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कोरोना से पहले हाइवे पर भूख-प्यास और निमोनिया से मर जायेंगे ये बिहारी मज़दूर

बिहार सरकार ने 26 मार्च को 100 करोड़ रुपये की घोषणा इन मज़दूरों की मदद के लिए भी जारी की थी, मगर इन मजदूरों की मदद के लिए कहीं कैंप खुले हों, ऐसी जानकारी नहीं मिलती।
 बिहारी मजदूर

इसी मार्च महीने की शुरुआत में बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि चांद पर भी नौकरी निकल जाये तो बिहारी वहां पहुंच जायेंगे। उससे दो-तीन दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधान मंडल में बयान दिया था कि बिहार अपने हुनर से बाहर जाकर कमाते हैं, पलायन को शर्म की बात नहीं माना जाना चाहिए।

मगर अभी यह महीना बीता भी नहीं है कि देश के अलग-अलग इलाकों में हजारों की संख्या में बिहारी मजदूर सड़कों पर लॉंग मार्च करते नजर आ रहे हैं। वह भी कोरोना के उस दौर में जब पूरा देश लॉक डॉउन है, देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी लोगों को अनिवार्य रूप से घरों में बंद रहने का निर्देश दिया है, सड़कों पर पुलिस हर आने-जाने वाले पर डंडा बरसा रही है। मगर फिर हर सड़क पर सिर पर झोला और हाथ में छोटे बच्चों को पकड़े ये निरीह लोग निकल पड़े हैं और किसी सूरत में अपने घर लौट आना चाहते हैं।

27 मार्च, 2020 की रात दिल्ली से नोएडा के रास्ते पर बीस हजार से अधिक ऐसे ही लोग सड़कों पर सपरिवार आगे बढ़ रहे थे। ऐन उसी वक्त बारिश भी शुरू हो गयी। उस इलाके में कहीं सिर छिपाने के लिए जगह नहीं थी। पता नहीं इन लोगों की रात कहां गुजरी होगी। उस रोज दिन भर सोशल मीडिया पर अपील आती रही, फलां जहां 200 बिहारी मजदूर फंसे हैं, फलां जहां 250 मजदूर। ये सूचनाएं त्रिवेंद्रम से लेकर पंजाब के होशियारपुर तक की थी। इन लोगों ने कागज की पर्चियों पर अपने नाम और नंबर लिखकर कहीं भेजा था। फिर उन लोगों ने सोशल मीडिया पर डाला। कुछ पत्रकारों और खास कर बिहार के विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने इन सूचियों को संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और बड़े नेताओं को रिट्वीट किया। खबर है कि इस अभियान से कुछ मजदूरों को मदद भी मिली।

मगर इस बीच सबसे दिल तोड़ देने वाला रवैया बिहार सरकार का रहा। सरकार ने 26 मार्च को एक हेल्पलाइन नंबर, दिल्ली स्थित बिहार भवन के नंबर और कुछ और अधिकारियों के नंबर जारी किये थे कि देश में कहीं भी बिहार के मजदूरों को मदद की जरूरत हो तो कृपया इन नंबरों पर संपर्क करें। किसी को परेशान नहीं होने दिया जायेगा। मगर इनमें से एक भी नंबर पर 27 मार्च के पूरे दिन किसी का संपर्क नहीं हो पाया। बिहार सरकार ने 26 मार्च को 100 करोड़ रुपये की घोषणा इन मजदूरों की मदद के लिए भी जारी की थी, मगर इन मजदूरों की मदद के लिए कहीं कैंप खुले हों, ऐसी जानकारी नहीं मिलती।

फरवरी माह में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस, मुंबई ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक बिहार के हर दूसरे घर से कोई न कोई व्यक्ति रोजी-रोजगार के लिए राज्य से बाहर पलायन करता है। इनमें से 90 फीसदी लोग अकुशल मजदूर का काम करते हैं। अभी राज्य की आबादी 11 करोड़ है, इस लिहाज से देखा जाये तो बिहार के एक करोड़ अकुशल मजदूर देश के अलग-अलग कोने में रहकर अकुशल मजदूरों का काम करते हैं।

यह लॉक डाउन उन सबों के लिए आफत बनकर आयी है। उनके काम के ठिकाने बंद हो चुके हैं, किराया न मिलने के डर से उनके मकान मालिकों ने उन्हें घरों से निकाल दिया है। महानगरों में उनके लिए कहीं कोई मदद नहीं है। अब सड़क ही उनका सहारा है और वे अपने कमजोर पांवों से हजारों किमी की दूरी नाप लेने का प्रण लेकर निकल चुके हैं।

लॉक डाउन से पहले स्पेशल ट्रेन चलाकर उन्हें बिहार भेजा गया। उस वक्त तक अनुमानतः लगभग 80 हजार से एक लाख मजदूर बिहार पहुंचे थे। सरकार के मुताबिक स्टेशन पर उनकी स्क्रीनिंग हुई, फिर उन्हें घर भेज दिया गया। अब जो बच गये वे पैदल घर जाने के लिए निकल पड़े हैं। न खाने का ठिकाना न सोने का। साथ में परिवार भी है। इनके चेहरों पर कोरोना का कोई भय नहीं, सिर्फ घर पहुंचने की आतुरता है। जगह-जगह पुलिस द्वारा इन्हें परेशान किये जाने, पीटने की भी खबरें आ रही हैं।

दुर्भाग्यवश, जो लोग किसी तरह बिहार पहुंच भी गये हैं, उनकी स्थिति भी ठीक नहीं है। कोरोना के खौफ की वजह से उनके गांव के लोग ही उन्हें गांव में घुसने से रोक रहे हैं। वे कह रहे हैं, पहले कोरोना मुक्त होने का सर्टिफिकेट लेकर आयें, तब उन्हें गांव घुसने देंगे। बेबस और लाचार होकर वे लोग स्थानीय अस्पतालों के आगे भीड़ लगा रहे हैं।

24 मार्च, 2020 को दरभंगा के डीएमसीएच अस्पताल के सामने ऐसे ही सैकड़ों मजदूरों की कतार नजर आयी। वे कोरोना की जांच कराना चाहते थे। उन्हें शायद यह जानकारी नहीं थी कि डीएमसीएच में अभी तक कोरोना की जांच शुरू नहीं हुई है। यह भी कि बिहार सरकार के पास इतने टेस्ट किट नहीं हैं कि वह लाखों मजदूरों की जांच कर सके।

जो लोग चोरी छिपे किसी तरह अपने गांव घुस पा रहे हैं, उन्हें गांव के लोग पुलिस बुलवा कर गांव से भगा रहे हैं। कई मजदूरों की खेतों में छिपकर रहने की भी खबरें हैं। बिहार सरकार के गृह विभाग ने 22 मार्च, 2020 को एक पत्र जारी कर राज्य के सभी जिला अधिकारियों को उनके इलाके के सभी गांवों में इन मजदूरों के लिए आइसोलेशन सेंटर खोलने कहा था, ताकि जिन मजदूरों को परेशानी हो, वे वहां 14-15 दिनों के लिए ठहर सकें।

मगर स्कूल भवनों की लचर हालत, वहां पानी और शौचालय के अभाव और प्रशासन द्वारा इनिशियेटिव नहीं लेने की वजह से ऐसे बहुत कम केंद्र खुल सके। लिहाजा अलग-अलग राज्यों से लौटने वाले मजदूरों की समस्या जस की तस रह गयी।

देश में कोरोना के प्रसार गंभीर होने की बात कही जा रही है, 26 मार्च तक रोज 60-70 केस मिलते थे, 27 मार्च को एक ही दिन में 140 से अधिक केस सामने आये हैं। इस भीषण स्थिति के बीच पूरे देश में लाखों की संख्या में बिहार के मजदूर सपरिवार सड़कों पर हैं।

कोरोना से पहले इनके भूख-प्यास, प्रताड़ना और निमोनिया से मर जाने का खतरा है। मगर दुर्भाग्यवश इनकी मदद के लिए कोई सरकारी प्रयास प्रभावी नजर नहीं आ रहा।

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