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योगी जी, आपके राज में बलात्कारी नहीं, अभी भी महिलाएं ही डरी हुई हैं!

उत्तर प्रदेश का ‘मिशन शक्ति’ हो या चार साल के कार्यकाल की किताब, महिला सुरक्षा को लेकर हक़ीक़त दावों से उलट ही है। केवल मार्च भर की ही बात करें तो अभी तक दर्जनों रेप, गैंगरेप की घटनाएं हमारे सामने आ चुकी हैं।
योगी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 19 मार्च को अपने चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर एक डेवलपमेंट बुकलेट जारी की। "सेवा और सुशासन के चार वर्ष" शीर्षक वाली इस बुकलेट में सरकार ने अपनी कथित उपलब्धियों का बढ़चढ़ कर ब्योरा दिया।

बुकलेट में तमाम विकास कार्यों के बखान के साथ महिला सुरक्षा की भी बात कही। वैसे भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसी भी मौके पर इस बात पर जोर देना नहीं भूलते कि जब से उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाली है, तब से ही प्रदेश की महिलाओं के लिए एक भयमुक्त वातावरण बनाने की दिशा में कारगर काम किए जा रहे हैं, उनका दावा तो यहां तक है कि बलात्कार के मामलों में अब जल्द कार्रवाई होने और बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलने के कारण बलात्कारी काफी डरे हुए हैं और पहले के मुकाबले उनकी सरकार के कार्यकाल में बलात्कार, यौन हिंसा, छेड़खानी जैसी घटनाओं में काफी हद तक कमी आई है।

जाहिर सी बात है, जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार यह मान चुकी है कि उसकी वजह से आज प्रदेश की महिलाएं, स्कूल कॉलेज  जाने वाली छात्राएं, नाबालिग बच्चियां, सब एक महफूज वातावरण में सांस ले रही हैं, उसकी वजह से ही आज बलात्कारी से लेकर मनचले, शोहदे सब डर के साए में जी रहे हैं, तो अपनी इस इतनी बड़ी उपलब्धि का बखान भला सरकार अपनी बुकलेट मे क्यों न करती।

पर सरकार की बुकलेट और उसके दावे कुछ भी कहे, आए दिन प्रदेश में होने वाली बलात्कार, यौन हिंसा, छेड़खानी की घटनाएं हमें यह बताती हैं कि हालात आज भी बेकाबू हैं, आज भी बलात्कारी नहीं बल्कि महिलाएं डर के वातावरण में जी रही हैं इतना ही नहीं बल्कि पुलिस के उपेक्षापूर्ण रवैए के कारण पीडिताएं अपनी जान तक देने में मजबूर हो  रही हैं और यह महज हमारा आकलन नहीं बल्कि प्रदेश का वह सूरत-ए-हाल है, जिसकी बयानी खुद यौन हिंसा की घटनाएं कर रही हैं।

लगातार हम ऐसी घटनाओं से रू-ब-रू  हो रहे हैं जो महिला सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा रही हैं। एक तरफ सरकार अपने चार साल का जश्न मनाती है तो दूसरी तरफ़ ठीक उसके बाद एक एक कर सामने आनी वाली बलात्कार की घटनाएं दिल दहला देती हैं। हमीरपुर, आगरा, मेरठ, हापुड़, हर ओर से आने वाली खबरों ने मौजूदा "सुशासन" के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि बेटियों को सम्पूर्ण सुरक्षा देने के जिस संकल्प के साथ प्रदेश में भाजपा सरकार सत्तासीन हुई थी आखिर उस संकल्प का क्या हुआ? हम इन घटनाओं का जिक्र करें, उससे पहले हमें यह मानने में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि महिलाओं के पक्ष में ठोस कदम उठाते हुए उनके लिए हिंसामुक्त, भयमुक्त वातावरण बनाने का जितना दावा योगी सरकार करती रही है, तस्वीर ठीक उसके उलट दिखाई देती है।

पहले बात हमीरपुर जिले की, बीते दिनों हमीरपुर के भरुआ सुमेरपुर थाना क्षेत्र के एक गांव की 14 वर्षीय छात्रा ने अपने ही गांव के शोहदे की छेड़खानी और ब्लैकमेलिंग से तंग आकर खुद को आग के हवाले कर दिया। उसकी नाजुक हालत देखते हुए बेहतर इलाज के लिए उसे हमीरपुर जिला अस्पताल से कानपुर रेफर कर दिया गया।

पीड़िता की मां के मुताबिक लड़का आए दिन बेटी को परेशान करता था जिसकी शिकायत उसने पुलिस से भी की थी लेकिन समय रहते पुलिस ने जब उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की तो उनकी बेटी ने क्षुब्ध होकर ऐसा कदम उठा लिया तो वहीं आगरा की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अभी भी बलात्कारी बेख़ौफ़ होकर अपने मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं, फिर बलात्कारियों के अंदर डर पैदा करने का लाख दावा यह सरकार करती रहे।

आगरा की घटना 29 मार्च की है, बलात्कार की शिकार महिला ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि सोमवार (29 मार्च) की शाम 6 बजे के करीब अपने पति के साथ बाइक से एत्मादपुर से अपने मायके एत्मादौला जा रही थी इसी बीच तीन युवकों ने उनका रास्ता रोक लिया और न केवल उनके साथ मार पिटाई की बल्कि जबरन झाड़ियों में खींचकर ले गए, उन्हें निर्वस्त्र कर उनका वीडियो बनाया, तीनों युवकों ने उसका रेप किया और उनके साथ लूटपाट भी की। अभी इस घटना का शोर थमा भी नहीं था कि मेरठ और हापुड़ से परेशान करने वाली खबरें सामने आईं।

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मेरठ के सरधना में ट्यूशन से लौट रही दसवीं की छात्रा को उसी के गांव के चार युवकों ने अगवा कर गैंगरेप किया। अपने साथ हुई इस घटना से छात्रा इतनी आहत थी कि उसने घर पहुंचकर ज़हरीला पदार्थ खा लिया। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई तो वहीं हापुड़ जिले से एक किशोरी को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म करने और आरोपियों द्वारा शव को नोएडा एक अस्पताल में छोड़कर फरार होने का मामला सामने आया।

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ये तो वे तमाम घटनाएं हैं जो 19 मार्च के बाद, महज दस से बारह दिनों के अंदर सामने आईं यानी जिस दिन मुख्यमंत्री जी अपने चार साल के "सेवा और सुशासन" की लंबी चौड़ी लिस्ट उत्तर प्रदेश की जनता के सामने पेश कर रहे थे, हर क्षेत्र में सरकार के कार्यों की मिसालें पेश कर रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ़ प्रदेश की बेटियां गैंगरेप, छेड़खानी से आहत होकर अपनी जानें दे रही थीं।

इसी साल जनवरी से लेकर मार्च की बात करें तो हमारे सामने लगातार रेप, गैंगरेप के बाद हत्या या पीड़िता द्वारा आत्महत्या की खबरें सामने आ रही हैं। हम कैसे भूल सकते हैं इसी साल जनवरी की शुरुआत में ही बंदायू जिले के अघैती थाना क्षेत्र से एक विचलित करने वाली खबर सामने आती है जहां मंदिर में पूजा करने गई एक पचास की आंगनबाड़ी सहायिका के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मौत हो गई। मंदिर के महंत और उसके दो साथियों पर रेप का आरोप है। रेप के बाद खून से लथपथ महिला को आरोपी उसके घर छोड़ फरार हो जाते हैं।

यह नए साल की शुरुआत थी, जब हमें ऐसी वीभत्स घटना से सामना हुआ पर सिलसिला यहीं नहीं थमता, बदस्तूर उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं जारी हैं, कहीं बेटियां पुलिस के उपेक्षापूर्ण रवैए से आत्मदाह, आत्महत्या करने को मजबूर हो रही हैं तो कहीं रेप, छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करने पर पीड़ित परिवार के सदस्य को सरेआम मौत के घाट उतार दिया जा रहा है, उसके बावजूद यह दावा किया जाना कि अब प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित हैं, बलात्कारी डरे हुए हैं सरकार की जल्दबाजी ही दिखाता है।

बीते दस मार्च को लखनऊ विधान भवन के सामने आखिर एक रेप पीड़ित बेटी को क्यूं आत्मदाह के लिए मजबूर होना पड़ा, क्या इसका जवाब है हमारे सिस्टम के पास। यदि समय रहते वहां मौजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसे न बचा लिया जाता तो एक बेटी के संघर्ष के सच उसी के साथ दफन हो जाता। वह सुल्तानपुर की रहने वाली थी, वह कहती है कुछ दिन पहले एक युवक ने उसके साथ दुष्कर्म किया।

इस मामले में पीड़िता ने आरोपित और उसके दोस्त के ख़िलाफ़ जब पुलिस में एफआईआर लिखवाई तो पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो जरूर लेकिन जेल नहीं भेजा और थाने से ही छोड़ दिया। पुलिस के इस रवैए से आहत युवती ज्वलनशील पदार्थ लेकर विधान भवन के सामने पहुंच गई और खुद पर छिड़काव करने लगी इस बीच वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों द्वारा उसे पकड़ लिया गया।

मार्च महीने की ही पांच तारीख को संभल जिले बहजोई थाना क्षेत्र से खबर आती है कि एक दलित रेप पीड़िता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक साल पहले उसका रेप हुआ। आरोपी युवक को जेल भी हुई लेकिन आए दिन आरोपी के परिवार की ओर से मिल रही जान से मारने की धमकी और केस खत्म करने का दबाव इतना बढ़ता रहा कि पीड़िता अपना मानसिक संतुलन खोने लगी और एक दिन उसने मौत को गले लगा लिया।

ऐसी ही दास्तान बुलंदशहर की उस 19 वर्षीय रेप पीड़िता की भी है जिसने पुलिस के रवैए से परेशान होकर अंततः आत्महत्या कर ली। घटना चार महीने पहले की है जब एक कानून की छात्रा को सुसाइड करने को मजबूर होना पड़ा। अपने पीछे वह सुसाइड नोट छोड़ गई जिसमें लिखे एक एक शब्द ने यह ज़ाहिर किया कि एक रेप पीड़िता के लिए चुनौतियों की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं कि वह लड़ते लड़ते इतनी धाराशायी हो जाए कि वह अपराध के लिए खुद को ही दोषी मानने लगे। एक बलात्कार उसका शारीरिक होता है और उसके बाद यह समाज और सिस्टम बार बार उसका मानसिक बलात्कार करता है।

मृतका के सुसाइड नोट के मुताबिक चार युवकों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया जिसमें से एक उसका परिचित था तीन उसके दोस्त। पुलिस ने उसकी शिकायत दर्ज तो की लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे वह बेहद आहत थी। उसके पिता ने बताया कि पुलिस की निष्क्रियता से परेशान होकर उनकी बेटी ने खुदकुशी कर ली। फेहरिस्त लंबी है, उससे गई गुना लंबा हैं इन बेटियों और इनके परिवार का संघर्ष। जो जीवित हैं और अपने पर हुए यौन हिंसा के खिलाफ़ लड़ रही हैं उनके लिए भी राह आसान नहीं।

हम यहां साफ देख सकते हैं कि घटनाएं इस हद तक घट रही हैं जहां पीड़िता के परिवार के किसी सदस्य को सरेआम जान से मार दिया जाता है। हाथरस में एक पिता को इसलिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी के साथ हुई छेड़खानी की एफआईआर दर्ज करवाई थी। जमानत पर छूटे मुख्य आरोपी द्वारा पीड़िता के पिता को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी गई।

अभी इस घटना को हुए कुछ ही दिन बीते थे कि आठ मार्च को कानपुर से भी ऐसी ही एक घटना सामने आई। अपनी नाबालिग बेटी के साथ हुई गैंगरेप की पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद एक पिता को ट्रक ने कुचलकर मार डाला।

परिवार का आरोप है कि यह अकस्मात घटी घटना नहीं बल्कि हत्या है और इसमें पुलिस की भी मिलीभगत है क्योंकि आरोपी के पिता दरोगा हैं।

ये घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि इस क़दर ख़ौफ़ पैदा किया जा रहा है कि पीड़ित परिवार न केवल न्याय की उम्मीद छोड़ दे बल्कि शिकायत तक दर्ज करवाने की हिम्मत न कर सके। महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराध में दोषियों के लिए "जीरो टॉलरेंस" रखने का वादा करने वाली योगी सरकार के आंकड़ों के खेल भले ही बेहतर कानून व्यवस्था का दावा करें, महिलाओं के पक्ष में बहुत कुछ सकारात्मक करने का ढिंढोरा पीटे लेकिन तस्वीर ठीक इसके उलट है आए दिन होने वाली गैंगरेप, यौन हिंसा, की घटनाएं हमें यह बताती हैं कि सच वह नहीं जिसे बताया जा रहा है बल्कि वह है जिसे छुपाया जा रहा है यानी अपराधी बेख़ौफ़ होकर ऐसे कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं, पुलिस भी बलात्कार, यौन हिंसा, छेड़खानी जैसे गंभीर अपराधों पर न केवल काबू करने में नाकाम साबित हो रही है बल्कि पुलिस की घोर लापरवाही बलात्कारियों के हौसले बुलंद कर रही है।

ऐसे असंख्य उदाहरण हमारे सामने हैं जहां पुलिस द्वारा दोषियों के खिलाफ़ त्वरित कार्रवाही की बजाय पीड़ित पक्ष को ही एफ आई आर तक दर्ज करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।

पिछले दिनों गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे थे कि सरकार ने संगठित अपराध को पूरी तरह खत्म कर दिया है और यदि कहीं कोई अपराधी समाज के लिए सुरक्षित माहौल में बाधा डालता है तो उसको कुचलने के लिए प्रशासनिक खुली छूट है और उनके इस तरह अपनी सरकार की पीठ थपथपाने से ठीक दो दिन पहले यानी दो मार्च को गोरखपुर में ही एक युवती का गैंगरेप होता है अपने पर हुई इस हिंसा के खिलाफ़ जब युवती ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाना चाही तो इस मामले असंवेदनशील रवैया अपनाते हुए पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की लेकिन जब रेप का वीडियो वायरल हुआ तब जाकर बड़े अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद तीन मार्च को एफआईआर दर्ज हुई।

केवल मार्च भर की ही हम बात करें तो अभी तक दर्जनों रेप, गैंगरेप की घटनाएं हमारे सामने आ चुकी हैं और यह हालात तब हैं जब योगी सरकार प्रदेश की महिलाओं, बालिकाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंब के लिए "मिशन शक्ति" चला रही है और इस मिशन की बदौलत राज्य में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली हिंसा पर कमी का दावा भी कर रही है। सरकार ने इस मिशन को शारदीय नवरात्र से लेकर वासंतिक नवरात्र तक चलाने का फैसला लिया है यानी पिछले साल 17 अक्टूबर से शुरू हुआ यह अभियान 13 अप्रैल तक चलेगा।

इसकी कथित सफलता को देखते हुए सरकार अब इसके दूसरे चरण की भी तैयारी कर रही है। हाल ही में महिला दिवस के मौके पर सरकार ने महिला अपराधों की विवेचना में तेजी लाने के लिए हर जिले में रिपोर्टिंग पुलिस चौकी खोलने का फैसला लिया जिसका नेतृत्व एडिशनल पुलिस अधीक्षक करेंगे।

सरकार कहती है कि इस मिशन शक्ति के तहत वह राज्य के 75 जनपदों, 521 ब्लॉकों, 59,000 पंचायतों, 630 शहरी निकायों और 1,535 थानों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के ऐसे कार्यक्रम संचालित कर रही है जहां उनके भीतर यह विश्वास पैदा किया जा रहा है कि वे ख़ौफ़ के साए में न जिए क्योंकि सरकार उन्हें और उनके सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए कारगर कदम उठा रही है।

अभियान के पूरे होने में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं। जबसे मिशन शक्ति की शुरुआत हुई है तब से अब तक इसकी सफलताओं को गिनाने में सरकार जुट गई है। सरकार कहती है इस मिशन शक्ति के तहत महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराध खासकर यौन हिंसा, रेप, गैंगरेप में कमी आई है, अब महिलाएं नहीं बल्कि अपराधी, बलात्कारी ख़ौफ़जदा हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है, तो वहीं अभियोजन विभाग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आशुतोष पांडेय कहते हैं महिला अपराधों के मद्देनजर अपराधियों को सजा दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। उनके मुताबिक राज्य में करीब 55% ऐसे अपराधी हैं जिन्हें अपराध के बाद अब तक सजा मिल चुकी है।

यह सरकार और प्रशासन की अपनी दलीलें हैं लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कुछ और ही बताते हैं। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में अभी भी पहला स्थान देश में उत्तर प्रदेश का ही है। साल 2019 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में करीब 15 फीसद अपराध उत्तर प्रदेश में हुए।

एनसीआरबी के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस के पास हर दो घंटे में बलात्कार का मामला दर्ज किया जा रहा है। जब मिशन शक्ति की शुरुआत सरकार ने की थी तो प्रदेश की महिलाओं को यही संदेश दिया गया था कि आप खुद को असुरक्षित महसूस न करें। इस मिशन के तहत महिलाओं के लिए एक ऐसा भयमुक्त माहौल बनाने की ओर कदम बढ़ाने का सरकार का वादा था जहां महिलाएं नहीं बल्कि अपराधी, बलात्कारी खुद को असुरक्षित महसूस करें। इस मिशन के तहत पुलिस द्वारा पीड़ित पक्ष को हरसंभव मदद का भी भरोसा दिलाया गया था लेकिन तस्वीर ठीक इसके विपरीत हमें दिखाई देती है।

आए दिन अखबारों के पन्ने यौन हिंसा, रेप, गैंगरेप, छेड़खानी की खबरों से पटे रहते हैं। विडंबना तो यह है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस शिकायत तक दर्ज नहीं कर रही जिसका परिणाम यह हो रहा है कि पीड़ित को आत्मदाह पर मजबूर होना पड़ रहा है और उससे भी भयावह तस्वीर यह है कि पुलिस द्वारा दोषियों के खिलाफ़ कोई सख्त कार्रवाई न करने के चलते न जाने कितनी बेटियां अपनी जान दे चुकी हैं। पीड़ित पक्ष को डराने धमकाने, केस वापस लेने, जान से मार देने जैसे सच ही हमारे सामने नहीं हैं बल्कि केस दर्ज करवाने के चलते सरेआम मार देने तक के मामलों को हम देख रहे हैं तब यह कैसे मान लिया जाए कि महिलाओं के पक्ष में बहुत कुछ बेहतर हो रहा है। महिलाओं के साथ बढ़ती छेड़छाड़ और रेप की घटनाओं को देखते हुए यूपी सरकार और पुलिस इससे पहले भी कई अभियान चला चुकी है लेकिन इन अभियानों की सफलता और गंभीरता तब धाराशाही होती नजर आती है जब लगातार हम महिला हिंसा की घटनाओं में इजाफा देखते हैं।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार है।)

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