यूपी एंबुलेंस कर्मियों की हड़ताल : महामारी का डर और बिना वेतन पेट पालने की समस्या
“मैं चाहता हूं कि 22 मार्च को हम ऐसे सभी लोगों को धन्यवाद अर्पित करें जो जोखिम उठाकर आवश्यक कामों में लगे हैं, इस महामारी से लड़ने में मदद कर रहे हैं। रविवार को ठीक 5 बजे हम अपने घर के दरवाजे पर खड़े होकर, बॉलकनी-खिड़कियों के सामने खड़े होकर पांच मिनट तक ताली-थाली बजा कर उन लोगों के प्रति कृतज्ञता जताएं, जो कोरोना से बचाने में हमें लगे हैं। 22 मार्च को हमारा यह प्रयास, हमारा आत्म संयम, देश हित में कर्तव्य पालन के संकल्प का एक मजबूत प्रतीक होगा।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च को देश के नाम अपने संबोधन में ये बात कही थी। 22 मार्च यानी जनता कर्फ्यू के दिन इसका पालन भी हुआ। लोगों ने स्वस्थ्यकर्मियों और जरूरी सेवाओं में लगे लोगों का ताली और थाली से जमकर अभिवादन किया लेकिन क्या वाकई इससे उनके लिए कुछ बदला?
हैरानी की बात है कि एक ओर प्रशासन इस महामारी से निपटने के लिए तमाम दावे कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर इस संकट की घड़ी में उत्तर प्रदेश के एंबुलेंस कर्मियों को शोषण के चलते हड़ताल पर जाना पड़ा।
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश में 108, 102 व ALS (एएलएस : एडवांस लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस सर्विस प्राइवेट कंपनी ‘जीवीके’ के जिम्मे है। इसका कॉन्ट्रैक्ट प्रदेश सरकार के अंतर्गत है। इसमें कुल 4700 एंबुलेंस और लगभग 19 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। मंगलवार, 31 मार्च को हजारों एंबुलेंस कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया, जिसके बाद दोपहर 12 बजे के बाद से लखनऊ, इलाहाबाद, बरेली, गोंडा समेत कई जिलों में एंबुलेंस सेवा ठप हो गई। इस बीच कर्मचारियों ने प्रदर्शन भी किया, साथ ही प्रशासन को मांगें पूरी न होने की स्थिति में काम छोड़कर अपने गांव वापस जाने की चेतावनी भी दी है।
प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि बार-बार सरकार को सूचना देने के बावजूद उन्हें दो महीने से वेतन नहीं मिला और अब जब महामारी का कहर जारी है तो उन्हें प्रशासन द्वारा एम्बुलेंसों में कोरोना से निपटने के लिए बेसिक सुरक्षा किट भी नहीं उपलब्ध करवाई जा रही है।
क्या है इनकी पांच सूत्रीय मांगें?
- 2 महीने की बकाया सैलरी तुरंत दी जाए।
- कर्मचारियों का 8 महीने का पीएफ़ जमा हो।
- एंबुलेंस में कोरोना से निपटने के लिए सुरक्षा किट जैसे मास्क, ग्लव्स, सैनेलाइजर, पीपीएफ किट हो, क्योंकि सबसे पहले मरीज़ को हम लेने जाते हैं।
- हमें भी 50 लाख का बीमा कवर मिले, जो अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों को सरकार दे रही है।
- अगर हमारी मांगे नहीं मानी जाती और हमारे साथ कोई हादसा हो जाये तो उस हाल में हमारी लाश पर तिरंगा कफ़न के रूप में हो।
एंबुलेंस कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हनुमान पांडे ने इस संबंध में कहा, “पिछले कई दिनों से लगातार सरकार के अधिकारियों को इसके बारे में सूचना दी जा रही थी लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इसी कारण कर्माचारियों का सब्र टूट गया और वे हड़ताल पर चले गए। आप समझ सकते हैं एक ओर महामारी का डर है तो दूसरी ओर बिना वेतन पेट पालने की समस्या है।”
प्रदर्शन में शामिल कर्मचारी नेता अमित मौर्य ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया, “हम सभी इस समय कठिन परिस्थिति से गुजर रहे हैं। हम अपनी जान की परवाह न करके 24 घंटे रात-दिन प्रशासन के साथ मिलकर लोगों को सेवा दे रहे हैं। हमारे लिए मास्क, ग्लब्स समेत सैनेटाइजर का भी ठीक इंतजाम नहीं है। 2 महीने से सैलरी न मिलने से हमारा परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गया है। हम मजबूर होकर हड़ताल कर रहे हैं, अगर इसके बाद भी कुछ नहीं होता तो हमें अपने घर पलायन करना होगा।”
हड़ताल पर गए चालकों और इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन का आरोप है कि जहां एक ओर उन्हें समय से वेतन नहीं मिल रहा है। वहीं उन्हें कम वेतन भी दिया जा रहा है। जबकि कई सालों के कार्यरत कर्मचारियों के वेतन में भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं की जा रही रही है। इसके साथ ही इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा संचालित करने वाली कंपनी जीवीके ईएमआरआइ की ओर से नए प्रोजेक्ट के तहत नई व्यवस्था की जा रही है। जिसके तहत 108 के वाहन कर्मियों को प्रति केस सौ रुपये और 102 को प्रति केस 60 रुपये दिए जाएंगे। हड़ताली कर्मचारियों का आरोप है कि अगर केस न मिला तो उस दिन उन्हें कुछ नहीं मिलेगा।
वहीं एंबुलेंस कर्मियों की हड़ताल को लेकर पहले स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के सचिव ने कार्रवाई करने का निर्देश दिया। लेकिन इसके बावजूद हड़ताली कर्मचारी अपनी मांगों पर डटे रहे। एंबुलेंस स्टाफ ने कहा कि कंपनी उनका शोषण कर रही है। कई लोगों को दो से तीन महीने का बकाया वेतन भी नहीं मिला है। हड़ताल कर रहे कर्मचारियों ने कहा कि उनकी मांगे जब तक पूरी नहीं हो जाती वह अनवरत हड़ताल पर रहेंगें। एंबुलेंस कर्मियों की समस्याओं को सरकार ने नही समझा तो आने वाले दिनों में इनका विरोध और बढेगा।
मामला बढ़ता देख यूपी के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रकाश ने मीडिया से बातचीत में आश्वासन दिया कि वे कर्मचारियों की सैलरी दिलवाएंगे। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े जानकारों का कहना है कि प्रदेश में कुल 4700 एंबुलेंस हैं, जिनमें से हर एंबुलेंस रोजना आठ से 10 मरीजों को अस्पताल ले जाती है। अगर ये हड़ताल नहीं रुकती है तो प्रदेश में बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
गौरतलब है कि लॉकडाउन में एंबुलेंस का संचालन न होने पर प्रदेश की स्वास्थ्य संबंधी आकस्मिक सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिसे लेकर फिलहाल प्रशासन कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगा। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस महामारी काल में देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है साथ ही हमारा विश्वगुरु बनने का सपना भी झूठा साबित हो गया है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।