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तीन चीज़ें जो नरेंद्र मोदी भूल गए लेकिन पीनाराई विजयन ने याद रखीं

हमारे लिए यह एक ऐसा अवसर होना चाहिए जब हम सबकी खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सार्वजनिक आवास कार्यक्रम को भारत में बड़े पैमाने पर सुनिश्चित करने की मांग करते।
नरेंद्र मोदी पीनाराई विजयन

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा कर दी कि पूरे देश में अगले दिन से देशव्यापी लॉकडाउन रहेगा।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एक दिन पहले यानी 23 मार्च की शाम को प्रेस को संबोधित किया जैसा कि वे पिछले कई दिनों से कर रहे हैं और उन्होंने राज्य में तालाबंदी की घोषणा की थी।

प्रधानमंत्री का संबोधन मूल रूप से दो बिंदुओं पर केन्द्रित था: (1) पहला बिंदु लॉकडाउन का है, यानी अपने घरों से बाहर न निकलें। (२) दूसरा कोरोनवायरस से लड़ने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 15,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का है।

देशव्यापी तालाबंदी का स्वागत है, और 15,000 करोड़ रुपये का आवंटन अच्छी शुरुआत है।

हालांकि, लॉकडाउन की घोषणा के तरीक़े से व्यापक भ्रम और कठिनाई पैदा हुई, जिसके चलते देश भर में लोगों की भीड़ को देखा गया, जब आम लोग भीड़-भाड़ वाली बसों और ट्रेनों में अपने घरों में जाने की कोशिश कर रहे थे, और आवश्यक सामानों की ख़रीद की घबराहट भी थी। इसलिए लगता है कि 15,000 करोड़ इस मक़सद के लिए काफी कम है, इस तथ्य को देखते हुए कि भारत (केंद्र सरकार और राज्य सरकारें संयुक्त) अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.28 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा पर ख़र्च करती हैं।

भारत में कोविड-19 के घटनाक्रमों पर नज़र रखने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री की घोषणा स्पष्ट रूप से अपर्याप्त लगेगी। ये विशेष रूप से उन लोगों के लिए चौंकाने वाली हैं जो केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की रोज़ाना के प्रेस सम्मेलन को देखते हैं। यहां तीन सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने भुला दिया और केरल सरकार ने याद रखा।

 विवरण

मोदी के भाषण में विवरण यानी डिटेल्स की गंभीर कमी थी। उन्होंने बार-बार लोगों को अपने घरों से बाहर न निकलने का आह्वान किया। हर गुज़रे मिनट में, सबको यह उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अब सबसे बुनियादी घोषणा करेंगे – कि वे लोगों को आश्वस्त करेंगे कि खाद्य और दवा का सामान बेचने वाली दुकानें खुली रहेंगी। ज्यादातर लोग आधिकारिक दिशानिर्देशों को नहीं पढ़ रहे हैं जिन्हे सरकार द्वारा प्रकाशित किया जाता हैं; इसलिए उस समय जब प्रधानमंत्री संबोधित कर रहे थे तो उन्हे सीमित जानकारी ही मिल रही थी। जिसके परिणामस्वरूप - देश भर में दुकानों में भारी भीड़ लग गई।

अचानक लॉकडाउन की घोषणा के परिणामस्वरूप और बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था की घोषणा किए, प्रवासी मज़दूर बस टर्मिनलों और ट्रेन स्टेशनों पर भीड़ लगाए पहुँच गए ताकि वे किसी तरह जल्दी से अपने गृह राज्यों में पहुंच जाए। इससे स्टेशनों, बसों और ट्रेनों में बढ़ी भीड़भाड़ ने वायरस के सामुदायिक संक्रमण के खतरे को और बढ़ा दिया।

इसके विपरीत, 23 मार्च को केरल में तालाबंदी की घोषणा करते हुए पिनाराई विजयन ने अपनी  प्रेस कॉन्फ़्रेंस में लॉकडाउन घोषित करने साथ लोगों को आश्वासन दिया कि सभी आवश्यक वस्तुओं और दवा की आपूर्ति होगी और सभी स्टोर एवं दुकानें खुली रहेंगी। उन्होंने उन सेवाओं के बारे में विस्तार से बात की, जो बंद रहेंगी, और जो खुली रहेंगी। प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद हालांकि केरल में भी दुकानों के सामने घबराहट और लंबी कतारें देखी गई, लेकिन देश के कई अन्य हिस्सों में देखे गए लोगों के झुंड की तुलना में वह कुछ भी नहीं था। राज्य के मुख्यमंत्री की दैनिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस को लाइव देखने वाले लाखों लोगों के भीतर संकट प्रबंधन करने की सरकार की क्षमता पर भरोसा बना हुआ है, जिसमें वे अपडेटेड आंकड़े देते हैं, प्रमुख घटनाक्रम बताते हैं, सरकार द्वारा उठाए गए उपायों की घोषणा करते हैं, और लोगों को क्या करना चाहिए उसके बारे में बड़े शांत भाव से बताते हैं।

(2) सब के लिए भोजन सुनिश्चित करना

आने वाले हफ़्तों और महीनों में भारत में अधिकांश लोगों को भोजन मुहैया कराना सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बनने वाला है। यह जीवन और मृत्यु के बीच अंतर करने वाला मुद्दा है। यदि हालात को बहुत ही खराब ढंग से संभाला जाता है, तो अकाल भी पड़ सकता है।

मोदी ने इस मुद्दे का समाधान करने के लिए कोई योजनाबद्ध क़दमों का उल्लेख नहीं किया। लेकिन आज वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने तीन महीने के लिए मुफ़्त भोजन की घोषणा की, जिसमें उन्होंने कहा कि 80 करोड़ ग़रीब लोगों को इसका लाभ मिलेगा। यह वास्तव में एक स्वागत योग्य कदम है। हालांकि, अभी भी कई करोड़ ग़रीब लोग इसके कवरेज से बाहर हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में दर्ज़ सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार, भारत के लगभग 93 प्रतिशत मज़दूर अनौपचारिक क्षेत्र से हैं। जब वे काम कर रहे होते हैं तब भी उनके लिए अपना गुज़ारा करना मुश्किल होता हैं। अब स्थिति ऐसी है कि वे हफ्तों तक काम पर नहीं जा सकते; उनमें से कई अपनी नौकरी खो चुके हैं। इसके अलावा, 85 प्रतिशत भारतीय परिवारों की औसत आय 10,000 रुपए प्रति माह से भी कम है।

एक जल्दबाज़ी में की गई गणना से पता चलता है कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित खाद्य योजना के बाहर जो ग़रीब लोग हैं उनकी संख्या 34 करोड़ से 45 करोड़ की बीच है। सरकार ऐसा क्यों कर रही है, क्या किसी को पूछना नहीं चाहिए।

एक कारण यह हो सकता है कि वे ग़रीब लोगों की संख्या का अंदाज़ा कम लगाते हैं, हालांकि आधिकारिक स्रोतों से पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध हैं जो इस तरह की झूठी गणनाओं का खंडन करते हैं।

"लक्ष्यीकरण" में समस्या

दूसरा कारण यह है कि हमारे नीति-निर्माता अभी भी "लक्ष्यीकरण" के ग़लत सिद्धांत पर भरोसा करते हैं, जिसका उपयोग केंद्र सरकार ने हमेशा भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को कमजोर करने के लिए किया है। पहले भारत में एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली थी, लेकिन अब हमारे पास एक लक्षित पीडीएस है जो केवल "ग़रीबी की रेखा से नीचे" (बीपीएल) श्रेणी से संबंधित सब्सिडी वाले लोगों के लिए उपलब्ध है। लेकिन तथ्य यह है कि "ग़रीबी की रेखा से ऊपर" (एपीएल) श्रेणी के लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग भी वास्तव में ग़रीब है, जैसा कि हमने पहले देखा है। यही कारण है कि हाल के सप्ताहों में, मौजूदा संकट के संदर्भ में मांग की गई है कि एपीएल और बीपीएल का भेद किए बिना सभी को मुफ़्त भोजन प्रदान किया जाए। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में भारत के पास 7.5 करोड़ टन खाद्यान्न का विशाल भंडार है, इसलिए इस आवश्यकता को आसानी से पूरा किया जा सकता है।

सामान्य परिस्थितियों में, जो लोग समृद्ध हैं और जिनके पास भोजन पाने का साधन है, उनकी पीडीएस पर भरोसा करने की संभावना कम ही है। वे पीडीएस के माध्यम से उपलब्ध वस्तुओं के बजाय बाजार से महंगा अनाज और अन्य वस्तुओं को खरीदना पसंद करते हैं। इस प्रकार बहुसंख्यक लोग जो एक सार्वभौमिक पीडीएस प्रणाली में पीडीएस पर भरोसा करते हैं वे वे होंगे जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है - वे खुद ही "स्वयं इसका चयन करते हैं"। इसलिए इस बात की चिंता करना कि पीडीएस का उपयोग ग़ैर-ज़रूरतमंद लोग करेंगे तो यह गलत धारणा होगी।  यहां तक कि अगर कुछ तथाकथित "ग़ैर-ज़रूरतमंद" लोग इसका उपयोग करते हैं, तो उसकी लागत केंद्र सरकार उठा सकती हैं।

कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि आज की गई घोषणाओं में जैसे कि किसानों, ग़रीब  बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों को कवर किया जाएगा जो छूट गए थे, उन्हे नकद पैसा दिया जाएगा। लेकिन अगर कोई ऐसे लोगों है जो आज इन घोषित योजनाओं से लाभान्वित होंगे, तो कई करोड़ ग़रीब लोग अभी भी ऐसे हैं जो बाहर छुट जाएंगे। और जिन महिलाओं के लिए जन धन योजना खाताधारक की बिना पर 500 प्रति माह देने की घोषणा की गई है वह अपर्याप्त है।

इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पीडीएस के माध्यम से भोजन का प्रत्यक्ष प्रावधान करना सबसे बेहतर विकल्प है। यह विशेष रूप से एक ऐसे संकट के संदर्भ में जब जमाखोरी और आपूर्ति के झटके लगने की संभावना अधिक होती है। नकदी देना इस प्रयास को पूरक कर सकता है, लेकिन इसमे अभी भी बड़ा लोचा है, क्योंकि आबादी के बड़े हिस्से के पास अभी भी पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं पहुंच पाएगा।

केरल सरकार का दृष्टिकोण

केरल सरकार ने जो दृष्टिकोण अपनाया है, वह केंद्र सरकार के बिलकुल विपरीत है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 19 मार्च को घोषणा की कि राज्य में सभी को एक महीने का राशन मुफ़्त वितरित किया जाएगा। आंगनवाड़ी के बच्चों को भोजन घर पर वितरित किया जाएगा। जो लोग घर पर क्वारंटाइन में हैं और जिन्हें भोजन हासिल करना मुश्किल है, उन्हें भोजन घर में उपलब्ध कराया जाएगा।

बाद के दिनों में उन्होंने कई और उपायों की घोषणा की।

यदि दैनिक वेतन भोगी मज़दूरों जो रोज़ाना काम करने नहीं जा सकते हैं, तो ऐसे में हर किसी को खुद को बनाए रखना मुश्किल होगा। अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिक, विकलांग लोग, और अन्य जो बीमारी के कारण खुद के लिए खाना नहीं बना सकते, उनकी भी हालत खराब होगी। इस काम को स्थानीय स्व-सरकारी संस्थान, पंचायतों, नगर पालिका और नगर निगम की वार्ड-स्तरीय समितियां वालिण्टिएर के साथ मिलकर करेंगी। समितियां और वलुंटिएर यह सुनिश्चित करेंगे कि ज़रूरतमंदों को भोजन और दवा मिलती रहेगी। भोजन पकाने के लिए स्थानीय निकायों द्वारा सामुदायिक रसोई स्थापित की जाएंगी, जिसे अंतत ज़रूरतमंदों के घरों तक पहुंचाया जाएंगा।

कुछ लोग दूसरों को सीधे तौर यह बताने में झिझक सकते हैं कि उन्हें भोजन की ज़रूरत है। इस पहचान की प्रक्रिया के दौरान कुछ अन्य लोग छूट सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए, एक फोन नंबर प्रदान किया जाएगा। वे उस नंबर पर कॉल कर सकते हैं, और उन्हें खाना पहुंचाया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा, "केरल में किसी को भी भूखा नहीं सोने दिया जाएगा।"

अपने लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केरल की योजना यहीं समाप्त नहीं हो जाती है। यह कई जिलों में धान की फसल का समय है। बुधवार को मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी कटाई की जानी है। यदि लॉकडाउन के कारण इसमें देरी होती है, तो जून में बारिश शुरू होते ही फसलों को नुकसान होगा। इसलिए फसल कटाई को एक आवश्यक सेवा माना जाएगा।

इसके लिए कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग किया जाएगा ताकि खेतों में भीड़भाड़ से बचा जा सके, और इसके लिए जिला कलेक्टरों को सभी स्थानों पर कटाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। कटे हुए धान को सुरक्षित रूप से इकट्ठा करने और संग्रहीत करने के भी उपाय किए जाएंगे। पंचायतें और क्षेत्र की सहकारी समितियां संयुक्त रूप से कटे हुए धान के भंडारण के स्थानों के बारे में निर्णय लेंगे। मुख्यमंत्री ने राज्य भर के परिवारों से अपने घरों में सब्ज़ियाँ उगाने, और आने वाले दिनों में आपूर्ति और उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपील की है।

जाहिर है, वंचितों के प्रति चिंता और उसके लिए विवरण पर ध्यान देना वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार की कोरोनोवायरस प्रकोप से निपटने की पहचान है।

(३) घरों में भीड़ को संबोधित करना

तीसरा बिंदु देश में अत्यधिक भीड़ और बेघर होने तथा सामाजिक दूरी के व्यावहारिक पहलुओं के बारे में है।

प्रधानमंत्री मोदी ने देश के लोगों को घरों में रहने के लिए कहा, उन्हें घर के बाहर "लक्ष्मण रेखा" को पार नहीं करने को कहा है।

लेकिन याद रखें कि लाखों भारतीय छोटे घरों में रहते हैं, जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए पर्याप्त स्थान न होने के कारण शारीरिक दूरी रखना असंभव बनाता हैं। अगर परिवार के किसी सदस्य के संक्रमित होने का संदेह हो और उसे एक कमरे में छोड़ दिया जाए तो हालत और भी बदतर हो जाएंगे। देश में लाखों परिवार हैं जिनके पास इसके लिए जगह नहीं है। और फिर बेघर क्या करेंगे?

मोदी ने ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुप रहना चुना।

दूसरी ओर, पिनाराई विजयन ने इस बात की जानकारी दी कि क्या करना ज़रूरी है, फिर लोगों को शिक्षित करना और सरकार द्वारा की जा रही व्यवस्था को रेखांकित करना:

"क्वारंटाइन” का मतलब सिर्फ़ घर में रहना नहीं है। इसका मतलब है कि एक अलग कमरे में रहना। यह कमरा साथ जुड़े बाथरूम के साथ होना चाहिए जिसे व्यक्ति ख़ास तौर पर अपने  लिए उपयोग कर सकता है। केवल एक व्यक्ति को ही क्वारंटाइन व्यक्ति को सहायता करनी चाहिए। उस व्यक्ति को अलग रखा जाना चाहिए। साबुन से हाथ साफ़ करना आदि को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य कर्मी रोज़ाना घर का दौरा करेंगे।"

केरल के मुख्यमंत्री ने कहा, "अगर घर पर ऐसी व्यवस्था नहीं की जा सकती है, तो व्यक्ति को वहां नहीं रहना चाहिए। वहाँ क्वारंटाइन उचित नहीं होगा। ऐसे लोगों को आवश्यक व्यवस्थाओं में यानि सार्वजनिक आईसोलेसन की सुविधा में रखा जाएगा।"

बेघरों का क्या? पिनाराई विजयन ने बेघर लोगों के बारे में भी बात की, जो दुकान के बरामदे, सड़क आदि में सोते हैं। प्रत्येक स्थानीय स्व-सरकारी संस्थान ऐसे लोगों की उनके संबंधित क्षेत्रों में पहचान करेगा, उन्हें सोने के लिए पर्याप्त जगह वह भी सामान्य सुविधाओं के साथ उपलब्ध कराई जाएगी, उन्होंने कहा। उन्हें भोजन भी उपलब्ध कराया जाएगा।

यदि सीमित संसाधनों वाली राज्य सरकार इतना कुछ कर रही है, तो केंद्र सरकार के पास तो बहुत अधिक संसाधन हैं, और इसलिए उसे बहुत कुछ करना चाहिए। लेकिन या सब करने के लिए लोगों के प्रति बुनियादी लगाव होना चाहिए।

कोरोनोवायरस के प्रकोप ने हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की दयनीय हालत को उजागर करने के अलावा, अनिश्चितकालीन आजीविका, खाद्य सुरक्षा की कमी और भारत में अपर्याप्त आवास से जुड़े खतरों को भी उजागर किया है।

एक बहुत विस्तारित और व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की मांग के साथ-साथ यह अवसर हमारे लिए एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की मांग को उठाने का भी  होना चाहिए ताकि सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, और साथ ही भारत में व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक आवास कार्यक्रम चलाया जा सके।

[सुबिन डेनिस ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च में एक शोधकर्ता हैं।]

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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