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यूपी : फ़र्रुखाबाद में रेप पीड़िता ने की आत्मदाह की कोशिश, परिजनों का पुलिस पर गंभीर आरोप

पीड़ित परिवार का आरोप है कि कई बार गुहार लगाने के बावजूद पुलिस ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की। पीड़िता द्वारा ख़ुद को आग लगाए जाने के बाद नींद से जागी यूपी पुलिस ने 11 दिन बाद मामला दर्ज किया।
farrukhabad

योगी सरकार के 'रामराज' वाले उत्तर प्रदेश में एक और नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महत्या की कोशिश की। परिजनों का आरोप है कि इस मामले में पुलिस द्वारा आरोपियों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही थी, जिसे लकेर पीड़िता सदमे में थी और अवसाद में चली गई थी। वैसे ये पहला मामला नहीं है जब योगी सरकार का शासन-प्रशासन कटघरे में हो। एक के बाद एक नाबालिगों के साथ होते दुष्कर्म और फिर पुलिस प्रशासन पर प्रताड़ना के लगते गंभीर आरोपों के बीच ये सवाल फिर उठने लगा है कि ऐसी स्थिति में आम लोगों पर पुलिस का भरोसा कितना क़ायम रह सकेगा?

ताज़ा मामला फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ कोतवाली क्षेत्र के एक गांव का है, जहां 16 साल की एक मासूम ने नाकाम पुलिसिया कार्रवाई से आहत होकर अपनी जान लेने की कोशिश की। पीड़ित परिवार का आरोप है कि आरोपी रेप पीड़िता को धमकाते थे। इसकी शिकायत परिवार ने पुलिस अधीक्षक के पास भी पहुंचाई थी लेकिन, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और आरोपी खुलेआम घूम रहे। जिसके चलते पीड़िता ने परेशान होकर ये कदम उठा लिया। दुष्कर्म पीड़िता के द्वारा खुद को आग लगाए जाने के बाद नींद से जागी यूपी पुलिस ने 11 दिन बाद मामला दर्ज किया है।

पूरा मामला क्या है?

मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक पीड़िता के पिता ने पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उनकी 16 साल बेटी के साथ एक साल पहले गांव के ही दो युवकों ने दुष्कर्म किया था। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दोनों आरोपियों को जेल भेजा था। दोनों आरोपी कोर्ट से जमानत पर छूट गए। इसके बाद एक आरोपी उनकी बेटी से जबरन शादी करने का दबाव बना रहा था, दूसरी जगह शादी न करने पर धमकी देता था।

इस पूरे मामले से तंग आकर हाल ही में 4 नवंबर को लड़की ने खुद पर डीजल डालकर आग लगा ली। उसे गंभीर हालत में लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन वहां से डॉक्टर ने सैफई के लिए रेफर कर दिया। सैफई में सही इलाज न मिलने पर उसे शहर के मसेनी स्थित प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है। फिलहाल नाबालिक रेप पीड़िता का निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है और हालत गंभीर बनी हुई है।

द क्विंट की खबर के अनुसार घरवालों ने एसपी को इस संबंध में तहरीर दी थी, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। रेप पीड़ित के पिता और मां ने एसपी से बेटी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की है फिलहाल नाबालिग से हुई इस घटना से संबंधित जानकारी पर कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है और घटना के 11 दिन बीत जाने के बाद भी आरोपी खुले आम घूम रहे हैं।

पुलिस का कहना है कि पीड़िता के द्वारा दी गई तहरीर के अनुसार कोतवाली फतेहगढ़ में मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है। लेकिन अभी भी बड़ा सवाल ये है कि अगर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, तो अपराधी अभी तक खुलेआम क्यों घूम रहे हैं? अभी तक पुलिस ने किसी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया है? क्या इसमें पुलिस पर कोई दबाव है या उनकी कोई मिली भगत?

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पीड़ित को बार-बार प्रताड़ित करने की कोशिश

प्रदेश में पिछले कुछ महीनों से लगातार रेप पीड़िताओं की आत्मदाह की खबरें सामने आ रही हैं। हाल ही में अंबेडकर नगर से ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जहां एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान होकर कथित तौर पर सुसाइड कर लिया था। इससे पहले संभल जिले में एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस द्वारा आरोपियों से समझौता करने का दबाव बनाए जाने के चलते आत्महत्या कर ली थी। इससे पहले प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की का कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की है।

वहीं जालौन बलात्कार मामले में भी पीड़िता के पिता का आरोप था कि घटना पर तुरंत कोई एक्शन लेने की बजाय पुलिस ने उन पर समझौता करने का दबाव बनाया। इससे पहले भी उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रावाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर खुद को पुलिस चौकी, विधान सभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।

 

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ध्यान रहे कि बहुचर्चित हाथरस गैंगरेप और हत्या के मामले को ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ से जोड़ने वाली योगी सरकार और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पीड़िता से गैंगरेप नहीं होने का दावा करने वाली यूपी पुलिस के रवैए पर सीबीआई चार्जशीट के बाद सवाल उठे थे। सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं लगाई थीं, जबकि पी पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।

उन्नाव के माखी कांड मामले में भी सीबीआई ने बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ बलात्कार के आरोप में एफआईआर दर्ज न करने के लिए उन्नाव की पूर्व जिलाधिकारी और तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा था। इस मामले में पुलिस ने एफआईआर लगभग 9 महीने बाद दर्ज की थी, जब पीड़िता द्वारा लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास आत्महत्या करने का प्रयास किया गया था।

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प्रदेश में अपराध का बढ़ता ग्राफ, पुलिस खुद सवालों के घेरे में

यूपी पुलिस की दबिश भी अक्सर सवालों के घेरे में रही है। इसी साल मई महीने में एक के बाद एक करीब आधा दर्जन महिलाओं की यूपी पुलिस की दबिश के दौरान कथित तौर पर मौत की खबर सामने आई थी। एक मामले में तो पुलिस उपनिरीक्षक समेत छह लोगों के खिलाफ उत्पीड़न और उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का मामला भी दर्ज किया गया था।

प्रदेश में 'बेहतर कानून व्यवस्था' का दावा करने वाली योगी सरकार के 'रामराज' में हर रोज 153 महिलाओं से हिंसा होती है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के मामलों में यूपी तीसरे नंबर पर है। साल 2021 में देशभर में करीब 37 लाख मामले दर्ज हुए, इसमें यूपी में अकेले 3 लाख 57 हजार 905 शिकायतें दर्ज हुईं। सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधे से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।

उत्तरप्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और रेप के मामलों में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण समाज में सामंती विचारधारा का होना है। अभी भी इन मामलों को शर्म और इ़ज़्ज़त से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन जब कुछ लोग आगे आकर इसकी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं, तो पुलिस का रवैया प्रभावी और संवेदनशील नहीं होता। जैसे-तैसे अगर पुलिस मामला दर्ज भी कर ले, तो चार्जशीट कम दर्ज होती है। इसके बाद अगर ये मामले दर्ज होकर कोर्ट पहुंचते हैं तो उनमें से दो तिहाई मामलों में लोग छूट जाते हैं और केवल एक तिहाई में सज़ा होती है।

कुल मिलाकर देखें तो सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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