाली भूमि पर अपने लंबे समय से लंबित किराये की वसूली के लिए सख्ती करना शुरू कर दिया है। 

अधिकारियों ने कई नोटिस जारी करने के बावजूद किराए का भुगतान न करने वाले प्रतिष्ठानों और आवासीय भवनों को सील करना भी शुरू कर दिया है और उनके नाम और उनकी देय राशि वाले नोटिस उनके दरवाजे पर चिपकाने शुरू कर दिए हैं। 

चेन्नई में 18 मार्च को विरोध प्रदर्शन किया गया। फोटो सौजन्य: समय नटराजन 

राज्य सरकार की इस कार्रवाई के जवाब में, तमिलनाडु ऑल रिलिजियस लैंड होल्डिंग्स लेसीज/किरायेदार प्रोटेक्शन एसोसिएशन सरकार से आग्रह कर रहा है कि वह मंदिर परिसरों में रहने वाले निवासियों के मकानों पर एकमुश्त किराए के भुगतान की मांग करने वाले नोटिस को वापस ले ले। 

एसोसिएशन के सचिव सामी नटराजन ने कहा,"वर्षों के बैकलॉग का भुगतान करने के लिए अचानक नोटिस देना और इसके लिए 15 दिनों की ही मोहलत दिया जाना तो नाजायज है। यह आम लोगों को मंदिर की भूमि से बाहर निकालने और इस भूमि का अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करने का एक स्पष्ट प्रयास है।"

उन्होंने आगे कहा, “ये परिवार मंदिर की भूमि पर रह रहे हैं और पीढ़ियों से मंदिरों के लिए नियमित रूप से काम कर रहे हैं। वे वहां तीरूविला (रथ उत्सव) के लिए काम करते हैं और मंदिरों की साफ-सफाई का कार्य, देवी-देवताओं के लिए माला बनाने और इसी तरह के नाना प्रकार के कामों करते हैं। इसलिए उन्हें लाकर मंदिरों के पास बसाया गया और अब उन्हें अपने मूल स्थान से जाने के लिए कहा गया है। उनसे एकमुश्त भुगतान करने या ऐसा नहीं करने पर यहां से चले जाने के लिए कहा जा रहा है।"

नटराजन ने आगे कहा, "ये वे लोग हैं, जिन्होंने मंदिरों के आसपास की धरती को रहने लायक बनाया। अब इन्हें "अतिक्रमणकारी" कहा जा रहा है। इसके अलावा, केवल भूमि पर ही मंदिरों का स्वामित्व है, न कि उनके परिसरों में बने घरों पर। इन घरों को तो उनमें रहने वाले लोगों ने ही बनाया था।"

शुरुआती दिनों में, मंदिर की भूमि पर काम करने वाले लोग साल में एक बार अपनी फसल और मुनाफे के आधार पर मंदिर प्रशासन को 'पसली' का भुगतान करते थे। लेकिन, हाल ही में, राज्य सरकार के बंदोबस्ती विभाग द्वारा उनका मासिक किराया और पट्टा तय कर दिया गया था। 

'जनता प्राथमिकता होनी चाहिए'

चेन्नई के नुंगमबक्कम में ऑल रिलिजियस लैंड होल्डिंग्स लेसीज़/किरायेदार प्रोटेक्शन एसोसिएशन द्वारा 18 मार्च को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के बाहर राज्य स्तरीय विरोध प्रदर्शन किया गया।

25 मार्च को एसोसिएशन के नेताओं ने एचआर एंड सीई मंत्री पीके सेकरबाबू से भी मुलाकात कर उन्हें अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपा। 

मंत्री को सौंपे गए इस ज्ञापन में कहा गया है, “राज्य के मुख्य सचिव के प्रमुख के तहत गठित नई समिति में मंदिर भूमि उपयोगकर्ताओं के प्रतिनिधियों को भी शामिल करना चाहिए” और “जब एक नया किराया तय किया जा रहा है, तो इसे अनुमोदन से पहले भूमि उपयोगकर्ताओं की भी राय लेनी चाहिए”। 

एचआर एंड सीई मंत्री को ज्ञापन दिया गया। फोटो साभार: पी षण्मुगम 

एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि मंदिर की भूमि पर रहने वाले गरीबों और वंचितों को अतिरिक्त सहायता दी जाए। उसने गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों के बैंक खातों में भी न्यूनतम धनराशि जमा करने का आग्रह सरकार से किया है। 

सामी नटराजन ने कहा, “हिंदू धार्मिक मामलों के मंत्री ने उनके साथ हुई बातचीत में अनुरोधों पर संतोषजनक जवाब दिया। इसके बाद हम आशा करते हैं कि इस दिशा में उचित उपाय किए जाएंगे।”

नटराजन यह भी कहा, “अब भाजपा से जुड़े लोग भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं और वे पार्टी के खिलाफ हो गए हैं। अब वे हमसे जुड़ गए हैं और अपनी मांग रख रहे हैं।”

तमिलनाडु में एआईकेएस के सचिव पी षण्मुगम ने कहा है कि, “ एआईकेएस के बैनर तले ऑल रिलीजियस लैंड होल्डिंग्स लेसीज/किरायेदार प्रोटेक्शन एसोसिएशन का 2018 में गठन किया गया था तमिलनाडु विवासाईगल संगम (एआईकेएस) की ओर से, मैं तमिलनाडु सरकार से आग्रह करता हूं कि वह मंदिर भूमि में रहने वाले और उस पर खेती करने वाले लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए आगे आए।” 

तमिलनाडु सरकार ने मंदिर के बेहतर प्रबंधन की दिशा में कुछ प्रयास किए हैं। उसने श्रद्धालुओं-भक्तों द्वारा मंदिरों में सोने के चढ़ावे का मुद्रीकरण करने और इस प्रकार उत्पन्न धन का उपयोग भक्तों के लिए संबंधित मंदिरों और सुविधाओं के विकास में करने की योजना है। सरकार ने मंदिरों के लिए न्यासी नियुक्त करने और राज्य में खोई हुई मंदिर भूमि का पता लगाने के लिए एक व्यापक सर्वेक्षण करने का भी निर्णय लिया है। 

हालांकि, द्रमुक सरकार के पास उन लोगों के लिए कोई योजना नहीं है, जो पीढ़ियों तक मंदिरों के लिए काम कर चुके हैं और उन्हीं पर आश्रित रहे हैं। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

‘Tamil Nadu Govt, Stop Attack on People Living on Temple Land’

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