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यूपी : आलू पर सरकार की एमएसपी से नाराज़ हैं किसान

राज्य के सबसे बड़े आलू उत्पादक ज़िलों में से दो आगरा और फ़िरोज़ाबाद के किसान इसलिए नाराज़ हैं कि सरकार ने वहां ख़रीद केंद्र तक स्थापित नहीं किए हैं।
potato farmers
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के आगरा के शेखूपुर गांव के किसान दीपक सिसोदिया बहुत परेशान हैं।  उन्होने इस सीजन में 100 बोरी आलू का उत्पादन किया था, लेकिन लागत से काम दाम मिलने की वजह से वह 50 बोरी ही बेच पाया क्योंकि उसे पैसे जी बहुत जरूरत थी। बाकी की बोरियां उसने पास के कोल्ड स्टोरेज में रखवा दी, लेकिन वह वहां से वे बोरियां नहीं उठा पाया है क्योंकि आलू के दाम और अधिक गिर गए हैं। 

"मैंने आलू की खेती पर लगभग 1,100 रुपये/क्विंटल खर्च किया। आलू खरीदने की सरकारी दर 650 रुपये/क्विंटल है, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का दावा सिर्फ एक मिथक है। आप कैसे मदद की उम्मीद कर सकते हैं?" सिसोदिया ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब किसान लागत पूरी नहीं कर पा रहा है तो फिर वे जीवित कैसे रहेंगे।

सिसोदिया ने कहा कि मौजूदा दरों से उनकी 800 रुपये प्रति क्विंटल की लागत भी पूरी नहीं होगी।

सिसोदिया ने आगे कहा कि, यदि मैं 10 बीघे में आलू उगाने की लागत में "कटाई, ग्रेडिंग, बैगिंग, लोडिंग और ट्रांसपोर्ट के 200 रुपये और कोल्ड स्टोर के किराये के 230 रुपये जोड़ दूं, तो मेरी कुल लागत लगभग 1,250 रुपये प्रति क्विंटल बैठेगी।"

कुछ मामलों में तो स्थानीय मंडियों में आलू को 52 किलोग्राम की बोरी को 300 रुपये में बेचा गया है। इसने उत्तर प्रदेश में सिसोदिया और उनके जैसे हजारों किसानों को अपनी फसल को स्थानीय बाजार में बेचने के बजाय कोल्ड स्टोरेज में छोड़ने पर मजबूर किया, जिससे उन्हें कोल्ड स्टोरेज से बाजार तक परिवहन लागत भी नहीं मिल पाती, लागत की तो बात ही छोड़ दें। 

यह अकेला मामला नहीं है; राज्य भर के आलू किसानों के पास बताने के लिए इसी तरह की कहानियां हैं।

मैनपुरी के किसान दिवाकर सिंह ने बताया कि 10 बीघे में आलू बोया था। खर्चा करीब तीन लाख रुपए आया। उसे कोई खरीदार नहीं मिल रहा है जो उसके द्वारा निवेश की गई लागत का भुगतान कर सके।

"अगर हमें कोई खरीदार मिल भी जाता है, तो वह 300-350 रुपये प्रति क्विंटल का दाम देता है। सरकार ने जो रेट तय किया है, उससे लागत का आधा भी नहीं निकलता है। अगर हम अपनी फसल को कोल्ड स्टोर में रखने के लिए कतार में लगते हैं, तो हम नहीं जानते कि कितना लंबा इंतजार करना पड़ेगा, यदि भाड़ा खर्च करके भी किसान कोल्ड स्टोरेज में जाते हैं ज्यादातर किसानों को यह कहते हुए लौटा देते हैं कि उनका स्टोर भर गया है। 

उत्तर प्रदेश के किसानों में आलू की गैर-लाभकारी कीमतों के मुद्दे और राज्य के सबसे बड़े आलू उत्पादक इलाकों में से दो आगरा और फिरोजाबाद में खरीद केंद्र स्थापित नहीं किए जाने से किसानों में सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा है। 

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में केवल फर्रुखाबाद, कौशांबी, उन्नाव, मैनपुरी, एटा, कासगंज और बरेली समेत सात जिलों से ही आलू खरीदने का फैसला किया गया है। राज्य में सरकार का खरीद मूल्य 650 रुपये प्रति क्विंटल है।

आगरा से किसान नेता श्याम सिंह चाहर ने कहा कि, "देश के दो प्रमुख आलू उत्पादन केंद्रों को खरीद एमिन शामिल नहीं करना किसानों के साथ अन्याय है। यही कारण है कि किसान अपनी उपज 400 से 550 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकार किसानों से माल खरीद नहीं कर रही है।" 

श्याम सिंह चाहर ने अधिकारियों पर किसानों की दुर्दशा को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि आलू किसानों के प्रति ऐसी उदासीनता वर्षों से नहीं देखी गई। उन्होंने कहा, "एक किलो आलू की कीमत केवल 4-7 रुपये है, जबकि एक किलो नींबू की कीमत 250 रुपये है। हरी मिर्च की कीमत 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम है।" आलू की बुवाई आमतौर पर नवंबर में शुरू होती है और फसल जनवरी में काटी जाती है।

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक है जो कुल आलू उत्पादन का 35 प्रतिशत अकेले ही पैदा करता। आलू रखने के लिए सबसे अधिक स्टोर आगरा (457), फिरोजाबाद (235), इटावा (129), अलीगढ़ (120), हाथरस (118) और कन्नौज (112) के आलू-बेल्ट जिलों में हैं।

किसानों का उत्पादन लागत वसूलने का संघर्ष

आलू के किसानों को भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि राज्य में उत्पादन की भरमार घई और एक साल में कीमतें घटकर आधी रह गई हैं।

आलू उत्पादकों ने बताया कि इटावा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, छिबरामऊ और औरैया में आलू 470-510 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है, जो राज्य सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मूल्य से भी कम है। किसानों ने कहा कि वे आलू की प्रति क्विंटल लागत जो लगभग 1,200-1,400 रुपये है भी वसूल नहीं कर सकते हैं जो आलू की गुणवत्ता के आधार पर तय होती है। 

फिरोजाबाद के एक किसान, किशन पाल सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम 1,100 रुपये से कम में आलू नहीं बेच सकते, क्योंकि इस दर पर हम लागत भी पूरी नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने 40 बोरी से अधिक आलू का उत्पादन किया, लेकिन सरकार द्वारा निर्धारित कम कीमत के कारण बेचना नहीं चाहते थे।" 

किसान ने आलू के लिए 1200-1400 रुपये प्रति क्विंटल की मांग करते हुए कहा कि, “आलू कम से कम 1200-1400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाना चाहिए, तभी किसान कुछ लाभ कमा पाएंगे।

किसानों की मजदूरी के साथ-साथ "उर्वरक, दवा, सिंचाई, सांकेतिक धन और स्टोर शुल्क बढ़ा गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से आलू खरीदने के बजाय, मूल्य वृद्धि पर विचार करते हुए, भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) सरकार राहत के तौर पर आलू की कीमत 650 रुपये प्रति क्विंटल तय की है जो किसानों के साथ क्रूर मजाक है।

फिरोजाबाद में आलू का थोक भाव 400-450 रुपये प्रतिक्विंटल है। किशन पाल सिंह के मुताबिक, यह कीमत केवल बड़े टेबल आलू की है। छोटे आकार के गुल्ला (बीज ग्रेड) की कीमत 200 रुपये प्रति क्विंटल है। जबकि किरी (बेबी) कंद की कोई कीमत नहीं मिल रही है.''

खर्च का अनुमान लगाते हुए किशन पाल सिंह ने कहा कि एक हेक्टेयर (एक हेक्टेयर यानि 12 बीघा) में 300 क्विंटल आलू का उत्पादन होता है। 350 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने पर उसे 1,05,000 लाख रुपये मिलेंगे। हालांकि, इसकी लागत करीब 3,60,000 रुपये बैठती है। इसलिए इसे बाजार में बेचने से किसान को 2,55,000 रुपए का नुकसान हो रहा है।

सरकार द्वारा निर्धारित दरों (650 रुपये प्रति क्विंटल) के अनुसार उन्हें 1,95,000 रुपये मिलेंगे। तब एक हेक्टेयर में आलू किसानों को 1,65,000 रुपये का नुकसान होगा।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल 6.94 लाख हेक्टेयर में आलू की बुआई की गई है। इसलिए इस बार उत्पादन 242 लाख मीट्रिक टन से अधिक होने का अनुमान है। आलू की पैदावार में सुधार होने के बावजूद किसानों को अधिक मुनाफा होने के बजाय गिरती कीमतों का नुकसान झेलना पड़ रहा है। कोल्ड स्टोरेज में जगह की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। नतीजतन, आलू सीधे मंडियों में पहुंचने लगा, जिससे कीमतों में गिरावट आई है।

इस बीच, लखनऊ में एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया कि आलू के उत्पादन में वृद्धि और पाकिस्तान और कुछ अन्य पड़ोसी देशों को आपूर्ति पर रोक से भी कीमतों में गिरावट आई है।

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह ने इसके तुरंत बाद मीडिया को बताया कि जबसे आलू क्षेत्र के किसान कीमतों में गिरावट की शिकायत करने लगे तब से "हमने कई देशों को आलू निर्यात करने की प्रक्रिया में हैं। हमने नेपाल को आलू भेजा है और आगरा से 600 क्विंटल आलू दुबई, कतर और मलेशिया भेजा गया है।" 

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने आलू इलाकों का दौरा किया और किसानों की दुर्दशा को समझने के लिए उनसे मुलाकात की।

फ्रंट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आलू किसानों की ओर ध्यान देने और समर्थन मूल्य 650 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये करने की मांग की है। फ्रंट ने सरकार से किसानों को उनकी फसल कोल्ड स्टोरेज में रखने के लिए सब्सिडी देने की भी अपील की है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

UP: Potato Farmers Angry With Govt's MSP Rate, Doesn't Even Cover Half of Input Cost

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