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परीक्षा, परिणाम और जॉइनिंग के लिए सड़क पर जूझते हुए बीत रही युवाओं की उम्र!

"प्रदेश में रोज़गार के हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि जहां एक भर्ती की प्रक्रिया अधिकतम एक से डेढ़ साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए वहाँ इस प्रक्रिया में पाँच साल और उससे भी अधिक का वक्त लग रहा है।"
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ...और लखनऊ का इको गार्डन। सर्दियों की नरम धूप और गर्मियों की ठंडी शामों का लुत्फ़ लेते हुए हर रोज़ हज़ारों की तादाद में यहाँ लोगों का आना इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है। पर ज़रा यहीं रुकते हैं, खूबसूरती का ज़िक्र फिर कभी क्योंकि इस खूबसूरती से इतर इको गार्डन की एक दूसरी तस्वीर और भी है और उससे रूबरू होने के लिए हमें पुरानी जेल रोड स्थित कांशीराम मेमोरियल (इको गार्डन) के सार्वजनिक सुविधा और पार्किंग क्षेत्र की ओर रुख करना होगा। जैसे ही हम इस ओर आते हैं, अंदर जाने के लिए हमें एक विशाल द्वार नज़र आता है, कई फीट ऊँची दीवारें और उसके इर्द-गिर्द भारी संख्या में तैनात पुलिसकर्मी।

दीवारें इस कदर ऊँची कि अंदर का शोर बस अंदर ही थम कर रह जाए। दरअसल वे शोर नहीं अपने संघर्षों को गति देती वे आवाज़ें हैं जिन्हें उन चारदीवारी के भीतर कैद कर दिया जाता है। असंख्य आंदोलनों का गवाह यह स्थल अमूमन हर रोज़ ही आंदोलनकारियों से गुलज़ार रहता है। कभी यहाँ आपको नौजवान अपनी मांगों के साथ अनशन करते नज़र आ जाएंगें तो कभी अपनी हक की लड़ाई लड़ते प्रदेशभर के स्कीम वर्कर्स, संविदाकर्मी धरना देते दिखाई देंगें तो कभी मज़दूर, किसान, छात्र और वंचित वर्ग अपने संघर्ष को गति देते हुए प्रदर्शन करते दिख जाएंगें।

खबरों की तलाश में न जाने कितनी बार यहाँ जाना हुआ और जितनी बार भी जाना हुआ कभी उत्साहित तो कभी उदासी भरे मन से लौटना पड़ा। उत्साह भरा इसलिए क्योंकि अपने हक के लिए लड़ते और सत्ता से सवाल करते ये नौजवान, युवा, छात्र, किसान, महिलाएं आदि का जज़्बा यह बताता है कि मुश्किलें लाख सही पर हौसलें बुलंद हैं और उदासी भरा इसलिए कि जो समय हमारे युवाओं को अपना भविष्य संवारने में लगाना चाहिए उनका वो कीमती समय धरना और प्रदर्शनों में ज़ाया हो रहा है पर वे करें तो क्या करें जब सिस्टम की लापरवाही और सत्ता की अनदेखी उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने लगे तो अपने सुरक्षित दायरे से बाहर निकलकर लड़ना लाज़िम हो जाता है।

एकबार फिर इको गार्डन जाना हुआ। युवाओं के फिर वही सवाल, वही संघर्ष, और वे होनहार छात्र जो प्रदेश के भावी इंजीनियर हो सकते हैं वे अनिश्चितकालीन सत्याग्रह पर बैठे थे। ये आंदोलन प्रदेश के उन जेई (जूनियर इंजीनियर) अभ्यर्थियों का था जो अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा अवर अभियंता पद के लिए करीब पाँच साल पहले निकाली गई भर्ती विज्ञापन को पूरा कराने की माँग कर रहे थे। ये वे अभ्यर्थी थे जो परीक्षा दिए हुए हैं पर आयोग है कि परिणाम घोषित करने के मूड में नहीं।

इन अभ्यर्थियों का यह मामला इतना बताने को काफी है कि प्रदेश में रोज़गार के हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि जहां एक भर्ती की प्रक्रिया अधिकतम एक से डेढ़ साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए वहाँ इस प्रक्रिया में पाँच साल और उससे भी अधिक का वक्त लग रहा है। बेहद तकलीफ की स्थिति से गुज़र रहे इन छात्रों ने जब अपनी पीड़ा साझा की तो मन व्यथित हो उठा। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके भी जब प्रदेश के युवा सालों से बेरोज़गार हैं तो फिर सरकार द्वारा रोज़गार का इतना ढिंढोरा क्यों पीटा जा रहा है। खैर इन छात्रों से बात करके जो पूरा मामला सामने आया वो कुछ यूँ हैं.....

इलाहाबाद से आए अभ्यर्थी उज्ज्वल ने बताया कि उत्तर प्रदेश सेवा चयन आयोग द्वारा साल 2016 में अवर अभियंता भर्ती का एक विज्ञापन निकाला गया जिसकी परीक्षा दो साल बाद यानी 2018 में कराई गई फिर 2018 में आयोग द्वारा भर्ती का एक विज्ञापन और निकाला गया पर इस बार विज्ञापन निकलने के चार साल बाद यानी 2022 में अवर अभियंता भर्ती के लिए परीक्षा कराई गई। उज्जवल कहते हैं हैं कि चलो किसी तरह परीक्षा तो हो गई लेकिन मात्र परीक्षा होने से क्या होता है जब परिणाम ही घोषित न हो। वे बताते हैं कि 2016 में हुई परीक्षा का परिणाम अभी हाल ही में जारी किया गया जब हम अभ्यर्थियों को मजबूरन आंदोलन पर उतरना पड़ा लेकिन 2018 के विज्ञापन की परीक्षा जो उन्होंने भी दी थी उसका परिणाम अब तक लंबित पड़ा है।

उज्ज्वल कहते हैं, "अब आप खुद सोचिए प्रदेश में प्रतियोगी परिक्षाओं और और भर्तियों के कितने बुरे हालात हैं, अभी जो परिणाम घोषित हुआ वो साल 2016 के विज्ञापन का था, यानी परीक्षा होने और परिणाम घोषित होने में ही सात साल लग गए और अभी तो डॉक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन होना है फिर विभाग आवंटन और उसके बाद कहीं जाकर नियुक्ति होगी यानी इन सब प्रक्रिया में कम से कम एक साल और लग जाएगा तो ज़रा सोचिए जब एक नौकरी पाने में आठ से दस साल लग जा रहे हैं तो उस नौकरी की खुशी मनाई जाए या होनहार होने और परीक्षाएं पास करने के बावजूद नौकरी के लिए किए गए एक लंबे संघर्ष पर अफसोस जताया जाए।"

व्यथित मन से वे कहते हैं, "हमारा सिस्टम इस कदर लचर अवस्था में पहुँच चुका है कि एक छात्र 25 साल की आयु में नौकरी के लिए परीक्षा देता है और 35 साल की उम्र में जाकर उसे नौकरी मिल पाती है इससे भयावह स्थिति और क्या होगी।" उज्जवल बताते हैं कि साल 2016 में  जूनियर इंजीनियर की भर्ती के लिए 386 वेकैंसी निकली थीं जिसके लिए 46,000 छात्रों ने परीक्षा दी थी और साल 2018 में 1470 वेकैंसी के लिए 65,000 छात्रों ने परीक्षा दी थी। वे कहते हैं कि छात्र कई बार इस गुहार के साथ आयोग गए कि परिणाम घोषित किए जाएं लेकिन आयोग केवल तारीख पर तारीख ही देता रहा तब मजबूरन छात्रों को इस भीषण ठंड में आंदोलन पर उतरना पड़ा। आंदोलन का इतना असर ज़रूर रहा कि कम से कम 2016 के विज्ञापन का रिज़ल्ट घोषित कर दिया गया अब सारी जद्दोजेहद 2018 का परिणाम घोषित कराने को लेकर है।

वहीं बाराबंकी के छात्र अमन वर्मा कहते हैं, "मैं 25 साल का हो गया हूँ, मेरी ये उम्र धरना प्रदर्शनों में समय गँवाने की है या रोज़गार पाकर काम में लग जाने की? लेकिन प्रतियोगी परीक्षाएं पास करने के बावजूद नियुक्ति की तो बात ही छोड़िए परिणाम तक घोषित करवाने के लिए छात्रों को सालों तक ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है। उम्र बीतती रहती है और काबिल होने के बावजूद सरकारी नौकरी एक बुरा सपना बनकर रह जाती है।"

अमन ने जब अपनी यह पीड़ा साझा की तो उन हज़ारों युवाओं का दर्द भी सामने आ गया जो एक अदद सरकारी नौकरी के लिए साल दर साल प्रतियोगी परीक्षा देते जा रहे हैं लेकिन सिस्टम की नाकामी और लचर रवैये के चलते कभी परीक्षाओं के परिणाम समय पर घोषित नहीं हो पा रहे हैं तो कभी परिक्षाओं में धाँधली सामने आने पर मामले कोर्ट में जा फंस रहे हैं।

अमन कहते हैं, "हम पढ़ाई इस उम्मीद से करते हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित होगा। हर छात्र सरकारी वेकैंसी का इंतज़ार करता है। पहले तो वेकैंसी ही नहीं आती, जब आती भी है तो न तो परीक्षा समय पर होती है और न परिणाम समय पर आता है। इस सारी प्रक्रिया में एक लंबा वक्त बीत जाता है। हम छात्र तो मानसिक तनाव झेलते ही हैं हमारे साथ हमारे परिवार भी सालों तक मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव झेलते हैं। अथाह मेहनत के बाद भी बेरोज़गार रहने का सारा कसूर छात्र के सिर पर डाल दिया जाता है जबकि उसकी पीड़ा कोई नहीं समझता कि उसकी मेहनत में कोई कमी नहीं वे तो खुद फेल सिस्टम का शिकार है जहाँ उसके हाथ में अंत में थकहार कर धरना प्रदर्शन के सिवा कुछ नही।

अमन अपनी पीड़ा बताते हुए कहते हैं कि वे हमेशा से एक अच्छे छात्र रहे हैं। उनकी मेहनत में कभी कोई कमी नहीं रही। जेई भर्ती परीक्षा से पहले भी वे कुछ और एग्ज़ाम पास कर चुके हैं लेकिन सिस्टम की लापरवाही की वजह से वे आज तक कहीं भी फाइनल जॉइनिंग नहीं कर पाए हैं।

वहीं मौजूद एक छात्र गौरव दीक्षित मिर्जापुर से हैं। वे भी अन्य अभ्यर्थियों की तरह ही करीब ढाई महीने से इको गार्डन में डटे हैं। गौरव न केवल इस लचर सिस्टम से आक्रोशित हैं बल्कि अपने साथ के उन छात्रों से भी खासा नाराज हैं जो अभी तक इस आंदोलन का हिस्सा नहीं बने है। वे कहते हैं, "आखिर हमें कैसेे न्याय मिलेगा जब हमारे साथियों की ही भागीदारी शत प्रतिशत नहीं। इस हाड़-माँस गला देने वाली सर्दी में भी हम कुछ अभ्यर्थी रात-दिन डटे रहे और डटे रहेंगे लेकिन हर कोई इस बात को नहीं समझ रहा कि जब तक लड़ोगे नहीं तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला। जब हम लड़े और सरकार को चुनौती दी तब कहीं जाकर 2016 का रिज़ल्ट घोषित हुआ अब 2018 के रिज़ल्ट की बारी है और हम जानते हैं कि यह जीत हमें बहुत आसानी से नहीं मिलने वाली।"

वे दुखी मन से आगे कहते हैं, "कभी-कभी अपनी ही कमी की वजह से लड़ाई कमज़ोर पड़ जाती है। उनके मुताबिक यह लड़ाई रिज़ल्ट घोषित करने की मांग के साथ-साथ जेई भर्ती परीक्षा की नई नोटिफिकेशन जारी करने को लेकर भी है जो 2018 के बाद से निकली ही नहीं यानी पिछले पाँच सालों से जेई की कोई भर्ती नहीं निकली। ऐसे में जिन छात्रों ने पाँच साल पहले अपना कोर्स पूरा कर लिया उनका भविष्य तो एकदम अंधकार में है इसलिए इस आंदोलन में उन छात्रों की भी भागीदारी बहुत ज़रूरी है।

यहां मौजूद इन सभी अभ्यर्थियों का आरोप है कि चूँकि उनकी संख्या कम है इसलिए उन्हें नज़रअंदाज किया जा रहा है जबकि 2019 में निकली कनिष्ठ सहायक भर्ती को तीन वर्षों के भीतर पूरा कर लिया गया तो वहीं 2021 में निकाली गई महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता भर्ती को तो केवल एक वर्ष के भीतर ही पूरा कर लिया गया।

प्रदेश में रोज़गार के हालात किस कदर खराब होते जा रहे हैं इसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि करीब पाँच साल से कोई शिक्षक भर्ती का विज्ञापन नहीं निकला। शिक्षक भर्ती के लिए हर साल TET तो हो रहा है लेकिन उसका अगला चरण SUPER TET सरकार पिछले तीन साल से करा ही नहीं रही है और इस साल भी आसार नज़र नहीं आ रहे।

साल 2016 में निकली कनिष्ठ सहायक भर्ती सात साल बाद 2023 में जाकर सरकार ने क्लियर किया हालाँकि अभी भी जॉइनिंग होनी बाकी है। इसके अलावा :

• जून 2018 में राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद के 16 पदों के लिए भर्ती विज्ञापन निकला जिसका परिणाम आज तक लंबित है।
• मई 2019 में 655 पदों के लिए निकले वनरक्षक एवं वन्य जीवरक्षक भर्ती विज्ञापन का परिणाम लंबित है।
• जून 2019 में सहायक बोरिंग टेक्निशियन के 486 पदों के लिए निकले भर्ती विज्ञापन का परिणाम भी लंबित पड़ा है।
• जुलाई 2019 में 904 पदों के लिए सहायक सांख्यिकीय अधिकारी का भर्ती विज्ञापन निकला जिसका परिणाम लंबित है।
• जनवरी 2022 में 8805 पदों के लिए लेखपाल के लिए निकले भर्ती विज्ञापन का परिणाम भी लंबित ही पड़ा है।

सरकारी भर्तियों के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं को कभी समय पर कराने को लेकर, कभी परिणाम घोषित कराने को लेकर तो कभी परिणाम घोषित होने के बावजूद अंतिम सूची जारी न करने को लेकर तो कभी सारी प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद भी जॉइनिंग न देने को लेकर, विभिन्न परीक्षा देने वाले छात्रों का आंदोलन अक्सर इस इको गार्डन के धरना स्थल पर देखा जा सकता है।

परीक्षा होने से लेकर फाइनल जॉइनिंग तक जितने भी चरण हैं उन्हें ईमानदारी पूर्वक पूरा कराने में तीन से सात साल का वक्त भी लग रहा है क्योंकि अधिकांश मामले या तो कोर्ट की शरण में चले जाते हैं या सरकार बदलने के साथ पहले की सरकार द्वारा कराई गई परीक्षाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है जिसका खामियाज़ा छात्रों को भुगतना पड़ता है। हर साल होने वाली अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरने में छात्रों की जेबें तो खाली हो जा रही हैं लेकिन भविष्य कहीं टिकता नज़र नहीं आ रहा पर इनका संघर्ष तो तब तक जारी रहेगा जब तक इन्हें सपने दिखाए जाते रहेंगें।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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