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बनारस में विहिप और बजरंग दल बेलगाम, गंगा घाटों के किनारे लगाए 'ग़ैर-हिंदुओं के प्रवेश प्रतिबंध' के पोस्टर

बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों के पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में विहिप और बजरंग दल ने ग़ैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले विवादित पोस्टर लगाए हैं। ये संगठन अब अपनी काली कारगुज़ारियों से प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी और शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खां की गंगा-जमुनी तहज़ीब को तार-तार करने पर उतारू हो गए हैं।
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बनारस में हिन्दू युवा वाहिनी (हियुवा) के जुलूस में तलवार चमकाने और उन्मादी नारेबाजी का मामला अभी ठंडा पड़ा भी नहीं था कि विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और बजरंग दल भी बेलगाम हो गए। विहिप और बजरंग दल ने धर्म, अध्यात्म की नगरी काशी के गंगा घाटों पर गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले पोस्टर लगाकर सनसनी फैला दी है। हियुवा के जुलूस में नंगी तलवारें चमकाए जाने के मामले में बनारस पुलिस तमाशबीन बनी रही और इस मामले में भी वह कुछ भी बोलने से बच रही है। शहर की फिजा बिगाड़ने में जुटे लोगों के खिलाफ एक्शन लेने के बजाए पुलिस अपनी नाक बचाने के लिए विवादित पोस्टरों को खुरचवाने में जुटी है।

विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल बनारस ने उन गंगा घाटों को गैर-हिंदुओं के लिए प्रतिबंधित करने की बाबत बड़े पैमाने पर पोस्टर चस्पा किया है जो बनारस के घाट सांप्रदायिक सद्भाव के मिसाल माने जाते रहे हैं। गंगा-जमुनी तहजीब को जीने वाले शायर नजीर बनारसी की नज्म "सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके... " आज भी हर बनारसी के जुबां पर तैरती रहती है। नजीर ऐसे शायर थे जिनकी लेखनी का एक-एक शब्द काशी की रूह को थामे हुए था। उन्होंने जब भी कोई शेर गढ़ा, देश को सलामी दे गया। देश के बंटवारे का दर्द जिनकी रुबाइयां बनीं, हिंदू-मुसलमान में फर्क को तार-तार करना जिनकी इबादत थी। नजीर साहब ने मजहबी बंदिशों को कभी ठोकर मारी, तो कभी गंगा घाटों पर मंदिरों के साए में थकान उतारकर उन्मादी ताकतों को उनकी हद दिखाई।

सुबह-ए-बनारस में सूरज की लालिमा के साथ अपनी सांसों को आवाज़ बनाकर शहनाई के जरिए रंग भरने वाले बिस्मिल्लाह खां को गंगा का किनारा आज भी ढूंढता है। बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों का पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में विहिप और बजरंग दल ने गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले विवादित पोस्टर लगाए हैं। ये संगठन अब अपनी काली काली कारगुजारियों से प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी और शहनाई सम्राट विस्मिल्लाह खां की गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार करने पर उतारू हो गए हैं।

"यह पोस्ट नहीं, चेतावनी है"

विहिप का मंत्री राजन गुप्ता

बजरंग दल के काशी महानगर संयोजक निखिल त्रिपाठी रुद्र एक वीडियो में धमकी देते नजर आ रहे हैं। वह कहते हैं, "यह पोस्टर नहीं चेतावनी है। यह उन लोगों के लिए चेतावनी है जो गंगा को पिकनिक स्पाट समझते हैं। चेतावनी दी जा रही है कि वो यहां से दूर रहे, अन्यथा हम लोग उन्हें दूर कर देंगे। दूसरा वीडियो विश्व हिन्दू परिषद के मंत्री राजन गुप्ता का है जिसमें वो कहते हैं, "यह पोस्टर नहीं एक संदेश है गैर-सनातन धर्मियों के लिए। घाट और मंदिर सनातक परंपरा के प्रतीक आस्था के चिह्न हैं। हम पोस्टर के जरिये संदेश देना चाहते हैं कि गैर-हिन्दू हमारी सनातन संस्कृति के प्रतीक चिह्न से दूर रहें। गैर-हिन्दू समुदाय के लोग इसे पिकनिक स्पाट न बनाएं, अन्यथा हम उन्हें खदेड़ने का काम करेंगे।"

बजरंग दल का संयोजक निखिल त्रिपाठी

बजरंग दल वाले 'रुद्र'  साफ-साफ कहते नजर आ रहे हैं, "अब हिंदू समाज को ताकत दिखाते हुए अपने धर्म और समाज की रक्षा के लिए स्वयं आगे आना होगा। सारा कुछ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। जिस भी मंदिर या गंगा घाट किनारे कोई विधर्मी अंदर घुसता है तो उसे मौके पर पकड़कर पुलिस के हवाले किया जाएगा।"

विहिप और बजरंग दल ने बनारस के पंचगंगा घाट, रामघाट, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध से लगायत अस्सी घाट तक विवादित पोस्टर लगाए हैं। गैर-हिंदुओं के प्रवेश वर्जित वाले इन पोस्टरों के लगने के बाद अब विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल ने पूरे बनारस के मंदिरों में ऐसे पोस्टर लगाने की बात कही है।

विहिप के महानगर मंत्री राजन गुप्ता कहते है, "बनारस के मंदिर और गंगा घाट सनातन धर्म के लोगों की आस्था और श्रद्धा के स्थान हैं। यहां दूसरे धर्मों के लोगों का क्या काम? " विश्व हिन्दू परिषद के महानगर अध्यक्ष कन्हैया सिंह कहते हैं, "गैर-हिंदुओं को चेतावनी वाले सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए चस्पा कराया जा रहा है।" गंगा घाट पर विहिप कार्यकर्ताओं के साथ खड़े होकर बयानबाजी करने वाले षाणिल्य ऋषि चंद्रभूषण कहते हैं, "पर्यटकों के आने पर हमें आपत्ति नहीं है। जो लोग यहां आएं, दर्शन-पूजन करें। बनारस कोई पर्यटक स्थल नहीं है। जो लोग यहां आएं, हमारी धार्मिक भावनाओं का अनादर न करें।"

पोस्टर खुरचने में जुटी पुलिस

दिलचस्प बात यह है कि सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने वाले पोस्टर ऐलानिया तौर पर बनारस के गंगा घाटों पर लगाए गए और जल पुलिस तमाशबीन बनी रही। इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो जल पुलिस उन पोस्टरों को खुरचवाने में जुट गई। फिलहाल बनारस पुलिस के आला अफसर इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।

वाराणसी के गंगा घाटों और मंदिरों में इस तरह के बैनर लगाए जाने पर समाजवादी पार्टी ने कड़ा एतराज जताया है। पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए न्यूजक्लिक से कहा, "गंगा घाट की संपत्ति सार्वजिनक है। न गंगा किसी की हैं, न घाट। आने वाले चुनाव में अपनी करारी पराजय को देखते हुए भाजपा के अनुसांगिक संगठनों के लोग इस तरह की पोस्टरबाजी कर रहे हैं। ये लोग काशी की गंगा-जमुनी तबहजीब के परखच्चे उड़ाना चाहते हैं। बनारस के लोगों की आय का मुख्य साधन पर्यटन है। नोटबंदी और कोरोना के कारण जो लोग बेरोजगार हो गए थे और भारी घाटा हुआ था, उनके कारोबार को चौपट करने के लिए इस तरह की पोस्टरबाजी सहायक सिद्ध होगी। वाराणसी पुलिस कमिश्नर को सीसी टीवी के जरिये जांच कराकर ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसी तरीके की घटनाएं पहले भी खुलेआम नंगी तलवारें लहराने की आ चुकी हैं। अभी तक उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ता जा रहा है।"

बनारस के महामृत्युंजय मंदिर परिवार से जुड़े किशन दीक्षित कहते हैं, "काशी में सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के धार्मिक स्थलों का सम्मान करते हैं। आमतौर पर न कोई मुसलमान मंदिर में जाता है और न कोई हिंदू मस्जिद में पहुंचता है। फिर इस तरह का पोस्टर और बैनर लगाना अनुचित है। लगता है कि भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है। धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए वह यूपी में चुनाव जीतना चाहती है। इसीलिए माहौल खराब करने का प्रयास किया जा रहा है।"

अमनो-अमान को बिगाड़ने की साजिश

हाल ही में बनारस की सड़कों पर कुछ सिरफरे लोगों की जमात तलवारें चमकाते हुए मजहबी नारों के साथ निकली थी, घाटों का पोस्टर उसी का विस्तार माना जा रहा है। गंगा घाटों पर पोस्टर लगाने के बाद विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने ऐलान किया है कि मंदिरों के बाहर भी इसी तरह के पोस्टर लगाएंगे। विहिप और बजरंग दल के पदाधिकारियों के रवैये से बनारस के प्रबुद्ध लोग बेहद आहत हैं। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, " बनारस के गंगा घाटों पर विवादित पोस्टर चिपकाया जाना निंदनीय है। नफरत फैलाने और बनारस के अमनो-अमान को बिगाड़ने की गहरी साजिश है। गंगा के जिन घाटों पर मीर और गालिब बैठे हों और एक लंबा वक्त गुजारा हो, दुनिया के चर्चित शायर नजीर बनारस की कलाम में जिस गंगा के पानी की पाकीजगगी का जिक्र हुआ हो वहां वैमनस्यता पैदा करना कहां तक उचित है। धार्मिक आधार पर गंगा घाटों पर आने-जाने की पाबंदी के पोस्टरों को चस्पा किया जाना काशी के शानदार इतिहास के लिए शर्मनाक है। गंगा के घाटों की इज्जत, लगाव और मुहब्बत हर बनारसी और हर मजहब के दिलों में है। घाटों पर आने-जाने से रोकना कानून जुर्म और ज्यादती है।"

विवादित पोस्टरबाजी के खिलाफ पुलिस से शिकायत का ट्विट

प्रदीप कहते हैं, "चुनाव और सरकारें तो आती-जाती रहेंगी, लेकिन बनारस की जो तहजीबी रवायत है उसकी आत्मा पर खरोंच लगाना तकलीफदेह है। पिछली घटनाओं को देखें तो उससे साफ जाहिर होता है कि यह सब चुनाव और वोट के मद्देनजर योजनाबद्ध तरीके से कराया जा रहा है और इस घृणित कृत्य के लिए सत्तारूढ़ दल साफ-साफ जिम्मेदार है। साथ ही वो लोग भी जिम्मेदार हैं जो नफरत की राजनीति और महजबी बंटवारे में यकीन रखते है। हमें लगता है कि फिरकापरस्त ताकतें चुनावी पराजय के खौफ से पूरे मुल्क और समाज को अंधेरी सुरंग में फंसाने की कोशिश में हैं। इत्मिनानबख्स बात यह है कि बनारस के लोग फिरकापरस्तों को लगातार खारिज करते जा रहे हैं।"

किसी की पेटेंट नहीं गंगा

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं लगता है कि विहिप और बजरंग दल वालों ने गंगा का पेटेंट करा लिया है। ये लोग उन्हें गंगा से जुदा करना चाहते हैं, जो सदियों से इनकी गोद में पलते रहे हैं। वह कहते हैं, "गंगा घाटों पर विवादित पोस्टर चस्पा किया जाना सरासर गुंडागर्दी है। सिर्फ गंगा ही नहीं, पानी, औषधि, जंगल और सभी नदियों पर किसी भी समुदाय अथवा व्यक्ति विशेष का एकाधिकार संभव नहीं है। भाजपा नेता तब भागने लगते हैं, जब कोई संवैधानिक मामला फंसता है। तब वो यह कह देते हैं कि बजरंग दल, विहिप, आरएसएस से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा के पाले-पोशे गए लोग चुनाव के समय बनारस में ऐसी हरकत करते हैं। ऐसे लोगों के ऊपर दंगा-फसाद कराने और सामजिक समरसता को तार-तार करते हुए समाज को बांटने का जिम्मा रहता है। संतो का कर्तव्य समाज में समरसता का संदेश देना होता है। भाजपा के अनुषांगिक संगठन इसके ठीक विपरीत काम करते हैं।"

राजेंद्र तिवारी यह भी कहते हैं, "गंगा का अवतरण ही मानव कल्याण और जीव की रक्षा के लिए हुआ है। उस पर किसी भी वर्ग का एकाधिकार नहीं हो सकता है। यह संविधान और मानवाधिकार का उल्लंघन ही नहीं, एक तरह का राष्ट्रद्रोह है। विवादित पोस्टर लगाने वाले असामिजक तत्वों को तत्काल गिरफ्तार कर लेना चाहिए। हमें लगता है कि असामाजिक तत्व सत्तारूढ़ दल के इशारे पर यह घृणित कार्य कर रहे हैं। हाल की घटनाओं से साफ जाहिर हो रहा है कि यूपी का चुनाव जैसे-जैसे करीब आएगा, ये लोग समाज को दंगे की आग में झोंकने का काम तेज कर देंगे। यह सिर्फ एक पोस्टर नहीं है, बल्कि बारूद बिछाने का काम चल रहा है। इस तरह की हरकतें ऐसा माहौल बना रही हैं, जिसमें बस माचिस की एक तिली दिखाने की जरूरत है।"

बनारस के ठाठ, गंगा के घाट

बनारस में गंगा के किनारे 85 घाट हैं, दो करीब साढ़े चार किमी क्षेत्र में फैले हैं। एक दिन में हर घाट का पानी पीना अगर असंभव नहीं तो कठिन जरूर है। ये घाट ही बनारस की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान हैं। गंगा के तीरे बने ये ऐतिहासिक घाट, पुरातात्विक नजरिये से काफी अहमियत रखते हैं। अब से पहले कभी भी इन घाटों पर आडंबर, झूठ, छल और फरेब का जामा नहीं पहनाया गया था। दक्षिणी सिरे पर संत रविदास घाट पर गंगा और असी नदियों का संगम है तो उत्तरी छोर पर स्थित आदिकेशव घाट पर वरुणा, गंगा में मिलती है।

गंगा महल घाट, रीवां घाट, तुलसी घाट, भदैनी घाट, जानकी घाट, माता आनंदमनयी घाट, बच्छराज घाट, जैन घाट, निषादराज घाट, पंचकोट घाट, चेत सिंह घाट, निरंजनी घाट, शिवाला घाट और हनुमान घाट को भला कौन नहीं जानता। यहां गंगा के किनारे कर्नाटक घाट है तो मैसूर घाट भी। हरिश्चंद्र घाट, लाली घाट, केदार घाट, चौकी घाट, क्षेमेश्वर घाट, मान सरोवर घाट के बारे में किंवदंती प्रचलित है कि यह मानसरोवर यात्रा जैसा फलदायी है। पांडेय घाट, चौसट्टी घाट, राणा महल घाट दंरभंगा घाट, मुसी घाट, शीतला घाट, दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, मान मंदिर घाट, वाराही घाट, त्रिपुरा भैरवी घाट, मीर घाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट, संकठा घाट, गंगा महल घाट, राम घाट, पंचगंगा घाट, दुर्गा घाट, ब्रह्मा घाट, हनुमान गढ़ी घाट, गाय घाट, त्रिलोचन घाट, प्रह्लाद घाट, रानी घाट, राजघाट, खिड़किया घाट सरीखे तमाम घाट आज भी अपनी ऐतिहासिक विरासत और भाईचारे की गवाही देते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस में गंगा घाटों के ऐसे ठेकेदार पैदा हो गए हैं जिन्हें इस शहर की तहजीब का ही पता नहीं है। बनारस में पैदा होने या पैदा होकर मर जाने से कोई बनारसी और गंगा पुत्र कहलाने का हक हासिल नहीं कर लेता है। बनारस में पैदा होना, बनारस में आकर बस जाना या फिर बनारसी बोली सीख लेना भी बनारसी होने का पुख्ता सबूत नहीं है। असली बनारसी वो है जिसके सीने में धड़कता हुआ दिल हो, जो बनारस से बाहर जाकर बेचैन रहता हो। बनारस गुंडों, लोफरों और दंगाइयों का शहर नहीं, यह उन लोगों का शहर है जो मन, वचन और कर्म से सांप्रदायिक सद्भाव में यकीन रखते हैं। बनारस की गंगा उन सभी लोगों की है जिसके मन में इस पवित्र नदी के प्रति ईमानदार और गहरी आस्था है।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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