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इस साल यूपी को ज़्यादा बिजली की ज़रूरत

उत्तर प्रदेश की गर्मी ने जहां बिजली की खपत में इज़ाफ़ा कर दिया है तो दूसरी ओर बिजली कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ आंदोलन छेड़े हुए हैं। देखना होगा कि सरकार और कर्मचारी के बीच कैसे समन्वय होता है।
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Image courtesy : The Economic Times

अप्रैल का महीना अभी शुरु ही हुआ है, लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में गर्मी के तेवर मई वाले हैं। ऐसे में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। क्योंकि 19वें इलेक्ट्रिक पावर सर्वे के अनुसार इस साल उत्तर प्रदेश में बिजली की खपत बेहिसाब होने वाली है। सर्वे के मुताबिक साल 2022-23 में प्रदेश में 1.59 लाख मिलियन यूनिट से ज्यादा बिजली की आवश्यकता का आकलन किया गया है। जबकि खास बात ये है कि पावर कॉर्पोरेशन ने विद्युत नियामक आयोग में दाखिल साल 2022-23 के वार्षिक राजस्व आवश्यकता प्रस्ताव में 1.20 लाख मिलियन यूनिट बिजली की ज़रूरत बताई है।

एक अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष 2022-23 की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण यानी सीईए भारत सरकार की ओर से 19वां इलेक्ट्रिक पावर सर्वे किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश के साथ पूरे देश में राज्यवार बिजली की आवश्यकता का आकलन किया गया। इस वित्तीय वर्ष के लिए पूरे भारत के लिए 16 लाख 50 हजार 594 मिलियन यूनिट बिजली की आवश्यकता साल 2022-23 के लिए आकलित की गई है।

देश के पांच राज्य जहां बिजली की आवश्यकता का आकलन लाखों में होता है, उसमें इस बार उत्तर प्रदेश देश का दूसरा ऐसा राज्य है, जहां साल 2022 -23 के लिए सबसे ज्यादा 1 लाख 59 हजार 412 मिलियन यूनिट बिजली की आवश्यकता का आकलन किया गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार उत्तर प्रदेश में जो आकलन सामने आया है, वह अब तक का सबसे बड़ा आकलन है। वैसे वर्तमान में उत्तर प्रदेश में लगभग 1 लाख 15 हजार मिलियन यूनिट से लेकर 1 लाख 20 हजार मिलियन यूनिट बिजली की आवश्यकता साल में होती है। उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र को सबसे ज्यादा 2 लाख 288 मिलियन यूनिट बिजली की ज़रूरत होगी।

कई रिपोर्ट्स के मुताबिक पुराने आंकड़ों पर नज़र डालें तो हर साल यूपी में बिजली की मांग में औसतन 7 से 8 फीसदी की बढ़ोतरी होती है लेकिन इस बार 30 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है।

उत्तर प्रदेश देश का बड़ा राज्य है। 25 करोड़ जहां देश में उपभोक्ताओं की संख्या है तो वहीं उत्तर प्रदेश में ही केवल 3 करोड़ से ऊपर विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या है। ऐसे में अगर आकलन के अनुसार बिजली की आवश्यकता पड़ती है तो निश्चित ही इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू कर देना चाहिए। आंकडों को देखने से जो आकलन सामने आ रहा हैं, उससे यह बात तो सिद्ध है कि सभी बिजली कंपनियों के प्रबंधन और डिस्कॉम के अभियंता अधिकारियों को अभी से कमर कस लेना चाहिए और पूरी ईमानदारी और निष्ठा से उपभोक्ता सेवा में सुधार और अच्छी गुणवत्ता की विद्युत आपूर्ति के लिए जुट जाना चाहिए। जिससे आने वाले इस वित्तीय वर्ष में प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता की विद्युत आपूर्ति हो सके और उपभोक्ताओं को कोई समस्या ना उठानी पड़े।

अब सवाल ये है कि एक ओर जहां सीईए का सर्वे विद्युत विभाग को चेतावनी दे रहा है तो दूसरी ओर विद्युत विभाग के कर्मचारी सरकार के निजिकरण के खिलाफ प्रदर्शन करने का मन बनाए बैठे हैं। जिसका एक नमूना पिछले दिनों 28 और 29 मार्च को हुई देशव्यापी हड़ताल में दिखाई पड़ा था। ऐसे में फिलहाल कर्मचारियों की ये नाराज़गी फिलहाल कम होती नहीं दिखाई दे रही है। दूसरी ओर लखनऊ में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने ऊर्जा निगमों के शीर्ष प्रबंधन के खिलाफ बिजली अभियंताओं के आंदोलन के समर्थन का ऐलान किया है। समिति ने सरकार को ये चेतावनी भी दे दी है कि अगर आंदोलन के कारण किसी भी अभियंता, अवर अभियंता या कर्मचारी का उत्पीड़न हुआ तो बिजली निगमों के कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता बिना किसी सूचना के सीधी कार्रवाई के लिए बाध्य होंगे।

अब ऐसे में जहां एक ओर कर्मचारी और बिजली विभाग की तमाम समितियां सरकार के खिलाफ लामबंदी के लिए तैयार हैं तो ज़ाहिर है कि इतनी बड़ी बिजली की ज़रूरत की पूर्ति करना टेढ़ी खीर साबित होगा। ऐसे में देखना होगा कि सरकार की ओर से कर्मचारियों की मांगे मानी जाती हैं या फिर हमेशा की तरह काम चलाऊ योजनाएं बनाकर उनसे काम निकलवाया जाएगा।

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