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अमेरिका के पीछे हटने ने अफ़गान शांति वार्ता को प्रेरित करने का काम किया है

बेहद विस्मयकारी हक़ीक़त यह है कि अमेरिकी-नेतृत्व में चल रहे युद्ध और दानदाताओं दोनों के ही बीच में थकान पसरती जा रही है।
आंतरिक रूप से विस्थापित बच्चे अफगानिस्तान के खोस्त प्रान्त के एक शरणार्थी शिविर में 17 नवंबर, 2020 को एक तंबू के बाहर बैठे हुए नज़र आ रहे हैं।
आंतरिक रूप से विस्थापित बच्चे अफगानिस्तान के खोस्त प्रान्त के एक शरणार्थी शिविर में 17 नवंबर, 2020 को एक तंबू के बाहर बैठे हुए नज़र आ रहे हैं।

तालिबान, अफगान सरकारी बलों एवं अमेरिकी वायु सेना की हाल के दिनों में हिंसा की घटनाओं में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। इसके चलते भारी पैमाने पर नागरिक हताहत हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद शांति प्रक्रिया का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है। 5 जनवरी को दोहा में अफगान शांति वार्ता के एक बार फिर से शुरू होने की संभावनाएं हैं। स्थायी शांति के समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हिंसा में कमी लाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए एक आम राय के आधार को तैयार किया गया है।

इस बिंदु तक पहुँचने वाली दो अत्यंत प्रभावशाली घटनाओं में से एक थी 16 नवंबर को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा मध्य-जनवरी तक अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या घटाकर 2500 तक कर देने के निर्णय पर पेंटागन की घोषणा और दूसरा 19 नवंबर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का काबुल का पथ-परिवर्तनकारी दौरा रहा।

अगर ट्रम्प ने इस बार के लिए यह संकेत दिया कि अपने व्हाईट हाउस के दूसरे कार्यकाल की संभावना के साथ वे इस बार गंभीरतापूर्वक सैन्य वापसी की अपनी इच्छा पर बल देने का इरादा रखते हैं। तो वहीं इमरान खान द्वारा प्रधानमंत्री के तौर पर पहली काबुल यात्रा को उभरते परिदृश्य में एक गंभीर प्रयास के तौर पर देखा जाना चाहिए जिसमें वे अशांत पाकिस्तान-अफगानिस्तान रिश्तों में इस क्षेत्र में शांति के लिए एक प्रमुख साझीदार के तौर पर दिखने के प्रयास में हैं।

इस्लामाबाद और काबुल दोनों के ही बीच में इस बढ़ते एहसास कि बिडेन प्रशासन में भी कोई बुनियादी नीतिगत बदलाव नहीं होने जा रहा है, इन दो अंतर-सम्बंधित रास्तों ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है। इसके साथ ही जिनेवा में (23-24 नवंबर) को हुए आभासी 2020 अफगानिस्तान सम्मेलन के संयतपूर्ण प्रभाव को भी ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है।

जिनेवा में हुए अफगान सम्मेलन ने 2021-24 की अवधि के लिए 12-13 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता का वचन लिया गया था, जो कि 2017-20 के वचन की तुलना में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का प्रतिनिधित्व करता है, जो देश की जरूरत के लिए यूएनडीपी अनुमानों से काफी नीचे है। जितने धन का वचन दिया गया है, उससे किसी तरह सिर्फ अफगान राज्य को चलाए रखना ही संभव है।

असल में देखें तो महामारी के बाद के हालात में यह देखा जाना शेष है कि क्या ये वादे भी पूरे किये जाते हैं या नहीं। कई दानदाताओं ने अपने वचन के साथ शर्तें भी जोड़ रखी हैं, जिसमें मुख्य तौर पर अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों पर गंभीर कदम उठाने की शर्त शामिल है।

अमेरिकी-नेतृत्व वाले युद्ध में बेहद हैरान कर देने वाली वास्तविकता और हक्का-बक्का कर देने वाला एहसास यह देखने को मिल रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दानदाताओं के बीच में भी इस बीच थकान दिखने लगी है। कुछ देशों, जिनमें अमेरिका सबसे बड़े दानदाताओं में से एक है, ने भी समूचे चार-साल की अवधि तक के लिए अपनी वचनबद्धता को न देकर अफगानिस्तान के विकास को अस्थिर धरातल पर ला दिया है।

राजनीतिक दृष्टि के लिहाज से तालिबान के साथ सत्ता-साझाकरण एक प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। इसका कोई अन्य विकल्प भी मौजूद नहीं है। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी पक्ष के लिए भी “शर्तों पर आधारित” अमेरिकी सैन्य वापसी अब कोई यथार्थवादी विकल्प नहीं रह गया है। तालिबान पर किसी भी प्रकार के “सशर्त समर्थन” की हालत में अमेरिका नहीं रह गया है, जिसका कहना है कि जब तक मई तक पूरी तरह से सैन्य वापसी नहीं हो जाती, वे नाटो सेनाओं के खिलाफ युद्ध में वापस चले गए हैं।

इस प्रकार के अभूतपूर्व प्रतिमान में बदलाव की स्थिति ने तात्कालिकता के एहसास को उत्पन्न करने का काम किया है, जिसमें शांति समझौता सभी के हितों के अनुरूप है। यह सच है कि “खेल बिगाड़ने वाले” अभी भी चारों ओर बने हुए हैं और इसके साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण में भी असंगत विरोधाभास बने हुए हैं। पाकिस्तान “जीत” गया, इस प्रकार की कोई भी धारणा अपने आप में कुछ भारतीयों के बीच में दिल जलाने के लिए पर्याप्त हो सकती है।

इसके साथ ही ईरान परमाणु मुद्दे पर बिडेन की सफलतापूर्वक प्रगति किसी भी अफगान समझौते में हिस्सेदार के तौर पर तेहरान की प्रतिबद्धताओं को मजबूत कर सकती है। यह ध्यान में रखते हुए कि वाशिंगटन को तेहरान के साथ किसी भी नए समझौते के लिए उसे मास्को और बीजिंग से सहयोग किये जाने की आकांक्षा रहेगी। इस सबके बावजूद कि अमेरिका की वर्तमान प्रतिकूल मानसिकता रूस और चीन के खिलाफ बनी हुई है, इसका कुछ सकारात्मक प्रभाव अफगान शांति प्रक्रिया पर भी अवश्य पड़ने जा रहा है।

यह काफी हद तक उम्मीद के मुताबिक है कि अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि जालमाय खलीलज़ाद द्वारा पाकिस्तान में हाल ही में परामर्श, अमेरिकी चीफ ऑफ़ स्टाफ के संयुक्त प्रमुख मार्क मिले और तालिबान के बीच दोहा में हुई अब तक पहली बैठक और तालिबान के मुल्ला अब्दुल गनी के नेतृत्व में दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रतिनिधिमंडल द्वारा पाकिस्तान की यात्रा शांति वार्ता के नए साँचे को समझने के लिए मार्ग प्रशस्त करने के तौर पर आकलन करने की जरूरत है।

शुक्रवार को तालिबान प्रतिनिधियों के साथ की गई एक बैठक के बाद इमरान खान ने कहा था कि वे “अफगानिस्तान में उच्च स्तर की हिंसा” को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने “सभी पक्षों से हिंसा में कमी लाने, जिससे युद्ध-विराम को गति प्रदान हो” का आह्वान किया और “समावेशी, वैविध्यपूर्ण-आधार वाले एवं व्यापक समाधान को लेकर पाकिस्तान के समर्थन” को दोहराया है। गौरतलब है कि तालिबान नेताओं के साथ मुलाक़ात करने से पहले इमरान खान ने बुधवार को गनी से बात की थी।

भविष्य में बिडेन अफगानिस्तान में “आतंकवाद-विरोधी” अभियानों को सक्षम बनाए रखने के लिए कुछ हद तक अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को बनाए रखना चाहेंगे। बदले में तालिबान को संक्रमणकालीन सरकार बनाए जाने की दरकार रहेगी। अमेरिका को संक्रमणकालीन सरकार के प्रति सहमति बनाने के लिए अफगान सरकार के साथ अपने प्रभाव का लाभ उठाना होगा।

देखने में ये सब सौदा पट जाने जैसा दिख सकता है, लेकिन जरुरी नहीं कि ऐसा ही हो। हकीकत तो यह है कि अफगान सरकार का अस्तित्व ही अमेरिकी वित्तीय एवं सैन्य सहायता पर टिका हुआ है।

इस बीच गहरे राजनीतिक अनुगूँज के अनुरूप विकास के तहत संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान के साथ एक समझौते के तहत विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में हजारों स्कूलों की स्थापना के लिए एक समझौता किया है। एक अनुमान के मुताबिक इससे 1,20,000 प्राथमिक स्कूली बच्चे, बच्चियों दोनों को ही दाखिला दिया जा सकता है।

यह प्रतीकात्मकता बेहद गहरा भाव लिए हुए है कि संयुक्त राष्ट्र सीधे तौर पर इस संबंध में तालिबान के साथ समझौते में जा रही है। इससे स्पष्ट तौर पर उसकी वैधता और प्राधिकार को मान्यता प्राप्त होती है। दिलचस्प तथ्य यह है कि अमेरिका और ब्रिटिश दान और सहायता समूह इस परियोजना के लिए वित्तपोषण जुटा रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

US Drawdown Spurs Afghan Peace Talks

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