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यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?

प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़ रुपये की एक्सपायर दवाओं का स्टॉक पकड़ा, जो पड़े-पड़े बेकार हो गई हैं।
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कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर उत्तर प्रदेश लगातार सुर्खियों में रहा। कभी ऑक्सीजन और हॉस्पिटल बेड की कमी से मरते लोगों की दर्दभरी कहानी सुनने को मिली तो कभी गंगा में मिल रही लाशें और अस्पतालों के फर्श पर बिना इलाज के तड़पते मरीज़ों की तस्वीरें सामने आईं। लेकिन हर बार सरकार यही कहती रही की सब ठीक है। हालांकि अब प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़ रुपये की एक्सपायर दवाओं का स्टॉक पकड़ा, जो पड़े-पड़े बेकार हो गई हैं। इस दौरान मंत्री जी ये भी कहते नज़र आए कि ‘लोगों को मारने के लिए रखी हैं दवाएं?’

बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब ब्रजेश पाठक ने इस तरीके का औचक निरीक्षण किया हो। इससे पहले भी 12 मई को लखनऊ के डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी ऐसी कार्रवाई हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, निरीक्षण के दौरान अस्पताल में करीब 2 लाख 40 हजार दवाएं एक्सपायर मिली थीं। इन दवाइयों को स्वास्थ्य विभाग को वापस भी नहीं लौटाया गया था। उन दवाओं की कीमत 50 लाख रुपये से भी अधिक बताई गई थी। डिप्टी सीएम ने इस लापरवाही के लिए भी जांच करने और कार्रवाई के आदेश दिए थे। हालांकि उस जांच का क्या हुआ ये शायद ही किसी को पता हो।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक शुक्रवार, 20 मई को उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, जो प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं अचानक लखनऊ स्थित यूपी मेडिसिन सप्लाई कॉरपोरेशन के गोदाम पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्होंने दवाओं की छानबीन शुरू करने के साथ ही उनकी उपलब्धता और सप्लाई को लेकर भी रिपोर्ट देखी। इस निरीक्षण का एक वीडियो भी शेयर किया गया। इसमें ब्रजेश पाठक गोदाम के कर्मचारियों से दवाओं की एक्सपायरी डेट और उसको रखे जाने वाले तापमान को लेकर पूछताछ करने नजर आ रहे हैं। इस पूरी कार्रवाई को ब्रजेश पाठक ने कैमरे में कैद करवाया, साथ ही राज्य सरकार की वेबसाइट से डेटा निकालकर एक्सपायरी दवाओं की संख्या को वेरीफाई भी किया।

गोदाम में मिली अव्यवस्थाओं के बाद उप मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता के पैसे की बर्बादी का हिसाब जिम्मेदार अफसरों से किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ये दवाएं कॉर्पोरेशन द्वारा अस्पतालों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए थीं, लेकिन नहीं भेजी गईं। करोड़ों की दवाएं गोदाम में रखे-रखे एक्सपायर हो गईं। ये घोर लापरवाही है। वीडियो में दिख रहा है कि गोदाम में कई दवाओं पर धूल पड़ी है। जिन दवाइयों को ठंडी जगह पर रखा जाना चाहिए, उन्हें ऐसे ही बाहर छोड़ा दिया गया है। ये सब देख उप मुख्यमंत्री साहब गोदाम के कर्मचारियों को डांटते हैं। वो गोदाम के कर्मचारी से पूछते हैं कि क्या इन्हें लोगों को मारने के लिए रखा है। इस पर कर्मचारी स्टाफ की कमी की शिकायत करते हैं, लेकिन इसे नकारते हुए डिप्टी सीएम कहते हैं, “हमें उससे समस्या नहीं है। हमें जनता/मरीजों को जिंदा रहने के लिए दवाइयां देनी हैं।”

गोदाम में निरीक्षण के बाद ब्रजेश पाठक ने एक समिति का गठन कर जांच के आदेश दिए हैं। खुद इस पूरे मामले पर ट्वीट के माध्यम से जानकारी देते हुए उन्होंने लिखा, “उत्तर प्रदेश मेडिसिन सप्लाई कॉर्पोरेशन, गोदाम पहुंचकर वहां मानक अनुरूप दवाइयों की उपलब्धता व सप्लाई रिपोर्ट का औचक निरीक्षण किया। प्रथम दृष्टया 16.40 करोड़ रुपये की एक्सपायरी दवाएं पाई गईं। जिसकी जांच के लिए समिति को जांच रिपोर्ट 3 दिनों में प्रस्तुत करने संबंधी आदेश दे दिए गए हैं।”

दावों और वादों से इतर स्वास्थ्य की बदहाल व्यवस्था

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रशासनिक लापरवाही को मुख्य वजह कहा जा सकता है। न्यू हेल्थ पॉलिसी और नेशनल हेल्थ रूरल मिशन (एनएचआरएम) के बावजूद प्रदेश की स्वस्थ्य व्यवस्था बीते की सालों से जस की तस बनी हुई है। यहां सरकारी प्राइमरी स्वास्थ्य प्रणाली की हालत खस्ता है तो वहीं निजी अस्पतालों में सेवाओं की गुणवत्ता निर्धारित नहीं है और अस्पताल अपनी मनमर्ज़ी के मुताबिक मरीज़ों से वसूली कर रहे हैं।

राज्य में बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही सब ठीक होने का दावा कर रही हो, लेकिन इस दावे से इतर भी सच्चाई है। हाल ही में बलिया के चिलकहर में एक बुजुर्ग का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था, जो अपनी बीमार पत्नी को एंबुलेंस के आभाव में ठेले पर अस्पताल ले जाते दिखाई दे रहे थे। इस मामले में भी ब्रजेश पाठक की ओर से महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को जांच के आदेश दिए गए थे। हालांकि इस पर क्या कार्रवाई हुई इसकी शायद ही जानकारी किसी के पास उपलब्ध हो।

बहरहाल, ये महज़ एक घटनाभर नहीं है, बल्कि प्रदेश के 75 जिलों की सच्चाई है। मुफ्त इलाज, मुफ्त दवाई के शोर के बीच सिस्टम की हक़ीकत है। जमीन पर देखें तो आयुष्मान योजना, प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना जैसी बातें और दावे हवा हवाई हैं, लोग त्रस्त हैं और सरकार मस्त है। कहीं तकनिशियनों के आभाव में गम्भीर बीमारियों की जांच के लिए लगे बड़े-बड़े यंत्र-उपकरण धूल खा रहे हैं, तो कहीं बीना डॉक्टरों के ही अस्पताल चल रहे हैं। जाहिर है स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों की वर्तमान हालत देखकर तो यही लगता है कि 'प्रदेश में सब ठीक नहीं है।'

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