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यूपी निकाय चुनाव: ओबीसी आरक्षण रद्द होने से बीजेपी पर गहराया संकट

बीजेपी को भी लगता है कि अगर बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव हुए तो ओबीसी वोट बैंक उसके हाथों से निकल जायेगा, जो लोकसभा चुनाव 2024 में भी पार्टी का बड़ा नुक़सान कर सकता है।
UP civic polls
फ़ोटो साभार: बेबाक मंच

हाईकोर्ट के बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव कराने के आदेश के बाद से "सामाजिक न्याय" के मुद्दे पर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विपक्ष के निशाने पर है। बीजेपी को भी लगता है कि अगर बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव हुए तो ओबीसी वोट बैंक उसके हाथों से निकल जायेगा, जो लोकसभा चुनाव 2024 में भी पार्टी का बड़ा नुक़सान कर सकता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है और जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि बगैर "ट्रिपल टेस्ट" की औपचारिकता पूरी किए ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। अदालत ने सरकार की दलीलों को मानने से इनकार कर दिया।

इस फ़ैसले ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ा झटका दिया है और बीजेपी के लिए एक राजनीतिक संकट भी पैदा कर दिया है।

विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं। हालाँकि बीजेपी सरकार का कहना है फ़ैसले के पूरा अध्ययन करने के बाद, आवश्यकता पड़ने पर, हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

पिछड़ों की पार्टी कहीं जाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) ने बीजेपी को आरक्षण विरोधी बताते हुए कहा कि अब बीजेपी के ओबीसी नेता ख़ामोश क्यूँ हैं? पार्टी  विधायक राजपाल कश्यप ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा पिछड़ों को आरक्षण देने काम सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने किया था और बचाने की लड़ाई उनके पुत्र अखिलेश लड़ेंगे। कश्यप कहते हैं सपा ने हमेशा कहा कि बीजेपी पिछड़ों और उनके आरक्षण की विरोधी है।

सपा विधायक आगे कहते हैं कि आवश्कता पड़ने पर आरक्षण की लड़ाई को सदनों के पटल से सड़क तक लड़ा जायेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी नहीं चाहती कि ग़रीब पिछड़ों के बच्चे पढ़ लिखकर आगे बढ़ें, अच्छी नौकरियाँ करें या उनकी सत्ता में भागीदारी हो। यही कारण है कि एक षड़यंत्र के साथ आरक्षण को ख़त्म किया जा रहा है। 

राजनीति के जानकार मानते हैं अगर बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव हुआ तो बीजेपी को लोकसभा चुनावों में इसकी बड़ी क़ीमत चुकाना पड़ सकती है। बीजेपी ने 30 साल मेहनत कर कर के जो ओबीसी वोट सपा से खींचा है, वह कोई और नया विकल्प तलाश कर सकता है।

माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में क़रीब 45 प्रतिशत ओबीसी आबदी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वयं बार-बार खुद को ओबीसी बताते हैं। इसी का परिणाम है कि बीजेपी को राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में 2014 और 2019 आम चुनावों में भारी सफलता मिली।

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में 2017 और 2022 में बीजेपी की बनने वाली सरकारों में भी ओबीसी वोट बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यही कारण है कि चुनाव हारने के बावजूद भी ओबीसी नेता केशव मौर्य को दोबारा उप-मुख्यमंत्री बनाया गया।

ओबीसी वोट खोने का भय बीजेपी में साफ़ देखा जा रहा है। क्योंकि बीजेपी को विपक्ष के साथ-साथ अपने गठबंधन से भी चुनौती मिल रही है। बीजेपी की घटक पार्टी अपना दल (सोनेलाल) ने भी कहा है बिना आरक्षण के निकाय कराना उचित नहीं होगा।

बीजेपी सरकार ने भी फौरन संकेत दिए कि वह ओबीसी कमीशन का गठन कर ओबीसी आरक्षण सुनिश्चित करेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा निकाय चुनाव ओबीसी को आरक्षण देने के बाद ही होंगे।

सरकार के पक्ष में उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के ओबीसी चेहरा केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि "मेरा वादा है आरक्षण है और रहेगा,"। उन्होंने कहा कि आरक्षण पर कोई समझौता नहीं किया जायेगा। हालाँकि उनके बयान पर पलट वार करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी "ड्रामा" कर रही है।

बीजेपी पर हमला करने में इस बार बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) भी पीछे नहीं रही है। बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि सरकार को "ट्रिपल टेस्ट" समय रहते कराना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। मायावती ने कहा कि ओबीसी समुदाय इसकी सज़ा बीजेपी को देगा। 

बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी के नेताओं ने फ़ैसले के तुरंत बाद बैठकें शुरू कर दी हैं कि क्षति नियंत्रण कैसे किया जाये। क्योकि पार्टी प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है। अदालत के फ़ैसले के बाद "आरक्षण" का ऐसा मुद्दा विपक्ष के हाथ लग गया है जो बीजेपी को 2024 में सत्ता से बाहर कर सकता है।

पार्टी के नेता कहते हैं कि बीजेपी का एक "प्लान बी" भी है। अगर बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव होता है, तो जो अरक्षित सीट थीं, उन पर बीजेपी की ओर से ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिये जायें। लेकिन इस में ख़तरा यह है कि अगर इन सीट में कोई ग़ैर-ओबीसी जीत जाता है तो ओबीसी उम्मीदवार और उसके समर्थक बीजेपी से नाराज़ हो जाएंगे।

इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि अगर निकाय चुनावों में देरी हुई तो चुनाव अप्रैल-मई से पहले संभव नहीं होंगे क्योकि फरवरी-मार्च में बोर्ड परीक्षा होगी। देर से निकाय चुनाव होने का अर्थ इसके नतीजों का सीधा असर लोकसभा पर पड़ेगा।

आपको बता दें कि दिलचस्प बात यह है कि जिस समय बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव का आदेश हुआ है उस समय नगर विकास मंत्रालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी पूर्व आईएएस अरविंद शर्मा के पास है। 

बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की मृत्यु के बाद से कोई बड़ा ओबीसी नेता बीजेपी में नहीं है। केशव प्रसाद मौर्य इस समय बीजेपी के ओबीसी चेहरा हैं, लेकिन वह स्वयं अपनी सीट 2022 विधानसभा चुनाव में नहीं बचा सके थे।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी जाट हैं। लेकिन पार्टी जाट बाहुल्य खतौली विधानसभा सीट पर हाल में ही हुए विधानसभा उप चुनाव हार गई थी।

उधर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का कहाना है कि सरकारी अधिकारियों की लापरवाही की वजह से आरक्षण रद्द करने का फ़ैसला आया है। राजभर के कहा है कि नगर निकाय चुनाव में हाई कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण को रद्द किए जाने को उनकी पार्टी  सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।

पार्टी के महासचिव अरुण राजभर ने सपा को निशाना बनाते हुए कहा कि अखिलेश यादव पिछड़ा वर्ग मतलब "यादव" को समझते हैं। बाकी अतिपिछड़े वर्गों को सपा कुछ नहीं समझती है। सपा ने अपने 4 बार के शासनकाल में अतिपिछड़ों का हिस्सा लूटने का काम किया है।

कांग्रेस की महासचिव और प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी बीजेपी पर ओबीसी आरक्षण को लेकर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जब भी "सामाजिक न्याय" व "आरक्षण" के समर्थन में पक्ष रखने की बात आती है, बीजेपी का आरक्षण विरोधी चेहरा सामने आ जाता है। उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों में आरक्षण को लेकर भाजपा सरकार के गड़बड़ रवैए से ओबीसी वर्ग का महत्वपूर्ण "संवैधानिक" अधिकार खत्म होने की कगार पर है। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार आरक्षण खत्म करने की राह पर ही चल रही है।

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