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धन्नीपुर में रखी जा रही है मस्जिद की बुनियाद, लेकिन बाबरी के किसी पक्षकार को निमंत्रण नहीं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुस्लिम पक्ष को धन्नीपुर गांव में मिली 5 एकड़ भूमि पर गणतंत्र दिवस की सुबह 8:30 झंडा रोहण और भू-परीक्षण होगा। लेकिन इस कार्यक्रम से बाबरी के सभी पक्षकारों को दूर रखा गया है।
धन्नीपुर की वह ज़मीन जहां बाबरी की जगह नई मस्जिद प्रस्तावित है।
धन्नीपुर की वह ज़मीन जहां बाबरी की जगह नई मस्जिद प्रस्तावित है।

अयोध्या की बाबरी मस्जिद की जगह क़रीब 24 किलोमीटर दूर धन्नीपुर में प्रस्तावित मस्जिद की नींव गणतंत्र दिवस की सुबह एक कार्यक्रम रखी जायेगी। जिसकी तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी हैं। लेकिन इस इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बाबरी मस्जिद के किसी भी पक्षकार को निमंत्रण नहीं भेजा गया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुस्लिम पक्ष को धन्नीपुर गांव में मिली 5 एकड़ भूमि पर गणतंत्र दिवस की सुबह 8:30 झंडा रोहण होगा। झंडा रोहण के बाद भूमि पर वृक्षारोपण और भू-परीक्षण किया जायेगा। मस्जिद के निर्माण की ज़िम्मेदारी लेने वाले इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट के अनुसार इस कार्यक्रम को मस्जिद की नींव रखना माना माना जायेगा।

धन्नीपुर में मस्जिद निर्माण कार्य शुरू होने के मौक़े पर 26 जनवरी की सुबह होने वाले कार्यक्रम में, सुन्नी वक़्फ़ के अध्यक्ष के अलावा बाबरी मस्जिद के पक्षधर रहे किसी भी व्यक्ति या संस्था को आमंत्रित नहीं किया गया है। बता दें कि अयोध्या विवाद की सुनवाई के आख़री समय में में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने कुछ शर्तों के समझौते का प्रस्ताव रखा था। जिसको कुछ लोगों ने बोर्ड द्वारा सत्ता के दबाव में किया गया समर्पण कहा था।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी

बाबरी मस्जिद के लिए 1986 में बनी संस्था ‘बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी’ को भी ट्रस्ट ने इस कार्यक्रम से दूर रखा है। कमेटी के कन्विनर रहे, अधिवक्ता ज़फ़रयाब जिलानी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की उनको धन्नीपुर में हो रहे कार्यक्रम का कोई निमंत्रण नहीं मिला है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा की अगर निमंत्रण भेजा भी जाता, तब भी वह कार्यक्रम में शामिल नहीं होते।

ज़फ़रयाब जिलानी जो अदालत में मस्जिद पक्ष के वकील भी रहे हैं, कहते हैं कि, धन्नीपुर में मस्जिद, मुस्लिम समुदाय की आम सहमति से नहीं बन रही है। मस्जिद का निर्माण करवा रहा ट्रस्ट, भारत में रहने वाले मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ज़फ़रयाब जिलानी कहते हैं कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 17 नवंबर 2019 को ही साफ़ कर दिया था कि मुस्लिम समुदाय को बाबरी मस्जिद अयोध्या के बदले, दूसरी कोई जगह, मस्जिद निर्माण के लिए नहीं चाहिए।

उन्होंने कहा कि नई मस्जिद का निर्माण सरकार के अनुसार किया जा रहा है। इस काम के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष ज़ुफ़र फ़ारूक़ी को कार्यकाल ख़त्म होने के बाद, एक्सटेंशन देकर रोका गया है। उन्होंने कहा कि विरोध स्वरूप धन्नीपुर में बन रही मस्जिद में आम मुस्लिम वहाँ नमाज़ कभी भी पढ़ने नहीं जायेगा।

बता दें कि इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट, सुन्नी वक़्फ़ के अध्यक्ष द्वारा ही बनाया गया है। अदालत के आदेश के बाद बाबरी मस्जिद के  स्थान पर धन्नीपुर की भूमि भी सरकार ने बोर्ड को ही सौंपी है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी धन्नीपुर में हो रहे कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला है। बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य क़ासिम रसूल इलयास ने न्यूज़क्लिक को फ़ोन पर बताया की बाबरी मस्जिद को बचाने में लिए क़ानूनी लड़ाई में सहयोग करने वाले बोर्ड को, नई मस्जिद की नींव रखने के कार्यक्रम लिए कोई निमंत्रण पत्र नहीं मिला है।

बोर्ड की बाबरी मस्जिद कमेटी में को-कन्विनर रहे, क़ासिम रसूल इलयास कहते हैं की अगर निमंत्रण भेजा भी जाता, तो भी बोर्ड का कोई सदस्य कार्यक्रम में शामिल नहीं होता। क्यूँकि लड़ाई अयोध्या की 2.2 एकड़ ज़मीन की नहीं थी, बल्कि बाबरी मस्जिद बचाने की थी। जिसको हमने (बोर्ड ने) संविधानिक तरह से लड़ा था। उन्होंने कहा कि अगर क़ानूनी लड़ाई भूमि हासिल करने की होती, तो मुस्लिम समुदाय स्वयं किसी दूसरी जगह ज़मीन ख़रीद कर एक दूसरी मस्जिद का निर्माण करवा सकता है।

शिया पर्सनल लॉ बोर्ड

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कई मुद्दों पर मतभेद रखने वाले ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड को भी धन्नीपुर नहीं बुलाया गया है। शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटेरी मौलाना यासूब अब्बास का कहना है, हमको 26 जनवरी के कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया है और अगर बुलाते भी तो हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन में धन्नीपुर नहीं जाते। उन्होंने कहा कि एक मस्जिद तोड़कर उसकी जगह दूसरी मस्जिद का बनाने का क्या अर्थ है?

इक़बाल अंसारी क्या कहते हैं

बाबरी मस्जिद मुक़दमे के मुख्य पक्षकार रहे, अयोध्या के हाशिम परिवार को भी ट्रस्ट द्वारा कोई निमंत्रण नहीं भेजा गया है। क़रीब 70 वर्ष तक मस्जिद पक्ष के मुद्दई रहे दिवंगत हाशिम अंसारी के पुत्र इक़बाल अंसारी ने फ़ोन पर बताया कि उनको सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड द्वारा बनाये गये ट्रस्ट ने धन्नीपुर कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया है। इक़बाल अंसारी ने कहा कि हमको और सारे मुस्लिम समाज को अदालत का फ़ैसला स्वीकार है।

उन्होंने कहा ज़मीन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मिली है, अब वह उसका जो मर्ज़ी सो करे। इक़बाल अंसारी ने बताया की उन्होंने अयोध्या में अपनी निजी ज़मीन का प्रस्ताव मस्जिद निर्माण के लिए दिया था, जिसको स्वीकार नहीं किया गया।

दिलचस्प बात यह है की मस्जिद का निर्माण करने जा रहे ट्रस्ट ने भले ही इक़बाल अंसारी को निमंत्रण नहीं भेजा है लेकिन 5 अगस्त 2020, को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू होने से पहले होने वाले भूमि पूजन समारोह के लिए सबसे पहला निमंत्रण उनको ही गया था।

ट्रस्ट का बयान

ट्रस्ट का कहना है केवल स्थानीय लोगों को धन्नीपुर में मस्जिद की नींव रखने में कार्यक्रम ने आमंत्रित किया गया है। इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट के प्रवक्ता अतहर हुसैन के अनुसार 26 जनवरी के हो रहे कार्यक्रम में केवल धन्नीपुर गांव के प्रधान को बुलाया गया है और उनके ज़रिए स्थानीय नागरिकों को निमंत्रण भेजा गया है। इसके अलवा मस्जिद कि नींव रखते समय सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष समेत ट्रस्ट के सभी 9 सदस्य मौजूद रहेंगे।

कहा जा रहा है ऐसी होगी प्रस्तावित मस्जिद और उसके आसपास की इमारतें।

अतहर हुसैन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिली ज़मीन पर मस्जिद के अलावा अस्पताल, पुस्तकालय, सामूहिक रसोई और एक संग्रहालय का निर्माण किया जायेगा।

सूत्रों के अनुसार कार्यक्रम में संघ के लोग भी शामिल हो सकते हैं।

मस्जिद का नाम क्या होगा

ट्रस्ट ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि, बाबरी मस्जिद के  स्थान पर बन रही नई मस्जिद का नाम मुग़ल बादशाह बाबर के नाम पर नहीं होगा। अब चर्चा यह है की धन्नीपुर में बनने वाली मस्जिद का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलवी अहमदउल्लाह शाह के नाम पर रखा जा सकता है। फ़ैज़ाबाद के रहने वाले अहमदउल्लाह शाह ने 1857 में ब्रिटिश सेना के ख़िलाफ़ विद्रोह में अहम भूमिका निभाई थी। उनको 5 जून 1858 को अंग्रेज़ी सेना ने शहीद कर दिया था।

बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528-29 में अयोध्या में हुआ था। जिसको 6 दिसंबर 1992 को संघ और भाजपा के नेताओ की मौजूदगी में कारसेवकों ने तोड़ दिया था। हिन्दू समुदाय का दावा है कि मस्जिद जिस स्थान पर बनी है, वह भगवान राम की जन्मभूमि है। इस मुद्दे पर कई बार देश का संप्रदायिक माहौल भी ख़राब हुआ। संघ ने विवाद के सहारे ख़ुद को राजनीतिक तौर पर मज़बूत किया।

यह मामला कई दशकों तक अदालतों में विचाराधीन रहा और 2019 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में विवादित भूमि हिन्दू पक्ष को देने का फ़ैसला किया और बाबरी मस्जिद की जगह मुस्लिम पक्ष को अलग 5 एकड़ भूमि मस्जिद के लिए देने का आदेश दिया। हालांकि देश की सर्वोच्च अदालत ने 6 दिसंबर 1992 की घटना को अपराध माना। लेकिन इस मामले के सभी मुलज़िमों को सीबीआई की विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव के आधार पर 2020 में बरी कर दिया।

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