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तिरछी नज़र: झूठ बोलो और वजीरों से भी झूठ बुलवाओ

एक और 'सत्य' है, जो अभी सामने आना बाकी है। गांधी जी ने सावरकर को अंग्रेजों से माफ़ी मांगने की सलाह नेहरू के कहने पर दी थी। आखिर हर दोष अंततः नेहरू पर ही तो आना चाहिए न।
Rajnath Singh
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : Hindustan Times

अभी दो दिन पहले विजयदशमी का पर्व था, दशहरे का त्योहार था। यह त्योहार सत्य की असत्य पर, अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में मनाया जाता रहा है। हमेशा से मनाया जाता रहा है। सदियों से मनाया जाता रहा है। पिछले सत्तर साल में भी मनाया जाता रहा है। ‘सरकार जी’ भी मनाते हैं परन्तु यह त्योहार तो सरकार के 'सरकार जी' बनने से पहले से ही मनाया जाता रहा है।

पर आखिर एक अखबार ने सच बता ही दिया। अखबार ने बताया कि यह पर्व, पहले भले ही जो मर्जी होता रहा हो, पर अब यह पर्व ‘असत्य की सत्य पर विजय का पर्व’ है। जिस अख़बार के नाम से ये ‘सच’ वायरल हुआ, यह वही अखबार है जिसने सबसे पहले कोरोना से हुई मौतों की संख्या की पोल खोली थी। हालांकि यह ‘वायरल सच’ कितना सच है, नहीं पता, लेकिन इसी अखबार ने सबसे पहले यह बताया था कि कोरोना से मौत के सरकारी आंकड़े असत्य हैं, और सच में कोरोना से कहीं बहुत ज्यादा मृत्यु हुई हैं। इस सत्य को उजागर करने के इनाम के तौर पर इस अखबार पर आईटी की रेड पड़ी थी। अब इसी अखबार के हवाले से बताया गया कि अब यह त्योहार सत्य की असत्य पर विजय का नहीं, अपितु असत्य की सत्य पर विजय का पर्व है। इस सत्य को बताने के लिए अखबार को धन्यवाद। अब इस अखबार को एक और आईटी रेड के लिए तैयार रहना चाहिए।

वैसे सत्य बोलने के लिए आईटी और ईडी की रेड पड़ना कोई अनोखी बात नहीं है। अभी हाल ही में हमारे अपने न्यूज़क्लिक पर, और न्यूज़लॉड्री पर भी आईटी रेड पड़ी थी। यह पहले भी होता रहा है और अब भी होता है। बल्कि अब इस रामराज्य में  और अधिक होता है। यह सत्य के लिए सरकार जी का इनाम है।

सरकार जी ने सत्य की महिमा बढ़ाई है। सरकार जी ने बड़ी मुश्किल से, बड़ी मेहनत कर, सत्य को दुर्लभ बनाया है। इतना दुर्लभ बनाया है कि सरकार जी के मुंह से शायद ही कभी कोई सच निकलता है। सरकार जी की पूरी कोशिश है कि सत्य का इस्तेमाल कम से कम हो और जहां तक हो सके झूठ से ही काम चलाया जाए। सरकार जी के साथ-साथ उनके वजीर भी इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि वे सच के साथ नहीं, अपितु झूठ के साथ खड़े रहें। सरकार जी के मीडिया पार्टनर, अखबार और खबरिया चैनल, इस पावन मुहिम में सरकार जी के साथ-साथ हैं।

सरकार जी कहते हैं, "झूठ बोलो, और अधिक झूठ बोलो, सिर्फ और सिर्फ झूठ बोलो, इतना अधिक झूठ बोलो कि झूठ ही सच लगने लगे"। अब वजीर तो वजीर ही होते हैं। सरकार जी के वजीर सरकार जी की बात नहीं मानेंगे, तो किसकी बात मानेंगे। तो एक वजीर जी ने नया 'सत्य' बोल ही दिया।

वजीर जी ने बताया, दशहरे से दो दिन पहले ही बताया, कि 'वीर' सावरकर ने जो माफीनामे लिखे थे, वह गांधी जी की सलाह पर लिखे थे। गांधी जी ने ही सावरकर को सलाह दी थी कि तुम अंग्रेजों को माफीनामे लिखो और एक नहीं, बहुत सारे लिखो। सावरकर द्वारा माफीनामे लिखने में सारी की सारी गलती, सावरकर की नहीं, गांधी जी की ही थी। और सावरकर इतने गांधी भक्त थे कि जब तक अंग्रेजों ने माफ़ नहीं कर दिया, तब तक गांधी जी की सलाह मान, बार-बार माफीनामे लिखते ही रहे। वजीर जी ने वीर सावरकर जी के द्वारा अंग्रेजों को लिखे गए अनेक माफीनामों का सारा का सारा 'सच' एक ही बार में देश के सामने रख दिया। 

पर देश के 'मिथ्या' इतिहासकारों को यह सत्य हजम नहीं हुआ। वे प्रश्न उठाने लगे। कहने लगे कि सावरकर को जब जेल हुई थी, जब वह माफीनामे लिख रहे थे, उस समय तो गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे। तो सावरकर ने सलाह कहां से मांग ली और गांधी जी ने सावरकर को सलाह कहां से दे दी। पर इन इतिहासकारों को तो इतिहास की जरा सी भी समझ नहीं है। इतिहास की सारी की सारी समझ सरकार जी और उनके वजीरों को ही है। उन्होंने ही एंटायर हिस्ट्री में और हिस्टीरिया में एमए किया हुआ है।

इन 'मिथ्या' इतिहासकारों को न तो इतिहास की समझ है और न ही विज्ञान की। जब उन्नीस सौ सत्तासी-अट्ठासी में सरकार जी के पास डिजिटल कैमरा था, इंटरनेट कनेक्शन था, तो क्या सरकार जी के आदर्श, सावरकर जी के पास उन्नीस सौ बारह में व्हाट्सएप नहीं हो सकता था। संभव है, सावरकर ने अंडमान से वाट्सएप द्वारा गांधी जी से दक्षिण अफ्रीका में बात की हो। अब गांधी जी के पास तो व्हाट्सएप नहीं ही रहा होगा लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। सावरकर के पास तो वाट्सएप था ही न। और वह तो गांधी जी से सलाह कर ही सकते थे न।

एक और 'सत्य' है, जो अभी सामने आना बाकी है। गांधी जी ने सावरकर को अंग्रेजों से माफी मांगने की सलाह नेहरू के कहने पर दी थी। आखिर हर दोष अंततः नेहरू पर ही तो आना चाहिए न।

ऋग्वेद में एक ऋचा है जिसका अनुवाद कुछ लोग इस तरह करते हैं:

सृष्टि से पहले,

सत् नहीं था। असत् भी नहीं।।

अंतरिक्ष भी नहीं।..........

लगता है, 'सरकार जी' ने हमें सृष्टि से पहले की स्थिति में ही पहुंचा दिया है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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