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यूपी: भारी नाराज़गी के बाद सरकार का कहना है कि राशन कार्ड सरेंडर करने का ‘कोई आदेश नहीं’ दिया गया

विपक्ष का कहना है कि ऐसे समय में सत्यापन के नाम पर राशन कार्ड रद्द किये जा रहे हैं जब महामारी का समय अधिकांश लोगों के लिए काफी मुश्किलों भरे रहे हैं।
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चित्र साभार: न्यूज़18

लखनऊ: हाशिये पर मौजूद वर्गों, विपक्षी दलों, नागरिक समाज और कई स्वतंत्र संगठनों से कड़ी प्रतिक्रिया सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने रविवार को स्पष्ट किया है कि राज्य में राशन कार्डों को सरेंडर करने या निरस्त करने को लेकर “कोई नया आदेश” जारी नहीं किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि राज्य में सरकार या संबंधित विभागों के द्वारा इस संबंध में वसूली के कोई आदेश जारी नहीं किये गए हैं।

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति आयुक्त, सोरभ बाबू ने मीडिया रिपोर्टो पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्हें “झूठा और भ्रामक” करार दिया और कहा है कि राशन कार्ड सत्यापन का काम एक नियमित कामकाजी प्रकिया है जो समय-समय पर चलती रहती है। राशन कार्डों को सरेंडर करने और नई पात्रता शर्तों के संबंध में चल रही खबरों को उन्होंने “आधारहीन” बताया है।

बाबू ने इस बारे में और भी स्पष्ट करते हुए कहा कि घरेलू राशनकार्ड की पात्रता/अपात्रता मापदंड को जीओ (सरकारी आदेश) दिनांक 7 अक्टूबर, 2014 के तहत तय किया गया था और उसके बाद से इसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि सरकारी योजना के तहत पक्का मकान, बिजली कनेक्शन, हथियार लाइसेंस होने, साइकिल, मुर्गी/गाय पालन फार्म का मालिक होने के आधार पर किसी भी कार्ड धारक को अपात्र घोषित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, “इसी प्रकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 एवं अन्य मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक, अपात्र कार्ड धारकों से वसूली के कोई प्रावधान को निर्दिष्ट नहीं किया गया है और वसूली के संबंध में सरकार के स्तर पर या खाद्य आयुक्त के कार्यालय से कोई निर्देश जारी नहीं किये गए हैं।

उनके मुताबिक, विभाग की ओर से हमेशा लाभार्थियों को उनकी पात्रता के आधार पर नए राशन कार्ड जारी किये जाते रहे हैं और 1 अप्रैल 2020 से अब तक कुल 29.53 लाख नए राशन कार्ड जारी किये जा चुके हैं।

आयुक्त ने बताया कि समय-समय पर पात्रता मानदंडों के आधार पर राशन कार्डधारकों के सत्यापन के लिए निर्देश जारी किये जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में 2014 के बाद से मानदंडों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

उन्होंने आगे कहा, “राशन कार्ड धारकों के सत्यापन का काम समय समय पर मानदंडों के आधार पर पात्रता की जांच हेतु किया जाता है। किसी व्यक्ति को यदि महसूस होता है कि वह अब इसके लिए अपात्र हो गया है तो वह स्वंय भी कार्ड को सरेंडर कर सकता है। ऐसे रद्द हो चुके कार्डों के लिए, राशन कार्ड की मांग करने वाले पात्र लोगों के लिए नए राशनकार्ड जारी किये जा रहे हैं।”

हालांकि, राज्य भर के ग्रामीण क्षेत्रों में “अपात्र” कार्ड धारकों से राशन कार्ड सरेंडर कराए जाने को लेकर भारी आक्रोश है। जिला प्रशासन की ओर से आदेश जारी किये गये थे कि जो लोग अपात्र हैं वे अपने-अपने राशन कार्ड सरेंडर कर दें। यदि उन्होंने आदेश का पालन नहीं किया तो प्रशासन ऐसे अपात्र लोगों के पास वसूली के नोटिस भेजने जा रहा है जिन्होंने 20 मई तक अपने राशन कार्ड जमा नहीं कर दिए हैं और उनके खिलाफ एनएफएस अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अंतर्गत क़ानूनी कार्यवाही शुरू की जा सकती है। प्रशासन ने कहा था कि दिशानिर्देशों के मुताबिक वसूली की जायेगी।

जिसका नतीजा यह हुआ कि समूचे राज्य भर में अपने-अपने राशन कार्डों को सरेंडर कराने के लिए मानो आपस में होड़ मच गई। सिर्फ अप्रैल में 43,000 लोगों ने अपने राशन कार्ड सरेंडर कर दिए थे। मई में, ये आंकड़े पिछले महीने के आंकड़ों को पार कर जाने वाले हैं।

जिला आपूर्ति अधिकारी लखनऊ के अनुसार, 17 मई तक राज्य की राजधानी में 1,520 से अधिक राशन कार्ड धारकों ने क़ानूनी कार्यवाही के डर से अपने कार्ड सरेंडर कर दिए थे।

जिला आपूर्ति अधिकारी (डीएसओ), लखनऊ, सुनील कुमार सिंह ने मीडियाकर्मियों को बताया है कि “लखनऊ में अभी तक करीब 1,520 लोगों ने अपने कार्ड सरेंडर कर दिए हैं और यह संख्या अभी और बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, सत्यापन का काम अभी जारी है और राशन कार्ड धारकों की पात्रता के सत्यापन के लिए उनकी जांच की जा रही है।”

लखनऊ जिला आपूर्ति कार्यालय के रिकॉर्ड के मुताबिक, वर्तमान में राज्य की राजधानी में कुल 7,86,218 राशन कार्ड हैं, जो तकरीबन 31,18,110 इकाइयों (लोगों को) कवर करते हैं। कुल राशन कार्ड धारकों में से लगभग 50,112 अंत्योदय कार्डधारक हैं (जो लगभग 1,51,317 लोगों को कवर करते हैं) और 7,36,106 प्राथमिकता वाले परिवार (पीएचएच) कार्ड धारक हैं, जिसके दायरे में (करीब 6,34,901 लोग) आते हैं।

अब, ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब सरकार द्वारा राज्य में राशन कार्डों को सरेंडर करने या निरस्त करने के संबंध में कोई नए आदेश जारी ही नहीं किये गये थे तो विभिन्न जिला प्रशासनों के द्वारा अपात्र व्यक्तियों से राशन कार्डों को सरेंडर करने और सरेंडर न करने की सूरत में वसूली करने के आदेश कैसे जारी कर दिए गये।

प्रशासन की ओर से कई जिलों में जगह-जगह पर मुनादी (सार्वजनिक घोषणा) की गई थी। यह मुद्दा मीडिया में भी खूब सुर्ख़ियों में रहा। जिसके परिणाम स्वरूप, लोगों ने अपने-अपने राशन कार्डों को रद्द करने के लिए आपूर्ति कार्यालयों में कतार लगाना शुरू कर दिया। इसके बाद जाकर, सरकार को इस बारे में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा।

सोनभद्र और बुंदेलखंड आधारित एक खाद्य अधिकार कार्यकर्त्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, यदि सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया था, तो वह अपने उन अधिकारियों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाई क्यों नहीं करती, जिन्होंने 20 मई तक राशन कार्ड सरेंडर करने का आदेश दिया वरना क़ानूनी कार्यवाही का सामना करने के लिए तैयार रहने के नोटिस जारी कर सरकार की छवि को खराब करने की कोशिश की है?

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता, अब्दुल हफीज गांधी ने इस बारे में कहा, “यहां पर कोई भी इस बात से असहमत नहीं है कि संपन्न परिवारों को राशन नहीं मिलना चाहिए। लेकिन सरकार कोविड महामारी के मद्देनजर सभी लोगों को राशन मुहैया कराने के अपने वादे से पीछे नहीं हट सकती है। सरकार ने सभी जरुरतमंदों को राशन उपलब्ध कराने का वादा किया था। मेरे विचार में सरकार राशन कार्ड के सत्यापन की आड़ में वादाखिलाफी कर रही है।”

उनका कहना था कि सपा की मांग है कि चूंकि पिछले कुछ साल अधिकांश परिवारों के लिए काफी मुश्किल भरे रहे हैं, इसलिए राशन कार्ड को निरस्त नहीं किया जाना चाहिए। गांधी ने कहा, “आय और अन्य संसाधन पहले से काफी कम रह गये हैं। कई युवाओं को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है और नई नौकरी पाने की संभावना काफी कम है। जरुरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे हालात में, सत्यापन के नाम पर राशन कार्ड को रद्द करना नासमझी भरा कदम है। सरकार के लिए लोगों और उनकी जरूरतों की पूर्ति करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

UP: After Backlash, Govt Says 'No Order’ for Surrender, Cancellation of Ration Cards

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