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भगवा पार्टी का पसमांदा मुसलमानों के प्रति स्नेह या "फूट डालो और शासन करो" की नीति?

ऐसा भी कुछ नहीं है कि बीजेपी मुसलमानों को पार्टी में कोई बड़ी भूमिका देना चाहती है। निकाय चुनाव में पसमांदा मुसलमानों को टिकट देने का वादा करने वाली बीजेपी विधानसभा और आम चुनावों में मुसलमानों को टिकट देने को लेकर खामोश है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : Outlook India

भारतीय जनता पार्टी ने शहरी निकाय चुनावों में "पसमांदा" (पिछड़े) मुसलमानों को टिकट देने की घोषणा की है। भगवा पार्टी के पसमांदा मुसलमानों के प्रति स्नेह को "फूट डालो और शासन करो" की दृष्टि से देखा जा रहा है। 

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी एक तरफ़ पसमांदा मुसलमानों को उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में टिकट देने की बात कर रही है और दूसरी तरफ़ उसकी की केंद्र सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। 

स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। इतना ही नहीं सत्ताधारी पार्टी में एक भी लोक सभा सांसद मुस्लिम समाज से नहीं है। 

जबकि देश में क़रीब 14 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार है। यहाँ भी सरकार मुस्लिम प्रतिनिधित्व न के बराबर है। जबकि प्रदेश में मुस्लिम समाज की आबादी 19 से 20 प्रतिशत है।

यहाँ 2017 और 2022 में दो बार लगातार बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई है। 

लेकिन दोनों बार मुस्लिम समाज को बीजेपी ने नज़रअंदाज़ किया है।

योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार में मोहसिन रज़ा (शिया) को राज्य मंत्री बनाया गया था। लेकिन 2022 में दानिश आज़ाद अंसारी (सुन्नी) को राज्य मंत्री बनाया गया है।

बीजेपी ने केंद्र में पूर्ण बहुमत हासिल करने के अपने उन मुस्लिम नेताओं को भी नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया, जो काफ़ी समय से उसके साथ थे।

मुख्तार अब्बास नक़वी और शाहनवाज़ हुसैन के पास भी इस समय कोई पद नहीं है। माना जा रहा था कि नक़वी को उप-राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। लेकिन उग्र हिन्दुत्व की हवा ने इनकी राजनीति पर भी लगभग विराम लगा दिया।

कट्टर हिन्दुत्व की छवि वाले नरेंद्र मोदी की केंद्र में 2014 में सरकार बनने के बाद से मुस्लिम विरोधी अपराध में वृद्धि हुई है। मुसलमानों की गौ रक्षा आदि के नाम पर सरे आम लिन्चिंग की गई और और उनके नरसंहार का खुलेआम आह्वान किया गया।

इतना ही नहीं, उनकी संस्कृति जैसे "हिजाब" आदि को भी निशाना बनाया जा रहा है। बीजेपी के नेता खुलेआम मुसलमानों का सामाजिक व आर्थिक बहिष्कार करने की बात करते हैं। हालाँकि इस सब से संघ और बीजेपी की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल हो रही है। 

वहीं बीजेपी को मुस्लिम वोटों का बंटवारा भी करवाना है क्योंकि संगठित मुस्लिम वोट भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हैं।हाल में ही  विधानसभा चुनाव 2022 में  मुस्लिम समाज ने एकजुटता से समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट किया था। सपा चुनाव तो नहीं जीत सकी लेकिन बीजेपी 324 सीटों से 255 सीटों पर आ गई। वहीं सपा 48 सीटों से 111 पर आ गई।

ऐसे हालात में बीजेपी के लिए चुनौती दोहरी है। उसको मुस्लिम समाज के लिए बिना कुछ करे स्वयं को मुस्लिम समाज के अधिकारों  का समर्थक दिखाना है। इसके अलावा मुस्लिम वोटों को भी बांटना है।

बीजेपी ने हमेशा मुसलमानों को बांटने की कोशिश करती रही है। भगवा पार्टी ने पहले शिआ-सुन्नी में बांटने की कोशिश करी थी। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून और हिजाब जैसे मुद्दों पर सभी मुसलमान एक साथ नजर आये। शायद इसलिए अब वह वर्ग राजनीति करने का प्रयास कर रही है।

हालाँकि ऐसा भी कुछ नहीं है कि, बीजेपी मुसलमानों को पार्टी में कोई बड़ी भूमिका देना चाहती है। निकाय चुनाव में पसमांदा मुसलमानों को टिकट देने का वादा करने वाली बीजेपी विधानसभा और आम चुनावों में मुसलमानों को टिकट देने को लेकर खामोश है।

लखनऊ के क्राइस्ट चर्च कॉलेज मैदान में हुए बीजेपी के पसमांदा सम्मेलन में राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी ने पसमांदा मुसलमानों को आने वाले निकाय चुनावों में टिकट देने की घोषणा की है। उन्होंने उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक की मौजूदगी में कहा कि पसमांदा मुसलमानों को टिकट देने के लिए पार्टी की राज्य समिति ने भी सहमती दे दी है।

लेकिन जब अंसारी से यह सवाल पूछा गया कि क्या बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को विधानसभा और आम चुनावों  में भी मैदान में उतारेगी तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। अंसारी ने यह कहकर कि विधानसभा और आम चुनावों में अभी काफ़ी समय है, सवाल को टाल गये।

एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान बीजेपी नेता द्वारा  पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। जिसका न सिर्फ भारत बल्कि सारी दुनिया में विरोध हुआ। भारत में विरोध प्रदर्शन के दौरान कई जगह हिंसा भी भड़क गई। मुस्लिम देशों क़तर, ईरान, सऊदी अरब आदि ने भी इसका विरोध किया। जिसके बाद बीजेपी को आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाली नेता नुपुर शर्मा को पार्टी से निकालना पड़ा। लेकिन बीजेपी ने नुपुर शर्मा के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की। 

गौ रक्षा के नाम पर लिंचिंग  के शिकार हुए लोगों में भी अधिकतर लोग पसमांदा ही हैं। लिंचिंग के पीड़ितों में से कुछ के नाम हैं मोहम्मद अख़लाक़ खान, पहलू खान, जुनैद, मोहम्मद मज़लूम अंसारी और अलीमुद्दी उर्फ असगर अंसारी आदि है। इनमें बड़ी संख्या में लिंचिंग पीड़ित पसमांदा समाज के हैं। 

दिल्ली से भाजपा के सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की एक स्थानीय शाखा द्वारा बुलाई गई रैली में हिंदुओं से मुसलमानों (समुदाय का नाम लिए बिना) का आर्थिक बहिष्कार करने का आग्रह किया।

 देश की राजधानी  में आयोजित एक रैली में, यूपी के लोनी के भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर ने नाम लिए बिना मोहम्मद अख़लाक़ की लिंचिंग तरफ़ की इशारा करते हुए कहा कि दादरी में 2015 में एक "सुअर" की हत्या हुई थी।

इसी तरह कर्नाटक में सरकारी स्कूल में हिजाब पर प्रतिबंध और हिंदू जन जागृति द्वारा 'हलाल' मांस का बहिष्कार करने के आह्वान ने भाजपा शासित राज्य में मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा और मुसलमानों की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई है। उल्लेखनीय है कि अधिकांश मांस व्यवसाय पिछड़े वर्ग के मुसलमानों के हैं।

अगर यूपी की बात करें तो यहाँ योगी सरकार की नजर वक़्फ़ जमीनों और मदरसों पर है। याद रहे कि मुख्य रूप से कम आय वाले परिवारों के मुस्लिम बच्चे मदरसों में पढ़ने जाते हैं।

यूपी में सीएए के विरोध के दौरान मुसलमानों और कुछ गैर-मुस्लिम कार्यकर्ताओं पर कड़ी कार्रवाई की गई। कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में क़रीब 20 प्रदर्शनकारी मारे गए। हालांकि पुलिस ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

हालाँकि इस्लामिक ग्रंथों आदि में समाज में जाति व्यवस्था की कोई बात नहीं की गई है। यही कारण है, मस्जिद आदि के प्रवेश में भी मुसलमानों पर रोक नहीं होती है। ऐसे में बीजेपी का यह कार्ड उसके काम आना मुश्किल है क्योंकि बीजेपी की मुसलमानों के प्रति जो नीतियां हैं, उसने समाज को  नकारात्मक ढंग से प्रभावित किया है।

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