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यूपी चुनावः बनारस के सियासी अखाड़े में दिग्गजों पर भारी पड़ीं ममता, भाजपा को दे गईं गहरी चोट

बंगाली समाज के लोग बनारस में पीढ़ियों से बंग संस्कृति को जीवंत बनाए हुए हैं। पिछले कई चुनावों से वह बीजेपी को वोट देते आए हैं। इस बार ममता बनर्जी का अपमान और उनको यह कहना कि वो हिन्दू नहीं हैं, अंदर तक खल गया है।
mamta banerjee

बनारस के सियासी अखाड़े में ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह से कड़ी शिकस्त दी है, उसे देश के सियासी गलियारों में हमेशा याद रखा जाएगा। ममता तृणमूल कांग्रेस दल की संस्थापक और पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। सपा गठबंधन के प्रचार के लिए वह 2 मार्च 2022 को बनारस आई थीं। योगी आदित्यनाथ की पार्टी हिन्दू युवा वाहिनी (हियुवा) व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं ने ममता बनर्जी का न सिर्फ अपमान किया, बल्कि कई जगह उन्हें काले झंडे भी दिखाए और "गो बैक" के नारे लगाए। यह घटना उस समय हुई जब वह गंगा आरती देखने दशाश्वमेध घाट जा रही थीं।

हियुवा और भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि विरोध होने पर ममता बनर्जी बनारस से भाग खड़ी होंगी, लेकिन हुआ उल्टा। वह अड़ गईं और डटी रहीं। सड़क पर उतर गईं। विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए ममता बनर्जी ने कहा, "मैं डरने वाली नहीं। मैं लड़ाकू हूं। मैं समझ गई हूं कि भाजपा हार रही है। वह खीझ दिखा रही है। मैं भाजपा से पूछना चाहती हूं कि क्या मैं बनारस में नहीं आ सकती हूं? क्या मैं संकटमोचन, बाबा विश्वनाथ दरबार, बाबा काल भैरव, आजमगढ़, अयोध्या, गोरखपुर, मथुरा और लखीमपुर नहीं आ सकती? " खास बात यह रही कि ममता ने गंगा आरती देखी, लेकिन आम आदमी की तरह। घाट की सीढ़ियों पर बैठकर यह संदेश देने की कोशिश कि गंगा के किनारे उन्हें न लेजर शो का चकाचौध पसंद है और न कोई मेगा इवेंट।

बनारस शहर में बंग समाज के करीब 44 हजार वोटर हैं। इनकी तादाद कैंट में ज्यादा हैं। पांडेय हवेली, सोनारपुरा, देवनाथपुरा, केदारघाट समेत गंगा के तटवर्ती इलाकों में इस समाज के लोग रहते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हुई बदसलूकी पर बनारस में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है। बनारस में बंग समाज पहले भाजपा के पक्ष में खड़ा रहता था, लेकिन ममता के साथ हुई घटना के बाद वह डबल इंजन की सरकार के खिलाफ तनकर खड़ा हो गया है। हालांकि इस समाज ने कोई कड़ा रिएक्शन तो नहीं दिया है, लेकिन अंदरखाने में लोग खासे नाराज हैं।

ममता से बदसलूकी अनुचित

दरअसल, बनारस का बंग समाज ऊपर से अलग दिखता है, लेकिन भीतर से ऐसा नहीं है। बनारस के फोटो जर्नलिस्ट सौरभ बनर्जी कहते हैं, "काशी धर्म की नगरी है। ममता के साथ बदसलूकी और अनुचित व्यवहार को भला कौन जायज ठहराएगा? अगर चुनाव से पहले बंग महिला के साथ ऐसा हो सकता है तो चुनाव बीतने के बाद बनारस के बंग समाज के साथ क्या होगा? वास्तविक हिंसा के शुरुआत की तैयारी है जो लोकतंत्र के लिए घातक है। बनारस का बंग समाज पहले कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थक था और उसे झूमकर वोट देता था। बाद में वह भाजपा के पाले में ख़ड़ा हो गया। अबकी योगी की पार्टी हियुवा ने भाजपा के साथ मिलकर जो किया है उसके बाद बंग समाज नए सिरे से सियासी ठौर तलाशने के लिए मजबूर हो गया है।"

ममता बनर्जी के साथ हुई बदसलूकी के बाद पूर्वांचल की सियासत में क्या असर पड़ेगा? बंग समाज अब किस तरफ जाएगा और भविष्य में इसका क्या असर होगा? इस पर बनारस के जाने-माने पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं, "काशी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां सामाजिकता है, लेकिन अब लगता है कि राजनीतिक परिवेश में हमने अपने संस्कार और संस्कृति की तिलांजली दे दी है। चुनाव तो बीत जाएगा, लेकिन यह बदनुमा दाग हमेशा के लिए रह जाएगा। काशी में बंग समाज की उपस्थिति दो हजार साल पुरानी है। इस शहर की संस्कृति और संस्कृत को विकसित करने में चैतन्य महाप्रमुस, मधुसूदन सरस्वती सरीखे विद्वानों की अहम भूमिका निभाई है। मधुसूदन कोई मामूली शख्स नहीं थे। उनके शिष्यों में तुलसी और बल्लभाचार्य भी थे। उन्हें अगर उन्हें कोई पंडित न मानकर बंगाली माने तो यह दुर्भाग्य है। भाजपा के लोगों ने बंगाल में चुनाव के दौरान ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए "जय श्रीराम" का स्लोगन दिया था, लेकिन नतीजा क्या निकला? वहां भाजपा को तगड़ी पटखनी खानी पड़ी।"

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के राज्य सचिव अजय मुखर्जी कहते हैं, "ममता के साथ बनारस में जो कुछ घटित हुआ वह बंगाल चुनाव की खिसियाहट थी। बंगाल में जातीय समीकरण नहीं है और यहां समूची राजनीति धर्म और जाति के इर्द-गिर्द घूमती है। बंगाल की रवायत अलग है और बनारस का रिवाज अलग है। बनारस पहले कम्युनिस्ट बेल्ट था। बंग समाज से जुड़े भाजपा नेता श्यामदेव राय चौधरी भी सीपीई के मेंबर थे। वर्चस्व को लेकर रुस्तम सैटिंग से उनका मुकाबला रहता था। श्यामदेव को विधायकी का टिकट नहीं मिला तो सीपीआई छोड़कर वह जनसंघ में शामिल हो गए। बनारस के बंग समाज का सेंटिमेंट भी ममता के साथ जुड़ा है। जहां तक असर की बात है तो सिर्फ बनारस ही नहीं, पूरे देश के चुनाव में इसका खासा प्रभाव पड़ेगा।"

ममता बनर्जी ने क्या कहा?

बनारस में तीन मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके तमाम सिपहसलार आए तो प्रियंका गांधी भी। लेकिन समाजवादी पार्टी की ऐढ़े में आयोजित सभा में ममता बनर्जी ने जिस अंदाज में दहाड़ लगाई उससे तमाम दिग्गज पसीने-पसीने हो गए। ममता बनर्जी ने दो मार्च की शाम हुई घटना का उल्लेख भी भीड़ के सामने किया और कहा, ''मैं घाट से लौट रही थी तब मेरी गाड़ी पर डंडा मारा गया। मेरी गाड़ी को घेर लिया गया। उससे पहले मुझे काले झंडे दिखाए गए, लेकिन जब मैं बाहर निकलकर खड़ी हो गई और कहा कि मैं डरती नहीं हूं, लड़ाकू हूं। मैं समझ गई कि भाजपा यहां चुनाव हार चुकी है। यूपी में बहन, बेटियों का सम्मान नहीं है। भाजपा नेताओं को बहनों की बेइज्जती करने आता है। योगी सरकार ने एंटी रोमियो स्क्वॉयड बनाकर बहनों की बेइज्जती की है। आप दिखाते हैं योगी संत हैं, लेकिन संत कौन होता है? संत वह होता है जिसकी इज्जत होती है। आप संत का अपमान कर रहे हैं। क्या काम किया आपने? नाम का योगी है, लेकिन काम से भोगी हैं। यह योगी केवल भोग करता है। उसको वोट देने से कुछ नहीं होगा। भाजपा मंदिर और हिंदू-मुस्लिम की बात करती है। मुझे जय श्री राम के नारे से आपत्ति नहीं है। आप सीता माता का नाम नहीं ले सकते तो जय सियाराम बोलो। हम तो मां दुर्गा का पूजा करते हैं, जिसकी पूजा रामजी ने की। मैं मंदिर में मत्था टेकती हूं तो मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर भी जाती हूं।"

ममता बनर्जी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी भाजपा पर निशाना साधा और कहा, "यूक्रेन में युद्ध चल रहा है और प्रधानमंत्री मोदी जी यहां मीटिंग कर रहे हैं। क्या जरूरी है? अगर आपके पुतिन के साथ इतने अच्छे संबंध हैं तो आपको तो पहले से ही पता था कि युद्ध होने वाला है तब ही आप भारतीय छात्रों को क्यों नहीं लेकर आए? भाजपा सरकार ने यहां के लोगों के शवों को गंगा में फेंकने पर विवश किया तो बंगाल में हमारी सरकार ने उन्हें निकालकर दाह संस्कार कराया। चुनाव आने पर भाजपा मंदिर की बात करती है। हिंदू-मुस्लिम करती है। भाजपा ने मेरे साथ जो किया यह उनकी चुनाव में हार को दर्शाता है। मैंने सुना है कि वह (योगी) कहता है कि जिसका नमक खाया है उसको वोट दो। वह चुनाव के बाद कुछ नहीं देगा। सोचने की बात है कि यूपी का लड़का नौकरी करने बाहर क्यों जाता है? ऐसी सरकार को बदल दो, योगी सरकार को पलट दो। अखिलेश ने काम किया है आगे भी करेगा।'' जाते-जाते ममता ने दोहराया-अब तो यूपी में खेला होबे। साथ ही नया नारा भी गढ़ दिया-''यूपी माता की जय।''

असर दूर तलक जाएगा

वरिष्ठ पत्रकार और चुनाव विश्लेषक एके लारी कहते हैं, ''बनारस में सपा की सभा में ममता बनर्जी ने सत्तारूढ़ दल को जिस तरह से आड़े हाथ लिया उसका असर दूर तक जाएगा। बनारस आतिथ्य को सम्मान देने वाला शहर है। इस शहर का मिजाज ऐसा नहीं है कि किसी अतिथि का अपमान करते हुए झंडा-डंडा लेकर सड़क पर उतर जाएं। बनारस पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र जरूर है, लेकिन यह किसी की निजी जागीर नहीं है। पूजा-अर्चना करने जा रहे किसी अतिथि का यहां कोई अपमान नहीं करता है। अगर कोई ऐसा करता है तो यह जरूर समझा जाएगा कि उसके नेपथ्य में भूमिका किसकी है? ममता ने अपने विरोध को महिलाओं के अपमान से जोड़कर भाजपा को तगड़ी चुनौती दे डाली है। सपा गठबंधन ने भी ममता के अपमान को बड़ा मुद्दा बना दिया है। देखने की बात यह है कि भाजपा इसका काउंटर कैसे करती है? ''

कितना असर दिखाएंगी ममता?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छह चरण का मतदान खत्म हो चुका है। सातवें और अंतिम चरण के लिए सात मार्च को मतदान होने वाला है। इसके लिए सभी दलों के दिग्गजों ने वाराणसी को ही केंद्र बनाया है। काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव सियासी अखाड़े में ममता बनर्जी के तेवर को अलग अंदाज में बयां करते हैं। वह कहते हैं, ''रिंग रोड के किनारे ऐढ़े गांव में तीन मार्च को सपा गठबंधन की रैली में ममता ने जिस तरह से हुंकार भरी और उन्हें जनता का जो ऐतिहासिक समर्थन मिला वह दूसरे दलों को बेचैन करने के लिए काफी है। काशी में ममता ने यह साफ-साफ यह संकेत दे दिया कि वह अखिलेश से मित्रता बढ़ाकर वह आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को चुनौती देने के लिए फिर बनारस आने वाली हैं।''

प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, ''बंगाली समाज के लोग बनारस में पीढ़ियों से बंग संस्कृति को जीवंत बनाए हुए हैं। पिछले कई चुनावों से वह बीजेपी को वोट देते आए हैं। इस बार ममता बनर्जी का अपमान और उनको यह कहना कि वो हिन्दू नहीं हैं, अंदर तक खल गया है। हिन्दूवाद का जयकारा लगाने वालों को काशी का इतिहास नहीं मालूम है। बंगीय समाज ने बनारस के धार्मिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में चार सौ साल तक बड़ा योगदान दिया है। बंगाल की रानी भवानी ने काशी में तमाम मठ-मंदिरों का निर्माण कराया है। यहां महिला शिक्षा की नींव डालने वाला कोई और नहीं, पश्चिम बंगाल का बंगीय समाज रहा है। वहां के राज-रजवाड़ों ने बनारस में कई शिक्षण संस्थाओं का निर्माण कराया जो आज भी मौजूद हैं। जिसमें बंगाली टोला इंटर कालेज, एग्लो बंगाली इंटर कालेज, जय नारायण इंटर कालेज, विपिन बिहारी चक्रवर्ती कन्या विद्यालय, दुर्गाचरण बालिका इंटर कालेज, कन्या कुमारी बालिका विद्यालय आज भी शिक्षा के उन्नयन के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं। इनका संचालन बंगाली समाज ही कर रहा है।''

बंगीय समाज के वोटरों की बड़ी भूमिका का जिक्र करते हुए प्रदीप कहते हैं, ''भाजपा नेता श्यामदेव राय चौधरी को जिताने में इसी समाज के वोटरों की अहम भूमिका रही है। भाजपा नेत्री और पूर्व विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव खुद भी बंगाली समाज से आती हैं। इनके पुत्र सौरभ श्रीवास्तव को बंग समाज खुलकर समर्थन देता रहा है, लेकिन नए परिदृश्य में अब इस समाज के वोटर भी यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि भाजपा ने अपने हिन्दुत्व के बाड़े से बंग समाज के लोगों को बाहर कर दिया है।''

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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