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पूर्वांचल राज्य निर्माण की मांग; योगी ने साधी चुप्पी, छोटे संगठन अब भी क़ायम

पूर्वांचल सेना पूर्वांचल के 27 जिलों को मिलाकर बुद्धालैंड राज्य के निर्माण की मांग को लेकर नये सिरे से आंदोलन खड़ा कर रही है। इस आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिये ग्राम स्तर तक की समितियां बना रही है।
पूर्वांचल राज्य निर्माण की मांग

उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग काफी पुरानी है। प्रत्येक विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ यह मांग जोर पकड़ लेती है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बंटवारे के हिमायती धरना-प्रदर्शन, रैलियों के माध्यम से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं। नेतागण एक बार फिर साबित करने की कोशिशों में जुट जाते हैं कि प्रदेश का बंटवारा ही आम जनता के सभी समस्याओं का समाधान है। इस तरह राज्य में बढ़ते अपराध, साम्प्रदायिकता, बेरोजगारी, गरीबी और महिलाओं पर बढ़ते हमले जैसे मुद्दे पीछे छूटने लगते हैं।

यूपी के बंटवारे से ही जुड़ी है पूर्वांचल राज्य निर्माण की मांग। 1962 में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में पूर्वांचल में व्याप्त गरीबी के बारे में बताते हुए कहा था कि पूर्वांचल के लोग गोबर से अनाज निकालकर खाने को मजबूर हैं। यह सुन प्रधानमंत्री नेहरू भावुक हो गए और पूर्वांचल के विकास को लेकर पटेल आयोग का गठन किया। आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी पर बात इससे आगे नहीं बढ़ सकी।

पूर्वांचल सेना पूर्वांचल के 27 जिलों को मिलाकर बुद्धालैंड राज्य के निर्माण की मांग को लेकर नये सिरे से आंदोलन खड़ा कर रही है। इस आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिये ग्राम स्तर तक की समितियां बना रही है। पूर्वांचल राज्य के निर्माण का आंदोलन संगठन अपनी स्थापना वर्ष 2006 से ही कर रहा है। 1 जनवरी 2018 से बुद्धालैंड राज्य के निर्माण की बात की जा रही है। पूर्वांचल सेना के छात्र संगठन का नाम है अंबेडकर स्टूडेंट्स यूनियन फॉर राइट्स (असुर), इसका आधार क्षेत्र मुख्य रूप से गोरखपुर विश्वविद्यालय है।

सांसद रहते योगी ने भी की थी मांग

बसपा प्रमुख व तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में भारी हंगामे के बीच उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पास किया था। जिसके तहत प्रदेश को अवध प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश में बांटने की योजना थी। प्रदेश सरकार ने अग्रिम कार्रवाई के लिये प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज दिया। 19 दिसंबर 2011 को केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगते हुए राज्य सरकार को फिर यह प्रस्ताव वापस भेज दिया।

उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब तक सांसद थे उनकी राजनीति का दायरा पूरी तरह से पूर्वांचल पर फोकस था। वह भी अलग राज्य की मांग कर चुके हैं। योगी ने राम जन्मभूमि का हवाला देते हुए पुण्यांचल राज्य की मांग की थी। 6 सितंबर 2013 को संसद में अलग पुण्यांचल राज्य बनाने की मांग को लेकर कहा था “ नेपाल से सटे होने के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इसकी संवेदनशीलता और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में विकास के हर पैमाने पर पिछड़ेपन के मद्देनजर इस क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा मिले।”

हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने इस मुद्दे पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है। भाजपा के गोरखपुर जिलाध्यक्ष युद्धिष्ठिर सिंह से जब सवाल पूछा गया कि अलग पूर्वांचल राज्य को लेकर भाजपा का क्या स्टैंड है? तो उन्होंने किसी तरह की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

पूर्वांचल सेना 2006 से कर रही है मांग

पूर्वांचल राज्य की मांग करने वाले अन्य संगठनों से अलग पूर्वांचल सेना इसे जनआंदोलन बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरेन्द्र प्रताप का दावा है कि 27 जिलों में राज्य निर्माण ब्लॉक और ग्राम स्तर पर बुद्धालैंड राज्य निर्माण आंदोलन समितियों का गठन किया जा रहा है और अब तक 600 समितियों का गठन किया जा चुका है।

यह संगठन भीमा कोरेगांव की लड़ाई की याद में हर बरस 1 जनवरी को कार्यक्रम करता है। इस बरस भी गोरखपुर के नार्मल ग्राउंड से रैली निकाली गई। इससे पहले भीमा कोरेगांव की घटना की 200वीं वर्षगांठ पर 2018 में गोरखपुर के ही नार्मल ग्राउंड पर हजारों की भीड़ बुद्धालैंड राज्य के निर्माण की मांग को लेकर इक्ट्ठा हुई थी और पूरे शहर में मार्च किया। प्रदर्शन में सभी जिलों के प्रतिनिधि शामिल थे। इस दिन सभी 27 जिलों में ब्लॉक व ग्राम समितियों ने मुख्यालयों पर प्रदर्शन भी किया था।

1 जनवरी 2019 को फिर नार्मल ग्राउंड से बड़ी रैली निकाली गई और फिर गाजीपुर, देवरिया, बनारस, महाराजगंज, संतकबीरनगर आदि जिला मुख्यालयों पर स्थानीय ईकाइयों ने प्रदर्शन किये। 1 जनवरी 2020 को भी गोरखपुर में नार्मल मैदान से रैली निकाली गई।

अब पूर्वांचल सेना सभी 27 जिला मुख्यालयों पर एक साथ प्रदर्शन करने की तैयारी कर रही है। अगले चरण में लखनऊ और फिर दिल्ली में पूर्वांचल राज्य की मांग को लेकर प्रदर्शन करने की योजना पर काम कर रही है।

पूर्वी प्रदेश के इन 27 जिलों “ बहराईच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, फैजाबाद, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, प्रतापगढ़, जौनपुर, मऊ, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, कौशांबी, इलाहाबाद, संतरवीदास नगर” को अलग करके पूर्वांचल सेना बुद्धालैंड राज्य की मांग कर रही है।

बुद्धालैंड पर ज़ोर क्यों?

बुद्धालैंड नाम पर जोर देने के सवाल पर धीरेन्द्र कहते हैं “ बुद्धालैंड नाम गौतमबुद्ध से जुड़ा है। इस नाम से राज्य गठन का मकसद इस क्षेत्र के सांस्कृतिक व ऐतिहासिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के साथ विकास की राह से भटक चुके इस क्षेत्र को इसकी मुख्यधारा में वापस लाकर इसे विश्व फलक पर स्थापित करना है। ”

धीरेन्द्र दलितों से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय रहते हैं और बसपा की राजनीति के करीब हैं। दलितों, स्त्रियों, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और साम्प्रदायिक राजनीति का मुखर विरोध करते रहते हैं। सितंबर 2020 में दलित युवक पर ठाकुरों के उत्पीड़न के खिलाफ राजनीतिक सक्रियता के कारण पुलिस ने रात में अचानक धीरेन्द्र को भाई योगेन्द्र के साथ गिरफ्तार कर लिया था।

चुनाव लड़ने के सवाल पर वह कहते हैं “हमारी मांगें राज्य सरकार के दायरे से बाहर हैं। इसलिये यदि मैं चुनावों में भागीदारी करूँगा तो लोकसभा के चुनाव में ही करूँगा। ”

अलग राज्य की मांग करने वाले संगठन और नेताओं के तर्क अपनी जगह हैं। लेकिन इसे आमजनता की समस्याओं के रामबाण इलाज के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, दलित उत्पीड़न, आर्थिक असमानता और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध जैसे समस्याओं से पूरे देश की जनता परेशान है। अभी तक का अनुभव बताता है कि अलग राज्य का निर्माण इन समस्याओं का समाधान नहीं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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