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क्या WHO प्राथमिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मुनाफाखोरों के हाथ सौंपने का समर्थक है?

डब्लूएचओ के सीएसएस को पढ़ने से लगता है कि यह कोई सरकारी दस्तावेज़ है, जिसने इन नीतियों को आंख मूंदकर स्वीकृति दे दी है, यानी उसमें नया कुछ भी नहीं जोड़ा।
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फोटो साभार : who.int

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 10 अक्टूबर 2019 को डब्लूएचओ कन्ट्री कोऑपरेशन स्ट्रैटेजी (सीएसएस) 2019-2023 जारी किया। मोदी सरकार ने पहले, मार्च 2017 में अपने देश की स्वस्थ्य नीति जारी की थी। सितम्बर 2018 में आयुष्मान भारत योजना भी आरंभ किया गया था। अब डब्लूएचओ ( WHO) के सीएसएस को पढ़ने से लगता है कि यह कोई सरकारी दस्तावेज़ है, जिसने इन नीतियों को आंख मूंदकर स्वीकृति दे दी है, यानी उसमें नया कुछ भी नहीं जोड़ा। अलबत्ता, भारत में डब्लूएचओ प्रतिनिधि, डॉ. हेंक बेकेडैम, सीएसएस दस्तावेज़ में दिये गए संदेश में मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैंः ‘‘हाल का अभूतपूर्व आयुष्मान भारत कार्यक्रम ‘यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज’ की परिकल्पना और उसके मातहत ‘किसी को पीछे न छोड़ने’ की प्रतिबद्धता को सच्चाई में बदलने में मदद करेगा।’’

एस सागर, जो एक पब्लिक हेल्थ ऐक्टिविस्ट हैं, बताते हैं कि डब्लूएचओ, अपने जनवरी फैक्ट शीट में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की परिभाषा इस प्रकार देता हैः ‘‘समस्त व्यक्तियों और समुदायों को उनके जरूरत की स्वास्थ्य सेवाएं, बिना किसी आर्थिक भार के, प्राप्त होंगी। इसमें शामिल होंगी समस्त आवश्यक व उत्तम कोटि की स्वास्थ्य सेवाएं, चाहे वे स्वास्थ्य-वर्धन व निरोध संबंधी हो, उपचार या पुनर्वास संबंधी हो और प्रशामक देखभाल हो।’’

‘‘इस मापदण्ड के अनुसार भारत सरकार का आयुष्मान भारत स्वस्थ्य बीमा योजना, यद्यपि कम आय वाले परिवारों के लिए, आपातकालीन स्वास्थ्य व्यय से बचने के किसी अन्य कारगर उपाय के अभाव में, स्वागतयोग्य है, किसी भी सूरत में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की दिशा में कदम नहीं कहा जा सकता। यह योजना, 40 प्रतिशत भारतीय जनमानस को टार्गेट करता है। यह सीमित रोगों के लिए इनपेशेन्ट तृतीयक देखभाल की आवश्यकता को सूचिबद्ध निजी व सरकारी स्वास्थ्य सुविधओं के नेटवर्क के जरिये संबोधित करता है। पर वह आउटपेशेन्ट की जरूरतों को पूरी तरह नज़रंदाज़ करता है, जो हमारे देश में अपनी जेब से खर्च करने वाला एक बड़ा हिस्सा है। इनकी संख्या विश्व में सबसे अधिक है-लगभग 67 प्रतिशत्!’’

आखिर, इस सीसीएस में नया क्या है?  यद्यपि इसमें डब्लूएचओ भारत में चल रहे तमाम स्वास्थ्य कार्यक्रमों को समथर्न देते रहने की बात दोहराता है, ये सामान्य कार्यक्रम ही हैं। क्योंकि 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और डब्लूएचओ के सीसीएस की मूल विशेषता है कि ये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व स्वास्थ्य उपकेन्द्रों को हेल्थ ऐण्ड वेलनेस (स्वास्थ्य व कल्याण) केंद्रों, या एच डब्लू सी में तब्दील करेंगे, ताकि उसकी सेवाओं का दायरा विस्तृत हो। हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे।

मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2022 तक उसने 150,000 एचडब्लूसी स्थापित करने का लक्ष्य तय किया है। 13 अक्टूबर 2019 को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा की कि अब तक देश में 22,000 एचडब्लूसी कार्यरत हैं, और यह संख्या अगले मार्च तक बढ़कर 40,000 हो जाएगी; 51,000 एचडब्लूसी के लिए फंड भी जारी किया गया है।

क्या हैं ये एचडब्लूसी और उनकी भूमिका क्या होगी? विवाद यहीं से शुरू होता है। एचडब्लूसी दो प्रकार के होंगेः 

1. एनएनएम द्वारा संचालित वर्तमान स्वास्थ्य उपकेंद्रों को एक किस्म के एचडब्लूसी बनाया जाएगा, और इन्हें नए तौर पर नामित मध्यम-स्तर के स्वाथ्य सेवा देने वाले, या कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) चलाएंगे; इनकी योग्यता होगी इग्नू या किसी सरकारी विश्वविद्यालय में दूर शिक्षण या ऐसे अन्य कार्यक्रम का प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेना। जनान्दोलनों की लंबित मांग को, कि स्वास्थ्य उपकेंद्रों का योग्य चिकित्सकों की नियुक्ति कर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के रूप में उन्नयन हो, पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया गया। आधिक-से-अधिक, उन्हें योग्य चिकित्सक की सलाह ‘टेलीमेडिसिन’ के माध्यम से मिल सकेगी। 

2. वर्तमान पीएचसी को अलग किस्म के एचडब्लूसी में तब्दील किया जाएगा। ये योग्य चिकित्सकों द्वारा संचालित होंगे।
वर्तमान पीएचसी की सेवाएं सीमित हैं-प्रसूति, गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद की देखभाल और शिशु स्वास्थ्य, परिवार नियोजन व प्रजनन, टीकाकरण और कुछ संक्रामक रोगों की चिकित्सा, जो रोगों का 10 प्रतिशत हिस्सा होगा। पर, नए एचडब्लूसी को इनके अलावा 6 और सेवाएं उपलब्ध करानी होंगी। इनमें होंगे गैर-संक्रामक रोग, नेत्र-संबंधी सेवा, ईएनटी सेवा, दन्त रोग सेवा, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सेवा तथा जराचिकित्सा देखभाल की सेवा, जो आउटपेशेंट सेवा का 70 प्रतिशत हिस्सा होगा। इन्हें 24 घंटे सेवा देनी होगी, पर इसके लिए केवल एक चिकित्सक की नियुक्ति हो रही है।

एचडब्लूसी माॅडल का सबसे विवादास्पद पहलू है कि सरकार इन्हें निजी हाथों को सौंपना चाहती है। ईको जैसी निजी कम्पनी कुछ राज्यों में पहले से ही इन केंद्रों को हथिया रही है। स्वास्थ्य सचिव प्रीती सुदन ने तो 1 मार्च 2018 को सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को इस बाबत सर्कुलर जारी कर दिया कि काॅरपोरेट्स की सीएसआर फंड (काॅरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी निधि) और निजी निवेश निधि को लगाकर ही इन केंद्रों की स्थापना होगी। इसमें कोई दिक्कत नहीं है कि प्राथमिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी कम्पनियों को भी प्रोत्साहन मिले; कई ऐसी कम्पनियां हैं भी। सवाल तो यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिसंरचनात्मक ढांचे को निजी काॅरपोरेटों को क्यों सौंप जा रहा?

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निःशुल्क प्राथमिक चिकित्सा सेवा देते हैं। क्या उपरोक्त एचडब्लूसी में भी ऐसी सुविधा होगी? क्या यदि ऐसा होगा, तो सरकार इन कम्पनियों को चिकित्सा लागत की अदायगी करेगी? सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि ये केंद्र रोगियों से शुल्क उगाही करेंगे या नहीं, क्योंकि बाह्य रोगी सेवा आयुष्मान भारत योजना में सम्मिलित नहीं है, जबकि एचडब्लूसी केवल बाह्य रोगियों के लिए होंगे। क्या डब्लूएचओ भी सार्वजनिक स्वास्थ्य आधारभूत ढांचे के निजीकरण को आंख मूंदकर समर्थन दे रहा है?

डा. अमलोरपवनाथन, मद्रास मेडिकल काॅलेज के वैस्कुलर सर्जरी के पूर्व निदेशक का कहना है, ‘‘असल चुनौती है प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व उपकेंद्रों को सुचारू रूप से चलाना। तमिलनाडु और केरल ने साबित किया है कि यह संभव है और सस्ता भी। पर सरकार इन सफल माॅडलों से कुछ सीखती नहीं। अभी एचडब्लूसी की परिकल्पना का कोई पायलट सर्वे तक नहीं हुआ, पर उसे सार्वभौम बनाया जा रहा। यह प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण का अप्रत्यक्ष तरीका है।’’

 एस सागर ने बात समेटते हुए कहा, ‘‘कुल मिलाकर, डब्लूएचओ का सीसीएस 2019-23 भारत सरकार के दस्तावेज जैसा ही प्रतीत होता है; ऐसा नहीं लगता कि उसे किसी स्वतंत्र ग्लोबल बहुपक्षीय संगठन ने तैयार किया है। दुखद है, पर यह डब्लूएचओ की विश्वसनीयता को खण्डित करता है, जबकि जरूरत इस बात की थी कि वह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की असफलताओं को इंगित करता’’।

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