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उत्तर प्रदेश: बेरोज़गारी का महाविस्फोट और अधर में लटका लाखों युवाओं का भविष्य

योगी सरकार सरकारी नौकरियों में बड़े पैमाने पर भर्तियों के अपने वादे किस हद तक निभा पाई और प्रदेश में रोजगार के हालात पर पड़ताल करती यह रिपोर्ट।
pet exam
PET की परीक्षा देने जाते लाखों परीक्षार्थी I फ़ोटो साभार: ट्विटर

पाँच साल में पाँच लाख सरकारी नौकरियां देने का दावा। फिर दूसरे कार्यकाल में शुरुआती 100 दिन में दस हजार सरकारी नौकरियां देने का वादा। और आगामी पाँच वर्ष के भीतर भी कई लाख नौकरियाँ देने का भरोसा। ये दावे, वादे, भरोसे हैं उतर प्रदेश की योगी सरकार के। अपने पहले कार्यकाल से लेकर दूसरे कार्यकाल शुरू होने तक,  वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का पक्का वादा अगर किसी सरकार ने किया तो वह थी योगी सरकार। यह अलग बात थी कि पहले कार्यकाल में पाँच लाख रोजगार देने का दावा करने वाली सरकार ने कब कब किस विभाग में कितनी नौकरियां दी, इसका स्पष्ट ब्यौरा पेश नहीं कर पाई। जबकि हालात यह स्पष्ट बता रहे थे कि जितना दावा किया जा रहा है, तस्वीर उसके उलट है।

फिर योगी सरकार का आया दूसरा कार्यकाल। इस कार्यकाल में सरकार ने शुरुआती 100 दिन के भीतर दस हजार नौकरियां देने का पक्का वादा किया। तो 100 दिन भी बीत गए और नौकरियों का सवाल जस का तस बना रहा। प्रदेश की सत्ता में आने से लेकर अपने दूसरे कार्यकाल में जाने तक, योगी सरकार सरकारी नौकरियों में बड़े पैमाने पर भर्तियों के अपने वादे किस हद तक निभा पाई और प्रदेश में रोजगार के हालात पर पड़ताल करती यह रिपोर्ट।

आसमान छूता परीक्षार्थियों का आंकड़ा

ट्रेनों के भीतर ठसाठस भरे लाखों छात्र.... ट्रेनों के दरवाजों पर लटके और छतों पर बैठे हजारों छात्र......बसों में भरे हजारों छात्र....रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, लॉज, होटलों, रैन बसरों, मैदानों, सड़क किनारे हर जगह रात काटते लाखों छात्र....बस रात बढ़िया से गुजर जाए, यह विचार उठना लाज़िमी है पर बढ़िया से कटे तब तो। हर तरफ भीड़ ही भीड़ बढ़िया की उम्मीद छोड़ो बस किसी तरह रात कट जाए इतना काफी है। लड़कों ने तो जैसे तैसे अपना इंतज़ाम कर लिया पर लड़कियों का क्या? खैर जिसका अंदेशा था वही हुआ छात्राओं की संख्या अमूमन कम ही दिखी।  ये दृश्य था  उत्तर प्रदेश में 14 से लेकर 16 अक्टूबर तक का। इस तीन दिन में कोई ऐसी जगह नहीं थी जब हमें छात्रों की भीड़ न दिखाई दी हो।

आखिर लाखों के तादात में ये छात्र कहाँ जा रहे थे और क्यों जा रहे थे, तो इस सवाल का जवाब यह है कि लाखों की संख्या में ये छात्र उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के थे जो अपने जिले से दूसरे जिले में प्रतियोगी परीक्षा देने जा रहे थे जो 15 और 16 अक्टूबर को आयोजित थी। परीक्षा में धाँधली रोकने का तर्क देकर इस साल आयोग द्वारा परिक्षार्थियों का परीक्षा केंद्र उनके जिले में न देकर 250 से 300 किलोमीटर दूर दूसरे जिलों में दे दिया गया तो छात्रों की आवाजाही 14 से ही शुरू हो गई थी।

यह परीक्षा थी PET की यानी Preliminary Eligibility Test  (प्रारंभिक आहर्ता  परीक्षा) की। PET पिछले साल से ही प्रदेश में लागू हुआ है। इसका आयोजन उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा किया जाता है। इस परीक्षा को पास करने वाले छात्र सरकार की समूह ग की भर्ती परीक्षा जैसे राजस्व लेखपाल, चकबंदी लेखपाल, ग्राम विकास अधिकारी, पंचायत सचिव जैसे पदों के लिए योग्य उम्मीदवार माने जाते हैं। यानी अगर आप PET पास हैं तभी आप दूसरी भर्ती परिक्षाओं ( समूह ग)  में बैठने के काबिल समझे जायेंगे।
    
तो आप यह कह सकते हैं कि प्रतियोगी परिक्षाएँ तो होती रहती हैं, परिक्षार्थी परीक्षा देने भी जाते हैं, तो इसमें ऐसी क्या खास बात है। तो इसमें खास बात यह है कि जब परीक्षार्थियों का आंकडा आसमान छूने लगे तो प्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति स्वतः ही हमारे सामने स्पष्ट हो जाती है और रोजगार को लेकर सरकार के दावे खोखले साबित हो जाते हैं। इस साल PET की परीक्षा के लिए तकरीबन 38 लाख युवाओं ने फॉर्म भरे जो पिछले साल के मुकाबले लगभग 18 लाख अधिक थे।  बीते वर्ष करीब 20 लाख अभ्यार्थी थे। न केवल PET बल्कि सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में साल दर साल परीक्षार्थियों की संख्या बेताहशा बढ़ रही है जो सरकारी क्षेत्र में नौकरियों की बदहाली को बताती है, लेकिन फिर भी सरकार सब कुछ ठीक होने का दावा करती जा रही है।

क्यों बढ़ रही है परीक्षार्थियों की भीड़

PET के लिए 38 लाख छात्रों द्वारा फॉर्म डालना सचमुच एक विशाल आंकडा है। जानकार कहते हैं अगले साल यह आँकडा 50 लाख तक पहुँच जाए तो हैरानी नहीं। और ऐसा होना स्वाभाविक है। इसके जवाब में गोरखपुर के रहने वाले छात्र शांतनु कहते हैं, " परीक्षार्थियों की संख्या आखिर कैसे नहीं बढ़ेगी जब समय से न तो कोई परीक्षा ही आयोग करवा पा रहा है,  और यदि परीक्षा किसी भी तरह हो जाए, तो रिजल्ट अटक जाता है और अगर किसी तरह परिणाम घोषित हो भी जाता है तो पता चलता है कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर धाँधली हुई है।  इसलिए आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी जाती है और अंत में मामला कोर्ट तक पहुँच जाता है। कोर्ट तक मामला पहुंचने का मतलब  है अब सालों इंतज़ार करना।

शांतनु कहते हैं पिछले साल PET तो हुआ लेकिन उसके बाद आखिर हुआ क्या? PET के आधार पर आयोग केवल दो परीक्षा ही करवा पाया जिनमें लेखपाल और ANM (Auxiliary Nursing Midwifery जिसे हिंदी में सहायक नर्स दाई होता है) शामिल हैं। चलिए किसी तरह दो ही सही लेकिन परीक्षा तो हुई लेकिन फिर सवाल घूमकर वहीं आकर खड़ा हो गया कि अब परीक्षा के बाद क्या? 2022 का PET भी हो चला जबकि 2021 के PET के आधार पर हुई परीक्षाओं का मामला अभी तक अटका हुआ है। जैसे तैसे लेखपाल की परीक्षा आयोग ने करवाई। परीक्षा होने से छात्र खुश थे और उन्हें उम्मीद थी कि उनके हिस्से सरकारी नौकरी आना तय है लेकिन परीक्षा में बड़े  पैमाने पर धांधली का आरोप लगा और मामला लटक गया।

बाकी कितनी परीक्षाएँ तो हुई नहीं जो होनी चाहिए थी तो अगली परीक्षाओं में भीड़ बढ़ना लाज़िमी है। PET की वैधता भी एक ही साल की है तो इसलिए छात्र दोबारा परीक्षा देने को विवश हैं।

 गोंडा की रहने वाली प्रिया चौधरी कहती हैं, "अमूमन हर प्रतियोगी परीक्षाओं की यही दुर्दशा हो चली है किसी तरह परीक्षाएँ तो हो जा रही हैं लेकिन उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जा रहा है। हर परीक्षा में धांधली होने, सॉल्वर गैंग के शामिल होने की बात सामने आ रही है तो कभी परिणाम घोषित करने पर रोक लगा दी जा रही है तो कभी इंटरव्यू पर रोक लगा दी जा रही है और कभी सब प्रक्रियायें होने के बाद नियुक्ति पत्र बाँटने पर ही रोक लगा दी जा रही है तो ऐसे में हर साल परीक्षाओं में छात्रों की संख्या बढे तो हैरानी नहीं।"
   
प्रिया  बताती हैं वह बी एड पास है। दो बार TET (Teacher Eligibility Test) भी अच्छे अंको से पास कर चुकी हैं। लेकिन केवल टेट पास करने से होगा क्या जब तक SUPER TET न पास कर लो पर प्रदेश सरकार है कि सुपर टेट पिछले तीन साल से करा ही नहीं रही जबकि TET हर साल हो जा रहा है। वे कहती है समझ नहीं आता जब सरकार को सुपर टेट कराना ही नहीं तो TET भी क्यों करा रही। वे कहती है इसलिए हर साल TET की परीक्षा में भीड़ बढ़ रही है क्योंकि पहले वाले एग्ज़ाम के बाद जब कुछ हो ही नहीं रहा तो छात्र इस आशा से अगले साल की परीक्षा में बैठ जाते हैं कि कुछ नहीं तो उनकी मेरिट ही बढ़ जाए और वैधता भी आगे बढ़ती रहे पता नहीं देर सबेर शायद कुछ उनको इसका फल मिल ही जाए।"

प्रिया क्रोधाभाव में कहती हैं, "उनको और उन जैसे बी एड, बी टी सी करने वाले लाखों छात्रों को  कुछ साल पहले तक लगता था कि कम से कम टीचिंग क्षेत्र में बहालियाँ होती रहेंगी क्योंकि प्रदेश में आज भी शिक्षकों की भारी कमी है लेकिन उनके सपनों पर अब पानी फिरता नजर आ रहा है क्योंकि नई बहालियाँ हो नहीं रहीं और पुराने मामलों का निपटारा होता नजर नहीं आ रहा"।

संविदा पर सिमटी नौकरियाँ
  

लखनऊ में रह रहे विवेक वर्मा ने करीब दो साल पहले अपना लैब टेक्नीशियन का कोर्स पूरा किया। सरकारी नौकरी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन नौकरियां हो तब तो मिले। करीब दस महीना पहले एक जिला अस्पताल में  नौकरी तो मिली लेकिन संविदा पर। विवेक कहते हैं दरअसल सच्चाई यह है कि सरकारी नौकरियां सरकार खत्म करती जा रही है उम्मीदवार लाखों में हैं और पद मुट्ठीभर । संविदा की नौकरियों के लिए भी मारा मारी है। एक मोटी रकम घूस दो तब कहीं जाकर तो संविदा पर नौकरी मिल रही है उसपर भी न्यूनतम वेतन लागू नहीं मात्र 12-13 हजार रुपए महीना दिया जाता है और वो भी नियमित नहीं आता।

विवेक कहते हैं, "हालात इस कदर खराब हो चले हैं कि मेडिकल और पैरामेडिकल क्षेत्र में  करीब सभी बहालियाँ संविदा पर सिमटती जा रही है यहाँ तक की अब तो डॉक्टरों तक की नियुक्तियाँ संविदा पर हो रही है तो बाकियों का तो हाल छोड़ ही दीजिये। वे कहते हैं कोविड काल में जिस पैरामेडिकल स्टाफ ने रात दिन मेहनत कर अपनी जान की बाजी लगाकर  काम किया, स्थिति सामान्य होने पर उन्हें काम से निकालना शुरू कर दिया गया। वे बताते हैं कि उनके कितने जानने वाले ऐसे युवा हैं जो छटनी का शिकार हुए हैं और उनपर पर भी छटनी की तलवार लटकी हुई है।" वे कहते हैं इस छटनी से बहुतेरे युवा दोबारा बेरोजगार हो चले हैं और इस उम्मीद से दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गये हैं कि शायद वहाँ वे कुछ हासिल कर लें। लेकिन वहाँ भी हाल बेहाल है।

वे बताते हैं, "करीब एक साल पहले NHM  (NatioNal Health Mission) द्वारा 2980 पदों के लिए परीक्षा ली गई। यह सोचकर परीक्षा दी कि पूरी सरकारी नौकरी न सही NHM के तहत ही जॉब मिल जाए तो कम से कम कुछ तो ठीक ठाक सैलरी मिलेगी और नौकरी भी आगे बढ़ती रहेगी लेकिन इतना लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी केवल सात पदों का ही रिजल्ट निकल पाया बाकी सब लंबित पड़े हैं।"

कोर्ट में लटके हैं युवाओं के भविष्य

बस्ती के रहने वाले शुभम ने जनवरी 2019 में TET के बाद SUPER TET की परीक्षा पास की। शुभम उन 6800 चयनित सहायक शिक्षक अभ्यार्थियों में से एक हैं जिनका चयन दस महीना पहले हो चुका है लेकिन सरकार ने अब तक बहाली नहीं की।

दिसंबर 2018 को प्रदेश सरकार ने 69000 शिक्षक भर्ती का विज्ञापन निकला था जो इसलिए खासा चर्चा में आया क्योंकि इस भर्ती में योगी सरकार पर आरक्षण में धाँधली का आरोप लगा था। आरक्षित वर्ग के छात्रों ने ढंग से आरक्षण न लागू करने का आरोप सरकार पर लगाकर एक लंबा आंदोलन किया था। इस आंदोलन के बाद सरकार चेती और 5 जनवरी 2022 को 6800 आरक्षित वर्ग के सफल अभ्यार्थियों की चयन सूची जारी कर दी गई और आश्वासन दिया गया कि जल्दी ही उन्हें जिला आवंटित कर नियुक्ति दे दी जायेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं  । प्रदेश चुनाव में चला गया । चुनाव खत्म हुआ, योगी सरकार दोबारा सत्ता में आई लेकिन दस महीने बीतने को आये सरकार उन हजारों चयनित अभ्यार्थियों को नियुक्ति पत्र नहीं दे पाई। अभी यह मामला कोर्ट में है।

शुभम बताते हैं, "आरक्षण घोटाला 19000 का था वो तो चुनाव का समय था इसलिए सरकार ने आनन फानन में मात्र   6800 की ही सूची जारी की। शुभम कहते हैं शिक्षक भर्ती का विज्ञापन निकलने से लेकर चयन सूची जारी होने तक  चार साल होने को आये लेकिन मसला हल नहीं हो पा रहा।" वे मायूस भाव से कहते हैं। "उम्मीद के साथ साथ अब तो शिक्षक बनने का सपना भी टूट चुका है और इन्हीं टूटे सपनों के साथ आज हजारों लाखों युवा मायूसी के उस कगार पर आ पहुँचे हैं जहाँ उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा कि अब वे किस दिशा की ओर बढ़ें।"

परिवार के भरण पोषण के लिए मजबूरी वश खाद बीज भंडारण की दुकान पर नौकरी करते शुभम 

बहरहाल घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अब शुभम खाद बीज बेचने वाली दुकान में काम करने लगे हैं। वे कहते हैं अब कमाना भी तो जरूरी है आखिर अब कब तक घर वालों पर आर्थिक निर्भर रहूँगा। वे कहते हैं अब पढ़ाई और कमाई दोनों साथ में चलेगी। शुभम ने बताया कि उनके कई जानने वाले ऐसे छात्र हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं को दे दे कर मायूस हो चले हैं किसी का रिजल्ट नहीं निकल रहा तो कोई मामले कोर्ट में लंबित पड़े हैं तो कहीं न्युक्ति पत्र ही रोक दिये जा रहे हैं। इन सब पचड़ों के बीच युवाओं की उम्र निकल रही है तो आखिर कमाएंगे कब इसलिए अब कई ऐसे युवा हैं जो इलेक्ट्रिक रिक्शा चलाने से लेकर शॉपिंग मॉल तक में नौकरी करने लगे हैं।
    
सहायक शिक्षक भर्ती मामले की तरह ही दरोगा भर्ती मामला 2021 भी कोर्ट में है। इस परीक्षा में भी बड़े पैमाने पर धाँधली का आरोप लगा था। हालाँकि परीक्षा के बाद परिणाम भी घोषित हुआ, शारीरिक परीक्षा भी पूरी हुई सब कुछ होने के बावजूद मामला कोर्ट में अटका पड़ा है और हजारों चयनित अभ्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है इसी तरह करीब पाँच साल पहले का 12460 शिक्षक भर्ती मामला, पीसीएस 2021 का मामला भी कोर्ट में लंबित हैं।
चयनित बेरोजगारों का दर्द
  
कनिष्ठ सहायक पद के लिए चयनित हुए देवरिया के मारुत सिंह कहते हैं हम तो उन चयनित बेरोजगारों में है जो सड़क पर उतर कर आंदोलन भी नहीं कर सकते क्योंकि आखिरकार हमारा चयन जो हो  चुका है पर बस चयन भर ही हुआ है उसके बाद अभी मामला नियुक्ति तक नहीं बढ़ रहा। वे कहते हैं किसी से 6 सालों में तो उनका मामला अपने अंतिम पड़ाव में पहुँचा हालाँकि इसे अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने के लिए उन्हें और उनके साथियों को लंबा आंदोलन करना पड़ा और जब आंदोलन सफल हुआ तो मामला अंतिम पड़ाव में अटक गया।

मारुत सिंह जब कनिष्ठ सहायक 2016 की चयन प्रक्रिया को पूरा करने की मांग को लेकर 6 महीने पहले अकेले इको गार्डन में अनशन में बैठे थे

वे बताते हैं कि 2016 में कनिष्ठ सहायक की परीक्षा होती है उसके बाद टाईपिंग परीक्षा और इंटरव्यू सब होता है लेकिन फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। मारुत कहते हैं, "हमारी परीक्षा का मामला तो बेवजह 6 साल लटका रहा क्योंकि अन्य परीक्षाओं की तरह न तो इसमें धाँधली ही हुई न ही मामला कोर्ट में था फिर भी लंबा वक्त लगना दुर्भाग्यपूर्ण था। परीक्षा का परिणाम जून 2022 में जाकर घोषित होता है  जिसमें 535 अभ्यार्थियों का चयन हुआ जिसमें से वे भी एक हैं। चयनित अभ्यर्थियों को को दो महीने के भीतर नियुक्ति पत्र देने का भरोसा दिया गया लेकिन ऐसा नहीं हुआ।" 

वे कहते हैं अभी चयनित अभ्यार्थियों के लिए सरकार विभाग आवंटन ही तय नहीं कर पाई तो नियुक्ति पत्र क्या देगी।

2016 का मामला तो अभी लटका ही पड़ा है। इस बीच 2019 कनिष्ठ सहायक का भी परिणाम घोषित हो गया यानी यह भी तीन साल बाद आया। मारुत कहते हैं, "इस सच को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि सरकारी नौकरियां का दायरा सिमटता जा रहा है। हालाँकि उम्मीदवारों की संख्या दिनों दिन आसमान छू रही है जिसे पिछले दिनों संपन्न हुए PET की परीक्षा ने साबित किया।"

वे कहते हैं, "मैं इसे भीड़ नहीं बल्कि पढ़े-लिखे, कर्मठी, मेहनतकश व ऊर्जा से लबरेज युवाओं का जनसैलाब कहूँगा, जो सरकार के इस दावे को खोखला साबित करती है कि उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर 18℅से घटकर 2% हो गई है। वे चिंता ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि वो दिन दूर नहीं जब बेरोजगारी का विस्फोट होगा। यह एक राष्ट्रीय आपदा है और इससे निपटने के लिये सबसे पहले तो सरकार को यह मानना होगा कि बेरोजगारी है। इसे नकार देने से हल नहीं निकलने वाला। सरकारों  व अर्थव्यवस्था की  सूझबूझ रखने वालों को इस विषय मे चिंता करनी चाहिए।"

वे आगे कहते हैं कि बेरोजगारी के मुद्दे पर अब सरकार को संवेदनशील होना ही पड़ेगा।

और अंत में बेरोजगारी के महाविस्फोट के बीच चर्चा  बिनोद कुमार गुप्ता की। कभी उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जाना हुआ और ई रिक्शे पर सवारी करने का मन हो तो एक बार बिनोद कुमार गुप्ता को जरूर खोजकर उनके ई रिक्शे की सवारी करियेगा। सवारी करने का कारण यह कि बिनोद का ई रिक्शा केवल एक वाहन भर नहीं बल्कि उस " Failure system " का भी प्रतीक है जहाँ पढ़े लिखे युवाओं के सपने लचर व्यवस्था की भेंट चढ़ जा रहे हैं। बिनोद कुमार बेहद पढ़े लिखे युवा हैं। इनके पास एक दो नहीं बल्कि पाँच डिग्रियाँ हैं। BA, MA, B.Ed, TET, CTET और CCC (Course on Computer Concepts ) तब आप सोच सकते हैं कि इतनी डिग्रियाँ होने के बावजूद आख़िर उन्हें ई रिक्शा क्यों चलाना पड़ रहा है। तो इसका एक सीधा सा जवाब है प्रदेश में रोजगार की कमी। पर यह जवाब जितना सीधा है इसके पीछे लाखों छात्रों के भविष्य का सवाल उतना ही जटिल।

पांच  डिग्री धारक बिनोद कुमार अब कमाई के लिए ई रिक्शा चलाते हुए , साभार: दैनिक भास्कर  
    
बिनोद कहते हैं आखिर नौकरी का इंतज़ार कब तक करता। पिताजी बीमार रहते हैं। घर की आर्थिक स्थिति संभालनी थी सो ई-रिक्शा चलाने लगा। बिनोद ने अपने ई रिक्शा पर अपनी सारी डिग्रियाँ लिखी हुई हैं। उनके मुताबिक डिग्रियाँ पढ़ने से यात्री सम्मान के साथ पेश आते हैं। उनका रिक्शा उन लाखों नौजवानों की बेबसी की कहानी है जो होनहार तो हैं लेकिन परिस्थितियों के कुचक्र का शिकार हैं।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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