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सोनभद्र में हजारों करोड़ का अवैध कोयला भंडार मिला, फिर भी योगी सरकार खरीद रही महंगा विदेशी कोयला!

सोनभद्र एडीएम सहदेव मिश्रा ने बताया कि कोयले का अवैध भंडारण पाया गया है और पूरे कोयले को सीज़ कर दिया गया है।
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एक तरफ केंद्र सरकार घरेलू कोयले की कमी का हवाला देते हुए सात गुना महंगा विदेशी कोयला आयात करने के लिए राज्यों को निर्देश जारी कर रही है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में लगभग एक मिलियन टन अवैध कोयले का भंडारण सामने आया है। बाज़ार में इसकी कीमत हजारों करोड़ में बताई जा रही है।

जबकि दो माह पहले व‍िदेशी कोयला खरीदने से इनकार करने वाली योगी सरकार अब केंद्र सरकार के निर्देश पर दो माह पुराने अपने ही निर्णय से पलट गई है। प्रदेश सरकार कोल इंडिया से दो माह के लिए लगभग तीन हजार रुपये टन घरेलू कोयले के बजाय 20 हजार रुपये टन से ज्यादा महंगा आयातित कोयला खरीदेगी।

इतनी बड़ी मात्रा में अवैध कोयला भंडारण का शायद यह पहला मामला सामने आया है लेकिन स्थानीय लोग प्रशासन पर लीपापोती कर मामले को दबाने और आरोपियों को बचाने का आरोप लगा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सोनभद्र के बांसी में बत्तीस बीघा भूमि पर डंप कोयले से यूपी में खपत होने वाली एक महीने से अधिक बिजली पैदा की जा सकती है।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब डंप कोयले में लगी आग से उठने वाले धुएं, धूल और जल प्रदूषण की समस्या को लेकर ग्रामीणों की शिकायत का जिला प्रशासन ने संज्ञान लिया। 22 जुलाई को उत्तर प्रदेश प्रदूषण विभाग व खनिज विभाग की संयुक्त टीम ने जांच कर बस्ती में भंडारित अवैध कोयले को सील कर दिया और एक सप्ताह के अंदर कोयला मालिकों को सामने आने के लिए पब्लिक नोटिस जारी की गई।

ग्रामीणों की मानें तो वर्तमान समय में भंडारण का काम बंद है लेकिन प्रशासन की सुस्त कार्यवाई से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

क्या है पूरा मामला?

सोनभद्र के कृष्णशिला रेलवे साइडिंग पर 2017 से कोयला भंडारण का काम बदस्तूर जारी है। बांसी के खोखरी टोली व एसआरटी में निवास करने वाले लगभग तीन हजार ग्रामीण सालों से भंडारित कोयले में लगने वाली आग के धुएं और धूल से परेशान थे। ग्राम प्रधान और ग्रामीणों की ओर से लगातार जिला प्रशासन से शिकायत दर्ज कराई जा रही थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी।

अचानक 22 जुलाई को जिला प्रशासन और पर्यावरण विभाग की टीम ने जब छापेमारी की तो पता चला जिस भूमि पर पांच सालों से विशाल मात्रा में कोयला भंडारण हो रहा है वह नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) की जमीन है। ग्रामीणों के अनुसार मेसर्स गोदावरी, मेसर्स महाकाल, मेसर्स महावीर, मेसर्स एसबीसी, मेसर्स आर के ट्रेडर्स, मेसर्स बालाजी द्वारा बिना लाइसेंस ट्रांसपोर्टेशन किया जा रहा है।

बत्तीस बीघा भूमि पर डंप कोयले की मात्रा लगभग एक मिलियन टन से अधिक आंकी जा रही है। जिला प्रशासन द्वारा एक सप्ताह का समय देने के बाद भी कोयला व्यापार से जुड़े किसी व्यापारी या कंपनी ने अबतक अवैध भण्डारण की जीम्मेवारी नहीं ली है। प्रशासन अब कोयले की नीलामी करने की तैयारी में है।

सोनभद्र एडीएम सहदेव मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 'कोयले का अवैध भंडारण पाया गया है और पूरे कोयले को सीज कर दिया गया है। अभी तक भंडारित कोयले को लेकर किसी ने दावा नहीं किया है, अब आगे नीलामी की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। प्रकरण की जानकारी सम्बंधित मंत्रालय को भेज दी गई है।'

रिजेक्ट कोयला मिलावट कर तस्करी का मामला

सोनभद्र में ककरी, बीना, कृष्णशिला, खड़िया और दुद्धीचुआ कोयला खदानें हैं। माना जा रहा है कि कोयला व्यापार से जुड़ी कम्पनियां खदानों से कोयला लाकर बांसी में डंप करती थीं और यहां भारी मात्रा में मिलावट कर बिजली घरों और मंडियों में सप्लाई किया जाता है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि कोयला व्यापार से जुड़ी कम्पनियां यहां बड़ी मात्रा में रिजेक्ट कोयला (रद्दी) मिलावट कर तस्करी करने का काम करती रही हैं। कथित तौर पर गोदावरी कम्पनी के नाम पर 2018 से रिजेक्टेड कोयला की रैक कृष्णशिला रेलवे साइडिंग पर पहुंच रही है। यदि कोयले में मिलावट कर तस्करी का मामला सच निकलता है तो अबतक देश की अर्थव्यवस्था को कई सौ करोड़ की लगी चपत का मामला सामने आ सकता है।

अवैध कोयला भंडारण पकड़े जाने की आधी रात कृष्णशिला स्टेशन के ट्रैक नम्बर आठ पर मिक्सिंग का कोल लेकर पहुंची रैक को चार दिनों तक कोई कम्पनी खाली करने नहीं पहुंची। रेलवे के आलाधिकारियों के निर्देश पर यह अनलोडिंग करवायी गयी है। कथित तौर पर चार दिन बाद गोदावरी कम्पनी के कर्मचारी जेसीबी लेकर मिक्सिंग कोल उतारने नज़र आये थे।

वहीं एडीआरएम धनबाद आशीष झा ने मीडिया को बताया कि "इसमें आदेश देने की कोई वजह नही है। स्टैर्ण्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) है कि रेल रैक को जल्द से जल्द खाली करवा कर लोडिंग व अनलोडिंग जारी रखी जाये। इसी के तहत यह कार्रवाई सुनिश्चित की गयी है। यह कोयला मंगाने वाली पार्टी पर निर्भर करता है कि वह कोयले को कहां ले जाता है। रेलवे से इसका कोई लेना देना नहीं है।"

हालांकि जिला प्रशासन की जांच में कोयले में किसी तरह की मिलावट सामने नहीं आई है।

प्रशासन की उदासीनता खड़े कर रहे गंभीर सवाल

सवाल यह उठता है कि 2017 से इतनी बड़ी मात्रा में कोयला भंडारण की ख़बर क्या कृष्णशिला रेलवे के उच्चाधिकारियों को नहीं थी? जबकि उस क्षेत्र में रेलवे विभाग के अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है। वहीं यदि अवैध कोयला भण्डारण पिछले पांच सालों से नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की भूमि पर हो रहा था क्या एनसीएल को भी इस बात की जानकारी नहीं थी?

एनसीएल के उच्चाधिकारी से हमने सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन सम्पर्क नहीं हो सका। एनसीएल में कार्यरत एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि एनसीएल के गेट से कोयला निकलने के बाद हमारी जिमेम्वारी खत्म हो जाती है। उसे कहां रखा जाता है, किसे बेचा जाता है और उसमें क्या मिलाया जाता इससे एनसीएल का कोई लेनादेना नहीं होता है।

इतनी बड़ी मात्रा में कोयला आया कहाँ से? इस कोयले की खरीददारी कब, कहाँ और किसने की? भंडारण के लिए किससे अनुमति ली गई? बांसी में भंडारित कोयला कहां ले जाया जाना था? इसका जवाब अभी तक किसी संबंधित अधिकारी या कोयला मंत्रालय द्वारा नहीं दिया गया है।

ग्रामीणों का प्रशासन पर लीपापोती का आरोप

अवैध हजारों टन कोयले से निकलने वाली कोयला मिश्रित धूल और धुआं का सामना ग्रामीण लंबे समय से कर रहे हैं। आये दिन ग्रामीण कोयला लदी ट्रकों से सड़क दुर्घटना के शिकार होते रहते हैं।

स्थानीय निवासी रामअवध बताते हैं कि "2017 से कृष्णशिला साइड पर कोयला इकट्ठा किया जा रहा है। 15 दिन से काम रुका है। कोयला में आग लगता है तो पूरे गांव में काला धुआं छा जाता है। एक दिन में हजारों गाड़ियां आती हैं, पूरी सड़क बर्बाद हो गई है, गांव के लोग आए दिन ट्रक की चपेट में आते रहते हैं।"

वे आगे कहते हैं कि "कपड़े बिना पहने ही कोयले की डस्ट से गंदे हो जाते हैं। हम लोगों ने कई बार कोयला ट्रांसपोर्ट रोका, प्रशासन द्वारा पानी का छिड़काव करने का आश्वासन देकर रोक दिया जाता लेकिन एक दो दिन तक छिड़काव होने के बाद दोबारा जस का तस माहौल बन जाता है।"

सामाजिक कार्यकर्ता अंकुश कुमार दुबे जिला प्रशासन पर लीपापोती कर मामले को दबाने का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं कि "बगैर भंडारण लाइसेंस के कोयला भण्डारण से पर्यावरण को हुई क्षति के बाबद पर्यावरणीय क्षति किसके द्वारा भरी जाएगी जबकि अभी तक कोयले के अवैध भंडारणकर्ता प्रशासन की गिरफ्त से बाहर हैं। अभी तक प्रदूषण विभाग द्वारा पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का आकलन भी नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि पूरा सरकारी अमला मामले में लीपापोती कर दोषियों को बचाना चाहता है।"

वहीं कोयला भंडारण का लाइसेंस दिखाए बिना माफिया आये दिन चोरी-छिपे कोयला उठाने की कोशिश करते रहते हैं। ग्रामीणों की सूचना पर मंगलवार रात मौके पर पहुंचकर पुलिस ने कोयला उठा रहे तीनों ट्रेलर को सीज कर मुंशी व ड्राइवरों को गिरफ्तार कर लिया है।

शक्तिनगर थाना प्रभारी नागेश कुमार सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "बिना आदेश रेलवे साइडिंग पर कोयला शिफ्ट कर रहे थे। कोयला शिफ्टिंग में लगी गाड़ियों को सीज कर दिया गया है और जो लोग इस काम में लगे थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। उच्च अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है आगे यदि आदेश होगा तो मुकदमा भी दर्ज किया जाएगा।"

लेकिन अभी भी यह सवाल बना हुआ है कि क्या यूपी पुलिस विशाल मात्रा में भंडारित कोयले की जांच कर इस भ्रष्टाचार से पर्दा उठाने में सफल हो पाएगी?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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