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संकट: एटलस साइकिल के पहिए थमे, क़रीब एक हज़ार कर्मचारी ले-ऑफ

पीएम मोदी ने अभी 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान करते हुए कहा था कि ये पैकज आत्मनिर्भर भारत को गति देगा, लेकिन दावों से अलग देश में रोज़ सैकड़ों लोग अपनी नौकरियां गवां रहे हैं, हज़ारों लोगों को ले-ऑफ का सामना करना पड़ रहा तो वहीं कई स्वदेशी कंपनियों के बंद होने तक की नौबत आ गई है।
एटलस साइकिल
Image courtesy: Navbharat Times

“जब तक संचालक धन का प्रबंध नहीं कर लेते, तब तक वे कारखाने में कच्चा माल खरिदने में भी असमर्थ हैं। ऐसी स्थिति में संचालक फैक्ट्री चलाने की स्थिति में नहीं हैं। अंत: सभी कामगार दिनांक 3 जून से बैठकी (ले-ऑफ) पर घोषित किए जाते हैं।”

ये भाषा देश की सबसे पुरानी साइकिल कंपनी एटलस (Atlas Cycles) के ग़ाज़ियाबाद प्लांट के गेट पर लगे नोटिस की है। एटलस प्रबंधन के अनुसार कंपनी ने सभी उपलब्ध फंड ख़र्च कर दिए हैं। अब स्थिति यह है कि कंपनी के पास आय का कोई भी स्रोत नहीं बचा है। रोज़ के खर्चों के लिए भी रकम उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसलिए फिलहाल कंपनी को बंद करने का फैसला लिया जा रहा है। एटलस कर्मचारी यूनियन के मुताबिक इस वक्त कंपनी में लगभग एक हजार कामगार हैं, जो सीधे तौर पर इस कामबंदी से प्रभावित होंगे।

क्या है पूरा मामला?

विश्व साइकिल दिवस यानी बुधवार, 3 जून को जब ग़ाज़ियाबाद के साहिबाबाद स्थित देश की नामी साइकिल कंपनी एटलस के कर्मचारी अपने रोज़ाना रूटीन के मुताबिक काम करने कंपनी गेट पर पहुंचे तो उन्हें सुरक्षा गार्ड द्वारा गेट के बाहर ही रोक दिया गया। जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें गेट पर लगे नोटिस का हवाला दिया गया। जिसे देखने के बाद सभी के होश उड़ गए।

नोटिस में लिखा था कि कंपनी आर्थिक तंगी से गुजर रही है। अब उनके पास पैसा नहीं बचा है। जब तक धन का प्रबंध नहीं हो जाता, तब तक कारखाने में कच्चा माल नहीं आएगा। ऐसी स्थिति में सेवायोजक फैक्ट्री चलाने में असमर्थ हैं। यह स्थिति तब तक बने रहने की संभावना है जब तक सेवायोजक धन का प्रबंधन ना कर लें। इसलिए सभी कर्मकार तारीख 3 जून से बैठकी पर घोषित किए जाते हैं।

जब कर्मचारियों ने इस बाबत कंपनी प्रबंधकों से बात करने की कोशिश की, तो उन्हें सामने से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद कुछ ही देर में कर्मचारियों की भीड़ बढ़ती गई। सभी को इस बारे में मालूम हुआ तो उनका गुस्सा भी भड़क गया। आननफानन में सभी कंपनी के बाहर ही प्रदर्शन करने लगे।

तब कंपनी की ओर से पुलिस बुलाई गई। काफी देर तक दोनों पक्षों के बीच बात होती रही। हालांकि कर्मचारियों का ये भी आरोप है कि पुलिस ने उन्हें कंपनी गेट से हटाने के लिए हल्का बल प्रयोग भी किया।

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क्या होता है ले-ऑफ?

किसी भी कंपनी के पास जब उत्पादन के लिए पैसे नहीं होते हैं यानी कच्चा माला या अन्य संसाधनों में पैसे लगाने की उसकी क्षमता खत्म हो जाती है। तब उस स्थिति में कंपनी कर्मचारियों की सीधे तौर पर छंटनी न करके उन्हें हाज़िरी के आधार पर आधा वेतन देती है।

इस दौरान कर्मचारियों से किसी प्रकार का अतिरिक्त काम नहीं लिया जाता, सिर्फ उसकी हाज़िरी कंपनी गेट पर लगवाई जाती है, इसी के आधार पर पैसे दिए जाते हैं। 

ले-ऑफ पर यूनियन ने श्रम विभाग को लिखा पत्र

इस संबंध में एटलस साइकिल लिमिटेड इम्प्लॉयज यूनियन ने श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और श्रमायुक्त को पत्र भेजकर विरोध जताया है। यूनियन ने कंपनी द्वारा गलत तरीके से बैठकी लागू करके कर्मचारियों को परेशान करने के मामले में दोनों पक्षों को बुलाकर राहत देने की मांग की है।

कर्मचारी यूनियन के नेता महेश कुमार ने मीडिया को बताया कि एटलस की इस फैक्ट्री में एक हजार श्रमिक काम करते हैं, साहिबाबाद में यह कारखाना 1989 से चल रहा है। ऐसे में कंपनी ने बिना किसी पूर्व सूचना से अचानक ले-ऑफ लागू कर बोर्ड पर नोटिस चिपका दिया। साथ ही कर्मचारियों को काम करने से गेट पर ही रोक दिया गया, लिहाजा यह गैर-कानूनी है। इसलिए परेशान कर्मचारियों की ओर से संगठन ने इस मामले की शिकायत श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और ग़ाज़ियाबाद के श्रमायुक्त को पत्र लिखकर की है। साथ ही कंपनी पर गलत तरीके से बैठकी करने व कर्मचारियों को परेशान करने का आरोप लगाया है।

कर्मचारियों का क्या कहना है?

कर्मचारी ले-ऑफ के फैसले से हैरान-परेशान हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन से पहले हर महीने कंपनी में कम से कम दो लाख साइकिलों का निर्माण होता था। दो दिन पहले ही यहां दोबारा काम शुरू हुआ था, इससे पहले भी सब कुछ ठीक चल रहा था,  ऐसे में अचानक आर्थिक संकट कहां से आ गया?

कंपनी के मजदूरों ने बताया कि इस फैक्ट्री से ही उनकी रोजी-रोटी चलती थी और परिवार का लालन-पालन होता था। पहले ही लॉकडाउन और कोरोना संकट के चलते सभी दिक्कतों का सामना कर रहे थे। अब फैक्ट्री बंद होने से वो कहां जाएं? कंपनी पहले ही अलग-अलग राज्यो में चल रही दो यूनिट बंद कर चुकी है। कम से कम फैक्ट्री प्रबंधन को हम से बात करनी चाहिए थी। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद कोई बात करने बाहर नहीं आया।

बता दें कि साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र साइट-4 स्थित एटलस साइकिल (हरियाणा) लिमिटेड में परमानेंट और कांट्रेक्ट बेस पर करीब एक हजार कर्मचारी काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग कंपनी में पिछले 20 साल से कार्यरत हैं। 

विपक्ष ने जताई चिंता

इस मामले पर बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट कर कहा कि ऐसे समय जब लॉकडाउन के कारण बन्द पड़े उद्योगों को खोलने के लिए आर्थिक पैकेज आदि सरकारी मदद देने की बात की जा रही है तब यूपी के ग़ाज़ियाबाद स्थित एटलस जैसी प्रमुख साइकिल फैक्ट्री के धन अभाव में बन्द होने की खबर चिन्ताओं को बढ़ाने वाली है। सरकार तुरन्त ध्यान दे तो बेहतर है।

एटलस का इतिहास

कंपनी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक 1951 में जानकी दास कपूर द्वारा स्थापित एटलस साइकिल कंपनी ने अपने स्थापना के पहले ही साल में 12 हजार साइकिल बनाने का रिकॉर्ड बनाया था। तो वहीं 1958 में पहली खेप निर्यात भी की।

1965 तक यह देश की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बन गई। 1978 में भारत में पहली रेसिंग साइकिल पेश कर एटलस दुनिया में शीर्ष साइकिल उत्पादक कंपनियों में से एक होने का गौरव भी हासिल कर चुकी है।

कंपनी को ब्रिटिश स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूशन से आइएसओ 9001-2015 सर्टिफिकेशन के साथ भी मान्यता दी गई। कंपनी ने सभी आयु समूहों के लिए एक विस्तृत श्रृंखला भी पेश की। कंपनी को इटली के गोल्ड मर्करी इंटरनेशनल अवार्ड भी मिला। 

2003 में एटलस ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का पुनर्गठन हुआ जिसके बाद जयदेव कपूर को कंपनी की कमान मिली, वे अध्यक्ष पद के लिए चुने गए। एटलस ने 2005 में विदेशों में कई कंपनियों के साथ साझेदारी कर विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के बीच 12 मई को राष्ट्र के नाम दिए अपने संबोधन में 2020 में 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान करते हुए कहा था कि ये पैकज आत्मनिर्भर भारत को गति देगा, इसके जरिए देश के विभिन्न वर्गों के आर्थिक व्यवस्था की कड़ियों को सपोर्ट मिलेगा। लेकिन दावों से इतर देश में रोज़ सैकड़ों लोग अपनी नौकरियां गवां रहे हैं, हज़ारों लोगों को ले-ऑफ का सामना करना पड़ रहा तो वहीं कई स्वदेशी कंपनियों के बंद होने तक की नौबत आ गई है।

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