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उत्तराखंड: हर घर जल योजना के तहत घरों में लगे हैं नल, लेकिन पानी का पता नहीं 

मुस्कान कहती हैं- ''हमारे गांव में अधिकांश घरों में हर घर जल योजना के तहत नल भी लग चुके हैं लेकिन इन नलों में अभी तक पानी नहीं आया है, जिसके चलते हमारे गांव में पानी की समस्या ज्यों की त्यों बनी है।''
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मैखंडा गांव में लगे इकलौते नल से पानी भरते हुए ग्रामीण (फोटो-सत्यम कुमार) 

पानी की समस्या पर रुद्रप्रयाग जिले के मैखंडा गांव की रहने वाली मुस्कान बताती हैं- "हमारे गांव में केवल एक ही नल है जिसके कारण हमेशा ही नल पर पानी लेने वालों की भीड़ लगी होती है जिसके चलते पानी लाने में समय भी बहुत लगता है इस वजह से मुझे कई बार स्कूल के लिए भी देरी हो जाती है जिसका असर मेरी पढ़ाई पर भी पड़ता है। गर्मी और बरसात के समय में पानी की समस्या और भी बढ़ जाती है क्योंकि गर्मियों में बहुत थोड़ा-थोड़ा पानी आता है और बरसात के समय पाइप लाइन टूट जाती जिसको सही करने में हफ्तों लग जाते हैं’’...मुस्कान आगे कहती है कि हमारे गांव में अधिकांश घरों में हर घर जल योजना के तहत नल भी लग चुके हैं लेकिन इन नलों में अभी तक पानी नहीं आया है, जिसके चलते हमारे गांव में पानी की समस्या ज्यों की त्यों बनी है। 

यूँ तो हमारे देश की दो बड़ी नदियाँ गंगा, यमुना और इन नदियों की अधिकांश सहायक नदियाँ भी उत्तराखंड के ग्लेशियर से ही निकलती हैं जो उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में पानी की पूर्ती करती हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि पानी की प्रचुर उपलब्धता होने के बाबजूद भी राज्य के अधिकांश पर्वतीय गांवों में पीने के पानी की समस्या बनी रहती है जो गर्मियों के समय में और भी बढ़ जाती है? इसी वर्ष 22 मार्च को वर्ल्ड वाटर डे पर देहरादून में एक सेमिनार को सम्बोधित करते हुए, डायरेक्टर जनरल यूकॉस्ट डॉ. राजेंद्र डोभाल ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में पानी की कमी नहीं है बल्कि सही प्रकार से पानी का प्रबंध नहीं हो पाने के कारण जनता के सामने पीने के पानी की समस्या बनी हुई है, उत्तराखंड राज्य में जल जीवन मिशन के तहत चलने वाली हर घर जल योजना में शायद ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है जहां घरों में नल तो लगे है लेकिन नलों में पानी नहीं है। 

हर घर जल योजना और उत्तराखंड में योजना की वर्तमान स्थिति

हर घर जल परियोजना जिसकी घोषणा 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लालकिले की प्राचीर से की गयी।  इस योजना के अनुसार देश के सभी ग्रामीण इलाक़े के घरो तक 55 लीटर तक प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी पहुंचाया जाना है। अगर उत्तराखंड राज्य की बात करें तो खबर लिखे जाने तक जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 15,18,115 परिवार हैं जिनमें से 15 अगस्त 2019 तक मात्र 1,30,325 परिवारों के घर में पानी की सुविधा थी, लेकिन वर्तमान में जल जीवन मिशन के तहत आज 9,34,259 घरों में नल लग चुके हैं जो राज्य के कुल ग्रामीण परिवारों का 61.54 प्रतिशत है। जल जीवन मिशन के तहत सबसे ज़्यादा देहरादून जिले में 94.89 प्रतिशत घरो में नल लग चुके हैं और हरिद्वार जिले में सबसे कम 39.06 प्रतिशत, लेकिन यहां पर सवाल है कि क्या ये 61.54 प्रतिशत ग्रामीण परिवार हर घर जल योजना का लाभ उठा रहे है?

केदार घाटी में मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा मैखंडा गाँव रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक में आता है। मैखंडा आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा है और इस गांव के अधिकांश लोग पिछड़ी और अनुसूचित जाति से आते हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस गांव की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से दिहाड़ी मजदूरी और खेती किसानी पर ही निर्भर करती है। नेशनल हाईवे 107 पर बसे होने के कारण इस गांव में कुछ सुविधाएँ जैसे स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और किराना दुकानें तो आसानी से मिल जाती हैं लेकिन आज भी इस गांव के लोग पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। देश के दुसरे इलाकों की तरह ही मैखंडा में भी पानी लाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से घर की महिलाओं और लड़कियों की ही होती है। बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली मुस्कान बताती हैं कि हर रोज सुबह के समय घर के कामों के लिए पानी उन्ही को लाना होता है, क्योंकि घर के पुरुष सुबह ही काम की तलाश में घर से निकल जाते हैं और माँ को घर के और भी काम करने होते हैं। 

जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड के अनुसार मैखंडा गाँव में 238 परिवार रहते हैं जिनमें से 192 यानी कि 80% से ज़्यादा घरों में नल से जल प्रदाय होता है। लेकिन, वास्तविकता में पूरे गाँव की पानी की ज़रूरतों को सिर्फ एक ही नल पूरा करता है। पानी से सम्बंधित अपनी सभी प्रकार की जरूरतों के लिये गांव के लोग इसी नल पर निर्भर रहते हैं। मैखंडा में दो साल पहले घरों में हर घर जल योजना के तहत नल लगे थे लेकिन इन नलों में अभी तक पानी नहीं आया है।

घरों में नल लग चुके है लेकिन जल स्रोतों का कोई ठिकाना नहीं

टिहरी जिले के नरेंद्र नगर ब्लॉक के गांव रोंदेली में पानी की भारी किल्लत है, गांव के प्रधान दिनेश सिंह बताते हैं- ‘’हमारे गांव में विरोंदा पानी के स्त्रोत से पानी आता है लेकिन प्रशासन की गलत नीतियों के कारण इस स्त्रोत के पानी को कुछ और गांव में भी दिया जाता है, जिसके चलते न तो हमारे गांव के लोगो को ही पर्याप्त मात्रा में पानी मिल पता है और न ही बाकी के गांव को, हमारे गांव में हर घर जल योजना के तहत नल भी लगाए गए हैं लेकिन उनको अभी तक पानी के स्त्रोत से नहीं जोड़ा गया है, कारण पूछने पर अधिकारी बताते हैं कि हमारे गांव के लिये अभी कोई जल स्त्रोत निर्धारित नहीं किया गया है” दिनेश सिंह आगे कहते हैं- कि मेरे द्वारा कई बार विभाग के अधिकारियो से हमारे गांव के लिए बनी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट(DPR) मांगी गयी ताकि मुझे मालूम हो सके कि हमारे गांव के नलों को किस पानी के स्त्रोत से जोड़ा जा रहा है, लेकिन आज तक इस प्रकार की कोई जानकारी मुझे नहीं दी गयी’’

विरोंदा गांव में पानी का इंतज़ार करता नल (फोटो-कंचन राणा)

जिन गावों में नलों को पानी के स्रोतों से जोड़ा गया है वहां भी पानी की समस्या है, चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक में पैनी गांव के रहने वाले मनमोहन सिंह कहते हैं- “घरो में नया नल तो लगा है लेकिन पानी का स्रोत वही पुराना है प्रत्येक घर में नल होने से लोग इस पानी का इस्तेमाल अपने घर के कामों के साथ-साथ घर के आस पास के खेतों की सिंचाई के लिए भी करने लगे हैं, जिसके कारण पानी की खपत और बढ़ी है पर जल आपूर्ति नहीं, यह एक नयी समस्या आज हमारे गांव के लोगो के सामने खड़ी है, ”मनमोहन सिंह आगे कहते हैं- कि हमारे गांव के नलों में पानी की मात्रा इतनी कम हो चुकी है कि यदि हमारे नल से पहले कोई अपना नल चालू कर दे, तो हमारे नल में पानी नहीं आता और यदि हम अपना नल चालू कर दे तो हमसे ऊपर वाले घर के नल में पानी नहीं आता है’’

जल स्रोतों में घटती पानी की मात्रा भी है एक समस्या 

घर में नल लगाने के बाद भी नलों में पानी नहीं आने का कारण जानने के लिए हमारे द्वारा रुद्रप्रयाग जिले के हर घर जल योजना के नोडल अधिकारी नवल कुमार सिंह से पूछा गया तो उन्होंने बताया, "हर घर जल परियोजना के तहत पहले से उपलब्ध जल स्त्रोत से जल को हर घर तक पहुँचाना था लेकिन मैखंडा ग्राम सभा के जल स्त्रोत में पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण नलों को मुख्य लाइन से अभी नहीं जोड़ा गया है। हमारे द्वारा दूसरे जल स्त्रोत को खोजा जा रहा है।" नवल कुमार सिंह आगे बताते हैं- कि हर घर जल योजना के अनुसार 55 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्ध कराया जाना है और यदि किसी जल स्त्रोत से ये आपूर्ति नहीं होती है तो गांव की पानी की लाइन को दूसरे किसी पानी के स्त्रोत से जोड़ा जायेगा।’’

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के बारे में यह जानना भी जरुरी है कि गर्मी बढ़ने के साथ जलस्त्रोतों में पानी की मात्रा बड़ी तेजी से घटती जाती है। गदेरे (नहर), झरने और धाराएं ही प्राचीन समय से पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोगों की पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करते आये हैं लेकिन पिछले कुछ समय से पानी के इन स्त्रोतों में पानी की निकासी लगातार घटी है। इन क्षेत्रों में किये गए तमाम शोध भविष्य में आने वाले पेयजल संकट की ओर इशारा करते हैं।

इस विषय पर यूकॉस्ट में डिस्ट्रिक्ट कोर्डिनेटर और डीएवी कॉलेज में रसायन विभाग में प्रोफ़ेसर डॉ. प्रशांत सिंह बताते हैं- "हमारे कई शोधार्थी राज्य बनने के बाद से पेयजल की स्थिति पर लगातार शोध कर रहे हैं। ये सभी शोध भविष्य में गंभीर पेयजल संकट की ओर इशारा करते हैं। इसलिए हमें अपने प्राकृतिक जल स्त्रोतों सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।" डॉ. प्रशांत सिंह आगे बताते हैं कि जल स्त्रोतों के घटते जल स्तर के लिए ग्लोबल वार्मिंग के साथ पहाड़ों में अनियोजित रूप से बन रही सड़कें, निर्माण कार्यों के लिए किये जाने वाले विस्फोटों के साथ पहाड़ों में बढ़ता चीड़ का जंगल जिम्मेदार है। हमें अपने प्राकृतिक जल स्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए जरुरी कदम उठाने होंगे। जिसके लिए हमारे द्वारा पानी की डिस्चार्ज की कमी को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर काम किया जा रहा है।

टिहरी जिले की सत्यो घाटी में सर पर पानी ले जाते ग्रामीण  फोटो सत्यम कुमार 

कारण चाहे जो भी रहे हों पानी की समस्या उत्तराखंड राज्य में होने वाले पलायन के मुख्य कारणों में से एक है। आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं और बच्चों को, अपने घरों से दूर स्थित पानी के स्रोतों से पानी लाते हुए बहुत आसानी से देखा जा सकता है। जिस कारण तमाम तरह की समस्या का सामना पहाड़ में रहने वाली महिलाओं को करना पढता है। हर घर जल योजना पहाड़ में रहने वाली इन महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा यदि कार्य दायी संस्थायें इस परियोना को पहाड़ की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ाये।

(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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