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तीस्ता सेतलवाड़ को मिली राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम ज़मानत

मामले की पिछली सुनवाई में, पीठ ने संकेत दिया था कि वह तीस्ता सेतलवाड़ को अंतरिम जमानत देगी, लेकिन अंततः भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा किए गए बार-बार अनुरोध पर उसने सुनवाई स्थगित कर दी थी।
Teesta

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तीस्ता सेतलवाड़ को अंतरिम ज़मानत दे दी। मुख्य न्यायाधीश ने आदेश देते हुए कहा कि यह रिकॉर्ड की बात है कि अपीलकर्ता को लगभग 7 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था और संबंधित जांच तंत्र द्वारा हर दिन पूछताछ की गई थी। इसके बाद अपीलकर्ता को रिमांड पर लिया गया और वह मजिस्ट्रेट की हिरासत में है।

कोर्ट ने सीतलवाड़ को आदेश दिया कि वे निचली अदालत में तब तक के लिए अपना पासपोर्ट जमा करा के रखें जब तक हाई कोर्ट उनकी नियमित जमानत पर फैसला नहीं लेता। शीर्ष अदालत ने अंतरिम जमानत आदेश में यह भी कहा है कि जब भी संबंधित जांच एजेंसी को जरूरत होगी, उन्हें पूरा सहयोग देना होगा।

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देने से इनकार करने के फ़ैसले को चुनौती देने वाली तीस्ता की याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की बेंच ने की।

मामले की पिछली सुनवाई में, पीठ ने संकेत दिया था कि वह तीस्ता सेतलवाड़ को अंतरिम जमानत देगी, लेकिन अंततः भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा किए गए बार-बार अनुरोध पर उसने सुनवाई स्थगित कर दी थी।

एनजीओ, सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की सचिव सेतलवाड़ को अहमदाबाद अपराध शाखा के इंस्पेक्टर डीबी बराड द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के आधार पर 25 जून को मुंबई के उनके जुहू स्थित घर से हिरासत में लिया गया था। इसके बाद उन्हें अहमदाबाद लाया गया और औपचारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया था।

बता दें कि संजीव भट्ट गुजरात दंगों के वक़्त डीआईजी थे जो अभी जेल में बंद हैं। इसके अलावा आरबी श्रीकुमार गुजरात के पूर्व डीजीपी को भी अहमदाबाद पुलिस ने इसी गिरफ़्तार कर लिया था।

न्यूज़क्लिक को मिली एफ़आईआर के अनुसार क्राइम ब्रांच, अहमदाबाद के अफ़सर दर्शनसिंह बी बराड़ ने यह एफ़आईआर दायर की थी, जिसमें धारा 194, 211, 218, 468, 471 और 120बी के तहत तीस्ता पर कार्रवाई की मांग की गई थी।

यह धाराएँ मूलतः झूठा साक्ष्य देना, झूठे साक्ष्यों के आधार पर दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करना या कराना, दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ (फोरजरी करना), किसी के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश करना जैसे अपराधों की बात करती हैं।

गुजरात दंगों में मारे गए सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने दंगे की साज़िश के आरोप में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को मुक्त करने वाली SIT की क्लोज़र रिपोर्ट को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि इस याचिका में तथ्य नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में दंगों की जांच के लिए पूर्व सीबीआई निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में SIT का गठन किया था।

तीस्ता के ख़िलाफ़ एफ़आईआर में सुप्रीम कोर्ट के इस बयान का हवाला दिया गया था,

"कुछ लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर प्रयास किया कि मामला चर्चा में बना रहे। हर उस व्यक्ति की ईमानदारी पर सवाल उठाए गए, जो मामले को उलझाए रखने वाले लोगों के आड़े आ रहा था। न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले लोगों पर उचित कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि तीस्ता ने ज़ाकिया की भावनाओं का फ़ायदा उठाया था।

बता दें कि तीस्ता के बारे में गृह मंत्री अमित शाह ने भी 25 जून को एक इंटरव्यू में तीस्ता पर हमला किया था। उन्होंने एएनआई से बात करते हुए तीस्ता और उनके एनजीओ, सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस पर आरोप लगाया था कि उनके निर्देशों पर ज़ाकिया ने पीएम मोदी को टार्गेट किया था।

दंगों में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया ने दंगों की साज़िश में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के भी शामिल होने का आरोप लगाया था। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने SIT को ज़किया की तरफ से दिए गए सबूतों के आधार पर मामले की जांच का आदेश दिया था।

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