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अमेरिका, तुर्की, आईएसआईएस, अल-क़ायदा और तालिबान मिलकर बनाते हैं एक 'खुशहाल परिवार'!

इस्लामिक कट्टरपंथियों का भू-राजनीतिक उपकरणों के तौर पर कुशल उपयोग करने के मामले में तुर्की अमरीका का प्रतिरूप है 
तुर्की से लगे सीरिया के उत्तरी इदलिब प्रांत के एक शिविर में अल-कायदा समूह के एक ग्रेजुएशन समारोह में हयात तहरीर अल-शम के लड़ाकू (फाइल फोटो)
तुर्की से लगे सीरिया के उत्तरी इदलिब प्रांत के एक शिविर में अल-कायदा समूह के एक ग्रेजुएशन समारोह में हयात तहरीर अल-शम के लड़ाकू (फाइल फोटो)

अमेरिका ने आज से ठीक एक दशक पहले तुर्की से आह्वान किया था कि वह सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए सहायता मांगी थी। अब उसने वृहद मध्य पूर्व के एक अन्य देश-अफगानिस्तान-में  भी राजनीतिक परिवर्तन के लिए अंकारा से मदद की गुहार लगाई है। राजनीति अथवा कूटनीति में 100 फ़ीसदी समानताएं नहीं होतीं, लेकिन वह आश्चर्यजनक रूप से घट जाती हैं। 

अगर सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद की हुकूमत को सैन्य ताकत से उखाड़ फेंकने का प्रोजेक्ट था, तो आज अफगानिस्तान में अमेरिका का एजेंडा किसी तरह से राष्ट्रपति अशरफ घानी की निर्वाचित सरकार को बाहर का रास्ता दिखाना है। उसकी जगह एक आंतरिक सरकार बनानी है, जिसमें तालिबान जैसे उग्रवादी इस्लामिक समूह को शामिल किया जाना है। 

दोनों ही स्थितियां जिहादी समूहों को भागीदार बनाने पर केंद्रित हैं, जो “लिबरेशन मूवमेंट” के छद्म नाम से काम करते हैं। तुर्की ने न केवल पूरी दुनिया के जिहादी लड़ाकों को सीरिया में दाखिल होने और वहां आइएसआइएस तथा अल-कायदा में शामिल होने के लिए लॉजिस्टिक मदद दी बल्कि उन्हें भारी असलहों से भी लैस किया। उन्हें असद के खिलाफ एक लंबे समय तक भयानक जंग के लिए हर तरीके से अपना समर्थन दिया। यहां तक कि जंग में जख्मी हुए जिहादियों का इलाज भी कराया। 

यह एक अकाट्य तथ्य है कि तुर्की इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जिहादियों का गुरु रहा है। तुर्की से नवंबर 2013 में सीएनएन के भेजे गए एक डिस्पैच में लिखा ,“नाटो के सदस्य देश में उन देशों से, जहाँ अल-कायदा उपस्थित है, अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही एक असाधारण बात है। इनमें से अनेक जिहादी मुसलमान यह मानते हैं कि वे सीरिया में वह कयामत की प्रस्तावित जंग जैसा कि सीरिया में हो रही है, उसे अल-शम- के नाम से जाना जाता है- में शामिल हो रहे हैं। यह दुनिया के खात्मे की मुनादी होगी। ये रंगरूट परमआनंदित हैं क्योंकि उन्होंने यह सोचा ही नहीं था कि इसी जिंदगी में उन्हें कयामत की जंग में शिरकत करने का नायाब मौका हाथ लगेगा।”

“हम तुर्की की सीमा पर खड़े थे और एक सिहरा देने वाले दृश्य की शूटिंग कर रहे थे : सीरिया के शहर जरबुलस से कुछेक सौ मीटर दूर आइएसआइएस का झंडा एक मीनार पर बड़े आराम से लहरा रहा था-यह उस शहर के उसके कब्जे में होने का संकेत था। तुर्की को अब प्रकट रूप से जिहादियों की सुगम आवाजाही को अपने दक्षिणी हिस्से से सीरिया की यात्रा में तालमेल बिठाना है। जिनमें से अनेकों का मकसद एक अल-कायदा के अनूकूल खिलाफत की स्थापना में मदद देना है-इस तथ्य के साथ कि वे अब अल-कायदा को अपनी सीमा से देख सकते हैं। उसके इससे अधिक करीब नहीं जा सकते हैं।”

रूस और ईरान ने एक तरफ सीरिया में अमेरिका-तुर्की के बीच बने नापाक गठबंधन की तरफ दुनिया का ध्यान बार-बार खींचा है तो आईएसआईएस-अल-कायदा समूहों के बीच हुए गठजोड़ को लेकर भी आगाह किया है। दिलचस्प है कि यह नापाक गठजोड़ आज भी कायम है। पिछले साल मार्च में, हयात ताहिर अल-शम (एचटीएस) ने सीरिया की धर्मनिरपेक्ष सरकार को बेदखल करने के लिए अल-कायदा तथा अन्य जिहादी संगठनों की मदद के लिए तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगान और उसकी सरकार की खुलेआम तारीफ की थी। एचटीएस अल-कायदा का सबसे बड़ा सीरियाई संगठन है, जिसे पहले अल नुसरा के नाम से जाना जाता था। 

पिछले महीने 8 मार्च को दिए एक इंटरव्यू में जेम्स जेफरी ने यह कहते उद्धृत किया गया कि इदलिब में एचटीएस अमेरिकी सामरिक नीति का “एक एसेट” है। इदलिब सीरिया का पश्चिमोत्तर प्रांत है, जिसकी सीमा तुर्की से लगती है। जेम्स रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों ही सरकारों में राजदूत रहे थे और अभी हाल में, वह ट्रंप प्रशासन में सीरिया के विशेष प्रतिनिधि रहे हैं।

जेफरी का कथन है, “वे (एचटीएस)   इदलिब में अनेक विकल्पों में सबसे कम बुरा विकल्प हैं। सीरिया में इदलिब  अभी के समय में मध्य पूर्व की सबसे अहम जगहों में से एक है।” (ऑल मॉनिटर में पढ़ें, अमेरिका की सीरियाई नीतियों पर राजदूत जेफरी का यह लंबा इंटरव्यू। )

वास्तव में, अमेरिकी सरकार के मीडिया संगठन पीबीएस के साथ अपने हालिया इंटरव्यू में इदलिब में एचटीएस के प्रमुख अबू मोहम्मद अल जुलानी ने अमेरिकी श्रोताओं को यह कह कर प्रभावित करने की कोशिश की कि उनका समूह अमेरिका तथा पश्चिम देशों के लिए कोई खतरा नहीं है, बल्कि इसके विपरीत, उनके हित एक जैसे हैं। 

कुछ अमेरिकी विशेषज्ञों जैसे निकोलस हेरास ने एचटीएस को “तुर्की खुफिया और बजरिये तुर्की अमेरिकी खुफियातंत्र का एक एसेट बताया।” उन्होंने तुर्की न्यूज जनरल अहवाल के साथ पिछले हफ्ते की बातचीत में यह बात कही थी। वरिष्ठ विश्लेषक और वाशिंगटन स्थित न्यूजलाइंस इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रेटेजी एंड पॉलिसी के प्रोग्राम प्रमुख हेरास ने कहा,“यह सरल तथ्य है कि तुर्की की मदद के बिना एचटीएस नहीं चल सकता। तुर्की ने इदलिब को सब तरह से हिफाजत के लिए भारी सैन्य निवेश एक अहम कारक है, जो इस क्षेत्र को असद और उसके सहयोगियों के नियंत्रण में दोबारा जाने से रोकता है।”

दरअसल, तुर्की ने  2017 के उत्तरार्ध से ही इदलिब में पर्याप्त सैन्यबल का जमावड़ा कर रखा है। एचटीएस के दखल वाले इदलिब में आने-जाने वाले ज्यादातर खास-खास रास्तों पर भी उसी का कब्जा है। हेरास ने अहवाल से कहा: “एचटीएस इदलिब में एक दखलकारी किरदार है। तुर्की तथा तुर्की-समर्थित सीरिया के छद्म समूहों के लिए आगे चल कर एचटीएस को हुकूमत से बेदखल करना आकस्मिकताओं और विध्वंस के लिहाज से बहुत ही खर्चीला साबित होगा। दरअसल, एचटीएस एकमात्र के स्थानिय सीरियाई किरदार है, जो तुर्की के लिए कम से कम कीमत पर इदलिब पर दखल रख सकता है। तुर्की तथा तुर्की-समर्थित सीरिया अल-कायदा संपर्कित समूह में एक सहजीवी संबंध है, और एचटीएस अंकारा के लिए एक एसेट है।”

सीरिया मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ और ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय में मध्य एशिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. जोशुआ लैंडिस का भी यही विचार है। लैंडिस के मुताबिक अमेरिका इदलिब में तुर्की का समर्थन करता है। वह ऐसे सहयोगी समूहों के जरिये जो दमिश्क को देश के इस उत्तरी हिस्से को फिर से कब्जा करने से रोक सके, सीरिया को रूस और ईरान दोनों के लिए दलदल में बदल देना चाहता है। इसके अलावा, एचटीएस  “एसेट” और तुर्की दोनों ही “तेल, पानी और सीरिया की खेती योग्य बेहतरीन भूमि पर दमिश्क की पहुंच को खारिज करने की अमेरिकी नीति की ही खातिरदारी करते हैं।”

उपरोक्त सभी विवरणों को ध्यान में रखते हुए, यह तथ्य सभी विडंबनाओं का मूल है कि अफगानिस्तान में, अमेरिका एक अन्य जेहादी समूह तालिबान को मुख्यधारा में लाकर उसे देश के प्रशासनिक ढांचे में समायोजित करना चाह रहा है। संयोगवश, संयुक्त राष्ट्र ने दस्तावेजों के हवाले बताया है कि तालिबान आज भी अल-कायदा से अपना पुराना रिश्ता बरकरार रखे हुए है। 

शायद, इसका सबसे विचित्र हिस्सा यह होगा कि और कोई नहीं, बल्कि तत्कालीन उप राष्ट्रपति के रूप में जोए बाइडेन ने ही सीरिया में आइएसआइएस और अल-कायदा से शर्मनाक सांठगांठ रखने के लिए तुर्की का  खुलेआम नाम लिया था।  अक्टूबर 2014 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के  एक सत्र के दौरान बाइडेन ने कहा,“सीरिया में जहां हमें सबसे ज्यादा दिक्कत है, उस क्षेत्र में हमारे सहयोगी ही हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या हो  गए हैं। तुर्क हमारे महान मित्र हैं और एर्दोगान के साथ मेरा बड़ा गहरा रिश्ता है...(पर) वे क्या कर रहे थे?… वे मिलियन डॉलर्स की राशि और दसियों टन असलहे हर किसी के आगे उड़ेल दे रहे थे, जो असद के विरुद्ध जंग करता। जाहिर है, ये सब अल-नुसरा, और अल-कायदा तथा दुनिया के अन्य हिस्सों से यहां आए जिहादियों के अति उग्रवादी तत्वों को आपूर्ति की जा रही थी।”

बाइडेन ने कहा : “अब आप सोचते हैं कि मैं इसे बढ़ा-चढ़ा कर कह रहा हूं।  तो, जरा गौर कीजिए। यह धन और असलहे कहां चले गए? इसलिए अब जो हो रहा है,  और अचानक हो रहा है, उससे हर आदमी हैरान है क्योंकि आइएसआइएल (  इस्लामिक स्टेट), नाम का संगठन, जो इराक में अल-कायदा के नाम से काम कर रहा था, जब उन्हें आवश्यक रूप से इराक से उखाड़ फेंका गया था, उन्होंने वहां से भाग कर अपने लिए सीरिया का एक बड़ा भूभाग और खुला स्थान पा लिया, उन्होंने अल नुसरा के साथ काम किया, जिन्हें हम पहले ही आतंकवादी घोषित कर चुके थे। और हम अपने सहयोगी (तुर्की) को उन्हें धन और हथियारों की आपूर्ति रोक देने के लिए नहीं मना सके।”

अंकारा के आइएसआइएस और अल-कायदा के साथ पुराने विवादास्पद रिश्तों से पूरी तरह वाकिफ होते हुए भी अब राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन ने अपने राजनयिकों को वाशिंगटन में बदले प्रशासन में बृहद मध्यपूर्व प्रोजक्ट पर हाथ मिलाने के लिए तुर्की को आमंत्रित करने का निर्देश दिया है। क्या अमेरिका ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद पर निष्कलंक रिकॉर्ड वाले कुछ अन्य दोस्त देशों की खोज नहीं की है? ऐसा दोस्त ताशकंद क्यों नहीं हो सकता जिसने इसके पहले अफगान शांति कॉन्फ्रेंस की मेजबानी की है?

इसका उत्तर बड़ा सरल है:  तुर्की  आइएसआइएस और अल-कायदा के साथ विगत में अपने घृणित संबंध रखने के कारण उसी रूप में अपरिहार्य है। वे साख-पत्र हैं क्योंकि बाइडेन प्रशासन को आज अफगान शांति प्रक्रिया को संचालित करने वाले एक सहयोगी की आवश्यकता है। तुर्की “इस्लामी आतंकवादियों” का भूराजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने में अमेरिका का ही एक प्रतिरूप (क्लोन) है- अनुमानत: मुस्लिम देश होने के एक अतिरिक्त गुण के साथ। ऐसे में यह विश्वास किया जा सकता है कि आगे आने वाले समय में ये जिहादी हिंदू कुश में ऊंचे ठिकानों की तरफ बढ़ेंगे। 

सौजन्य: इंडियन पंचलाइन

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

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