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पश्चिम बंगाल: श्रमजीवी कैंटीन के सहारे दोबारा सत्ता पर काबिज होने की तैयारी में सीपीएम!

कोलकाता के जादवपुर के नबनगर में श्रमजीवी कैंटीन खोली गयी है। यूं तो इसके संचालन की जिम्मेदारी के लिए स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति देवी के नाम पर एक कमेटी बनायी गयी है। लेकिन इसके पीछे मुख्य भूमिका सीपीएम की है। राज्य में पार्टी की ओर से अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है।
श्रमजीवी कैंटीन
image courtesy : Anandabazar

गरीब और मेहनतकश तबके के लिए कम कीमत में अच्छा एवं पौष्टिक भोजन, आज भी एक सपने जैसा है। तमिलनाडु में अम्मा कैंटीन, झारखंड में मुख्यमंत्री दाल-भात केंद्र, महाराष्ट्र में शिव थाली, छत्तीसगढ़ में अन्नपूर्णा दाल-भात केंद्र जैसी योजनाएं कुछ राज्यों में हैं। लेकिन कुछेक को छोड़ दें, तो ज्यादातर का हाल बुरा है। वैसे भी ये सभी योजनाएं विभिन्न सरकारों की ओर से हैं।

कोई राजनीतिक पार्टी ऐसी योजना चला रही हो, कम-से-कम मेरी जानकारी में नहीं है। छोटे स्तर पर ही सही, ऐसी ही एक पहल पश्चिम बंगाल में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम की ओर से की गयी है। एक राजनीतिक और सामाजिक प्रयोग के तौर पर। कोलकाता के जादवपुर के नबनगर में श्रमजीवी कैंटीन खोली गयी है। यूं तो इसके संचालन की जिम्मेदारी के लिए स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति देवी के नाम पर एक कमेटी बनायी गयी है। लेकिन इसके पीछे मुख्य भूमिका सीपीएम की है। राज्य में पार्टी की ओर से अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है।

इसी जून महीने की आठ तारीख को श्रमजीवी कैंटीन का उद्घाटन सीपीएम के राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने किया। उनके अलावा, राज्यसभा सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य, जादवपुर के विधायक सुजन चक्रवर्ती, पार्टी के कोलाकाता जिला सचिव कल्लोल मजूमदार की उपस्थिति रही।

राज्य में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उपस्थिति बताती है कि इस प्रयोग को सीपीएम कितना महत्वपूर्ण मान रही है। 34 साल के शासन के बाद सीपीएम को बंगाल की सत्ता से बेदखल हुए नौ साल हो चुके हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस भले ही पहले के मुकाबले कमजोर पड़ी हो, लेकिन इस बीच भाजपा चुनौती बनकर उभर आयी है। ऐसे में सीपीएम ने अपना जनाधार फिर से पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ आंदोलनों में उसके पक्ष में अच्छी गोलबंदी हुई थी। कोरोना संकट के चलते केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ आंदोलन फिलहाल थम से गये हैं। ऐसे में सामाजिक कार्यों के जरिये पार्टी अपनी गोलबंदी जारी रखना चाहती है। लॉकडाउन के दौरान गरीब लोगों और अम्फान तूफान के पीड़ितों के बीच खाद्य एवं राहत सामग्री वितरित करने का अभियान उसने बड़े पैमाने पर लिया है। पार्टी के भीतर यह समझ बनी है कि विपक्षी दल के रूप में खुद को सरकारों की आलोचना तक ही सीमित नहीं रखना है, बल्कि अपने रचनात्मक कार्यों के जरिये भविष्य के लिए पूंजी तैयार करनी है।

लॉकडाउन और तूफान प्रभावित क्षेत्रों में मदद के कार्यक्रम भले सामयिक हों, लेकिन श्रमजीवी कैंटीन एक स्थायी योजना है। यहां रोज भोजन मिलेगा। कीमत है 20 रुपये। मजदूर, मेहनतकश या कोई भी 20 रुपये में दाल-भात, भुजिया और अंडा करी खा सकता है। पार्टी अब समाजसेवा के प्रति उत्साही लोगों को जोड़कर ऐसी ही कैंटीन कई अन्य जगहों पर भी शुरू करना चाह रही है।

इस संबंध में पार्टी के राज्य सचिव ने कहा कि कोरोना, लॉकडाउन और प्राकृतिक आपदा से आम लोग बेहाल हैं। इन संकटों से निकलने के लिए सभी को मिलकर काम करना है। उन्होंने कहा कि पार्टी सभी मोर्चों- छात्र, युवा, महिला, किसान, मजदूर के जरिये आम लोगों के साथ खड़े होने की कोशिश में जुटी है।

कोलकाता के पास अशोकनगर-कल्याणगढ़ नगरपालिका इलाके में इन दिनों सीपीएम और वाम मोर्चा की ओर से घर-घर खाद्य सामग्री बांटी जा रही है। इसके अलावा पका हुआ भोजन भी उपलब्ध कराया जा रहा है। लॉकडाउन से लोग पहले ही परेशान थे, ऊपर से अम्फान तूफान ने इलाके में भारी नुकसान पहुंचाया है। यहां विभिन्न वार्डों में 'जनता रसोईघर' चलाये जा रहे हैं। आम लोगों की ओर से मिल रहे रिस्पांस से पार्टी में उत्साह है। अ

शोकनगर के पूर्व सीपीएम विधायक सत्यसेवी कर ने इस संबंध में कहा कि अभी मुश्किल हालात चल रहे हैं। ऐसे में गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने में कोई राजनीति नहीं है। स्थानीय पार्टी नेतृत्व की ओर से बताया गया कि लोगों का जन-समर्थन मिल रहा है, यह देख अच्छा लग रहा है। बैठ चुके पुराने कार्यकर्ता और आज की नयी पीढ़ी पूरी सक्रियता से इस काम में हिस्सा ले रहे हैं।

दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग में भी वाम मोर्चा की ओर से सामुदायिक रसोई का संचालन किया जा रहा है। तूफान प्रभावित लोगों को इसके जरिये भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। कैनिंग की सामुदायिक रसोई में रोज एक हजार से ज्यादा लोग भोजन कर रहे हैं। इस मुश्किल समय में भोजन उपलब्ध कराने का यह अभियान राज्य के कई अन्य जिलों में भी पार्टी चला रही है।

इसमें दो राय नहीं कि अपने साढ़े तीन दशक के शासनकाल को जिस तरह से सीपीएम ने गंवाया है उसे दोबारा हासिल करने के लिए जनता के बीच नए रूप और नए तेवर के साथ जाना होगा उसमें श्रमजीवी कैंटीन जैसी योजनाएं निश्चित ही जनता को न केवल पसंद आ रही है बल्कि लोग चाहते हैं कि पार्टी अन्य जगहों पर भी श्रमजीवी कैंटीन का विस्तार करे। 

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