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तिरछी नज़र: भवन निर्माण की नई तकनीक

इस तकनीक से हुए निर्माण में एक ख़ासियत यह है कि इस तकनीक से बने पुल, सड़कें और बिल्डिंगें कभी गिरते नहीं हैं। गिरेंगे कैसे, जब…
AIIMS Madurai
मदुरै एम्स, जिसके 95% पूरा होने का दावा बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने किया। विपक्षी सांसद उसी की हक़ीक़त दिखा रहे हैं। फोटो साभार

हमारे देश को भवन निर्माण की एक ऐसी उन्नत तकनीक पता है जिसकी सहायता से हम कभी भी न गिरने वाले भवनों का निर्माण कर सकते हैं। इस तकनीक से भवनों ही नहीं, पुलों, सड़कों, तालाबों आदि किसी भी चीज का निर्माण किया जा सकता है। भवन निर्माण की इस कला की खोज स्वतंत्रता के बाद ही हुई है। और यह तकनीक सिर्फ, और सिर्फ हमारे देश को ही पता है। विदेशों में तो इसकी भनक तक नहीं है।

सब चीजों की खोज 2014 के बाद ही नहीं हुई है, नई आजादी के बाद ही नहीं हुई है। अरे भई! कुछ चीजें पिछली सरकारों ने भी खोजी हैं। सभी खोजों का यश सरकार जी को दे देना, सरकार जी की सरकार को ही देना, पिछली सरकारों के योगदान को झुठलाना है। पिछली सरकारों ने भी तो कुछ किया होगा या फिर वे फिर इसी इंतजार में बैठी रही थीं कि जो कुछ भी करेंगे, सरकार जी ही आएंगे और करेंगे। 

इस तकनीक की खोज पिछली सरकारों ने की थी पर लाभ उनका सरकार जी भी उठा रहे हैं। सरकार जी भी उस उपयोगी खोज का इस्तेमाल किए जा रहे हैं। और सरकार जी ने तो भवन निर्माण की उस तकनीक को और आगे बढ़ाया है।

वह तकनीक, जिसे पिछली सरकारों ने खोजा, और अब सरकार जी भी जिसका लाभ उठा रहे हैं, वह खोज है एक ऐसी तकनीक जिसमें कंस्ट्रक्शन सिर्फ कागजों में किया जाता है। उस तकनीक में निर्माण कार्य सिर्फ पेपर पर होता है, फाइलों में होता है। साइट तो ज्यों की त्यों पड़ी रहती है। निर्माण की यह आधुनिक तकनीक सिर्फ हमारे देश में उपलब्ध है। 

यह तकनीक विशेष है। उस तकनीक में पहले की फेज़ तो उसी तरह रहती है जिस तरह पुरानी तकनीक में रहती है। पहले की तरह से ही प्लान बनता है, प्लान पर बहसें होती हैं, फाइल बनती है, उस पर नोटिंग होती हैं और फिर पैसा अलॉट किया जाता है। पैसा खर्च भी हो जाता है। बस नहीं होता है तो निर्माण कार्य नहीं होता है, कंस्ट्रक्शन नहीं होता है। निर्माण जो हुआ होता है वह फाइलों में ही हुआ होता है या फिर राजनेताओं की जनसभाओं में हुआ होता है। इस तकनीक की खासियत यह है कि इस तकनीक से सभी कुछ बनाया जा सकता है। 

पहले की सरकारों के कार्यकाल में यह तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी। छोटी मोटी चीजें ही बनाई जाती थीं। जैसे पहले कहीं कोई तालाब बना दिया गया, ज्यादा शक हुआ तो एक नई फ़ाइल खोल उसे पटवा भी दिया गया। कहीं कोई छोटी मोटी गांव को जोड़ने वाली सड़क बना दी फिर उसे अगली बारिश में ही बहा दिया। परन्तु सरकार जी ने इस तकनीक को अधिक उन्नत बनाया है। अब इस तकनीक से बड़े बड़े कार्य होने लगे हैं। अभी अभी, हाल में ही इसी तकनीक से सरकार जी ने सुदूर दक्षिण में, मदुरै में, एक एम्स भी बनाया है। उसके पिच्चानवें प्रतिशत कार्य के पूरा होने की घोषणा अभी हाल ही में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक जनसभा में की है।

इस तकनीक से बने निर्माण, चाहे बड़े हों या छोटे, किसी को दिखाई नहीं देते हैं, सिवाय घोर देशभक्तों के। झूठे लोगों को तो वे हरगिज ही दिखाई नहीं देते हैं और सच्चे देशभक्त को वे भरपूर दिखाई देते हैं। अभी देखो, मदुरै एम्स के मामले में भी यही हुआ ना। झूठे और देशद्रोही दलों के दो सांसदों को मदुरै एम्स के वे भवन दिखाई ही नहीं दिए और वे निर्माण स्थल पर तख्तियां लेकर पहुंच गए। अजी साहब, पहले अंधेरे नगरी चौपट राजा के राज्य के सच्चे नागरिक बनिए। फिर आपको इस नवीन तकनीक से बने कपड़े भी दिखाई देंगे और भवन भी दिखाई देने लगेंगे। 

इस तकनीक से हुए निर्माण में एक खासियत यह है कि इस तकनीक से बने पुल, सड़कें और बिल्डिंगें कभी गिरते नहीं हैं। गिरेंगे कैसे। जब बने ही नहीं होते हैं। बस सरकार जी के राज में यह उन्नति हुई है कि सरकार जी के राज में इस तकनीक से अब मरम्मत तक होने लगी है। मोरबी के पुल की मरम्मत इसी तकनीक से ही तो हुई थी।

यह जो तकनीक है, फाइलों में सड़क बनाने की, फाइलों में पुल बनाने की, फाइलों में तालाब बनाने की, यह नई चीजों को बनाने के लिए तो ठीक है परन्तु मरम्मत करने के लिए ठीक नहीं है। इस तकनीक से यदि मरम्मत करनी भी हो तो उन्हीं चीजों की करनी चाहिए जो इस लाजवाब तकनीक से ही बनी हों। सरकार जी से बस यही एक गलती हो गई, पुरानी तकनीक से बने पुल की मरम्मत नई तकनीक से कर दी। मोरबी के पुल की मरम्मत बस फाइलों में ही कर दी।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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