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यूपी : राजस्व वसूली के लिए सपा नेता पर NSA लगाने से सुप्रीम कोर्ट नाराज, योगी सरकार को फटकारा

"पीठ ने कहा, ‘राजस्व बकाया की वसूली के लिए रासुका लगाने पर हम हैरान हैं। मामले के रिकॉर्ड देखने के बाद हमारा मानना है कि यह स्पष्ट रूप से दिमाग न लगाने का मामला है। इसलिए हम रासुका को रद्द करते हैं व निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए।’ पीठ, ने आगे निर्देश दिया कि बिना किसी देरी के मलिक को तुरंत जेल से रिहा करने के लिए सूचना रामपुर जिला न्यायाधीश को भेजी जाए।"
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फ़ोटो साभार: PTI

सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि राजनीतिक प्रतिशोध लगाने के एनएसए लगाना बंद करो। पर्याप्त सबूतों और आधार के बिना इसका इस्तेमाल बंद किया जाये। यह फटकार कोर्ट ने सपा नेता युसूफ मलिक पर लगी रासुका को हटाते हुए लगायी। 11 अप्रैल को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने रामपुर जेल में बंद युसूफ मलिक की तत्काल रिहाई का आदेश देते हुए उन पर लगी रासुका को हटा दिया है। दो जजों की पीठ ने योगी सरकार को नगरपालिका कर वसूली मामले में युसूफ मलिक के खिलाफ एनएसए लगाने के लिए कड़ी फटकार लगायी थी। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सपा नेता यूसुफ़ मलिक के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत लगाए गए आरोपों को ख़ारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि बिना किसी ठोस आधार के एनएसए लगाने से राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगते हैं। दो सदस्यीय पीठ ने युसूफ मलिक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘राजस्व बकाया की वसूली के लिए रासुका लगाने से हमें आश्चर्य हो रहा है। हमारा मानना है कि यह स्पष्ट रूप से दिमाग नहीं लगाने का मामला लगता है, इसलिए हम रासुका को रद्द करते हैं और योगी सरकार को निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए।’ सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार द्वारा पिछली सुनवाई पर अदालत के सुझाव के बावजूद युसूफ मलिक पर लगायी गयी रासुका नहीं हटाने पर नाराजगी भी व्यक्त की।

दो सदस्यीय पीठ ने फैसले के दौरान कहा, ‘क्या यह एनएसए का मामला है? यही कारण है कि राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप विपक्षी दलों द्वारा सरकारों पर लगाये जाते हैं। पहले तो योगी सरकार को खुद ही रासुका को हटा देना चाहिए था, मगर आगाह करने के बावजूद ऐसा न किया जाना न्यायपालिका पर सवाल उठाना है। राज्य सरकार के वकील की जिरह के दौरान जजों ने निर्णय सुनाते हुए फटकार लगायी, ‘हमने योगी सरकार को पिछली तारीखों पर आगाह किया था, लेकिन आपने इसे वापस नहीं लिया। हमने केवल रासुका को खारिज किया है और अपने आदेश में और कुछ नहीं कहा है। इस तरह के मामलों के कारण ही सभी तरह के राजनीतिक आरोप लगाए जाते हैं।’

गौरतलब है कि राजस्व बकाया की वसूली के लिए योगी सरकार द्वारा रासुका लगाये जाने के खिलाफ सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान के करीबी सहयोगी युसूफ मलिक ने जनवरी में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसमें शिकायत की गई थी कि अप्रैल 2022 में राज्य सरकार द्वारा रासुका लगाने के खिलाफ उनकी याचिका को कई बार आग्रह के बाद भी इलाहाबाद हाईकोर्ट नहीं सुन रहा है। इस मामले में 27 जनवरी को पीठ ने कहा था कि वह आमतौर पर हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई में देरी के खिलाफ रिट याचिका पर विचार नहीं करती है, लेकिन तथ्य काफी ठोस हैं इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं। 

सपा नेता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील एसडब्ल्यूए कादरी ने पीठ से अदालत के आदेश को तुरंत प्रसारित करने का अनुरोध किया ताकि मलिक को रिहा किया जा सके। पीठ ने उनकी दलील मंजूर कर ली।

सपा नेता और पूर्व सांसद आजम खान के करीबी सहयोगी मलिक ने जनवरी में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें शिकायत की गई थी कि अप्रैल 2022 में राज्य सरकार द्वारा एनएसए लगाने के खिलाफ उनकी याचिका को कई बार आग्रह के बाद भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय देख नहीं रहा है। मलिक ने कहा कि एनएसए के तहत तीन एक्सटेंशन दिए गए हैं, जबकि उच्च न्यायालय को पहले प्रतिबंधात्मक आदेश की वैधता की जांच करनी बाकी थी।

27 जनवरी को शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि वह आमतौर पर उच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई में देरी के खिलाफ एक रिट याचिका पर विचार नहीं करती है लेकिन तथ्य काफी ठोस हैं जो उन्हें नोटिस जारी करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वहीं, अपनी कार्रवाई को सही ठहराते हुए राज्य सरकार ने फरवरी में इस मामले में एक हलफनामा दायर किया और बताया कि मलिक के खिलाफ एक और आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, इसके अलावा 2022 में उनके दामाद से राजस्व बकाया की वसूली के लिए एक अतिरिक्त नगरायुक्त को धमकी देने का भी मामला है।

हालांकि, अदालत राज्य की प्रतिक्रिया से अप्रभावित रही और आश्चर्य जताया कि क्या नगर निगम के बकाए की वसूली से संबंधित मामला एनएसए के गंभीर आरोपों के तहत किसी पर मामला दर्ज करने का आधार हो सकता है, जिसे खतरनाक अपराधियों से बचाने के लिए एक निवारक कानून माना जाता है।

साभार : सबरंग 

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