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कोरोना वायरस की लड़ाई में सहकारी संघवाद की अहमियत

यह बात तो साफ़ हो चुकी है कि अचानक फैसला लेकर भारत जैसे देश को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है। साथ में यह भी साबित हो चुका है कि एक सेंट्रल कमांड जैसी व्यवस्था भारत में कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ने में ज्यादा मदद नहीं कर सकती है।
narendra modi
Image courtesy: Twitter

लॉकडाउन का फैसला भले ठीक हो लेकिन लॉकडाउन का फैसला जिस तरह से लिया गया, उस पर बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं। भारत के गरीब और निचले तबकों ने इन दिनों जिस तरह के मुश्किलों का सामना किया है, उससे अब तक यह बात तो साफ़ हो चुकी है कि अचानक फैसला लेकर भारत जैसे देश को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है। साथ में यह भी साबित हो चुका है कि एक सेंट्रल कमांड जैसी व्यवस्था भारत में कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ने में ज्यादा मदद नहीं कर सकती है।

राज्य सरकारों ने बॉर्डर सील कर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्फ्यू मतलब कर्फ्यू। यानी पुलिस को खुली छूट है कि वह लॉकडाउन को कारगर बनाने के लिए जो मर्जी सो करे। यह रवैया बताता है कि सरकार का मकसद लोगों को कंट्रोल करना है। सरकार के पास कोई कारगर प्लानिंग नहीं है। न ही सरकार वह सिस्टम डेवलप कर रही है, जो कोरोनावायरस से लड़ने में कारगर हो। क्योंकि यह केवल 21 दिनों का खेल तो है नहीं,  यह तब तक चलेगा जब तक कोरोना वायरस का इलाज नहीं मिल जाता।  

पब्लिक पॉलिसी  से जुड़े जानकारों से कहना है कि जब यह साफ़ हो गया कि बड़ी संख्या में  प्रवासी मजदूर शहर छोड़कर घर की ओर निकल रहे हैं तो केंद्र और राज्य सरकरों को आपस में बहुत तेज कम्युनिकेशन करने की जरूरत थी। वह नक्शा बनाने की जररूत थी, जिसपर चलते हुए एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच लोग आसानी से पहुंच सके। उन प्रक्रियाओं को तेज करने की जरूरत थी, जो यात्राओं के समय कोरोनावायरस के फैलने को नियंत्रित कर सकते थे। कांटेक्ट डाटाबेस, टेस्टिंग और कांटेक्ट ट्रेसिंग की ज़रूरत थी। जिसकी कोरोना वायरस की लड़ाई में सबसे अधिक जरूरत है। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ केंद्र का फरमान आया और सीधे राज्य के बॉर्डर को सील करने का हुक्म दे दिया गया।  इसके बाद जो अमानवीयता देखने को मिली वह सरकार और नागरिक दोनों को शर्मसार करने वाली थी।  

कोरोनावायरस की चुनौती न तो एक दिन की चुनौती है, न ही 21 दिनों की। यह लम्बे समय तक रहने वाली चुनौती है। मीडिया के जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि कोरोना वायरस की वजह से बहुत बुरे भविष्य की संभावना है। जैसा कि सभी जानते हैं कि हमारे देश में मीडिया उपेक्षितों की तरफ ध्यान नहीं देती,  तो जरा सोचिये ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में कोरोना वायरस से गांव का गांव बीमार हो गया लेकिन उसपर कोई बातचीत नहीं की जा रही है।

ऐसे में कोरोनावायरस से निपटने का तरीका यह नहीं हो सकता कि केंद्र और राज्य के बीच कमांड और कंट्रोल वाला रिश्ता हो लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य के बीच कोऑर्डिनेशन और मैनजेमेंट की जरूरत है। सहकारी संघवाद की जरूरत है, जिसकी व्याख्या हमारे संविधान में की गयी है। न कि इसकी कि केंद्र राज्यों से बिना बातचीत किये अपना फैसला सुना दे और राज्यों को जबरन वही करना पड़े जो केंद्र कहे। 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कॉमर्स डिपार्टमेंट में पब्लिक फाइनेंस के प्रोफेसर जी. मोहंती से बात हुई। मोहंती जी ने कहा कि इस समय दो तरह की परेशनियां हैं। पहली यह कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत किया जाए और दूसरी गरीब तबकों को भुखमरी से बचाया जाए। दोनों के लिए पैसे की जरूरत है। भारत में कई ऐसे राज्य हैं, जिनकी वित्तीय स्थिति बहुत कमजोर है। उनके पास पैसे की बहुत कमी है। इस समय केंद्र को अपने फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा की कम चिंता करनी चाहिए। केंद्र और राज्य के फॉर्मूले के आधार पर बंटवारे जैसी बात पर ध्यान दिए बिना इन राज्यों की मदद करनी चाहिए।

वित्त मंत्रालय द्वारा अभी हाल में ही जिस गरीब कल्याण योजना की उद्घोषणा की गयी है, उसे बदलने की जरूरत है। उसे रिडिजाइन करने की जरूरत है। बिहार, उड़ीसा जैसे गरीब और कमजोर राज्यों को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। अगले तीन महीने के लिए लागत की कोई चिंता किये बिना किये केंद्र के सारे सोशल सेक्टर स्कीम को एक साथ जोड़कर सही तरीके से लागू करने की जरूरत है। यही काम नेशनल हेल्थ मिशन के साथ भी होना चाहिए, जिसके बजट का 40 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारों को देना पड़ता है।  

डॉक्टर जिष्णु दास स्क्रॉल के पॉडकास्ट पर कहते हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण जब पूरे हिंदुस्तान में फ़ैल चुका होगा तब वैसे डॉक्टरों की बहुत जरूरत होगी जो कोरोना वायरस को रोकने का इलाज कर पाए। जिन्हें कोरोना वायरस को रोकने के लिए जरूरी डॉक्टरी रोकथाम के साथ पीपीई पहनने, उतराने से लेकर वेंटिलेटर का इस्तेमाल करने की जानकारी हो। हम जानते हैं कि दूर-दराज के इलाके में डॉक्टरों के अलावा इनफॉर्मल डॉक्टर यानी झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है। इन सारे लोगों को रोकथाम से जुडी जरूरी जानकरियों के प्रशिक्षण में लगाना जरूरी है। हमारे यहां अगर संसाधन कम है तो हमें अपने कम  संसाधन से ही काम निकालने वाली व्यवस्था बनाने की जरुरत है।

भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकार संतोष मैथियोज कहते हैं कि केंद्र और राज्य के बीच जरूरी चीजों के लेन देन में बहुत अधिक परेशानी आती है। इसके वित्तीय प्रबंधन में बहुत अधिक परेशानी आती है। पेपर वर्क का तामझाम इतना अधिक है कि सही सामान सही टाइम पर न पहुंच पाए। इसलिए अगर पहले से ही केंद्र और राज्य अपने काम का सही ढंग से बंटवारा कर ले तो कम परेशनियों का सामना करना पड़े।

जैसे कि इस समय पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई), वेंटिलेटर,  आइसोलेशन वार्ड जैसी चीजों की बहुत जरूरत है। केंद्र इसकी जिम्मेदारी ले कि किसी भी तरह से इसका उत्पादन करवाए। ऐसे मानक बनाये कि लीकेज कम से कम हो। वह प्रोसेस बनाये कि राज्यों के साथ इन्हें सही मात्रा में साझा किया जा सके। उसके बाद राज्यों को पूरी छूट दे दी जाए कि वह पूरे राज्य में इसे फ़ैलाने का काम करे। सप्लाई वेंडर से लेकर आर्डर लेने तक काम करे। इस तरह काम बंटवारा काम आसान करता है और सही टाइम पर सही सामान पहुंचाने में मदद करता है।  

इन सबके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जरूरी सामानों और सेवाओं की सप्लाई लगातार बनी रही। इसमें कोई रुकावट नहीं आई। पिछले हफ्ते खबर आयी कि उत्तरी केरल में जाने वाले जरूरी माल की सप्लाई कर्नाटक ने रोक दी, जिसकी वजह से केरल को परेशानी का समाना करना पड़ा। जब सब कुछ बंद है तो उत्पादन में लगने वाले श्रम से लेकर कच्चे माल की सप्लाई तक बंद हो जाती है। इनके बिना उत्पादन संभव नहीं।  बिना उत्पादन के जरूरी सामान सब तक पंहुचना बहुत कठिन हो जाता है। यह समय किसानों के लिए अपनी रबी की कटी हुई फसल को बेचने का है और खरीफ की फसल की बुवाई करने का है। ऐसी जरुरतों को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

इसलिए कोरोना वायरस की लड़ाई में केंद्र और राज्यों के सहयोग की बहुत अधिक जरुरत है। राज्यों को पैसे की कमी पड़ सकती है, उधार लेना पड़ सकता है। कच्चे माल और श्रम की जरुरत पड़ सकती है। इन सबके लिए एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है जिसमे केंद्र और राज्य मिलकर बहुत ही सहज तरह से काम करे। समझिये कि कोरोनावायरस से इस लड़ाई में हमारे संविधान के Cooperative federalism यानी सहकारी संघवाद की बहुत अधिक अहमियत है।    

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