Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तिरछी नज़र: सरकार से मत पूछो, विपक्ष से पूछो देश-गांव का हाल

सरकार जी को यह नया विधान बनाना चाहिए कि जो भी व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र में आए वह पहले यह सीख समझ कर आए कि सरकार से क्या प्रश्न करने हैं और विपक्ष से क्या?
sanjay rana sambhal
स्क्रीन शॉट

हमारे देश, भारत वर्ष में एक सरकार जी हैं। सरकार जी के बिना देश का काम नहीं चल सकता है। वैसे तो किसी भी देश का काम सरकार के बिना नहीं चलता है परन्तु हमारे देश का काम तो इन वाले सरकार जी के बिना चल ही नहीं सकता है। कम से कम सरकार जी और उनके भक्तों का तो यही कहना है।

देश में सभी काम सरकार जी ही करते हैं। कोई और करे तो उससे प्रश्न पूछा जाता है। जैसे महंगा सूट, महंगी जैकेट, महंगे चश्मे सरकार जी ही पहन सकते हैं। कोई और महंगी टी शर्ट भी पहन ले तो उससे प्रश्न पूछा जाता है। यहां तक कि जो प्रश्न सरकार जी से होने चाहिएं, वे भी किसी और से ही पूछे जाते हैं।

जहां तक प्रश्न पूछने की बात है, पिछले नौ सालों में सरकार जी से प्रश्न किसी ने भी नहीं किया है। दो चार लोगों ने कोई प्रश्न पूछा भी है तो आम खाने का तरीका पूछ लिया है, बटुआ रखने पर पूछ लिया है, न थकने का राज पूछ लिया है या फिर फकीरी पर ही पूछ लिया है। ऐसे ऐसे और इतने कठिन प्रश्न पूछे हैं कि सरकार जी का चेहरा खुशी और लाज से लाल हो गया और सरकार जी ने हर प्रश्न का उत्तर लजाते हुए, मुस्कराते हुए ही दिया। पिछले नौ वर्षों में सरकार जी ने एक भी प्रश्न के जवाब में पानी नहीं मांगा। पिछले नौ वर्षों में सरकार जी एक भी प्रश्न के जवाब में 'दोस्ती कायम रहे' कह कर माइक नहीं छोड़ा।

जहां तक प्रश्न करने की बात है, प्रश्न तो आप सरकार जी के राज में सरकार जी की बात तो छोड़ो, उनके मंत्रियों से भी नहीं कर सकते हैं। और देश के मंत्रियों से तो छोड़ो, राज्य के मंत्री से भी नहीं कर सकते हैं। अब देखो, हाल ही में सम्भल में क्या हुआ। उस बेचारे नौजवान पत्रकार को क्या पता नहीं था कि भाजपा के राज में टूटी फूटी सड़कों के ना बनने पर प्रश्न नहीं पूछना होता है। जो बारात घर नहीं बना,उस पर प्रश्न नहीं पूछना होता है। जो चीजें बनी ही नहीं, उन पर प्रश्न क्या पूछना। बेचारे ने गोदी मीडिया से कुछ नहीं सीखा। नहीं सीखा तो जेल जाना पड़ा।

क्या वह पत्रकार उन मंत्री जी से यह नहीं पूछ सकता था कि मंत्री महोदया, आप को कौन से रंग की साड़ी पसंद है? आप प्याज खाती हैं या नहीं? अगर खाती हैं तो कैसे खाती हैं? सिर्फ छोंक में, सब्जी में डली प्याज खाती हैं या फिर सलाद में कच्ची प्याज भी खा लेती हैं? या फिर यही कि यहां आपके सामने परोसे गए अनगिनत व्यंजनों में से आपको कौन सा पसंद है? आप जब अगली बार आएंगी तो कौन कौन से व्यंजन खाना चाहेंगी?

सरकार जी को यह नया विधान बनाना चाहिए कि जो भी व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र में आए वह पहले यह सीख समझ कर आए कि सरकार से क्या प्रश्न करने हैं और विपक्ष से क्या? अब अगर महंगाई, बेरोजगारी, सड़क निर्माण न होने जैसे प्रश्न भी सरकार जी या उनके मंत्रियों से पूछोगे तो विपक्षियों से क्या पूछोगे? कुछ विपक्षियों से भी पूछना है या नहीं? सरकार से प्रश्न उसकी हाॅबी के बारे में करते हैं और विपक्ष से देश की समस्याओं के बारे में।

अब उस पत्रकार को सड़क के बारे में कुछ पूछना था तो विपक्ष के हारे हुए प्रत्याशी से पूछना चाहिए था न कि मंत्री महोदया से। और बारात घर न बनने पर तो मंत्री महोदया का धन्यवाद करना चाहिए था। कि बारात घर न बनवा कर उन्होंने कितना अच्छा किया है। बारात घर न होने से गांव में बारात आती ही नहीं है और गांव वाले खर्चीली शादियों से बचे हुए हैं। ऐसा कहता तो उस पर मंत्री जी का कोप नहीं, कृपा बरसती।

इस पत्रकार ने, जिसका नाम संजय राणा बताया जाता है, न तो अपने समकालीनों से कुछ सीखा है और ना ही अपने से पहले हुई घटनाओं से। उसने तो उत्तम प्रदेश में हुई घटनाओं से भी कुछ नहीं सीखा। ऐसा भी क्या पत्रकार जिसने ना तो पवन जायसवाल की घटना से कुछ सीखा जिन्हें मिड डे मील में मात्र रोटी और नमक देने की घटना रिपोर्ट करने पर गिरफ्तार कर लिया गया था और ना ही कप्पन से कुछ सीखा। ऐसा क्या कि आपको न तो देश के उसूलों का पता है न अपने प्रदेश के उसूलों का। ऐसे पत्रकार का तो ऐसा ही हाल होना था।

आगे से ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए सरकार जी को एक पत्रकारिता की 'मॉडल गाइड बुक' निकाल देनी चाहिए जिसमें यह साफ साफ लिखा हो कि सरकार जी, उनके केन्द्रीय मंत्रियों, उनके दल की राज्य सरकारों के मंत्रियों से क्या क्या प्रश्न पूछे जा सकते हैं और क्या कुछ नहीं पूछा जा सकता है। साथ ही यह भी लिखा हो कि विपक्षी दलों के नेताओं से क्या पूछना है। हर एक पत्रकार, पत्रकारिता में आने से पहले उस गाइड बुक का रट्टा लगा ले और ऐसी गलती न करे जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो और जेल की हवा खानी पड़े।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest