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यूपी रोडवेज़ में निजीकरण की कोशिश के ख़िलाफ़ कर्मचारी लामबंद, आंदोलन का आह्वान

“75% बसों को अनुबंध पर चलाए जाने से रोडवेज़ में कार्यरत करीब 55,000 कर्मचारियों की रोज़ी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा।”
UP

क्या उत्तर प्रदेश सरकार यूपी परिवहन निगम का निजीकरण करने जा रही है? इसका जवाब इसी से स्पष्ट हो जाता है कि अभी तक उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में 75 प्रतिशत सरकारी बसें और 25 प्रतिशत निजी क्षेत्र की बसें चलती रही हैं, लेकिन अब योगी सरकार ने इस नियम को बदलते हुए 75 प्रतिशत बसें निजी क्षेत्र की और सरकारी बसें 25 प्रतिशत चलाने का फैसला किया है। इस फैसले पर अमल करने के लिए यूपी के परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव एल वेंकटेश्वर लू ने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के प्रबंध-निदेशक को एक पत्र भेजा है और उनसे कहा है कि 75 प्रतिशत बसें अनुबंधित एवं 25 प्रतिशत बसें परिवहन निगम की यथाशीघ्र चलाई जाएं।

वेंकटेश्वर लू ने प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश परिवहन निगम को लिखे गए अपने पत्र में लिखा है कि, “महोदय, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर रहे नागरिकों को समुचित यात्रा सुविधा कराए जाने के संबंध में कल दिनांक 14/10/2022 को माननीय मुख्यमंत्री जी से चर्चा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा संचालित बसों की समग्र स्थिति जो बहुत खराब है, इसमें सुधार लाने के लिए प्रभावी निर्देश दिये गए जो निम्नवत हैं-

1.बसों में यात्रा करने वाले यात्रियों को सुखद अनुभव कराने हेतु सीट एवं साफ-सफाई अच्छी हो।

2..बसों को संचालित करने वाले ड्राइवर एवं कंडक्टर यूनिफॉर्म में हों एवं यात्रियों के साथ उनका व्यवहार मधुर एवं सुखदाई हो।”

प्रमुख सचिव परिवहन ने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक को लिखे गए अपने पत्र में 7 बिंदु का उल्लेख किया है। इसमें उन्होंने बिंदु-6 में लिखा है कि, “वर्तमान में निगम बस बेड़े में लगभग 75 प्रतिशत अपनी बसें एवं अनुबंधित बसें लगभग 25 प्रतिशत हैं, इसे यथाशीघ्र परिवर्तित करते हुए 25 प्रतिशत परिवहन निगम की अपनी तथा अच्छी स्थिति वाली 75 प्रतिशत बसें अनुबंध के आधार पर संचालित कराई जाएं।”

तो वहीं उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक ने निगम की समस्त परिसंपत्तियों के वर्तमान सर्किल रेट मांग लिए हैं। इस पत्र व्यवहार और सर्किल रेट माँगे जाने के बाद से माना जा रहा है कि सरकार ने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के निजीकरण की ओर कदम बढ़ा लिया है। सरकार के इस फैसले के विरुद्ध डेढ़ दशक बाद एक बार फिर रोडवेज यूनियनों द्वारा निजीकरण का पुरजोर विरोध शुरू हो गया है। उनका मानना है कि सरकार चाहे छंटनी न होने और नौकरियां बरकरार रखने का लाख आश्वासन दे लेकिन जब 75 % हिस्सा निजी हाथों में चला जायेगा तो आखिर सबकी नौकरियां कैसे बची रह सकती हैं।

परिवहन निगम के कर्मचारी संगठन एकजुट होकर शासन के इस फैसले पर बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में है। इसके मद्देनजर  परिवहन निगम के विभिन्न नियमित और संविदा  कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों की बीते रविवार,  यानी 13 नवंबर को एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसमें उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ जल्दी ही  एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने का फैसला लिया। यह जानकारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि 2007 में पहली बार रोडवेज को निजी हाथों में सौंपने का सपना पूरा नहीं होने दिया गया। इस बार भी परिवहन निगम में किए जा रहे निजीकरण के अंतर्गत 75 फीसदी निजी ऑपरेटरों की अनुबंधित बसों को लगाए जाने की मंशा पूरी होने नहीं दिया जाएगा।

50 हजार कर्मियों और उनके परिवार के खातिर कर्मचारी संघ एक मंच पर सभी संगठनों को एकजुट करके आगे की लड़ाई लड़ने का फैसला रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री गिरीश चन्द्र मिश्र ने योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा परिवहन निगम के बारे में लिए गए निर्णय का विरोध किया है। उन्होंने मीडिया को बताया कि , “75 फीसदी बसें अनुबंध पर चलाए जाने से रोडवेज़ के 55 हज़ार कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले सरकार द्वारा कर्मचारियों का भी पक्ष सुना जाना चाहिए था। इस संबंध में विशेषज्ञों से राय ली जानी चाहिए थी। लेकिन सरकार ने मनमानी करते हुए निर्णय ले लिया है। योगी सरकार का यह कदम परिवहन निगम का निजीकरण करने की शुरुआत और तैयारी है।”

आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस यानी एक्टू  के प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही ने कहा कि यूपी राज्य परिवहन निगम का निजीकरण बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। वे कहते हैं  उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम के 75 परसेंट संचालन को अनुबंधित निजी बसों के मालिकों को सौंप दिये जाने का फरमान जारी किया है और साथ ही रोडवेज की परिसंपत्तियों की कीमत का  मूल्यांकन करवाकर उसे बेचने की दिशा ले रही है। उन्होंने इसे जनविरोधी और आत्मघाती कदम मानते हुए कर्मचारियों और जनता दोनों के हितों के विरुद्ध माना।

वे कहते हैं वर्तमान में 75 परसेंट बसें रोडवेज चलाता है और 25 परसेंट बसें अनुबंधित हैं परंतु जनता जिन 25% अनुबंधित बसों में बैठती है उनकी हालत भी कोई बहुत अच्छी नहीं। वह छोटी बसें होती हैं। उनकी सीटें बड़ी खराब होती हैं। दो वाली सीट पर तो दो लोग ठीक से बैठ नहीं सकते और उनका स्टाफ भी उतना संजीदा नहीं होता है जितने कि सरकारी रोडवेज की बसों के स्टाफ संजीदा होते हैं। वे कहते हैं, "हम यह भी देख रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी के राज में सार्वजनिक संपत्ति को निजी हाथों में खुल्लम-खुल्ला सौंपा जा रहा है और देश का भारी नुकसान किया जा रहा है।"

वे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम  के पास लगभग 11485 बसों का बेड़ा है और इसके माध्यम से रोजाना 123.35 करोड़ यात्री 43.3 करोड़ किलोमीटर सफर करते है जिससे रोडवेज को सालाना 4473 करोड़ से अधिक की सालाना आय प्राप्त होती है। अब यह बहुत आश्चर्य जनक है कि जो उत्तर प्रदेश  परिवहन निगम  सरकार को  भारी राजस्व दे रहा है ,  सरकार उसी को बडी  होशियारी से  निजी पूंजी पतियों के हाथ में सौंपने जा रही है।  जनता की मशक्कत के पैसे से खड़े हुए परिवहन निगम को बेचने का प्रदेश की सरकार को कोई हक नही है , यह प्रदेश  के हितों को भी भारी नुकसान पहुंचाने वाला कदम है।

विजय विद्रोही ने अंत में कहा कि  75% बसों को अनुबंध पर चलाए जाने से रोडवेज में कार्यरत करीब 55000 कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा। सरकार इस आत्मघाती कदम को तत्काल प्रभाव से वापस ले और रोडवेज को और कुशल बनाएं तथा नई बसों को बेड़े में शामिल करें। तो वहीं उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह  कहते हैं कि रोडवेज कर्मचारियों का हम नुकसान नहीं होने देंगे बल्कि नई नियुक्तियों को बढ़ाएंगे। उनका तर्क है कि केवल डग्गामार बसों को अनुबंधित किया जायेगा।

इसमें दो मत नहीं कि उत्तर प्रदेश परिवहन निगम देश के बड़े परिवहन निगम में आता है। कई हजार कर्मचारी इसमें कार्यरत हैं। सरकार भले ही यात्रियों को बेहतर सुविधा देने की बात कहकर परिवहन निगम का 75 प्रतिशत हिस्सा निजी हाथों में सौंपने का तर्क दे रही हो। लेकिन इस तथ्य को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि बसों के संचालन में जब सरकार का नियंत्रण आधे का भी आधा रह जायेगा तो निजी बस मालिक अपने मुताबिक कर्मचारियों को रखने और ऐसे हालात छटनी पैदा कर सकते हैं। लेकिन इन सब से पहले हमें इस ओर भी गौर करना होगा कि यूपी परिवहन निगम में पहले से ही 25% बसों का संचालन निजी हाथों में है तो क्या हालात ठीक हैं। तो इसका जवाब होगा "बिल्कुल नहीं"। अभी भी अधिकांश बसें बेहद खस्ता हाल में हैं जो यात्रा को सुगम तो हरगिज नहीं बनाती। सरकार कहती है कि प्रदेश में जितनी बसों की जरूरत है उतनी न तो अभी इनके पास हैं और न अभी खरीदने के हालात हैं। बहरहाल सरकार का यह फैसला 55 हजार परिवहन कर्मियों के लिए खतरे की घंटी तो साबित हो ही रही है। साथ ही भविष्य में सरकारी नौकरियों में भी भारी कटौती करने की ओर कदम है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

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