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संयोग या प्रयोग! : त्रिपुरा सीएम के ‘माफ़ न करने’ वाले विवादित बयान के बाद दो पत्रकारों पर हमला

कोरोना कवरेज के मुद्दे को लेकर त्रिपुरा की बीजेपी सरकार और पत्रकार आमने-सामने हैं। मुख्यमंत्री बिप्लब देब जहां कोविड पर कथित गुमराह करने वाली रिपोर्टों के लिए मीडिया को माफ़ न करने की बात कर रहे हैं तो वहीं मीडिया संगठन इसे सरकार द्वारा मीडिया को अपना ग़ुलाम बनाने की कोशिश बता रहे हैं।
Image Courtesy:  The Northeast Today
Image Courtesy: The Northeast Today

“कुछ अति उत्साहित अख़बार’ राज्य में कोविड-19 की स्थिति के बारे में जनता में भ्रम फैला रहे हैं, जिन्हें मैं कभी माफ़ नहीं करूंगा।”

ये बयान त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब का है। बिप्लब देब ने बीते शुक्रवार,11 सितंबर को त्रिपुरा के पहले स्पेशल इकोनामिक जोन (सेज) के उद्घाटन समारोह में कहा था कि कुछ अखबार कोविड-19 के मुद्दे पर लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना था, "ऐसे अखबारों और पत्रकारों को इतिहास, राज्य के लोग और मैं माफ नहीं करूंगा। इतिहास गवाह है कि मैं जो कहता हूं उसे कर दिखाता हूं।”

उधर, मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दो पत्रकारों के साथ अज्ञात लोगों के मारपीट करने की खबर है। बिप्लब देब के बयान को पत्रकारों ने सार्वजनिक तौर पर धमकी बताया। मीडिया संगठनों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि राज्य सरकार मीडिया को अपना ग़ुलाम बनाने की कोशिश कर रही है।

क्या है पूरा मामला?

पूरे पूर्वोत्तर में इस समय सबसे ज्यादा त्रिपुरा कोरोना से बेहाल है। राज्य में कोरोना मृत्यु दर सर्वाधिक है। कोविड-19 के बढ़ते मामलों को लेकर केंद्र की ओर से राज्य सरकार की मदद के लिए विशेषज्ञों की टीम भी भेजी गई है।

मालूम हो कि बीते दिनों ही त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से उनके द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिए अपनाए जा रहे तरीकों और इंफ्रास्टक्टर के बारे में 18 सितंबर से पहले रिपोर्ट सौंपने को कहा था।

इस दौरान मीडिया द्वारा राज्य में लगातार कोविड संकट को लेकर फैली कथित अव्यवस्थाओं को लेकर खबरें सामने आईं। जिसके बाद मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने यह विवादित बयान दिया था।

हालांकि अब मामले को तूल पकड़ता देख कर मुख्यमंत्री कार्यलय ने सफाई दी है कि देब की टिप्पणी को संदर्भ से काट कर पेश किया गया है। लेकिन पत्रकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री की सार्वजनिक धमकी के बाद वह लोग आतंक के माहौल में जी रहे हैं।

दो पत्रकारों पर हमला

शनिवार, 12 सितंबर को ढालाई जिले में एक स्थानीय बंगाली अख़बार ‘स्यंदन पत्रिका’ से जुड़े पत्रकार पराशर विश्वास के साथ आधी रात को उनके घर में घुस कर मारपीट की गई। पत्रकार का दावा है कि करीब 6-7 लोग हेलमेट और मास्क पहने उनके घर में घुस गए और उन पर हमला किया।

शनिवार के दिन ही दक्षिण त्रिपुरा के बेलोनिया में एक चैनल के रिपोर्टर अशोक दासगुप्ता के साथ भी मारपीट की गई। पराशर ने पुलिस में हमले की रिपोर्ट दर्ज कराई है। लेकिन इस मामले में अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बिस्वास पिछले दिनों अपने काम के दौरान कोरोना संक्रमित हो गए थे और कोविड केयर सेंटर में थे। शुक्रवार को मुख्यमंत्री के पत्रकारों को कथित तौर पर धमकाने वाले बयान के बाद उन्होंने उसी रात सेंटर में ही एक वीडियो रिकॉर्ड कर उनकी आलोचना की थी। उन्होंने इसे सोशल  मीडिया पर साझा किया था।

अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में बिस्वास कहते दिखते हैं, “मैं मुख्यमंत्री को चेताना चाहता हूं कि उन्हें इस तरह से मीडिया को धमकाना नहीं चाहिए। आज मैं यह पोस्ट कर रहा हूं, आने वाले समय में कई और ऐसा करेंगे।”

इस संबंध में स्यंदन पत्रिका अख़बार के संपादक सुबल डे ने मीडिया से कहा, “उन पर मुख्यमंत्री के मीडिया को धमकाने के एक दिन के अंदर और उनके सोशल मीडिया पोस्ट करने के 12 घंटों के भीतर हमला हुआ है। हमें शक है कि यह हमला भाजपा के लोगों ने करवाया है।”

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक भाजपा ने इन आरोपों से इनकार किया है। त्रिपुरा भाजपा प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्जी ने कहा, “हम पत्रकार पर हुए हमले की निंदा करते हैं। हमारी पार्टी का कोई व्यक्ति इसमें शामिल नहीं है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। अगर किसी भी राजनीतिक दल का कोई व्यक्ति इसमें शामिल हुआ तो कानून के हिसाब से कार्रवाई की जाएगी।”

मुख्यमंत्री के बयान पर मीडिया संगठनों की आपत्ति

मुख्यमंत्री के बयान पर त्रिपुरा के मीडिया अधिकार संगठन ‘फोरम फॉर प्रोटेक्शन ऑफ मीडिया एंड जर्नलिस्ट’ ने कहा कि मुख्यमंत्री की टिप्पणियों के बाद पत्रकार खुद को असुरक्षित और भयभीत महसूस कर रहे हैं।

फोरम के अध्यक्ष सुबल कुमार डे कहते हैं"हम मुख्यमंत्री की अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक टिप्पणियों की निंदा करते हैं। हमने उनको अपनी टिप्पणी वापस लेने के लिए तीन दिनों का समय दिया है।”

उन्होंने कहा कि सरकार और पत्रकारों के बीच मतभेद असामान्य नहीं हैं और अतीत में ऐसी कई समस्याओं को बातचीत के जरिए हल किया गया था। ‘लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे हाथ से निकल रही है।’

देब की टिप्पणी पर अगरतला प्रेस क्लब के अध्यक्ष डे ने कहा, “त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने एक सार्वजनिक सभा में मीडिया संगठनों को धमकी दी है जो चिंता का विषय है।”

उन्होंने कहा, “राज्य सरकार मीडिया को अपना गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है। पत्रकारों की आवाज को दबाने के लिए सरकारी आदेश जारी किए जाते हैं। उन्हें आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया पर बदनाम किया जाता है और मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) इसमें शामिल होता है।”

डे ने रविवार को बताया कि देब की टिप्पणी के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों से पत्रकारों को धमकियों और हमले का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि बीते 24 घंटे में दो मीडियकर्मियों पर हमला हुआ है।

उन्होंने कहा, “हम इन घटनाओं को लेकर बेहद चिंतित हैं। हमने फैसला किया है कि हम मुख्यमंत्री की धमकियों और असहिष्णुता के खिलाफ त्रिपुरा के राज्यपाल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, इंटनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव और एडिटर्स गिल्ड आदि से मदद मांगेंगे।”

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स से संबंद्ध नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने त्रिपुरा में 24 घंटे के दौरान दो पत्रकारों पर हुए हमलों की कड़ी निंदा की है।

एनयूजेआई के अध्यक्ष रास बिहारी ने पत्रकारों पर हो रहे हमलों पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री बिप्लब देव से तुरंत न्यायिक जांच के आदेश देने की मांग की है। साथ ही लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करने और पीड़ित पत्रकारों के लिए मुआवजा राशि बढ़ाने की मांग की है।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पहले भी अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। इसी साल जुलाई में उन्होंने देश में अलग-अलग समुदायों पर टिप्पणी करते हुए कहा था, "अगर हम पंजाब के लोगों के बारे में बात करते हैं, तो हम कहते हैं, वह एक पंजाबी, एक सरदार है। सरदार किसी से डरते नहीं हैं। वे बहुत मजबूत हैं, लेकिन उनके पास कम दिमाग है। कोई भी उन्हें ताकत से नहीं बल्कि प्यार और स्नेह से जीत सकता है।"

उन्होंने आगे कहा था, "मैं आपको हरियाणा के जाटों के बारे में बताता हूं।” वे कहते हैं कि “जाट कम बुद्धिमान हैं, लेकिन शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। यदि आप एक जाट को चुनौती देते हैं, तो वह घर से अपनी बंदूक ले आएगा।" वे इतने पर ही नहीं रुके और उन्होंने आगे कहा, "बंगाल या बंगालियों के लिए, यह कहा जाता है कि उन्हें बुद्धिमत्ता के संबंध में चुनौती नहीं देनी चाहिए। बंगालियों को बहुत बुद्धिमान के रूप में जाना जाता है और यह भारत में उनकी पहचान है। प्रत्येक समुदाय को एक निश्चित प्रकार और चरित्र के साथ जाना जाता है।"

बिप्लब देब ने ऐसे मुद्दों पर व्यापक जनसमुदाय को खांचे में बांटने वाले या तथ्यात्मक त्रुटियों वाले बयान भी दिए हैं। कुछ महीने पहले उन्होंने 3 अप्रैल को पड़ोसी राज्यों असम और मणिपुर में कोविड-19 पॉजिटिव मामलों के गलत आंकड़े दिए।

उन्होंने कहा था, "हमारे पड़ोसी करीमगंज में, 16 कोविड-19 पॉजिटिव मामले दर्ज किए गए। मणिपुर में उन्नीस मामले दर्ज किए गए। इसीलिए हमने त्रिपुरा की सीमा को सील कर दिया है।" जबकि वास्तव में, करीमगंज में केवल एक मामला दर्ज किया था और मणिपुर केवल दो थे।

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