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यूरोप के केंद्र में फासीवाद की वापसी

जियोर्जिया मेलोनी ज़ोर देकर कहती हैं कि वह ख़ुद फासीवादी नहीं हैं, भले ही उनकी पार्टी के झंडे में पुरानी फासीवादी पार्टी के तीन रंगों की लौ वाला प्रतीक शामिल है।
Giorgia Meloni

रविवार को इटली के संसदीय चुनाव में एक अतिदक्षिणपंथी गठबंधन ने चौंकाने वाली जीत दर्ज की है, ऐसे में जियोर्जिया मेलोनी के देश के अगले प्रधानमंत्री के रुप में देखा जा रहा है, जिनका आव्रजन और "ईसाई परिवार" के संरक्षण को लेकर कट्टर विचार इटालियन सोशल मूवमेंट (एमएसआई) में निहित हैं। एमएसआई की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बेनिटो मुसोलिनी की फासीवादी तानाशाही के उदासीन पूर्व सदस्यों द्वारा की गई थी।

मेलोनी ज़ोर देकर कहती हैं कि वह ख़ुद फासीवादी नहीं हैं, भले ही उनकी पार्टी के झंडे में पुरानी फासिस्ट समर्थक पार्टी के तीन रंगों की लौ वाला प्रतीक शामिल है। मुसोलिनी के दो उत्तराधिकारियों में उनकी पोती रैचेले और उनके परपोते कैओ गिउलिओ सेसारे हैं जो ब्रदर्स ऑफ इटली के बैनर से चुनाव लड़े जिसका नेतृत्व मेलोनी कर रही हैं। मेलोनी ज़ोर देकर कहती हैं कि वह ख़ुद फासीवादी नहीं हैं, लेकिन मुसोलिनी के बारे में उनका कहना है कि "उन्होंने जो कुछ भी किया, उन्होंने इटली के लिए किया।"

एक मज़दूर वर्ग की पृष्ठभूमि के साथ यह सब इस राजनेता के सफल उदय को एक ऐसे समय में एक दहनशील मिश्रण बनाता है जब यूरोपीय राजनीति का भविष्य ख़ुद ही आर्थिक संकट से जूझते हुए अंधकारमय और अनिश्चित लगता है। फासीवाद के उदय पर लियोन ट्रॉट्स्की का एक मशहूर वाक्यांश यह समझने में मदद करता है कि आख़िर क्या सह हो रहा है। उन्होंने लिखा: "इटली में फासीवादी आंदोलन भारी संख्या में जनता का एक स्वतःस्फूर्त आंदोलन था, जिसमें निचले पायदान से आए नेता हैं। यह मूल रूप से एक जन आंदोलन है, जिसे बड़ी पूंजीवादी शक्तियों द्वारा निर्देशित और वित्तपोषित किया गया। यह छोटे बुर्जुआ वर्ग, झुग्गी-बस्तियों के सर्वहारा वर्ग और यहां तक कि कुछ हद तक सर्वहारा जनता से भी निकले; पूर्व समाजवादी मुसोलिनी इसी आंदोलन से उभरे एक "स्व-निर्मित" व्यक्ति हैं।

मेलोनी की राजनीति के तीन स्तंभ हैं जिनमें अवैध आव्रजन, अत्यधिक सामाजिक रूढ़िवाद और जुझारू यूरो-संशयवाद के लिए शून्य-सहिष्णुता शामिल हैं। गार्डियन अख़बार ने लिखा: "इटली से स्वीडन तक, हंगरी से फ्रांस तक, दक्षिणपंथी एक बार फिर से शक्ति के रूप में गिने जा रहे हैं। अप्रवासियों के प्रति इसकी दुश्मनी भारत सहित हर जगह बाहरी लोगों से नफ़रत को प्रोत्साहित करती है।”

यूरोपीय राजनीति में इटली ने पारंपरिक रूप से फ़्रांस और जर्मनी जैसे दिग्गजों के लिए एक चिंतित कनिष्ठ साथी की भूमिका निभाई जो निर्णय लेने में मदद करते हैं। मेलोनी के अधीन इसका बदलना लगभग तय है। बात यह है कि वह किस मार्ग को अपनाती हैं। यह हंगरी के विक्टर ओर्बन जैसे जनवादी की राह अपनाती हैं जिनके अधीन अधिक से अधिक नियंत्रण लगाने की मंशा रही है, पोलैंड के माटुस्ज़ मोराविएकी की राह या रूढ़िवादी लिज़ ट्रस की तरह? या, कुछ ऐसा कि जो पूरी तरह से अलग है?

वह जिस भी रास्ते पर जाएं वह नरक का रास्ता है, क्योंकि इटली दुनिया के सबसे धनी और प्रभावशाली देशों में से एक है। वह जी-7 का सदस्य है और यूरोपीय संघ (ईयू) में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक नाटो शक्ति है। इसलिए रविवार के मतदान के नतीजे को यूरोपीय देशों की राजधानियों और वित्तीय बाजारों में चौंकाने वाले नतीजों के रूप में देखा गया। सीधे शब्दों में कहें तो, ब्रदर्स ऑफ इटली यह भरोसा नहीं दिलाता है कि रोम एक स्थिर यूरोपीय भागीदार के रूप में अपनी भूमिका को फिर से हासिल करेगा। हालांकि आने वाले सेंटर-राइट कोलिशन के घोषणापत्र में यूरोपीय संघ के पड़ोसियों और नाटो भागीदारों को फिर से आश्वस्त करने की मांग की गई थी।

वास्तव में, मेलोनी को शुरू में झंझलाहट हो सकती है क्योंकि इटली नेक्स्टजेनरेशनईयू फंड का सबसे बड़ा लाभार्थी है और इसकी आर्थिक कठिनाइयों को यूरोपीय संघ की मदद से सबसे अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाता है। फिर भी, जब मेलोनी का गठबंधन "राष्ट्रीय हित" की बात करता है, तो एक बड़ा अंतर होना चाहिए। परंपरागत रूप से, इटली के नेताओं ने समान मूल्यों और हितों वाले देशों के साथ दोस्त बनकर राष्ट्रीय हित को आगे बढ़ाया। इस प्रकार, यूरोपीयवाद-समर्थक और अटलांटिकवाद इतालवी नीति के निर्विवाद सिद्धांत बन गए।

लेकिन जब मेलोनी "राष्ट्रीय हित" शब्द का इस्तेमाल करती हैं, तो इसका एक पूरी तरह से अलग अर्थ होता है जो राष्ट्रवाद की एक जातीय अवधारणा के फासीवादी विचार से जुड़ा होता है, रोमन साम्राज्य का महिमामंडन करता है। कुछ ऐसा ही जो आज भारत या तुर्की में हो रहा है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर मेलोनी यूरोपीय आयोग के नौकरशाहों को उनका स्थान देती हैं और यूरोपीय संघ के पर काटती हैं। उन्होंने हाल ही में खुलकर कहा, "यह होगा कि ग्रेवी ट्रेन यानी कम मेहनत में ज़्यादा से ज़्यादा आय अर्जित करने की स्थिति ख़त्म हो जाएगी।" वह सिर्फ यह नहीं सोचती है कि ब्रुसेल्स बेकार है, बल्कि दुश्मन भी है। लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थानांतरित करने के लिए पोलैंड और हंगरी को दंडित करने के यूरोपीय संघ के प्रयासों का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा, "हम राजनीतिक रूप से सही विचारधारा की तानाशाही का विरोध करने वाले संप्रभु देश की सरकारों के ख़िलाफ़ सबसे शक्तिशाली और हिंसक हमले का सामना कर रहे हैं।"

ग़ौरतलब है कि मेलोनी इस राह पर अकेली नहीं हैं। हंगरी के राष्ट्रवादी नेता विक्टर ओर्बन से नज़दीकी के अलावा वह यूरोपियन कंजरवेटिव्स एंड रिफॉर्मिस्ट्स (ईसीआर) की अध्यक्ष भी हैं, जो पूरे यूरोप की ऐसी पार्टी है जिसमें पोलैंड की सत्तारूढ़ लॉ एंड जस्टिस पार्टी के साथ-साथ स्पेन और स्वीडन देशों में तेजी से उभरती प्रभावशाली पार्टियां शामिल हैं। मेलोनी के पास 2024 में यूरोपीय संसद में संतुलन बनाने और शीर्ष नौकरियों के आवंटन को प्रभावित करने के तरीक़े हो सकते हैं। इन तरीक़ों में यह हो सकता है कि यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन को दूसरा कार्यकाल दिया जाए या नहीं।

संक्षेप में इटली अब फ्रांस और जर्मनी की बातों को मानने वाला देश नहीं हो सकता है, लेकिन मेलोनी के पास रूढ़िवादी, सत्तावादी व्यक्तित्व के साथ उनका ख़ुद का एक गिरोह हो सकता है। निश्चित रूप से इसका मतलब यह होगा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन और इमैनुएल मैक्रोन जैसे राष्ट्रपतियों के साथ संबंध कमज़ोर होंगे। अमेरिका के लिए मेलोनी का दृष्टिकोण ट्रम्पियन राइट की दिशा में है।

बड़ा सवाल यह है कि यूक्रेन के सवाल पर इटली की नई सरकार किस तरफ है। ब्रदर्स ऑफ़ इटली यूक्रेन में रूस के सैन्य कार्रवाई की आलोचक रही है। लेकिन इसकी गठबंधन सहयोगी लेगा पार्टी मास्को के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखी है और मेलोनी इसके समर्थन पर बहुत अधिक भरोसा करेगी। लेगा पार्टी के नेता मट्टेओ साल्विनी ने रूस के ख़िलाफ़ यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया है। साल्विनी को व्यापारियों से भारी संख्या में मतदाताओं का समर्थन है। इस समूह ने आशंका व्यक्त की है कि रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी प्रतिबंधों के नतीजों से इटली की अर्थव्यवस्था बहुत अधिक प्रभावित हो सकती है।

इसके अलावा, मेलोनी को अपने गठबंधन सहयोगियों में से एक पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी के साथ भी तालमेल बिठाना होगा जो अभी भी इतालवी राजनीति के प्रमुख व्यक्ति और राष्ट्रपति पुतिन के क़रीबी दोस्त हैं। दक्षिणपंथी गठबंधन को बर्लुस्कोनी का समर्थन यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि उसके पास सीटों का बहुमत हैं और इस तरह विवादास्पद पूर्व-प्रधानमंत्री अभी भी अहम प्रभाव डाल सकते हैं। मेलोनी की पार्टी को सरकार का कोई अनुभव नहीं है, इसलिए उन्हें बर्लुस्कोनी और साल्विनी से पूर्ण समर्थन की ज़रूरत होगी। इस तरह इस नई संरचना में यूक्रेन के लिए इटली का समर्थन कमज़ोर हो सकता है।

जिस बात पर अक्सर किसी का ध्यान नहीं जाता वह यह है कि मास्को का ऐतिहासिक रूप से इतालवी राजनेताओं के साथ व्यापक व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। 1960 के दशक की बात है जब इटली यूरोप में सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी का घर हुआ करता था। जर्मनी की तरह, रोम में सभी तबक़े की सरकारों ने रूस के साथ आर्थिक और ऊर्जा संबंधों को बढ़ावा देना जारी रखा। इस तरह के दृष्टिकोण से इतालवी राजनीति में बदलाव सरंचनात्मक है जो यूक्रेन में युद्ध को धीमी गति से लेकर पूर्ण युद्ध में बदलने के जैसा है। यह उस उठापटक के बीच हुआ है जब यूरोपीय संघ ख़ुद गंभीर तरीक़े से पुनर्विचार कर रहा है जो विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल की "राजनयिक प्रयासों" पर दिए गए हालिया टिप्पणी से पता चलता है।

अतीत में इटली के चुनावों ने अक्सर यूरोप में इसी तरह के रुझान को जन्म दिया है। 1920 के दशक में मुसोलिनी का उदय जर्मनी में नाज़ियों के उदय से पहले हुआ। एक नाटकीय बदलाव के तहत दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों ने स्वीडन में जीत हासिल की। यूरोप के लिए जोखिम ख़ुद जियोर्जिया मेलोनी नहीं हो सकती हैं, लेकिन यह देखना होगा कि उनका प्रभाव कैसे फैलता है। जैसा कि एक अनुभवी जर्मन टिप्पणीकार ने कहा, यह वह जगह भी है जहां "सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि यूरोपीय संघ उसे चारों ओर दबाने या उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश करता है और इटली के मतदाताओं के साथ अपनी तरफ वह इसका विरोध करेंगी।"

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत थे। ये विचार व्यक्तिगत हैं

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Fascism Returns to Europe’s Centerstage

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