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उत्तराखंड: बीजेपी विधायक महेश नेगी से जुडे़ दुष्कर्म मामले की जांच मुश्किल क्यों?

उत्तराखंड के अल्मोड़ा के द्वाराहाट क्षेत्र से बीजेपी विधायक महेश नेगी के खिलाफ एक महिला ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया है। अब इस मामले को देहरादून से पौड़ी ट्रांसफर कर दिया गया है।
Mahesh Negi

देहरादून: उत्तराखंड भाजपा के विधायक पर यौनशोषण का केस दर्ज करने से लेकर निष्पक्ष जांच की प्रक्रिया में मुश्किलों के कई मोड़ आ चुके हैं। अल्मोड़ा के द्वाराहाट क्षेत्र से विधायक महेश नेगी पर कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केस दर्ज हो सका। विधायक पर आरोप लगाने वाली पीड़ित महिला ने अदालत से लेकर सोशल मीडिया तक अपनी आपबीती सुनाई।

विधायक पर सितंबर में दर्ज केस की जांच नवंबर में भी किसी दिशा में नहीं पहुंच सकी। और अब पुलिस पर दबाव की बात कहकर केस देहरादून से पौड़ी ट्रांसफ़र कर दिया गया है। जबकि पीड़ित महिला पुलिस पर दबाव की बात कहकर सीबीआई जांच की मांग कर चुकी है।

क्या है पूरा मामला

13 अगस्त को भाजपा विधायक महेश नेगी की पत्नी रीता नेगी की एफआईआर के बाद ये मामला सामने आया। उन्होंने देहरादून के नेहरू कॉलोनी थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी कि उनके पति को को एक महिला ब्लैकमेल कर रही है और रुपये मांग रही है।

इसके बाद सोशल मीडिया पर पीड़ित लड़की के वीडियो वायरल होने लगे, जिसमें वह विधायक पर दुष्कर्म के आरोप लगा रही थी। ये भी कि पुलिस उसका केस दर्ज नहीं कर रही। महिला की एक बेटी भी है।

उसके आरोप हैं कि विधायक एक साल से भी ज्यादा समय से उसका दुष्कर्म कर रहे थे। महिला की शादी के पहले और शादी के बाद भी ये सिलसिला जारी रहा। उस पर जबरन दबाव बनाया जाता। देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जाकर दुष्कर्म किया गया। इससे उसकी शादी भी टूट गई। पीड़ित महिला ने अपनी बेटी का पिता भी विधायक को ही बताया है।

पीड़ित महिला ने आरोप लगाया कि पुलिस विधायक के खिलाफ उसका केस दर्ज नहीं कर रही है। उसने देहरादून कोर्ट की शरण ली। कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने 6 सितंबर को विधायक और उनकी पत्नी पर दुष्कर्म और जान से मारने की धमकी देने का केस दर्ज किया। इस हाईप्रोफ़ाइल मामले में पुलिस की कार्रवाई को लेकर सवाल उठते रहे। दोनों ही मामलों की जांच शुरुआत में देहरादून की नेहरू कॉलोनी मामले को सौंपी गई।

पुलिस पर आरोप, बदले गए जांच अधिकारी

पीड़ित महिला के वकील एसपी सिंह न्यूज़ क्लिक को बताते हैं कि नेहरू कॉलोनी थाने की जांच अधिकारी पीड़ित महिला पर लगातार समझौते का दबाव बना रही थी। जिसके बाद विधायक पर लगे आरोपों का केस एसएसपी ने देहरादून के स्पेशल इनवेस्टिगेटिव स्टाफ यानी एसआईएस को केस ट्रांसफर किया। जिसकी जांच अधिकारी आशा पंचम थीं।

महिला पर चल रहे ब्लैकमेलिंग केस की विवेचना देहरादून की नेहरु कॉलोनी थाने की पुलिस से लेकर सीओ सदर अनुज कुमार को सौंप दी गई। एसआईएस ने पीड़िता के बयानों के आधार पर नैनीताल, मसूरी, दिल्ली जैसी कई जगहों पर जाकर सुबूत जुटाए।

एसआईएस की जांच चल रही थी लेकिन सीओ सदर ने ब्लैकमेलिंग केस की जांच पूरी कर ली। 16 नवंबर को पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी। इसमें बाकी सभी आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया गया लेकिन मुख्य आरोपित महिला को ब्लैकमेलिंग का दोषी पाया गया।

इसके अगले ही दिन आईजी गढ़वाल रेंज अभिनव कुमार ने चार्जशीट वापस लेकर मामले को पौड़ी स्थानांतरित कर दिया। यानी कि अब इस हाई प्रोफ़ाइल केस की जांच फिर होगी। कमाल की बात यह है कि खुद आईजी गढ़वाल अभिनव कुमार कह रहे हैं कि देहरादून के डीआईजी ने सितंबर में ही इस केस को कहीं और ट्रांस्फ़र किए जाने को कहा था।

हालांकि सवाल तो यह है कि उन्होंने यह फ़ैसला दो महीने बाद क्यों किया। यह भी कि जो डीआईजी लगातार निष्पक्षता से जांच करने का दावा कर रहे थे उन्होंने क्यों केस अपने ज़िले से ट्रांसफर करने को कहा? अब पौड़ी के श्रीनगर महिला थाने की पुलिस मामले की जांच करेगी।

पुलिस पर पक्षपात के लग रहे थे आरोप

न्यूज़ क्लिक से बातचीत में आईजी गढ़वाल रेंज अभिनव कुमार कहते हैं कि एक पक्ष (विधायक पर दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली पीड़ित महिला) पुलिस पर निष्पक्षता से जांच नहीं करने का आरोप लगा रही है। अनावश्यक ही पुलिस पर पक्षपात के आरोप लग रहे थे। इन आरोपों को देखते हुए मैंने एसएसटी से मशविरा किया और इस केस को देहरादून से पौड़ी ट्रांसफ़र कर दिया।

पुलिसकर्मी की पिटाई

इस मामले में एक और एंगल है। हरिद्वार में तैनात एक पुलिसकर्मी ने भाजपा विधायक महेश नेगी पर अपनी पिटाई करने का आरोप लगाया है। हरिद्वार पुलिस लाइन में तैनात ये सिपाही पीड़ित महिला का पुराना परिचित है। उसने महिला के ख़िलाफ़ बयान दर्ज करवाए थे कि उसके भी महिला से शारीरिक संबंध थे और वह उसे भी ब्लैकमेल कर रही थी।

बाद में सिपाही ने दावा किया कि बीजेपी के एक और विधायक का गनर उसे हरिद्वार से विधायक हॉस्टल लेकर आया। जहां विधायक महेश नेगी और उनके साथियों ने उसकी बुरी तरह पिटाई की। तमंचे दिखाकर उसे धमकाया और पीड़िता के ख़िलाफ़ बयान दर्ज करने का दबाव डाला। इस सिपाही के अनुसार उसके पिटाई करते हुए वीडियो बनाए गए।

इस बातचीत का वीडियो वायरल होने के बाद सिपाही के बयान फिर दर्ज किए गए और उसके ख़िलाफ़ जांच हरिद्वार पुलिस को रेफ़र कर दी गई। इस मामले पर दून और हरिद्वार दोनों पुलिस ख़ामोश हैं।

सीबीआई जांच की मांग

देहरादून पुलिस पर लगातार पक्षपात करने का आरोप लगा रही पीड़ित महिला ने 21 अक्टूबर को नैनीताल हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस मामले में सीबीआई, उत्तराखंड सरकार समेत विधायक महेश नेगी, विधायक की पत्नी रीता नेगी को नोटिस जारी कर 4 हफ़्तों में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट को इस मामले की सुनवाई 10 नवम्बर को करनी थी लेकिन दिवाली की छुट्टी की वजह से वह टल गई। कोर्ट अब जल्द ही सुनवाई की नई तारीख देगी।

नैनीताल हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की मांग को लेकर पीड़ित महिला का पक्ष रख रहे वकील अवतार सिंह न्यूज़ क्लिक को बताते हैं कि सत्ता पक्ष के विधायक और प्रभावशाली व्यक्ति होने के कारण या अन्य किसी वजह से पुलिस सही जांच करने में सक्षम नहीं है। पीड़िता की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि भले ही पुलिस ने हाईकोर्ट के दबाव के बाद जांच अधिकारी बदले हैं लेकिन अब तक सभी पीड़िता पर समझौते का दबाव डालने में लगे हुए हैं। गवाहों को डराया-धमकाया जा रहा है। उनको आरोपी के पक्ष में बयान देने और पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाने को कहा जा रहा है।

पौड़ी केस ट्रांसफ़र करने से क्या होगा?

इस केस को पौड़ी ट्रांसफ़र करने पर वकील अवतार सिंह कहते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ेगा। यदि देहरादून पुलिस पर दबाव पड़ रहा है या पक्षपात के आरोप लग रहे हैं तो क्या पौड़ी पुलिस  पर ये दबाव काम नहीं करेगा। यदि पक्षपात के आरोप से बचना ही था तो पुलिस जांच सीबीआई को या अन्य किसी इंडिपेंडेंट एजेंसी को सौंपती। इस केस की जांच देहरादून से हो रही है या पौड़ी से इससे तो फर्क नहीं पड़ता। मान लीजिए कि सरकार अपने विधायक को बचाना चाहती है तो केस ट्रांसफ़र से क्या फर्क पड़ेगा। अवतार सिंह सवाल करते हैं कि देहरादून से केस ट्रांसफ़र करने का भी कोई दबाव होगा? अब यही दबाव पौड़ी पर भी कार्य करेगा?

विधायक का डीएनए क्यों नहीं, बाल संरक्षण आयोग का नोटिस

पीड़िता की नन्ही बेटी भी इस मामले की शिकार है। पीड़ित महिला ने विधायक को अपनी बेटी का पिता बताया है और डीएनए जांच की मांग की है। इस मामले के वकील एसपी सिंह कहते हैं कि विधायक की डीएनए जांच कराने में क्या हर्ज है। जबकि पीड़िता ने अपनी बेटी और पति का डीएनए टेस्ट कराया है। जिससे यह साफ़ हो गया है कि वह बच्ची के पिता नहीं हैं।

बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए देहरादून के डीआईजी अरुण मोहन जोशी को चिट्ठी लिखकर कार्रवाई के लिए कहा। उन्होंने महिला को भी पेश होने के लिए बुलाया हालांकि वह अभी बाल आयोग के सामने पेश नहीं हुई हैं।

यहां एनडी तिवाड़ी मामले का भी उदाहरण दिया जा सकता है। जब उनका डीएनए टेस्ट कराया जा सकता है तो भाजपा के विधायक महेश नेगी का डीएनए टेस्ट क्यों नहीं?

समय बिताने के लिए केस ट्रांसफ़र!

उत्तराखंड कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि भाजपा सरकार अपने विधायक को बचाने के लिए हर तरह का हथकंडा अपना रही है। शुरू से ही महिला को डराया धमकाया गया। कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। वे कहते हैं कि उत्तराखंड भी चिन्मयानंद और कुलदीप सेंगर की राह पर चल पड़ा है। इस केस को पौड़ी ट्रांसफ़र किया जाना कानून व्यवस्था के लचरपन, कानून लागू करने वाली एजेंसी के दुरूपयोग को दर्शाता है।

उनका कहना है कि पुलिस पूरी तरह से दबाव में है। जो मुख्य शिकायत है उस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ। महिला के खिलाफ जांच पूरी कर दी गई। वह कहते हैं कि सरकार मामले को खींचना चाहती है। जैसे-जैसे समय बीतेगा, लोग इस केस को भूलते जाएंगे। लड़की से समझौता कर मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाएगा। पहले भी ऐसा हो चुका है।

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