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सरकार जी, 'हॉर्स ट्रेडिंग' पर भी जीएसटी लगा दीजिए, प्लीज़

सरकार जी के खर्चे पूरे ही नहीं हो पा रहे हैं। देश को बेच कर भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं। जीएसटी की रिकार्ड वसूली के बाद भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: नवभारत टाइम्स

सरकार जी ने अभी एक जुलाई से जीएसटी के रेट में बदलाव किया है। कुछ नई चीजों पर जीएसटी लगाया है और कुछ पुरानी चीज़ों पर, जिन पर पहले से ही जीएसटी लागू था, जीएसटी की दर बढ़ाई गई है। सरकार जी के खर्चे पूरे ही नहीं हो पा रहे हैं। देश को बेच कर भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं। जीएसटी की रिकार्ड वसूली के बाद भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इसीलिए जीएसटी की दरें फिर से बढ़ाई गई हैं और बार बार बढ़ाई जा रही हैं।

सरकार जी जीएसटी की दरें बढ़ाते समय सभी चीजों का ध्यान रखते हैं। यहां तक कि श्वेत धन का लेन-देन करने के लिए आवश्यक चेक बुक को लेने पर भी जीएसटी लगा दिया गया है। इस कदम से अवश्य ही काले धन का प्रसार रुकेगा। लोग जीएसटी दे कर चेक बुक खरीदेंगे और श्वेत धन में लेन-देन करेंगे। सरकार की आमदनी मात्र इस कदम से कई गुना बढ़ जायेगी। श्वेत धन का प्रचार प्रसार भी बढ़ेगा, सो अलग।

सरकार जी की सरकार ने इस बार गेहूं के आटे, दूध, दही और पनीर के पैकेटों पर भी जीएसटी लगाया है। इसके साथ ही हर तरह की ऑनलाइन गेमिंग, कैसीनो, लॉटरी, हॉर्स रेसिंग आदि पर भी जीएसटी लागू करने का विचार है। धीरे धीरे शायद ही कोई चीज हो, जो जीएसटी के दायरे से बाहर रहे। सरकार जी कृपया एक और खरीद फरोख्त पर जीएसटी लगा दीजिए। आपकी अतीव कृपा होगी। वह है 'हॉर्स ट्रेडिंग'। यानी कि घोड़ों की खरीद फरोख्त। सरकार जी 'हॉर्स ट्रेडिंग' का अर्थ तो समझते ही होंगे। 

हॉर्स ट्रेडिंग यानी घोड़ों की खरीद फरोख्त का व्यापार देश में बहुत पहले से ही होता रहा है परन्तु अब यह बहुत ही तरक्की पर है। कोई चालीस-पचास साल पहले तक, जब तांगे या घोड़ा गाड़ी चला करती थीं तो हॉर्स ट्रेडिंग वास्तव में घोड़ों का ही व्यापार होता था। उससे पहले तो घोड़े युद्ध में भी काम आते थे। उस समय भी हॉर्स ट्रेडिंग बहुत ही अधिक प्रचलन में रही होगी। घोड़ों की मंडियां भी होती रही होंगी। अच्छी नस्ल के टिकाऊ घोड़े काफी महंगे मिलते होंगे। महाराजा राणा प्रताप का घोड़ा चेतक तो रिकार्ड तोड़ कीमत का रहा होगा। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा भी विशेष ही था। वह भी महंगा ही रहा होगा। उस समय की सरकारों ने, यदि हॉर्स की ट्रेडिंग पर टैक्स लगाया होगा तो, हॉर्स ट्रेडिंग से काफी कमाई की होगी।

पर अब हॉर्स ट्रेडिंग में वह बात कहां कि चेतक जैसे घोड़े खरीदे बेचे जाएं। अब तो घोड़ों के नाम पर गधे, खच्चर, टट्टू सभी बिकने लगे हैं। पर सब बिकते घोड़ों के नाम पर ही हैं। बेचने खरीदने वाले को बस गिनती से मतलब होता है। वह घोड़ों में गधे, टट्टू, खच्चर सब गिनवा देता है। और आजकल इनकी कीमत भी बहुत अच्छी मिलती है। मुझे तो नहीं लगता है कि चेतक या पवन (रानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा) की भी इतनी अधिक कीमत रही होगी जितनी 'हॉर्स ट्रेडिंग' में आजकल के 'हॉर्स' की मिलती है। 

पुराने जमाने के घोड़े, चेतक या पवन तो अपने सवार को युद्ध जिताने में सहयोग ही करते थे परन्तु आजकल के घोड़े तो युद्ध जीतने के लिए ही बिकते हैं। और खरीदे भी इसीलिए जाते हैं। और ये 'हॉर्स' युद्ध जिता भी देते हैं। ये घोड़े तो इतने दक्ष होते हैं कि जो दल चुनाव के युद्ध में हार गया हो, बिक कर उसकी तक सरकार बनवा सकते हैं। इसीलिए उनकी कीमत करोड़ों में होती है। दस करोड़, बीस करोड़, पचास करोड़ या फिर इससे भी अधिक। जो घोड़ा अपने साथ और घोड़ों को भी ले आए, उसकी कीमत और भी ज्यादा होती है। उस घोड़े को तो सरकार जी भी बनाया जा सकता है।

ये घोड़े हर समय हर जगह नहीं बिकते हैं। इनकी बिक्री का सीजन होता है, मंडी की जगह होती है। पिछले कुछ वर्षों में ये कर्नाटक, मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर पूर्व भारत, सभी जगह बिके हैं। इनकी बिक्री एक बार में एक ही जगह होती है। जब ये मध्यप्रदेश में बिक रहे थे तो महाराष्ट्र में नहीं बिक रहे थे। अभी हाल में ही महाराष्ट्र में बिके हैं तो मध्यप्रदेश में नहीं बिके हैं। हो सकता है भविष्य में ये राजस्थान में बिकें।

इन घोड़ों की इतनी ऊंची कीमतों और डिमांड को देखते हुए मेरा सुझाव है कि जीएसटी काउंसिल को हॉर्स ट्रेडिंग पर भी जीएसटी लागू कर ही देना चाहिए। जितने ज्यादा घोड़े बिकेंगे, जितनी ज्यादा कीमत में बिकेंगे, उतना ही अधिक जीएसटी मिलेगा और उतना ही देश का भला होगा। देश की आय बढ़ेगी और हो सकता है सरकार जी को दूध, दही, गेंहू के आटे के पैकेटों पर आइंदा जीएसटी लगाना ही न पड़े। हॉर्स ट्रेडिंग पर जीएसटी लगाने से देश का, देश के नागरिकों का कम से कम यह भला तो होगा ही। सरकार बदलने से कुछ भला हो या न हो पर जीएसटी का संग्रह बढ़ने से शायद कुछ भला हो ही जाए।

अधिक अच्छा यह होगा कि जीएसटी लगाने के साथ साथ ही इन घोड़ों की ऑनलाइन बिक्री भी शुरू हो जाए। एमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी ये घोड़े, टट्टू, खच्चर, सभी मिलने लगें और आम जनता को भी मिलने लगें। और ये घोड़े ब्लैक में ही नहीं, व्हाइट में भी मिल सकें। जिससे आम जनता भी, चंदा इकट्ठा कर अपनी पसंद के घोड़े खरीद सके और सरकार जी की तरह ही, चुनाव के बाद भी, अपनी पसंद की सरकार बना सके।

परन्तु सरकार जी ऐसा नहीं करेंगे। न तो वे इस हॉर्स ट्रेडिंग को जीएसटी के दायरे में लाएंगे और न ही इसकी खुली बिक्री होने देंगे। इन दोनों बातों से उनका ही सबसे बड़ा नुक़सान जो है। पहले भले ही यह व्यापार शुरू किसी और ने किया हो, पहले इसके बड़े व्यापारी कोई और ही रहे हों, पर इस समय तो सरकार जी ही घोड़ों के सबसे बड़े व्यापारी हैं। सबसे बड़े हार्स ट्रेडर हैं।

(इस व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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