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तिरछी नज़र: एक देश, एक भगवान भी हो जाये, सरकार जी!

एक देश, एक व्यापारी तो हो ही गया है। अब एक चुनाव और एक धर्म के साथ एक भगवान भी हो जाये। और एक भगवान चुनने में कोई दुविधा हो, तो सरकार जी, आप स्वयं तो हैं ही।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : ETV Bharat

सरकार जी एक देश एक चुनाव लाना चाह रहे हैं। सरकार जी के नवरत्नों ने, मतलब मंत्रिमंडल ने इस पर सहमति दे दी है। अब अगर दोनों सदनों, लोकसभा औ राज्यसभा में यह पास हो गया तो देश में एक ही चुनाव हुआ करेंगे।

सरकार जी को 'एक' की बहुत पड़ी है। सरकार जी का बस चले तो सबकुछ एक ही हो जाये। एक देश, एक व्यापारी तो हो ही गया है। पूरा देश एक ही व्यापारी के सुपर्द है। और सरकार जी कितना भी छुपाएं, उसका नाम सबको पता ही है। अब एक देश एक चुनाव होगा। कितनी अच्छी बात है। एक देश, एक चुनाव, कितना अच्छा आइडिया है।

एक देश, एक चुनाव से सरकार जी को बहुत सहूलियत हो जाएगी। सरकार जी लम्बे समय तक विदेश रह सकेंगे और वहाँ अपने व्यापारी मित्र की पैरवी कर सकेंगे। यह जो बार बार देश लौट कर चुनाव की बागडोर सम्हालनी पड़ती है, उससे कितना नुकसान होता है। वह खत्म हो जाएगा। लगातार चार, साढ़े चार साल विदेश घूमे, मित्र की पैरवी की, उसका बिज़नेस बढ़ाया और फिर देश लौट आए। चुनाव करवाया, अगर जीते तो फिर विदेश। और हार गए तब तो विदेश में बसना ही है।

एक देश, एक चुनाव से एक और सहूलियत है। एक ही बार वोटर खरीदना पड़ेगा। एक ही बार शराब परोसनी पड़ेगी। सोचो कितना पैसा बचेगा। और फिर एक ही बार वोटर को माई बाप मानना पड़ेगा। एक ही बार वोटर के सामने हाथ जोड़ने पड़ेंगे। यह नहीं है कि ये सारे काम बार बार करो। लोकसभा के चुनाव में अलग करो, राज्यों की विधानसभा के चुनाव में अलग करो। फिर म्युनिसिपलटी के, पंचायत के चुनाव में भी करो। नेताओं की तो वाट लग जाती है बार बार वोट खरीदने में, शराब परोसने में। वोटरों की चापलूसी करने में।

पर एक देश एक चुनाव में नेताओं के मज़े आ जायेंगे। पांच साल में सिर्फ एक बार पाक साफ दिखो, बाकी समय जो मर्जी करो। खूब भ्रष्टाचार करो। दलितों पर अत्याचार करो। महिलाओं से रेप करो। हत्याएं करो। मार पीट करो। दंगा फ़साद करो। चार साल चाहे जो भी गंद फैलाओ, बस पांचवे साल दूध का धुला नज़र आओ।

एक देश, एक चुनाव से नेताओं को भले ही कितने भी लाभ हों, जनता को तो हानि ही है। पांच साल में दो तीन चुनाव हों, कभी लोकसभा के हों, कभी विधानसभा के हों और कभी स्थानीय निकायों के हों, तो जनता को चुनाव के बहाने कुछ रियायत मिल ही जाती है। पांच साल में तीन चार बार ऐसा समय आता है कि महंगाई नहीं बढ़ती है, मन लुभाने वाले वादे होते हैं। जनता जनार्दन होती है। 

एक देश, एक चुनाव में जनता के लाभ का एक पॉइंट भी है। यह दंगा फ़साद, जो वोट के लिए बार बार होता है वह भी हर समय नहीं चलेगा। वह भी बस चुनावों के आस पास होगा। पांच साल में एक बार होगा। बार बार चुनाव होने से  जनता हर समय दंगे झेलती रहती है। कि ये वाले दंगे लोकसभा चुनाव की तैयारी के तहत हुए हैं और ये दंगे विधानसभा चुनाव से पहले के दंगे हैं। कुछ दंगे छोटे मोटे चुनाव के आस पास भी हो जाते हैं। पांच साल में एक बार चुनाव से जनता का यह लाभ होगा कि वह चार साल सुख शांति से रहेगी। दंगे सिर्फ पांचवे वर्ष ही आयोजित किये जायेंगे। चुनाव के वर्ष में।

मैं तो सोचता हूँ जब सरकार जी एक देश में सबकुछ एक करने की प्लानिंग कर ही रहे हैं। एक देश, एक धर्म तक कर देना चाहते हैं तो एक काम और कर दें। एक देश, एक धर्म के साथ एक भगवान भी कर ही दें। इतने सारे भगवान होने से बड़ी दिक्कत होती है। एक की पूजा करो तो डर लगता है कहीं दूसरा नाराज न हो जाये। सबकी करो तब भी यह तो रिस्क है ही कि एक की पूजा ज्यादा हो जाये और दूसरे की थोड़ा कम। तो सरकार जी, हो जाये। एक देश, एक धर्म के साथ एक भगवान भी हो जाये। और सरकार जी, एक भगवान चुनने में कोई दुविधा हो, तो सरकार जी, आप स्वयं तो हैं ही।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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