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उत्तराखंड : धर्म और राजनीति का घालमेल करता मंत्री रेखा आर्य का अजीब आदेश!

रेखा आर्य ने अपने विभाग के सभी कर्मचारियों, अधिकारियों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को शिवालयों पर जल चढ़ाने के आदेश दिया है। यह संविधान की मूल भावना और देश में धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने का उल्लंघन है।
rekha arya
फ़ोटो साभार: ट्विटर

उत्तराखंड में महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ बढ़ते अपराध के बीच महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य धर्म और राजनीति के घालमेल को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने अपने विभाग के सभी कर्मचारियों, अधिकारियों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को शिवालयों पर जल चढ़ाने के आदेश दिया है। इससे पहले भी उनके विभाग ने बरेली स्थित मंत्री के निजी आवास में हो रहे एक धार्मिक आयोजन में शामिल होने के लिए भी आधिकारिक आदेश जारी किया था। ये एक धर्म विशेष को राजनीति से जोड़ते अजीबो-गरीब आदेश अब विवाद की शक्ल ले चुके हैं। इसे लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस हमलावर है तो वहीं कई अधिकारी-कर्मचारी असहज भी हैं।

बता दें कि हमारे देश भारत में संविधान का राज है और यहांं सभी धर्मों के सम्मान की बात कही जाती है। यही नहीं संविधान हर व्यक्ति को अपना धर्म स्वंय चुनने और इसके अनुरूप आचरण करने की आजादी भी देता है। इसी के तहत तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभाग काम करते हैं। हालांकि उत्तराखंड की कैबिनेट मंत्री का ये आदेश धार्मिक मामले में पहला ऐसा विवादित आधिकारिक निर्देश कहा जा सकता है, जहां महिलाओं और विभिन्न जातियों और उप-जातियों के सदस्यों की भावनाओं को खुले तौर पर सरकारी पत्र के जरिए नजरअंदाज किया गया है।

आदेश का आंगनवाड़ी संगठन ने किया विरोध

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (AIFAWH) ने रेखा आर्य के इस संप्रदायिक आदेश की कड़ी आलोचना करते हुए इसे फौरन वापस लेने की मांग की है। इसके अलावा AIFAWH ने उत्तराखण्ड में फरवरी 2022 से लम्बित अनुपूरक पोषाहार की राशी और कर्मचारियों के बकाया वेतन भुगतान के लिए भी तत्काल आदेश जारी करने की बात कही है।

संगठन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं विभिन्न धर्मों और व्यक्तिगत मान्यताओं में विश्वास रखती हैं। इन में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, आदिवासी और नास्तिक लोग भी हैं जिनके अलग-अलग व्यक्तिगत विश्वास हैं। ऐसे में किसी भी सरकार या मंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वह उन्हें आधिकारिक कार्य के हिस्से के रूप में धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए कहे।

AIFAWH ने आगे उत्तराखंड की सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं से इस 'जलाअभीषेक और शेल्फी विद शिव' के आदेश का विरोध करने और इसका बहिष्कार करने का आह्वान किया है। संगठन का कहना है कि इस तरह के सरकारी आदेश भारत के संविधान और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने का उल्लंघन है। साथ ही राज्य सरकार द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी अधिनियम को लागू न करना और बच्चियों और महिलाओं को जीवित रहने के लिए भोजन और स्वास्थ्य की बुनियादी सेवाएं प्रदान न करना शर्मनाक है।

मालूम हो कि उत्तराखंड में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता महिलाओं को कई महीनों से मानदेय और अन्य खर्च नहीं मिले हैं। इसे लेकर विभाग के अधिकारियों ने यह बक़ाया राशि जल्द से जल्द उपलब्ध करवाने या ऐसा आश्वासन देने के बजाय यह आदेश जारी कर दिया है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने बक़ाया मानदेय की मांग न करें वरना उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी। 

इसे भी पढ़ें: यहां हक़ मांगना मना है... उत्तराखंड में मानदेय की मांग करने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कार्रवाई की चेतावनी 

क्या है पूरा मामला?

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 20 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने लैंगिक असमानता के ख़िलाफ़ हरिद्वार हर की पैड़ी से कांवड़ यात्रा निकालने का ऐलान किया था। इसी दिन उनकी ओर से एक आदेश जारी किया गया था। इस आदेश में कहा गया कि विभाग ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना के समर्थन में एक कांवड़ यात्रा निकालने का फ़ैसला किया है। इसका संकल्प है, "मुझे भी जन्म लेने दो, शिव के माह में शक्ति का संकल्प।"

आदेश में कहा गया है, "इस संकल्प को पूरा करने के लिए 26 जुलाई, 2022 यानी मंगलवार को महिला एवं बाल विकास विभाग के समस्त जनपद के सभी अधिकारी/कर्मचारी, आंगनबाड़ी, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्री, सहायिका अपने नज़दीकी शिवालयों में जलाभिषेक कर इस पुनी संकल्प सहित इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगे। कार्यक्रम से संबंधित फ़ोटो विभागीय ईमेल आईडी के साथ समस्त जनपदीय अधिकारियों के वाट्सऐप पर प्रेषित करते हुए विभाग का संकल्प पूरा करेंगे।"

इससे पहले भी रेखा आर्य की ओर से एक और सरकारी निमंत्रण पत्र जारी होने के बाद विवाद हो गया था। खाद्य और आपूर्ति विभाग के अपर आयुक्त ने सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को विभागीय मंत्री रेखा आर्य के बरेली स्थित निजी आवास में आयोजित होने वाले एक धार्मिक कार्यक्रम का निमंत्रण दिया था। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे इस निमंत्रण पत्र में निर्देश थे कि अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को भी यह निमंत्रण पत्र उपलब्ध करवाएं।

कांग्रेस ने रेखा आर्य के बयान पर दी तीखी प्रतिक्रिया

इस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद मामले ने तूल पकड़ा। देश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस तरह के आदेश पर रोक लगाने की मांग की। तो वहीं रेखा आर्य ने फिर अपने विवादित बोल में कहा कि निमंत्रण दिया है, कनपटी पर बंदूक तो नहीं रखी है।

कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने रेखा आर्य के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि आप मंत्री हैं, कुछ तो पद की गरिमा बनाकर रखो, क्यों गुंडों-मवालियों वाली भाषा प्रयोग कर रही हैं। दसौनी ने यह भी कहा कि रेखा आर्य वह विवादों में बने रहने और सस्ती लोकप्रियता पाने वाले काम करती रही हैं। ताज़ा आदेश और बयान भी उनकी इसी फ़ितरत को बयान करते हैं।

वैसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का काम महिलाओं और बच्चों के हितों की रक्षा करना होता है, उनके विकास के लिए सुरक्षित माहौल प्रदान करना होता है लेकिन उत्तराखंड के आंकड़े राखी आर्य के कामों के इतर ही कहानी कहते नज़र आते हैं। पहाड़ी राज्यों में हत्या और रेप के मामलों की बात करें तो, उत्तराखंड पहले नंबर पर है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में कोरोना काल के चलते लगे लॉकडाउन के बावजूद राज्य में अपराध पर अंकुश नहीं लगा और क्राइम में दोगुनी बढ़ोतरी देखने को मिली। एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में नौ हिमालयी राज्यों के मुकाबले बलात्कार और बाल यौन शोषण के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए है। आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में 2020 में बलात्कार के 487 मामले दर्ज किए, जो नौ हिमालयी राज्यों में सबसे ज्यादा है। उत्तराखंड के बाद सबसे ज्यादा केस हिमाचल (331 ) में दर्ज किए गए, जिसके बाद त्रिपुरा में 79 केस सामने आए।

गौरतलब है बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य और विवादों का नाता पुराना है। त्रिंवेंद्र सिंह रावत, तीरथ रावत और पुष्कर सिंह धामी की सरकारों के पाँच साल के कार्यकाल में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहीं रेखा आर्य की अपने विभागों के वरिष्ठ अधकारियों से कई बार ठनी। अपने विभागों के आईएएस अधिकारियों के साथ भी उनका ट्यूनिंग रिकॉर्ड ठीक नहीं रहा है। वरिष्ठ राधा रतूड़ी, सौजन्या, झरना कामठान, सुजाता सिंह, सविन बंसल, षणमुगम से रेखा आर्य के विवाद इतने बढ़े थे कि कई अधिकारियों ने उनके साथ काम करने से भी इनकार कर दिया था। लेकिन इस बार रेखा आर्य का कद बढ़ा है और वह कैबिनेट मंत्री बन गई हैं और शायद इसलिए अब वो बड़े विवादों से भी जुड़ रही हैं।

बहरहाल, धर्म का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं होना चाहिए और बीजेपी सभी धर्मों का बराबार सम्मान करती है,ये तो हम सब कई बार सुन चुके हैं। लेकिन बीजेपी नेताओं के आए दिन बयान और अब सरकारी आदेश कुछ और ही इशारा करते हैं। धर्म की राजनीति देश के लिए कितनी घातक हो सकती है ये फिलहाल हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। कई जानकारों का भी मानना है कि अगर वक्त रहते भारत नहीं संभला तो श्रीलंका जैसे हालात यहां भी संभव है।

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