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अमेरिका के ईरान जाने के रास्ते में कंटीली झाड़ियां 

बाइडेन प्रशासन को अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि ईरान के साथ आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में निर्बाध संभावनाएं हैं।
अमेरिका के ईरान जाने के रास्ते में कंटीली झाड़ियां 
तेहरान में 21 जून 2021 को आयोजित  अपने पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते ईरान के नए निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी

ईरान के राष्ट्रपति-चुनाव के बारे में अमेरिकी टिप्पणियों को पढ़ना पीड़ादायी है। दि न्यूयार्क टाइम्स ने सोमवार को एक परिचय प्रकाशित किया, “इब्राहिम रईसी, ईरान के निर्वाचित “अतिरूढ़िवादी” राष्ट्रपति, ने कहा कि वे राष्ट्रपति जो बाइडेन से नहीं मिलेंगे।  तेहरान का बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम किसी समझौते से परे (‘non negotiable’) है।”

रिपोर्ट (report) का अनुमाऩ था “(रईसी की) टिप्पणियों से ईरानी नीतियों के कठोर होने का संकेत मिलता प्रतीत होता है, क्योंकि रूढ़िवादी धड़े ने सरकार के सभी अंगों पर अपना कब्जा जमा लिया है: संसद, न्यायपालिका और अब, राष्ट्रपति पद पर भी उसका दखल हो गया है।”

दि टाइम्स की रिपोर्ट निकट भविष्य में बनने वाले अमेरिका-ईरान संबंध की संभावनाओं पर पानी फेर देगी। सचमुच, कंटीली झाड़ियां बाइडेन प्रशासन के मार्ग को अव्यवस्थित करती हैं।

हालांकि, बाइडेन प्रशासन में ईरान की ‘शिया’ सियासत को समझने की समझदारी वाले परिष्कृत मानसिकता का अभाव है। सच में, आगे संक्रमण की दुरूह अवधि में, जब एक जमे हुए संबंध के पिघलने की लालसा होती है, ऐसे में स्थिति-परिस्थितियों का एक कुपाठ बड़ा महंगा साबित हो सकता है।

मिसाल के तौर पर, कंटीली झाड़ियां चुनौती हो सकती हैं, लेकिन यदि झाड़ियां एवं उनके लिए सही जगह का चुनाव सावधानी से किया जाए, तो वे आंतरिक भूपरिदृश्य (लैंडस्केप) की बनावट में काफी मूल्यवान भी हो सकती हैं।

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रईसी का ‘अतिरूढ़िवादी’ के रूप में चरित्र-चित्रण भ्रामक धारणाएं बनाता है। यदि इसका मतलब शासन-प्रशासन की इस्लामिक न्याय व्यवस्था विलायत-ए-फकीह के प्रति रईसी की गहरी प्रतिबद्धता से है, तो हां, शायद ऐसा है। किंतु व्हाइट हाउस को इससे क्यों व्यग्र होना चाहिए-जो यह मान रहा है कि बाइडेन प्रशासन का लक्ष्य ईरान में सत्ता परिवर्तन नहीं है?

अब, उस दहलीज के नीचे कई तरह की चिंताएं हैं। आर्थिक क्षेत्र में “अतिरूढ़िवादी” होने का आशय क्या आर्थिक नियंत्रण के उत्तर कोरिया और पूर्व सोवियत संघ के मॉडल से है? निश्चित ही, यह रईसी के मामले में सही नहीं है क्योंकि वे बाजार के जबर्दस्त पैरोकार हैं।

वास्तव में, उन्होंने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत तेहरान के ग्रैंड बाजार से की थी। उनका एजेंडा ईरान की अर्थव्यवस्था में नये खून का संचार करने का है, जिसमें निजी क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका, उनकी भागीदारी और उपक्रमों को वरीयता दिया जाना है। विडम्बना है कि, ईरान के संदर्भ में रूढ़िवादी होने के वास्तविक मायने संसाधनों के आवंटन और औद्योगिक नीति के मामले में किंचित “वामपंथी”होने से है।

तमाम संकेत हैं कि रईसी एक आर्थिक मॉडल का अनुसरण करेंगे, जो लगभग अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के स्वयं के तय लक्ष्यों के अनुरूप है-सरकार चुनिंदा हस्तक्षेप और एक जनकल्याणकारी कार्यक्रम बनाने और उसे सतत जारी रखने, विशेष कर रोजगार-सृजन करने के नजरिये से बुनियादी संरचनागत विकास में सार्वजनिक निवेश का सहारा लेती हुई उदारवादी पूंजीवादी सिद्धांतों की तरफ बढ़ रही है। 

बाइडेन की तरह, रईसी भी अपने देश के निम्न मध्य वर्ग एवं कामगार वर्ग का दिल जीतने के दबाव में हैं, जो इस्लामिक क्रांति के सामाजिक आधार में आगे होने वाले कटाव को रोकने के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता है।

रईसी इससे नाखुश हैं कि कुख्यात bonyads जो धर्मार्थ संगठन समझे जाते हैं, वे गरीबों की कम सेवा कर पाते हैं और वे कुछ निहित स्वार्थों के समूह बन गए हैं, जिन्होंने काला बाजार को बढ़ावा दिया है और भ्रष्टाचार फैलाया है।

देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में, रईसी को ईरान के समाज में भ्रष्टाचार के बढ़ते कैंसर का प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ था और उन्होंने इस पद पर अपनी नियुक्ति के बाद-देश के सर्वोच्च नेता अली खामनेई के पूरे समर्थन से-इस बीमारी से लड़ने के लिए कमर कस लिया था। अलबत्ता, उनको भ्रष्ट सिंडिकेट के प्रति असहिष्णुता दिखाने के लिए “अतिरूढ़िवादी” कहा जा सकता है।

अगर रईसी राष्ट्रपति के रूप में पूरे जोश-खरोश के साथ ईरान में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाते हैं तो अमेरिका को क्यों अंसतोष जाहिर करना चाहिए? यकीकन, यह विदेशी निवेशकों के लिए ईरान में बेहतर कारोबार के वातावरण का ही निर्माण करेगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि रईसी अपने देश के आम लोगों के जीवनस्तर को सुधारने की अपरिहार्य आवश्यकता के प्रति पर्याप्त सचेत हैं। हालांकि यहां वे अकेले नहीं हैं। यह मुद्दा समूचे शीर्ष नेतृत्व की चिंता की बड़ी वजह है।
हालिया चुनाव में मात्र 50 फीसदी मतदान के जरिए मतदाताओं की उदासीनता राजनीतिक अभिजन को एक चौंकाने वाला संदेश देती है कि निर्वतमान राष्ट्रपति हसन रुहानी एक  बदनाम “सुधारवादी” के रूप में अपना पद छोड़ रहे हैं।

बेशक, रुहानी की त्रासदी थी कि डोनाल्ड ट्रंप और माइक पोम्पियो की घातक जोड़ी ने इजराइली लॉबी और ईवैनजेलिकल (जिसमें धार्मिक कर्मकांडों के बनिस्बत ईसा और बाइबिल पर जोर दिया जाता है। कतिपय प्रोस्टैंट गिरजाघरों से संबंधित।) से उपयोग से अपने राजनीतिक करिअर में आगे बढ़ने के लिए ईरान को जहन्नुम में ठेल देने का फैसला किया था। लेकिन बाइडेन समृद्ध यहूदियों के कैदी नहीं हैं और न  उन्हें अंतरंग बातचीत के लिए इवैनजेलिकल की आवश्यकता ही है।

सोमवार को तेहरान को अपने पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में, रईसी ने कहा, “दुनिया को जानना चाहिए कि हमारी सरकार की विदेश नीति परमाणु समझौते से शुरू नहीं होती है और यह परमाणु समझौते तक ही सीमित नहीं रहेगी। हम पूरे विश्व के साथ बातचीत करेंगे और समस्त देशों के साथ विदेश नीति में व्यापक और संतुलित संवाद कायम करेंगे। और केवल वही समझौते करेंगे जिनसे कि हमारे राष्ट्रीय हितों का निश्चित समर्थन होता हो, परंतु हम अपनी आर्थिक स्थिति और लोगों की दशा पर कोई समझौता नहीं करेंगे।… हम संपर्क जारी रखेंगे, अगर वे प्रतिबंधों के हटने के अनुरूप लोगों के लिए बेहतर परिणाम लाएंगे...।”

रईसी ने मीडिया से बातचीत में आगे कहा: “यूरोपीयन देशों और अमेरिका को इस पर गौर करना चाहिए कि उन्होंने परमाणु समझौते के लिए क्या किया है; अमेरिका ने परमाणु समझौते का उल्लंघन किया है और यूरोपीयन ने अपनी जिम्मेदारियों का पूरा नहीं किया है। हम अमेरिका से कहते हैं कि ईरान पर लगाए गए तमाम प्रतिबंधों को हटाना उसका कर्तव्य है और उसे इसे लौटाना चाहिए तथा अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करना चाहिए। यूरोपीयन देशों को अमेरिका के दबाव में नहीं आना चाहिए और उन्हें अपने वादे के मुताबिक काम करना चाहिए। उनसे ईरान राष्ट्र यह मांग करता है।”

इसमें क्या जोड़ा जा सकता है? सरल शब्दों में कहें तो रईसी का संदेश है कि ईरान जेसीपीओए (JCPOA) गाथा की कडुवाहट में ही उलझा नहीं रहेगा, जिसे ट्रंप और पोम्पियो ने अपने स्वार्थ के लिए रचा था, बल्कि वह उस दौर से आगे निकलने के लिए उत्सुक है।

रईसी ने ईरान के राष्ट्रीय हित में “पूरे विश्व के साथ बातचीत करने तथा दुनिया के तमाम देशों के साथ विदेश नीति में व्यापक एवं संतुलित संवाद” के लिए पहल करने का संकल्प लिया है। यह स्पष्ट है कि रईसी पश्चिमी देशों के निवेश,व्यवसाय, प्रौद्योगिकी स्थानांतरण और इसी तरह के अन्य क्षेत्रों में पहल का स्वागत करेंगे, जो उनके “लोगों की जीवन दशा” को सुधारने में सहायक हो।

संक्षेप में कहें तो, रईसी ने रेखांकित किया है कि यूरोपीयन देशों और अमेरिका का उनकी सरकार के प्रति यह दायित्व बनता है कि वे ईरान को विश्व की अर्थव्यवस्था से एकीकृत करने की अपनी विलंबित प्रतिबद्धताएं पूरी करें।

बाइडेन प्रशासन को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि ईरान साथ आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में लगभग अपार संभावनाएं हैं। ईरान संभावित रूप से एक समृद्ध देश है और वह आय का स्तर बना सकता है, जो उसे महामारी बाद के औद्योगिक विश्व की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अंतिम सीमा हो सकती है।

बुद्धिमत्ता औऱ दूरदर्शिता तो ईरान के नये नेतृत्व के साथ गंभीर रूप से गैर-परमाणु संवाद के जरिए परस्पर आर्थिक सहयोग से लाभ उठाने में है। टीएस इलिएट के शब्द यहां बिल्कुल सटीक लगते हैं “स्मृति में फुटबॉल की अनुगूंज लिए/हम उस रास्ते पर उतरें, जिस पर कभी चले ही नहीं/ उस दरवाजे की तरफ बढ़ें, जिसे हमने कभी खोला ही नहीं/ हम गुलाब के बाग में उतरें।”

यह समय ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को लेकर उन्मादित होने का नहीं है,या आम तौर पर उसकी क्षेत्रीय नीतियों को लेकर उन्मत्त होने का भी नहीं है, जो विशेष रूप से देश के बाह्य पर्यावरण में मौजूद कुछ निश्चित परिस्थितियों से संबंधित हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि उन परिस्थितियों के सिरजने में अमेरिका ने बड़ा रोल अदा किया है। और, यही विरोधाभास है: उन परिस्थितियों को संयमित करने के लिहाज से अमेरिका एक बेहतर देश भी है।

अगर बाइडेन प्रशासन ऐसा करता है तो क्षेत्रीय देश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पश्चिम एशिया की राजनीति में उसकी सबसे बेहतरीन विरासत के रूप में केवल उसकी सराहना करेगा।
वाशिंगटन डीसी में पदधारी प्रशासन को यह मालूम होना चाहिए कि ईरान से संबंध सामान्य न होने की सूरत में अमेरिका की नीतियां अप्रभावी और अनुत्पादक बनी रहेंगी। वैसे भी, ईरान उन क्षेत्रीय ताकतों में शुमार है-जैसे कि भारत, उदाहरण के लिए-जिसे दबाया नहीं जा सकता।

इसके विपरीत, ईरान के साथ बेहतर संबंध की स्थापना पश्चिम एशिया क्षेत्र के कई मोर्चों और उसके पास-पड़ोस के क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा-अफगानिस्तान से लेकर सुदूर यमन तक। इसलिए रईसी के साथ एक अच्छी पहल विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

सौजन्य : इंडियन पंचलाइन

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

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