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इस बार ख़ुद मोदी जी ने क्यों नहीं की तीसरे लॉकडाउन की घोषणा?

तीसरे लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इस बार की घोषणा में काफ़ी कुछ अलग है। इस बार न प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया, न जनता को कोई टास्क। जब मज़दूरों को काम पर लौटाने के बारे में सोचना था, उन्हें घर भेजने की योजना अमल में लाई जा रही है, जिसे 40 दिन पहले ही अमल में लाया जाना था। एक विचार-विश्लेषण
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Image courtesy:The Indian Express

तीसरे लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इस बार की घोषणा में वो बात नहीं जो अब तक के दो लॉकडाउन की घोषणा में थी। न वो पूर्व घोषणाएं कि ‘आज रात 8 बजे...’ न वो जन-मन के अधिनायक का राष्ट्र के नाम संबोधन, न कोई ऐसा ऐलान कि ‘आज रात 12 बजे से...’, न कोई टास्क, न कोई धूमधाम। बड़ा फीका रहा लॉकडाउन-3.0 का ऐलान, सिर्फ़ एक विज्ञिप्त से काम चला लिया गया। गृह मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी की और अगले दो हफ़्ते के लिए लॉकडाउन बढ़ गया।

जी हां, आप सब वाक़िफ़ ही होंगे कि तीन मई को ख़त्म होने वाले लॉकडाउन-2.0 को चार मई से 17 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसमें तीन ज़ोन- रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन बांटे गए हैं और कुछ शर्तों के साथ छूट दी गई हैं। लेकिन इस बीच कुछ ख़ास घटा है...कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है। इस पर हमें-आपको संज़ीदगी से ग़ौर करना चाहिए।

आपने देखा होगा कि इस बार लॉकडाउन यानी तालाबंदी बढ़ाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर राष्ट्र के संबोधन में नहीं की। जबकि पहले एक दिन के ‘जनता कर्फ़्यू’ और फिर दोनों लॉकडाउन की घोषणा उन्होंने काफ़ी जोर-शोर से की थी। हालांकि दोनों लॉकडाउन की घोषणा के बीच भी काफी अंतर आया था।

24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सप्ताह में दूसरी बार टीवी पर राष्ट्र के नाम संबोधन किया था। मोदी 24 मार्च को रात आठ बजे टेलीविज़न पर आए और चार घंटे बाद यानी रात 12 बजे से 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन यानी पूरे देश की तालाबंदी की घोषणा करके चले गए। पहला लॉकडाउन 25 मार्च से 14 अप्रैल तक चला। इस बीच कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में क्या-क्या हासिल हुआ आप और हम सब जानते हैं। इस बीच प्रधानमंत्री तीन अप्रैल को पांच अप्रैल का ‘9 मिनट की दीवाली’ का टास्क देने आए और फिर 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर टेलीविज़न के जरिये देश के सामने आए। हालांकि इस बार समय बदल गया। रात के आठ बजे की बजाय इस बार सुबह 10 बजे का समय चुना गया, वैसे दीवाली टास्क के ऐलान के लिए भी सुबह 9 बजे का समय चुना गया था, लेकिन बताया जाता है कि उसमें सुबह 9 बजे 9 मिनट का भाषण और रात 9 बजे 9 मिनट बत्ती बुझाकर दीये जलाने का कोई ‘विज्ञान (टोटका)’ आज़माया गया था!

दरअसल नोटबंदी से लेकर देशबंदी तक की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री ने रात 8 बजे का समय चुना था इसलिए सोशल मीडिया में इसे लेकर मीम बनने लगे और उनके नाम के साथ ‘8 PM’ जोड़ा जाने लगा था। इसी सिलसिले को तोड़ने के लिए शायद यह कवायद की गई। इस बार समय ही नहीं बदला गया, प्रधानमंत्री की लैंग्वेज यानी शब्दावली भी बदल गई। इस बार ...मैं... कम था। लॉकडाउन 2.0 का ऐलान करते हुए कहा गया कि “राज्यों एवं विशेषज्ञों से चर्चा और वैश्विक स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत में लॉकडाउन को अब 3 मई तक और बढ़ाने का फ़ैसला किया गया है।” इससे पहले न विशेषज्ञों की राय थी, न मुख्यमंत्रियों से चर्चा। सबकुछ अकेले व्यक्ति के ‘दम’ पर था।

यानी इस बीच मोदी जी समझ चुके थे कि दूसरे दौर की तालाबंदी एक दिन के जनता कर्फ़्यू और पहले दौर के लॉकडाउन की तरह लोकप्रिय फ़ैसला नहीं बनने जा रही है। इसलिए दूसरे दौर की लॉकडाउन की घोषणा के समय भी जनता को कोई टास्क नहीं दिया गया। जबकि जनता कर्फ़्यू के बाद ताली-थाली बजाने और पहले लॉकडाउन में 5 अप्रैल को रात 9 बजे घर की बत्ती बुझाकर दीये-मोमबत्ती जलाने का टास्क दिया गया था, जिसे जनता ने कुछ ज़्यादा ही उत्साह से पूरा किया और ताली-थाली के साथ घंटे-घड़ियाल और शंख बजाते हुए सड़कों पर उतर आए और दीये-मोमबत्ती के साथ आतिशबाज़ी कर और मशाल जुलूस निकालने लगे। हालांकि इस बीच हम और आप मज़दूरों का दर्दनाक पलायन देख चुके थे, जो आज तक जारी है।

इस बीच सरकार जान चुकी थी कि भूख और बेकारी की समस्या किस कदर बढ़ चुकी है। शायद यही वजह है कि इस बार जनता की बजाय सेना को टास्क दिया गया है कि वो 3 मई को कोरोना योद्धाओं का सम्मान करे। इस दौरान वायुसेना फ्लाइंग पास्ट करेगी। नौसेना जहाज़ों में रौशनी करेगी और थलसेना के जवान अस्पतालों में अपना स्पेशल बैंड बजाएंगे।

असल बात यही है कि अब जनता इस सब तमाशे से उकता चुकी है और दिक्कतें बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी हैं। हालांकि सेना के जरिये भी टेलीविज़न के लिए हेडलाइन और विजुअल बनाने और जनता को भरमाने की एक और कोशिश ही है। वरना सम्मान से ज़्यादा आज भी बात कोरोना की जंग में पीपीई किट, मास्क, सैनिटाइज़र और वैंटिलेटर इत्यादि पर ही होनी चाहिए। उस नफ़रत, सांप्रदायिकता और अफवाहों पर होनी चाहिए जो कभी कोराना योद्धाओं पर हमले का कारण बन रही है, कभी पीड़ित/मरीज़ को ही दुश्मन साबित करने की।

ख़ैर, सब जान रहे हैं कि कोरोना से जंग में तो जो सफलता मिली है सो मिली है, लेकिन ये सब लंबा चलना है। इन चालीस दिनों में सरकार इस महामारी के ख़िलाफ़ ऐसा कुछ खास हासिल नहीं कर पाई कि लॉकडाउन खोला जा सके। वरना अब जब मज़दूर-कर्मचारियों को उनके घर से वापस काम पर लाने की कवायद शुरू होनी थी, मज़दूरों को उनके घर भेजने के लिए श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई जा रही हैं।

दूसरे राज्यों में फंसे मज़दूरों को अपने गृह राज्य जाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने की अनुमति 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा से पहले भी दी जा सकती थी। या कम से कम 14 अप्रैल को दूसरे लॉकडाउन की घोषणा से पहले तो दी ही जा सकती थी। अगर ऐसा होता तो मज़दूरों को ऐसी भयानक भुखमरी और ज़िल्लत न झेलनी पड़ती। न हम पैदल पलायन के ऐसे दिल दहलाने वाले दृश्य देखने को मजबूर होते। लेकिन नहीं...।

इसे ही कहते हैं कुप्रबंधन या नियोजन की कमी। न पहले पूरी तरह ट्रेन बंद करने का तर्क समझ आया, न अब ट्रेन चलाने का कोई वाजिब तर्क दिया जा रहा है।

हक़ीकत यही है कि केंद्र और राज्य सरकारों को समझ आ गया कि वो अपनी ही जनता ख़ासकर मेहनतकश मज़दूर को अपने दम पर 10 दिन भी रोटी खिलाने में सक्षम नहीं है।

आपको मालूम होना चाहिए कि केंद्र और सारी राज्य सरकारें मिलकर भी 25 फीसद ज़रूरतमंद तक राशन-पानी नहीं पहुंचा सकी हैं। वो तो तमाम एनजीओ, सामाजिक और मज़दूर संगठनों और व्यक्तियों ने अपने दम पर बहुत लोगों तक राशन-खाना और पैसा पहुंचाया वरना अब तक न जाने क्या हाल होता।

तीसरे लॉकडाउन की घोषणा ऐसे लोगों को और हताशा या गुस्से से न भर दे और इस बार वो उसके ख़िलाफ़ ही सड़कों पर न उतर आए, जिसका एक नज़ारा सूरत और अन्य जगह पर देखने को मिल चुका है, इसलिए तुरत-फुरत में कुछ ट्रेन चलाने का निर्णय लिया गया। वरना एक दिन पहले तक भी केवल बसों इत्यादि की अनुमति की ही बात की जा रही थी।

इस बार के लॉकडाउन में सबसे बड़ी बात या उपलब्धि मज़दूरों के लिए ट्रेन चलाने के अलावा यही बताई जा रही है कि ग्रीन ज़ोन में काफी गतिविधियों की अनुमति दी गई है। तो इसका सच तो यही है कि पहले भी पूरे देश को एक ही तरीके के लॉकडाउन में बांधने की ज़रूरत नहीं थी। पहले भी संक्रमण प्रभावित इलाकों को अलग करके अन्य इलाकों में सीमित गतिविधियों की इजाज़त दी जा सकती थी।

पूरे देश को ताले में रखने की बजाय साफ़-सफ़ाई और सोशल (फिज़ीकल) डिस्टेंसिंग का तरीका जारी रखते हुए संक्रमित व्यक्ति की पहचान करके उसे अलग रखकर प्रभावी उपचार की व्यवस्था करना यही इससे बचाव का कारगर तरीका या नीति हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी इसी की सिफारिश करता है।

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