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यूपी: योगी के दूसरे कार्यकाल में सरकारी नौकरी चाहने वाले न रखें ज़्यादा उम्मीद

लेखपाल परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद, यूपी के सीएम के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यूपीएसएसएससी की प्रारंभिक परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से कराने की है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

उत्तर प्रदेश, नौकरियों में सरकारी भर्ती के लिए लिखे जाने वाले इम्तिहानों के पेपर लीक होने और कोर्ट केस के लिए काफी बदनाम है। योगी आदित्यनाथ के पिछले कार्यकाल (2017-22) के दौरान परीक्षा के पेपर लीक होने और देर से इम्तिहान करने को लेकर कई अदालती मामले दर्ज़ हुए थे। उनका दूसरा कार्यकाल भी, जो इस साल मार्च से शुरू हुआ है, वह 31 जुलाई को यूपी लेखपाल (राजस्व विभाग कर्मचारी) की भर्ती के लिए होने वाले इम्तिहान परीक्षा के पेपर लीक होने से अपनी उसी पुरानी प्रवृत्ति को दोहराता नज़र आ कर रहा है।

हालांकि सरकार पेपर लीक होने से इनकार कर रही है, लेकिन कई परीक्षा केंद्रों के छात्रों ने कुछ परीक्षार्थियों पर आरोप लगाया है कि परीक्षा जांचकर्ताओं ने ब्लूटूथ डिवाइस के ज़रिए उनको नक़ल कराने में मदद की है और आवेदनकर्ताओं ने फिर से परीक्षा कराने की मांग की है। एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने कानपुर, प्रयागराज और बरेली जैसे विभिन्न जिलों से पेपर सोल्व करने वाले गिरोहों को भी गिरफ्तार किया है।

चूंकि योगी सरकार लेखपाल के 8,085 पदों के लिए परीक्षा का प्रबंधन करने में विफल रही है, जिसके लिए लगभग 2.5 लाख उम्मीदवार इम्तिहान देने वाले थे, उनके सामने अब यह एक बड़ी चुनौती है कि वे यूपीएसएसएससी (उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग) प्रारंभिक परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से करा पाए। यूपीएसएसएससी (UPSSSC) परीक्षा में लगभग 37 लाख उम्मीदवार परीक्षा में बैठने जा रहे हैं, जो 15 और 16 अक्टूबर को होनी तय है।

चूंकि आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में आधा दर्जन से अधिक पेपर लीक और परीक्षाएं रद्द हो चुकी हैं, इसलिए दूसरे कार्यकाल से उम्मीदवारों को उम्मीद बहुत कम है। महत्वपूर्ण पेपरों के लीक होने और परीक्षाओं को रद्द करने की एक विस्तृत सूची नीचे दी जा रही है।

1. जुलाई 2017: यूपी सब इंस्पेक्टरों के पदों के लिए ऑनलाइन परीक्षा का प्रश्न पत्र व्हाट्सएप के ज़रिए लीक हो गया था। एसटीएफ ने इस मामले में सात लोगों को गिरफ्तार किया था। जांच के दौरान, पता चला कि गिरोह ने एक पेपर के लिए 10 लाख रुपये लिए थे, जो पेपर हल करने के लिए परीक्षा केंद्रों के कंप्यूटरों तक रिमोट एक्सेस प्रणाली स्थापित कर देते थे।

2. फरवरी 2018: यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड) जूनियर इंजीनियरों की परीक्षा का पेपर हुआ लीक; एसटीएफ ने पेपर हल करने वाले गैंग के 12 लोगों को राज्य के विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार किया था।

3. सितंबर 2018: ट्यूबवेल ऑपरेटर पदों के लिए परीक्षा का पेपर लीक हुआ; एसटीएफ ने मेरठ से 11 लोगों को किया गिरफ्तार किया था।

4. नवंबर 2020: प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा का पेपर लीक हुआ; परीक्षा रद्द कर दी गई और स्थगित कर दी गई।

5. जनवरी 2021: केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (CTET) का पेपर लीक हुआ और पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया।

6. नवंबर 202: यूपीटीईटी (उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा) का पेपर लीक हुआ और पुलिस ने लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार किया था।

इन सभी पेपरों के लीक होने के बाद, बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों ने पीएम नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका, ट्रेनों में तोड़फोड़ की और इस साल की शुरुआत में आरआरबी एनटीपीसी परीक्षा के प्रति असंतोष दिखाने के लिए लामबंद हुए थे।

योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान छह महीने के भीतर स्वतंत्र और निष्पक्ष भर्ती परीक्षा आयोजित करने और उम्मीदवारों को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन वह अभी तक अपनी बात पूरी करने में सफल नहीं हुए हैं।

आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में शुरू हुई उत्तर प्रदेश सब इंस्पेक्टर 2021 और उत्तर प्रदेश वीडीओ (ग्राम विकास अधिकारी) 2018 जैसी कुछ रिक्तियां अभी भी भरने की प्रक्रिया में हैं। पुलिस विभागों में उत्तर प्रदेश सब इंस्पेक्टर के लिए परीक्षा की अधिसूचना पिछले साल अप्रैल में जारी की गई थी, लेकिन पद अभी भी खाली पड़े हैं क्योंकि लिखित परीक्षा के दौरान धोखाधड़ी के मामले में एक अदालती केस चल रहा है, और उम्मीदवार मेडिकल परीक्षा का इंतज़ार कर रहे हैं। इससे छात्र अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं, जिससे आगामी परीक्षाओं में पारदर्शिता की उम्मीद बहुत कम नज़र आती है।

वाराणसी से एक उम्मीदवार गोपाल मौर्य ने अपनी दुर्दशा बताते हुए कहा कि यह उत्तर प्रदेश में अब चलन बन गया है। 2016 में शुरू हुई अंतिम यूपी सब इंस्पेक्टर की रिक्ति के मामले  में पेपर लीक होने से उन्हे भरने में पाँच साल से अधिक का समय लगा और केवल 2021 में भरी गई क्योंकि पेपर लीक हो गया था और मामला अदालती केस में फंस गया था। उन्होंने दावा किया कि अगर सरकार गंभीर होती तो परीक्षा प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी की जा सकती थी।

ऐसे ही एक और इम्तिहान यूपीएसएसएससी, ग्राम विकास अधिकारी (वीडीओ) के पद के लिए लेती है, जिसके लिए परीक्षा दिसंबर 2018 में होनी थी, लेकिन अंत में मार्च 2020 में आयोग ने इम्तिहान इसलिए रद्द कर दिया कि कुछ पेपर हल धोखाधड़ी में शामिल थे। विशेष जांच दल (एसआईटी) की लखनऊ शाखा ने पेपर हल करने वालों को लाखों रुपये की नकदी के साथ गिरफ्तार किया था। अब, चार साल बीत चुके हैं और उम्मीदवार अभी भी अगले इम्तिहान का इंतजार कर रहे हैं, जो इस साल नवंबर में होने वाला है।

इम्तिहान लेने वाले निकायों की दयनीय स्थिति और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों की घटती संख्या के बावजूद, राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए दीवानगी कम नहीं हुई है। यह इस तथ्य से देखा जा सकता है कि इस वर्ष, यूपीएसएसएससी के लिए 37 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था, जो राज्य में ग्रुप सी और डी पदों की भर्ती के लिए इम्तिहान लेने के लिए जिम्मेदार है; पिछले साल उम्मीदवारों की संख्या 21 लाख थी।

नौकरी की चाह रखने वाले मुकेश कुमार ने सरकारी नौकरी के आवेदकों की बढ़ती संख्या के पीछे निजी क्षेत्र की कंपनियों, विशेष रूप से गैर-तकनीकी स्नातकों की मौजूदा बेरोजगारी और नौकरी की सुरक्षा की कमी और पर्याप्त वेतन न मिलने को जिम्मेदार ठहराया है। कुमार ने आगे कहा कि छात्रों के पास साल-दर-साल इन परीक्षाओं में बैठने और अपनी कीमती जवानी  को बर्बाद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

जैसा कि सरकारी नौकरियों को नौकरी की सुरक्षा के लिए जाना जाता है, एक बार उम्मीदवार का चयन हो जाने के बाद, उनकी नौकरी सेवानिवृत्ति तक स्थायी होती है, जो आमतौर पर 60 वर्ष की आयु तक चलती है। हालांकि, राज्य में सरकारी कर्मचारियों को 50 वर्ष की आयु तक सेवानिवृत्त करने की कथित तौर पर चर्चा चल रही है, और कई सरकारी कर्मचारी अपने करियर को लेकर अनिश्चित हैं।

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के रहने वाले 40 वर्षीय राजू जायसवाल, जो होमगार्ड्स महकमे में कांस्टेबल के रूप में काम करते हैं, ने न्यूज़क्लिक को व्यंग भरे स्वर में बताया कि नौकरी की सुरक्षा और पेंशन अब दिन ब दिन खत्म होती जा रही है और योगी सरकार के तहत कुछ भी हो सकता है। “मेरे पास बी.एससी की डिग्री है; मैं केवल नौकरी की सुरक्षा और पेंशन के कारण इस सेवा में शामिल हुआ, जिसे आने वाले वर्षों में समाप्त किया जा सकता है; कौन जानता है आगे क्या होगा? जायसवाल ने कहा कि, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में एक लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं, और हमारे बच्चे इन नौकरियों का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन सरकार का इरादा स्पष्ट रूप से अब और भर्ती न करने और मौजूदा पदों को खत्म करने का लगता है।”

उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों के इच्छुक उम्मीदवारों के बीच आम सहमति है कि योगी सरकार के तहत पेपर लीक के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है और पेपर लीक और उन्हें हल करने वाले रैकेट बहुत सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को हल करने की तत्काल जरूरत है, न कि केवल पेपर लीक करने वाले गिरोहों पर नकेल कसने की।

उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में पेपर लीक करने वाले गिरोह सक्रिय हैं। उनका काम कुछ उम्मीदवारों को इम्तिहान का प्रश्न पत्र उपलब्ध कराना है, जिसके लिए वे मोटी रकम लेते हैं। पिछले कुछ सालों में पुलिस और एसआईटी ने इस धंधे में शामिल कई लोगों को गिरफ्तार किया है लेकिन उनका नेटवर्क खत्म करने में सफलता नहीं मिली है। 

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थान चलाने वाले चंदौली जिले के अरुण मिश्रा ने कहा कि सरकारी भर्ती में घूस देना पुरानी समस्या है। उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि यह पेपर हल करने वाले गैंग, पुलिस, कमीशन अधिकारियों और परीक्षा आयोजित करने वाली निजी कंपनियों के बीच सांठगांठ के कारण हो रहा है।"

मिश्रा ने दावा किया कि सरकार की ओर से गंभीरता की कमी और इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई पुख्ता तंत्र नहीं होना, पेपर लीक होने का मुख्य कारण है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें:

UP: Little Hope for Govt job Aspirants in Yogi's Second Term

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