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तिरछी नज़र: महंगाई ने देशभक्त बनाया

मोदी काल और कोरोना काल के अद्भुत संयोग और ग्रहों और नक्षत्रों की विशेष कालदशा के कारण वही चीज देशभक्ति बन चुकी है और उसका विरोध देशद्रोह। वह चीज है महंगाई। यह महंगाई मोदी जी का देशवासियों को नायाब तोहफा है।
तिरछी नज़र: महंगाई ने देशभक्त बनाया

सभी देशवासियों को सूचित किया जाता है कि देशवासियों को देशभक्त बनाने का और देशवासियों को देशभक्त बनने का नायाब मौका हाथ लगा है। ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता है, पूरे जीवन काल में एक-आध बार ही मुश्किल से मिलता है जब सरकार आपको देशभक्त बनाना चाहती है और आप भी देशभक्त बनना चाहते हैं। आप सब को मिला है, और इसी जीवन काल में मिला है तो आप सभी से निवेदन है कि इस मौके का अधिक से अधिक लाभ उठाएं और अपने को बड़े से बड़ा देशभक्त बनायें।

ऐसा नहीं है कि ऐसा मौका पहली बार आया है। ऐसा मौका बार बार आता रहा है लेकिन यह मौका हमेशा देशद्रोह होता था। पर इस समय देश की ग्रह दशा कुछ ऐसी है कि वही चीज जो पूर्व प्रधानमंत्रियों के काल में, और विशेष रूप से मनमोहन सिंह जी के काल में देशद्रोह होती थी और उसका विरोध देशभक्ति, आज मोदी काल और कोरोना काल के अद्भुत संयोग और ग्रहों और नक्षत्रों की विशेष कालदशा के कारण वही चीज देशभक्ति बन चुकी है और उसका विरोध देशद्रोह। वह चीज है महंगाई। यह महंगाई मोदी जी का देशवासियों को नायाब तोहफा है।

ऐसा नहीं है कि महंगाई पहली बार हुई है। पेट्रोल-डीजल के, खाने-पीने की चीजों के दाम देश में पहली बार नहीं बढ़े हैं और न ही रसोई गैस के सिलेंडर के दाम। इन सबके दाम पहले भी बढ़ते रहे हैं, बार बार बढ़ते रहे हैं, और अब भी बढ़ रहे हैं। पहले इनके दाम बढ़ाना देशद्रोह होता था और अब देशभक्ति होने लगा है। पहले जो महंगाई देशद्रोही होती थी, अब देशभक्त होने लगी है। लगता है, यह महंगाई भी भाजपाई बन गई है।

महंगाई तो चौतरफा बढ़ रही है, चौमुखा बढ़ रही है परन्तु तेल की महंगाई एक ओर तो तेल निकाल रही है और वहीं दूसरी ओर हम सबको देशभक्त भी बना रही है। तेल चाहे डलवाने का हो या फिर पकाने का, दौड़ाने का हो या खाने का, हमारी देशभक्ति की परीक्षा ले रहा है। पहले देश की उन्नति में यह पेट्रोल और डीजल की महंगाई बाधक होती थी, अब साधक हो गई है। पहले महंगाई राक्षस होती थी, अब देवी हो गई है। पहले सोचते थे, चाहते थे कि महंगाई खत्म हो, इससे निजात मिले। पर अब चाहते हैं, महंगाई बढ़ती रहे, बढ़ती रहे, और अधिक बढ़ती रहे। आखिर इसी महंगाई की वजह से हमें देशभक्त बनने का मौका मिला है अन्यथा हम तो देशद्रोही के देशद्रोही ही रह जाते।

कुछ लोग तो इतने देशभक्त हैं कि वे चाहते हैं कि पेट्रोल दो सौ रुपए लीटर भी हो जाए तो भी वे देश के विकास में योगदान देते रहेंगे। अभी पेट्रोल सौ रुपए लीटर से थोड़ा अधिक ही हुआ है तो लोगों का देश के विकास में योगदान कुछ कम है, जब दो सौ रुपए लीटर हो जायेगा तो योगदानकर्ताओं का देश के विकास में योगदान अधिक हो जायेगा, दुगना-तिगुना हो जायेगा। आज के मुकाबले सब लोग दुगने-तिगुने-चौगुने देशभक्त हो जायेंगे।

वैसे महंगाई से लोगों में देशभक्ति लाना अद्भुत प्रयोग है। लोगों से पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, खाने का तेल और अन्य चीजें महंगी खरीदवाना और इससे उनको देशभक्त बनाना बहुत ही कलात्मक चीज है और मोदी जी ने इसे मुमकिन कर दिखाया है। अभी तक यह गरूर कि देश हमारे द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से चल रहा है, सिर्फ आय-कर देने वालों को ही हासिल था। वे ही जेएनयू को बंद कराने की मांग कर सकते थे। पर अब महंगाई बढ़ाने से और उसे देशभक्ति से संबंधित करने से वे सभी लोग देशभक्त होने पर गर्व कर सकते हैं जो पेट्रोल-डीजल खरीदते हैं, खाने के लिए घी-तेल, दालें और सब्जियां खरीदते हैं और रसोई गैस का सिलेंडर खरीदते हैं। मतलब यही कि सभी लोग देशभक्त हो गये हैं। अब कोई भी जेएनयू बंद कराने की मांग कर सकता है।

जब से पेट्रोल डीजल की कीमतों को देशभक्ति से जोड़ा गया है तब से एक लाभ और हुआ है। अब कोई भी सिखों को, मुसलमानों और ईसाईयों को, नक्सलियों और अर्बन नक्सलियों को, टुकड़े टुकड़े गैंग वालों को, पिंजरा तोड़ती लड़कियों को और यहां तक कि आतंकवादियों को भी देशद्रोही नहीं कह सकता है। आखिर वे भी तो पेट्रोल डीजल खरीदते हैं, गैस का सिलेंडर खरीदते हैं, खाने पीने की चीजें खरीदते हैं। तो नई पोलिसी के हिसाब से वे भी देशभक्त बन गए हैं। कभी कभी तो उनके औरों से अधिक देशभक्त बनने की संभावना बनी रहती है क्योंकि हो सकता है कि उनमें से कुछ लोग ये चीजें औरों से अधिक खरीदते हों।

मैं दिल्ली में रहता हूं। यहां भी पेट्रोल अब शतक लगा चुका है, पर फिर भी जब मैं देखता हूं कि मुम्बई में, जयपुर में, बेंगलुरु में, और तो और गंगानगर जैसी छोटी जगह में भी पेट्रोल और डीजल के दाम दिल्ली से अधिक हैं, रसोई गैस के दाम भी दिल्ली से ज्यादा हैं तो बहुत गम होता है। हम दिल्ली वाले कितने बदनसीब हैं उन लोगों से जो उन शहरों में रहते हैं जहां पेट्रोल और डीजल दिल्ली से महंगा है। इससे उन शहरों में रहने वाले लोगों को दिल्ली में रहने वाले लोगों से अधिक देशभक्त बनने का मौका मिल रहा है। दिल्ली देश की राजधानी है। देश का दिल है दिल्ली। यहां के लोगों को सबसे अधिक देशभक्त बनने का अधिकार है। उस अधिकार की रक्षा के लिए मोदी जी को और केजरीवाल जी को मिल कर, मिली भगत कर कर, यह प्रबंध कर देना चाहिए कि यहां के निवासियों को देश भर में सबसे महंगा तेल मिले जिससे कि दिल्ली के निवासी सबसे बड़े देशभक्त बन सकें।

कुछ लोगों ने अपना घर खर्च बचाने के लिए खरीददारी कम कर दी है। कम पैसों में घर खर्च चला रहे हैं। कहते हैं, बच्चों के स्कूल की फीस भी भरनी है। अरे करमजलों! नासपीटों! देशद्रोह करके, पैसा बचा कर क्या करोगे। पेट्रोल डीजल कम खरीद कर, गैस सिलेंडर ज्यादा दिन चला कर, सरसों का तेल खरीदना बंद कर बच्चों को पढ़ाना चाहते हो। ऐसा देशद्रोह कर बच्चों को पढ़ाओगे तो वे बड़े हो कर क्या करेंगे। यही ना कि जेएनयू जैसे संस्थानों में पढ़ेंगे और देशद्रोही बनेंगे। अच्छा यही है कि उन्हें स्कूल में डालो या न डालो, पढ़ाओ या मत पढ़ाओ, पर अधिक से अधिक पेट्रोल डीजल खरीद कर स्वयं तो देशभक्त बनो ही, अपने बच्चों को भी देशभक्त बनाओ। आपके बच्चे भी बड़े हो कर जनता के सामने भाषण दे सकेंगे, अपने 'मन की बात' में बता सकेंगे कि वे तो बचपन से ही देशभक्त हैं। जब वे बच्चे थे तो उन्होंने देशप्रेम में बहुत बड़ा बलिदान किया था। अपनी स्कूल की फीस से पेट्रोल खरीदा था।

(इस व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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