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तिरछी नज़र: विश्व गुरु को हंसना-हंसाना नहीं चाहिए

अब अगर हम हंसने-हंसाने में ही लगे रहेंगे तो विश्व गुरु कैसे बनेंगे। विश्व गुरु बनने के लिए हमें इस हंसने और हंसाने की आदत को बिल्कुल ही छोड़ना होगा।
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देश में हंसना मना है। और हंसने से ज्यादा तो हंसाना मना है। जब देश विश्व गुरु बनने की कगार पर है तो ऐसे में हंसना-हंसाना और भी अधिक मना है। अब अगर हम हंसने-हंसाने में ही लगे रहेंगे तो विश्व गुरु कैसे बनेंगे। विश्व गुरु बनने के लिए हमें इस हंसने और हंसाने की आदत को बिल्कुल ही छोड़ना होगा। विश्व गुरु को हंसना-हंसाना तो बिल्कुल ही नहीं चाहिए।

देश में पहले भी हंसाने वाले राजाओं के दरबार में होते थे और वजीर का रुतबा पाते थे। राज्य की प्रजा भी उनकी कहानियां खूब सुना करती थी और आज तक सुनती है। अकबर के दरबार में बीरबल थे, तो राजा कृष्णदेव के दरबार में तेनालीराम थे। तब के जमाने में इन लोगों को इतनी स्वतंत्रता थी कि राजा पर भी चुटकुले बना देते थे। बीरबल तो अकबर को आम की गुठलियां तक खिला देते थे। पर आजकल, सरकार जी का जमाना है।

आजकल स्टैंड अप कॉमेडी यानी खड़े होकर कॉमेडी करने का जमाना है। सरकार जी और सभी नेता भी खड़े होकर ही बोलते हैं, चाहे चुनावी सभा में बोलें या फिर चुनाव से पहले की सभाओं में बोलें। बस अफसर लोग ही कभी-कभी बैठे बैठे बोल देते हैं। हां तो, स्टैंड अप कॉमेडी में कॉमेडी करने वाला बंदा एक बंद कमरे में खड़ा होकर बोलता है और सैकड़ों लोग पैसे दे कर, टिकट ले कर उसे देखने सुनने जाते हैं। लेकिन अब यह बंद कमरे में स्टैंड अप कॉमेडी नहीं चलेगी, जो भी कॉमेडी चलेगी, चुनावी सभाओं में ही चलेगी। लोग पैसा खर्च करें और वह भी हंसने के लिए। ऐसा अब नहीं चलेगा। अरे भाई अगर पैसा है तो शेयर मार्केट में लगाओ। उसे हंसने हंसाने पर क्यों बर्बाद कर रहे हो। तुम्हारे लिए ही तो सरकार जी ने गिरती इकोनॉमी में भी शेयर मार्केट इतना ऊपर पहुंचा रखा है।

अब मुनव्वर फारुकी को ही देखो। बंदा कॉमेडी करने के चक्कर में मध्यप्रदेश में गिरफ्तार भी हो गया। जेल में भी बंद रहा। पर फिर भी कॉमेडी बंद नहीं की। लोगों को हंसाना जारी ही रखा। पर अब बेंगलुरु की सरकार चेती है। बेंगलुरु में वहां की सरकार ने उसका कॉमेडी शो बंद ही करा दिया है। पर वह भी पात-पात निकला। उसने कहा कि वह आगे से कॉमेडी करेगा ही नहीं। कॉमेडी छोड़ ही देगा। अपना काम बदल लेगा। कोई और धंधा कर लेगा, पर अब लोगों को हंसाने का काम नहीं करेगा। वैसे भी अगर मुन्नवर हंसाने की बजाय रुलाने का धंधा करें तो सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। सरकार भी तो यही काम कर रही है।

एक और कॉमेडियन है, वीर दास। वह भी कॉमेडी शो ही करता है। इधर सरकार जी तो देश को एक-एक करके थक गए। एक देश, एक खानपान, एक वेशभूषा, एक धर्म, एक चुनाव। सब कुछ एक ही। 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत'। पर उधर अमरीका में वीर दास दो-दो भारत की बात करने लगा। अरे भाई! भारत में ही दो-दो भारत की बात कर लेते। यहां, भारत में तो आप दो-दो स्वतंत्रता दिवस भी मना सकते हैं। स्वयं सरकार जी मना चुके हैं। पहला स्वतंत्रता दिवस पंद्रह अगस्त को मनाया और दूसरा स्वतंत्रता दिवस जीएसटी लागू करने के दिन। वह जीएसटी लागू करने का दिन बिल्कुल ठीक पंद्रह अगस्त 1947 की तरह ही तो मनाया गया था न। वही रात को बारह बजे। वही संसद के सेंट्रल हॉल में। आप यहां भारत में दो-दो आजादी की बात भी कर सकते हैं। और वह सब देशभक्ति ही होता है। पर वहां अमरीका में दो-दो भारत की बात, विदेश में जा कर ऐसी बातें, इतना देशद्रोह, ना बाबा ना। 

अरे! हंसना है, कॉमेडी देखनी है, तो पैसा खर्च करने की क्या जरूरत है। कॉमेडियन की जरूरत ही क्या है। इतने सारे नेता हैं न, बड़े-बड़े अफसर हैं न, सरकार के छोटे-बड़े वजीर हैं, और सबसे बढ़कर सरकार जी भी तो हैं न। क्या आपको उनकी बातों पर हंसी नहीं आती है जो आपको स्टैंड अप कॉमेडी की जरूरत है।

क्या आपको तब हंसी नहीं आती है जब कोई अफसर कहता है कि शराब पीने वाले लोग झूठ नहीं बोलते हैं। या फिर तब जब आपको कोई बताता है कि मोरनी मोर के आंसू पीने से गर्भवती हो जाती है? या फिर क्या आपको तब हंसी नहीं आती है जब पता चलता है कि पुलिस द्वारा जब्त बोतल में बंद शराब को चूहे ही पी गए? हंसी तो इस बात पर भी आती है कि गाय सांस लेने में आक्सीजन ही अंदर लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है। पर आप डर की वजह से अंदर ही अंदर हंस लेते हैं। फिर कॉमेडी की जरूरत ही क्या है? 

सरकार जी भी कम हंसोड़ नहीं हैं। बादलों को न भेद पाने वाली रेडार, वह भी आज के जमाने में, सुन हंसी भले ही न आये परन्तु चेहरे पर मुस्कान तो आ ही जाती है। जब सरकार जी गंदी नाली की गैस से चाय बनाने और रोजगार में पकोड़े तलने की बात कहते हैं तो भले ही डर कर ठहाके न लगाएं पर ठहाके लगाने को मन तो करता ही है। सरकार जी के तो बहुत सारे किस्से हैं जिन पर आप जी भर कर ठहाके लगा सकते हैं।

अंग्रेजी में कहावत है 'लाफ्टर इज बेस्ट मेडिसिन'। पर यह कहावत अंग्रेजों के लिए ही है। हमें तो हंसी-वंसी की कोई जरूरत ही नहीं है। 'बेस्ट मेडिसिन' के नाम पर हमारे पास गाय का पेशाब (गौमूत्र) और गाय का पाखाना (गोबर) तो है ही न। तो हमें इस हंसने-हंसाने की क्या जरूरत? यह हंसना-हंसाना तो उन विदेशियों के लिए ही है जिनके पास गाय तो हमारे से ज्यादा हैं, पर गौमूत्र और गोबर बिल्कुल भी नहीं। इन सब कॉमेडी करने वालों को तो पाकिस्तान या फिर अफगानिस्तान भेज देना चाहिए। और हमें जितनी हंसी की जरूरत है उससे अधिक तो हमें हमारे नेता और अफसर दे ही देते हैं।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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