ट्रंप दौरा : अहमदाबाद के 'सौंदर्यीकरण' के नाम पर झुग्गियों को रौंदती सरकार
अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल हवाई अड्डे के रास्ते में, इंदिरा पुल के नीचे सरन्यावास बस्ती है जो लगभग 70 वर्ष पुरानी झुग्गी बस्ती है और यहाँ करीब 2,000 से अधिक लोगों का घर है जो सरन्या समुदाय के हैं। परंपरागत रूप से, यह समुदाय चाकू को धार देने का काम करता है।
लगभग 4 फीट ऊंची एक दीवार इस झुग्गी बस्ती को घेर रही है ताकि उस बस्ती को सड़क से न देखा जा सके। दो व्यक्ति पौधों के गमलों से भरे ट्रक के साथ दीवार के चारों ओर काम कर रहे हैं, और दीवार के चारों ओर इन लंबे पौधों को सजाने में व्यस्त हैं ताकि सड़क से दीवार दिखाई न दे।
एक परिवार के सदस्य उस जगह पर बैठे हैं जहाँ एक हफ़्ते पहले तक उनके घर थे।
यह ’सौंदर्यीकरण’ 100 करोड़ रुपये की लागत से होगा जिसे गुजरात सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तीन घंटे की यात्रा के लिए ख़र्च कर रही है।
हालाँकि, 'सौंदर्यीकरण' की प्रक्रिया में सरन्यावास के निवासियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हर बार जब भी कोई गणमान्य व्यक्ति अहमदाबाद आता है या कोई वीवीआईपी शिखर सम्मेलन होता है, तो अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) झुग्गी को छुपाने के लिए उपाय करती है और यह सुनिश्चित करती है कि झुग्गी निवासियों को समारोह समाप्त होने तक झुग्गी के अंदर ही नज़रबंद रखा जाए।
झुग्गी निवासी पानी के इंतज़ार में बर्तन रखते हुए।
जब सितंबर 2017 में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद का दौरा किया था और चीनी राष्ट्रपति शी जिंगफिंग ने 2014 में यात्रा की थी या 2019 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल शिखर सम्मेलन हुआ था तो उस वक़्त भी तिरपाल का उपयोग कर स्लम पर पर्दा डाला गया था।
स्लम के निवासी अनिलभाई सरन्या ने न्यूज़क्लिक को बताया, “साल में कम से कम तीन या चार बार, हर वीवीआईपी के दौरे या एक बड़े पैमाने के कार्यक्रम के पहले गुजरात सरकार हमें छुपा देती है ताकि बाहर के लोगों को स्लम दिखाई न दे। आमतौर पर, वे तिरपाल की चादर का उपयोग करते थे और समारोह समाप्त होने के बाद इसे हटा देते थे। लेकिन ऐसा तो पहली बार हो रहा है कि हमारे चारों ओर एक पक्की दीवार खड़ी की जा रही है।”
अनिलभाई ने यह भी बताया कि झुग्गी के अंदर उनकी एक दुकान थी जिसे अब आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा, "दीवार बनाने के लिए, उन्होंने (एएमसी ने) उन सभी झोपड़ियों को ढहा दिया, जो सड़क की ओर थीं। इस बाबत हमें न तो किसी ने कोई नोटिस दिया और न ही इत्तल्ला दी गई।"
रमेशभाई ने कहा कि एक कमरे की झोपड़ी जो उन्होंने अपने नवविवाहित बेटे के लिए बनाई थी उसको भी ध्वस्त कर दिया गया। उन्होंने बताया, "हाल ही में झुग्गियों में रहने वाले कुछ लोगों को बस्ती से निकलने का नोटिस दिया गया था। लेकिन हमारा क्या जिनके घरों को उन्होंने बिना कोई नोटिस दिए ही तोड़ दिया? जेसीबी के ज़रिए लगभग 20 घरों को तोड़ा गया और इसके लिए पहले से कोई घोषणा भी नहीं की गई थी।"
रमेश भाई समन्या
केसरीबाई बालाभाई सरन्या ने बताया, “हमारे पास एक कमरे का घर था जहाँ मैं अपने पति, अपने बेटे और बहू के साथ रहती थी। जब मेरी बेटी अपने पति से अलग हो गई और हमारे साथ रहने लगी तो हमने उसके लिए भी एक कमरे की झोपड़ी बनाने के लिए लोन शार्क से पैसा कर्ज़ पर लिया। करीब एक हफ्ते पहले, वे (एएमसी वाले) सुबह करीब 9 बजे आए, जब ज्यादातर पुरुष और महिलाएं काम पर निकल जाते हैं, और सड़क के किनारे खड़ी सभी झोपड़ियों को ध्वस्त कर दिया और वहां दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी।”
“मेरी बेटी जो रीढ़ की सर्जरी से उबर रही है, वह अपने 10 साल के बेटे को झोपड़ी में छोड़कर डॉक्टर से मिलने गई थी। नगर-निगम वालों ने अचानक एक के बाद एक झोंपड़ी को ढाहाना शुरू कर दिया, यहां तक कि उन्हौने यह घोषणा भी नहीं की कि वे अब झुग्गियों को तोड़ने जा रहे हैं। तोड़ने से कुछ ही समय पहले बच्चा घर से बाहर भागा और नीचे गिर गया। हममें से किसी को भी अपना सामान बचाने का मौका नहीं दिया गया। उनके चले जाने के बाद, हमने अपने घरों और सामानों के टूटे हुए टुकड़े इकट्ठे किए। दो साल में यह दूसरी बार हो रहा है जब मेरा घर ढहाया गया है। इससे पहले, वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन की तैयारी के दौरान, उन्होंने बिना किसी नोटिस या घोषणा के इसे ध्वस्त कर दिया था।“ केसरीबेन ने उक्त बातें बताई जो अपनी तीन पीढ़ियों से सरन्यवास में रह रही हैं।
केसरीबेन स्लम की एक भीड़ी गली में खड़ी है जहां से रास्ता उसकी झोपड़ी की ओर जाता है
50 वर्षीय अशोकभाई शांतिलाल सरन्या को निष्कासन का नोटिस मिला है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, “जब तक मैं ज़िंदा हूँ, मैं सरन्यवास को नहीं छोड़ूंगी। मेरा जन्म यहीं हुआ है, मेरे बच्चे भी यहीं पैदा हुए और यहीं बड़े हुए हैं। मेरे परिवार ने राजस्थान से लगभग 90 साल पहले पलायन किया था और इंदिरा गांधी सरकार द्वारा घर बनाने के लिए ज़मीन का एक टुकड़ा दिया गया था।“
उन्होंने आगे कहा, “दीवार मेरी समस्या नहीं है। मुझे चिंता इस बात की है कि इस तरह के वीवीआईपी दौरे के दौरान में बाहर जाने और कमाने में सक्षम नहीं हूं। हर बार जब भी इस तरह का वीवीआईपी दौरा होता है, लोगों को स्लम के बाहर कदम रखने की इजाज़त नहीं होती है, चाहे जो भी हो। पुलिस के दो जवानों को पहरेदारों के रूप में खड़ा कर दिया है और सुनिश्चित किया कि जब तक दौरा खत्म नहीं हो जाता, तब तक हम झुग्गी में ही नज़रबंद रहेंगे।"
बेमाभाई ने कहा, “अधिकांश झुग्गीवासी दैनिक वेतन भोगी हैं, जो प्रति दिन कम से कम 200 रुपये कमाने के लिए किसी भी तरह का काम या मजदूरी करते हैं। स्लम की महिलाएं ज्यादातर घरों में काम करती हैं क्योंकि सरन्यवास के आस-पास के इलाकों में उन्हे घरेलू काम में मदद के लिए काम मिलता है। हमारी दैनिक आय शायद ही एक परिवार का पालन-पोषण कर पाए। अगर हम एक या दो दिन नहीं कमाए तो हमारे पास खाने के लाले पड़ जाते है।"
बेमाभाई की पत्नी ने कहा, "यहां ज्यादातर परिवारों के ऊपर कर्ज है, क्योंकि उनकी आमदनी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हम में से अधिकांश लोगों ने लोन शार्क से कर्ज़ लिया हुआ है ताकि हम अपने लिए एक झोपड़ी खड़ी कर सके। हर बार जब भी वे हमारे घरों को तोड़ते हैं, तो हमें फिर से कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ता है। मेरे परिवार पर लगभग 50,000 रुपये का कर्ज है।"
ख़ासकर गुजरात सरकार ने झुग्गी निवासियों के पुनर्वास के लिए कोई कदम नहीं उठाया है और न ही पिछले 70 वर्षों में बुनियादी सुविधा देने के लिए ही कोई कदम उठाया है।
सरान्यवास में कोई भी जल निकासी की व्यवस्था नहीं है, जिसके चलते स्लम में जल का जमाव होता है और स्लम के माध्यम से बहने वाली खुली नाली में प्रवाह होता है। घरों के बीच की लेन काफी संकरी है और वहाँ दोपहिया वाहन चलाना भी मुश्किल है। किसी भी चिकित्सा संकट के दौरान लोग मुख्य सड़क तक मरीज को अपनी पीठ या कंधों पर उठा कर निकटतम अस्पताल ले जाते हैं जो लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है।
झुग्गी के लगभग सभी घर एक कमरे वाली झोपड़ी हैं, जिसमें एक खुला एरिया है, जहां महिलाओं के नहाने के लिए एक आधा-कवर किया गया क्षेत्र है और खाना पकाने की जगह है। पुरुष स्लम बस्ती के पीछे बहने वाली साबरमती नदी में स्नान करते हैं।
एक झुग्गीवासी ने बताया कि “पानी की कमी यहाँ की प्राथमिक समस्याओं में से एक है। और हमें हर दिन लगभग आधे घंटे के लिए तीन बार पानी मिलता है।"
स्लम के लिए एलपीजी सिलेंडर एक लक्जरी आइटम है जिसे केवल कुछ मुट्ठी भर लोग ही खरीद सकते हैं। सरान्यवास के अधिकांश घर मिट्टी के चूल्हों पर निर्भर हैं जहाँ महिलाएँ पेड़ की टहनियों को ईंधन के रूप में जलाती हैं। घर में एक शौचालय का होना भी एक लक्जरी है। ज्यादातर पुरुष साबरमती नदी के किनारे खुले में शौच करने जाते हैं। मुट्ठी भर ऐसे परिवार हैं जिनके पास शौचालय हैं, जिसे वे स्लम की महिलाओं के साथ साझा करते हैं।
सरन्यवास के निवासियों के पास आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र हैं, लेकिन उन्हौने कभी भी सरकार को अपने मुद्दे के बारे में कोई ज्ञापन नहीं दिया।
अशोकभाई ने कहा, "हम में से अधिकांश अशिक्षित हैं, हम यह भी नहीं जानते हैं कि किससे किसलिए मिलना चाहिए।"
“झुग्गी के बच्चे हंसोल के एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाते हैं जहाँ वे कक्षा 8 तक पढ़ पाते हैं, लेकिन उसके बाद वे पढ़ाई छोड़ देते हैं। हम अपने बच्चों का शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं।"
"ऐसा क्यों है कि यह सरकार हमें दुनिया की नज़रों से छिपाना चाहती है और हमारी मदद नहीं करना चाहती है?" केसरीबेन से सवाल किया।
उन्होंने कहा, "हमें लगता है कि हम मिसफ़िट हैं और उनकी आँखों की किरकिरी भी हैं।"
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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