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दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

केंद्रीय ट्रेड यूनियन ने इस दो दिवसीय हड़ताल को सफल बताया है। आज हड़ताल के दूसरे दिन 29 मार्च को देश भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं दिल्ली के सरकारी कर्मचारी और रेहड़ी-पटरी वालों ने संसद भवन के पास जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर प्रदर्शन किया।
Bharat Bandh

28 और 29 मार्च को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनों, स्वंतत्र फ़ेडरेशनों एवं कर्मचारी संगठनों के केंद्रीय आह्वान पर देशभर के करोड़ों कामगारों और कर्मचारियों ने एक बड़ी आम हड़ताल की। इस हड़ताल से बैंकों, वित्तीय सेवाओं, विभिन्न सरकारी सेवाओं,परिवहन, इस्पात इकाइयों, बंदरगाह और गोदी, दूरसंचार सेवाओं,खेती-बाड़ी, बिजली उत्पादन इकाइयों, कोयला और अन्य खदानों, तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन इकाइयों, और लाखों दूसरे अलग-अलग उद्योगों के काम-काज ठप पड़ गये।

केंद्रीय ट्रेड यूनियन ने इस दो दिवसीय हड़ताल को सफल बताया। आज हड़ताल के दूसरे दिन 29 मार्च को देश भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं दिल्ली के सरकारी कर्मचारी और रेहड़ी-पटरी वालों ने संसद भवन के पास जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में दिल्ली जल बोर्ड, डीबीसी, बैंक, एलआईसी, स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, रेहड़ी पटरी के साथ ही घरेलू कामगार यूनियन के कर्मचारी, सदस्यों ने सैकड़ों की तादाद में शिरकत की।

दिल्ली में हुए संसद के पास हुए प्रदर्शन को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियनों के नेताओ ने कहा कि इस हड़ताल का असर कश्मीर से कन्याकुमारी तक पुरे भारत में दिखा है। तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, त्रिपुरा, असम, हरियाणा, झारखंड और अन्य राज्यों के कई जिलों में भी संपूर्ण बंद जैसी स्थिति रही है। गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश राज्यों के औद्योगिक क्षेत्रों में पर्याप्त रूप से हड़ताल का असर दिखा । सिक्किम में भी कर्मचारी हड़ताल पर रहे। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक क्षेत्रों में हड़ताल की सूचना है। तमिलनाडु में 50000 सरकारी कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ लगभग 300 स्थानों पर धरना दिया। डाक विभाग, आयकर ऑडिट, जीएसआई और अन्य में केंद्र सरकार के कर्मचारी भी बड़े पैमाने पर हड़ताल में शामिल हुए हैं। मछुआरे भी हड़ताल के दौरान समुद्र में नहीं गए।

केंद्रीय ट्रेड यूनियन एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "ये हड़ताल देशभर के आम मज़दूरों ने भाग लिया है। क्योंकि इस सरकार ने मज़दूरों पर एक के बाद एक हमले कर रही है। अभी पांच राज्यों के चुनाव के तत्काल बाद ही उन्होंने मज़दूरों को PFकी ब्याज दरों में कटौती की है।"

इस हड़ताल में बड़ी संख्या में दिल्ली में घरेलू कमकाज करने वाली महिला मज़दूरों ने भी हिस्सा लिया। ऐसा ही एक समूह दक्षिणी दिल्ली के धोबी घाट इलाके से आया था। जहाँ दिल्ली विकास प्रधिकरण (DDA) द्वारा कई सालों से झुग्गी में रह रहे मज़दूरों को बिना किसी पुनर्वास के बेदखल किया जा रहा है। लोगो में जहाँ केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्सा था वही उन्हें राज्य की कथित प्रगतिशील केजरीवाल की सरकार से भी भारी नाराज़गी थी। शबाना बेगम जो वहां एक दशक से अधिक से रह रही हैं, उन्होंने कहा, "चुनाव से पहले केजरीवाल और बीजेपी वाले बोलते थे जहाँ झुग्गी वहां मकान लेकिन अब माकन तो छोड़िए वो हमारी झुग्गी भी छीन रहे है। जिससे हम और हमारा पूरा परिवार सड़क पर आ जाएगा।"

इसी तरह की शिकायत उनके साथ आई सुनीता मंडल, अमीना , रुकसाना बेग़म और कई अन्य महिलाओं ने भी बताई। बातचीत में उन्होंने बताया कि उनका रोजगार तो कोरोना में ही छीन गया था। ये सभी महिलाएं लोगों के घरों में काम करती थीं।

सुनीता ने कहा, "कोरोना के समय बीमारी के डर से लोगों ने हमे काम से हटाया और अभी तक हमे ठीक से काम नहीं मिल रहा है। ऐसे में सरकारी आदमी रोज़ाना हम लोगों का  आशियाना उजाड़ रहे हैं। बताइये हम लोग कहाँ जाएं?"

दिल्ली में असंगठित क्षेत्र में मज़दूर यूनियन सीटू का काम देखने वाले सिद्धेश्वर शुक्ला ने दावा किया कि इस हड़ताल में शहर के निर्माण मज़दूर, रेहड़ी पटरी, रिक्शा चालक से लेकर घरेलू काम करने वाली बड़ी आबादी ने हिस्सा लिया।

शुक्ला ने कहा, "मज़दूर वर्ग को भी किसानों की तरह ही एक लंबा और मज़बूत आंदोलन खड़ा करना होगा तभी ये तानशाह सरकार हमारी मांगों को मानेगी।"

जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन में बड़ी संख्या में बैंक कर्मचारी शामिल हुए। आंदोलन में आए लगभग 56 वर्षीय जेपी शर्मा ने कहा, "मोदी सरकार जो बैंको का निजीकरण कर रही है वो सिर्फ हमारे लिए नहीं बल्कि जनता के लिए भी हानिकारक है। सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों के हाथों में सुरक्षित जनता की जमा राशि को निजी खिलाड़ियों को सौंप दिया जा रहा है, जो मुनाफे के अलावा और कुछ नहीं सोचते हैं।"

इसी तरह केंद्र सरकार के अधीन आने वाले लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों ने आज बड़ी संख्या में कार्यक्रम में शिरकत की। इन कर्मचारियों ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि पूरे कोविड के दौरान वेंटिलेटर, बाइपैप, ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर जैसी मशीनों को सुचारू रूप से चलाकर देश की आम जनता की जान बचाने और मरीजों की सेवा करने के बदले उन्हें काम से निकाला जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे इन कर्मचारियों में से अधिकतर कोविड के दौरान काम करने के चलते खुद भी संक्रमण का शिकार हो चुके हैं।

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में टेक्निशयन पूनम शर्मा ने बताया, "अस्पताल में कुल 26 ओटी टेक्निशयन, 96 नर्सिंग स्टाफ और 80 एमटीएस को निकालने का फ़रमान जारी कर दिया है। जबकि हमने कोरोना काल में अपनी जान जोखिम में डालकर 24 घंटे काम किया है।"

कोरोना काल में ही ज्वाइन करने वाली आँचल जोएमटीएस के पद पर कार्यरत है। उन्होंने कहा, "जब देश में महामारी थी और सरकार को हमारी जरूरत थी तब हमे 24 घंटे में नियुक्ति दे दी गई और आज हमे काम से निकाला जा रहा है। उन्होंने कहा सरकार उस समय कहती थी वो कोरोना योद्धा का सम्मना करेगी आज हमे बेरोजगार किया जा रहा है, क्या यही है सम्मान?

सीटू दिली राज्य महसचिव अनुराग सक्सेना ने कहा, "सरकार अपने हर मज़दूर और जनता विरोधी फैसले को चुनावी विजय से न्यायसंगत ठहरती है जबकि सच्चाई यही है कि इन्हे जनता ने चुनावो में किसी और मुद्दे पर समर्थन दिया होता है। लेकिन ये सरकार संसद में संख्या बल के आधार पर लगातार मज़दूर विरोधी निर्णय कर रही है। पांच राज्यों के चुनाव के तुरंत बाद इन्होने घरेलू गैस के दाम बढ़ा दिये। क्या इन्हें जनता ने इसलिए चुना है?"

सक्सेना ने दिल्ली सरकार पर भी हमला बोलते हुए कहा, "वो भी मज़दूर और कर्मचारियों के खिलाफ है। हाल ही में अपने लिए न्यूनतम वेतन की मांग करने वाली आंगनबाड़ी कर्मियों पर जो कार्रवाई की गई वो केजरीवाल सरकार के मज़दूर विरोधी रैवेय को दर्शाता है।"

साथ ही उन्होंने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल को चेतावनी देते हुए कहा, "आज की इस सभा में एक प्रस्ताव पास हुआ है आंदोलन के दौरान जिन 991 आंगनबाड़ी कर्मियों को टर्मिनेट किया गया है उन्हें तुरंत काम पर वापस लिया जाए वरना सभी ट्रेड यूनियन संयुक्त रूप से केजरीवाल और उपराज्यपाल का घेराव करेंगे।"

दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुई सभा को संबोधित करते हुए ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा, "हर जगह केंद्र सरकार के पूर्ण संरक्षण और इशारे पर साम्प्रदायिक तनाव फैलाकर, जनता को मुद्दों से भटकाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। हमें मज़दूर वर्ग की व्यापक एकता के बल पर ऐसी कोशिशों को नाकाम करना चाहिए। अगर किसान आंदोलन के दम पर सरकार को झुका सकते हैं, तो हमें भी अपनी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए।"

संयुक्त किसान मोर्चा ने भी अपनी छह मांगो के साथ मज़दूर की इस हड़ताल को समर्थन दिया था। उसके प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद किसान नेता हनन मौल्ला ने कहा ये सरकार मज़दूर किसान दोनों के ही खिलाफ है इसलिए हम सब मिलकर इनके खिलाफ संयुक्त हड़ताल में शमिल हुए हैं और आगे भी साथ में ही लड़ेंगे।

इसी तरह खेत मज़दूरों के प्रतिनिधि के तौर पर जंतर मंतर पर मौजूद अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन के राष्ट्रीय सँयुक्त सचिव विक्रम सिंह ने कहा, "एक तरफ जहाँ शहरों में मज़दूरों ने औद्दोगिक क्षेत्रों में हड़ताल की वहीं ग्रामीण हल्को में किसान और खेत मज़दूरों ने भी काम बंद किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रो में सभा किए और कई जगह तो किसानो ने चक्का जाम भी किया। जो अभूतपूर्व था।

इस तरह इस हड़ताल में छात्र और नौजवान संगठनों ने भी भागीदारी की।

सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा, "इस हड़ताल ने भविष्य के आंदोलन की दिशा तय की है। इस हड़ताल को देशभर में जिस तरह से समर्थन मिला है वो दिखता है मज़दूर वर्ग इस सरकार से परेशान है। इस हड़ताल के बाद भी मज़दूरों का संघर्ष अपने अपने स्तर पर जारी रहेगा और इस सरकार के मज़दूर विरोधी नीतियों को हम किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे।"

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